200 Years of Rani Chennamma’s Rebellion Against the British East India Company: A Historical Review; ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ रानी चेन्नम्मा के विद्रोह की 200वीं वर्षगांठ: एक ऐतिहासिक समीक्षा

भारतीय इतिहास वीरांगनाओं की शौर्यगाथाओं से भरा पड़ा है। इन्हीं अदम्य साहस की देवियों में से एक थीं रानी चेन्नम्मा – कित्तूर की रानी जिन्होंने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को खुली चुनौती देकर भारत के स्वतंत्रता आंदोलन की नींव रखी थी। आज, पूरा भारत उनकी बलिदान की 200वीं वर्षगांठ को याद कर उन्हें श्रद्धांजलि दे रहा है।

2024 में, हम रानी चेन्नम्मा के नेतृत्व में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी (EIC) के खिलाफ हुए कित्तूर विद्रोह की 200वीं वर्षगांठ मना रहे हैं। 1824 में शुरू हुआ यह विद्रोह रानी चेन्नम्मा की मृत्यु (1829) तक जारी रहा और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक निर्णायक क्षण माना जाता है। रानी चेन्नम्मा और उनका वीरतापूर्ण विद्रोह ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीयों के संघर्ष के लिए प्रेरणा बन गए।

कौन थीं रानी चेन्नम्मा (1778-1829):

रानी चेन्नम्मा (1778-1829) कर्नाटक के कित्तूर राज्य की पराक्रमी रानी, कुशल योद्धा और अंग्रेज़ों के खिलाफ संघर्ष करने वाली भारत की पहली वीरांगनाओं में से एक मानी जाती हैं। इनका जन्म कर्नाटक के ककाती गांव में एक लिंगायत परिवार में हुआ था। बचपन से ही उनका प्रशिक्षण अस्त्र-शस्त्र और घुड़सवारी में हुआ। उनका विवाह देसाई घराने के राजा मल्लसर्ज से हुआ और वे कित्तूर की रानी बन गईं।

  • कर्नाटक के कित्तूर राज्य की रानी चेन्नम्मा अपने साहस, नेतृत्व कौशल और भारतीय स्वतंत्रता के प्रति उनके अटूट संकल्प के लिए जानी जाती हैं।
  • वह बचपन से ही घुड़सवारी और तलवारबाजी के हुनर में पारंगत थीं।
  • अपने पुत्र की मृत्यु के बाद (1824), उन्होंने शिवलिंगप्पा को गोद लिया और अपना उत्तराधिकारी घोषित किया।

अन्यायपूर्ण ‘डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स’ और विद्रोह की चिंगारी:

  • रानी चेन्नम्मा के जीवन में एक दुर्भाग्यपूर्ण मोड़ तब आया जब उनके इकलौते पुत्र का देहांत हो गया।
  • कित्तूर राज्यवंश को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने शिवलिंगप्पा को गोद लिया और उसे अपना उत्तराधिकारी घोषित किया।
  • ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने इसका विरोध किया क्योंकि वे अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहते थे।
  • उन्होंने अपनी अन्यायपूर्ण ‘डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स’ नीति का उपयोग करते हुए कित्तूर को हड़पने की कोशिश की।
  • ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की विस्तारवादी नीति ‘डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स’ के तहत, यदि किसी भी देशी रियासत के शासक की संतान न हो और उनकी मृत्यु हो जाए, तो उस राज्य पर कम्पनी का अधिकार हो जाता था।
  • कम्पनी ने रानी चेन्नम्मा के दत्तक पुत्र को मान्यता देने से इनकार कर दिया और कित्तूर पर अपना आधिपत्य जताने की कोशिश की।
  • इस अन्याय ने रानी चेन्नम्मा के भीतर विद्रोह की आग जला दी, और उन्होंने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ लड़ाई लड़ने का साहसिक निर्णय लिया।

कित्तूर विद्रोह: भारत का पहला सशस्त्र विद्रोह

रानी चेन्नम्मा और अंग्रेज़ों के बीच शुरू हुआ कित्तूर विद्रोह (1824-1829) कई इतिहासकारों द्वारा भारत का प्रथम सशस्त्र विद्रोह माना जाता है। रानी चेन्नम्मा का साहस, नेतृत्व कौशल, और युद्धनीति के चलते उनकी सेना ने शुरुआत में अंग्रेज़ों को कई लड़ाइयों में करारी हार दी हालाँकि, अंग्रेज़ों ने फिर बड़ी सेना के साथ हमला बोला और छल-कपट का सहारा लेते हुए कित्तूर के दुर्ग पर कब्ज़ा कर लिया। इस युद्ध में रानी चेन्नम्मा अंग्रेज़ों द्वारा बंदी बना ली गईं।

बैलहोंगल किले में बलिदान

वीर रानी चेन्नम्मा को अंग्रेज़ों ने बैलहोंगल के किले में कैद कर लिया, जहाँ 21 फरवरी, 1829 को उनका देहांत हो गया। हालाँकि अंग्रेज़ कित्तूर पर काबू पाने में कामयाब रहे, पर रानी चेन्नम्मा का साहस और बलिदान भारत के स्वतंत्रता सेनानियों के लिए एक प्रखर प्रेरणास्त्रोत के रूप में हमेशा अमर रहेगा।

रानी चेन्नम्मा की विरासत

शौर्य और स्वतंत्रता की प्रतीक:

  • रानी चेन्नम्मा भारतीय इतिहास में महिलाओं के शौर्य और स्वतंत्रता के लिए अडिग लड़ाई का प्रतीक बन गईं।
  • उन्होंने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ युद्ध में अपनी वीरता और दृढ़ संकल्प का प्रदर्शन किया।
  • उनकी बहादुरी ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम के आने वाले नायकों और सेनानियों को प्रेरित किया।

कर्नाटक में सम्मान:

  • कर्नाटक में, रानी चेन्नम्मा को ओनाके ओबव्वा और बेलावाड़ी मल्लम्मा जैसे पराक्रमी महिला शासकों के साथ सम्मान दिया जाता है।
  • उनकी वीरता और बलिदान को याद रखने के लिए कई स्मारक, संस्थान और सांस्कृतिक उत्सव उनके नाम पर आयोजित किए जाते हैं।

रानी चेन्नम्मा की विरासत में शामिल हैं:

  • प्रेरणादायक नेतृत्व: रानी चेन्नम्मा ने अपने लोगों को एकजुट किया और उन्हें ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ने के लिए प्रेरित किया।
  • अदम्य साहस: युद्ध में उन्होंने अदम्य साहस और वीरता का प्रदर्शन किया।
  • स्वतंत्रता के प्रति समर्पण: वे स्वतंत्रता के लिए लड़ने और अपने राज्य की रक्षा करने के लिए पूरी तरह से समर्पित थीं।
  • महिला सशक्तिकरण: रानी चेन्नम्मा महिला सशक्तिकरण का प्रेरणादायी प्रतीक हैं।

उपलक्ष्य और महोत्सव

  • रानी चेन्नम्मा के बलिदान की 200वीं वर्षगांठ को याद करने के लिए, कई सामाजिक परिवर्तन समूह “नानू रानी चेन्नम्मा (अर्थात मैं भी रानी चेन्नम्मा हूँ)” राष्ट्रीय अभियान का आयोजन कर रहे हैं।
  • यह अभियान रानी चेन्नम्मा के अनुकरणीय जीवन और भारत के स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान के बारे में जागरूकता बढ़ाने की दिशा में एक सराहनीय प्रयास है।

निष्कर्ष:

रानी चेन्नम्मा का जीवन वीरता, साहस और स्वतंत्रता के प्रति अटूट समर्पण का प्रतीक है। उन्होंने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ विद्रोह करके भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी वीरता और बलिदान आज भी प्रेरणा का स्रोत है, और उनका नाम भारतीय इतिहास में हमेशा अमर रहेगा। यह 200वीं वर्षगांठ हमें रानी चेन्नम्मा के जीवन और मूल्यों से प्रेरणा लेने और उनके सपनों को पूरा करने के लिए प्रयास करने का अवसर प्रदान करती है।

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