Part of Virupaksha Temple in Hampi Collapses: History and Significance; कर्नाटक के हम्पी में विरुपाक्ष मंदिर का एक हिस्सा ढह गया: इतिहास और महत्व:

हाल ही में कर्नाटक के हम्पी में भारी वर्षा के कारण विरुपाक्ष मंदिर के ‘सालू मंडप’ का एक हिस्सा ढह गया है। यह घटना इस मंदिर के संरक्षित स्थिति पर गंभीर प्रश्नचिन्ह खड़ा करती है और इसके संरक्षण के महत्व को उजागर करती है। हम्पी का यह प्रसिद्ध मंदिर ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है, और इसके ढहने से इस अद्वितीय धरोहर को जो नुकसान हुआ है, वह अकल्पनीय है। यह मंदिर कर्नाटक के बल्लारी जिले के हम्पी में स्थित है और हम्पी के विरुपाक्ष मंदिर को यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल का हिस्सा होने का गौरव प्राप्त है।

विरुपाक्ष मंदिर का महत्व:

विरुपाक्ष मंदिर भगवान विरुपाक्ष (या पम्पापति) को समर्पित है, जो भगवान शिव का एक रूप हैं। इनकी पत्नी देवी पम्पा हैं, जिन्हें माता पार्वती का अवतार माना जाता है। यह मंदिर हम्पी में स्थित है, जो विजयनगर साम्राज्य (14वीं-16वीं शताब्दी) की राजधानी थी। यह मंदिर अपने स्थापत्य और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है।

विरुपाक्ष मंदिर को दक्षिण भारत के सबसे प्राचीन और महत्वपूर्ण शिव मंदिरों में से एक माना जाता है। इसका निर्माण और विस्तार विभिन्न राजवंशों द्वारा किया गया, जिससे इसका ऐतिहासिक महत्व और भी बढ़ गया है। यह मंदिर दक्षिण भारतीय द्रविड़ स्थापत्य शैली का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जो अपने जटिल नक्काशी, भव्य गोपुरम और स्तंभ युक्त सभाकक्षों के लिए प्रसिद्ध है।

  • विश्व धरोहर स्थल: विरुपाक्ष मंदिर हम्पी के स्मारकों के उस समूह का हिस्सा है, जिसे यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल के रूप में सूचीबद्ध किया है। यह मंदिर द्रविड़ शैली में बना है, जो दक्षिण भारतीय वास्तुकला की एक प्रमुख शैली है।
  • स्थापत्य शैली: यह मंदिर द्रविड़ शैली में निर्मित है, जिसकी विशेषताएं इस प्रकार हैं: भव्य गोपुरम, विमान, जटिल नक्काशी, स्तंभ युक्त सभाकक्ष आदि।

विरुपाक्ष मंदिर का इतिहास:

विरुपाक्ष मंदिर का निर्माण 7वीं शताब्दी में हुआ था। इसके बाद विभिन्न राजवंशों ने इसका विस्तार और अलंकरण किया। इनमें पल्लव, चालुक्य, होयसल, और चोल राजवंश शामिल हैं। विजयनगर साम्राज्य के शासकों ने मंदिर का सर्वाधिक विस्तार किया।

अभिलेखों से पता चलता है कि विरुपाक्ष मंदिर का निर्माण चालुक्य राजाओं ने शुरू किया था और बाद में अन्य राजाओं ने इसका विस्तार किया। मंदिर का महत्वपूर्ण विस्तार विजयनगर साम्राज्य के शासक देव राय द्वितीय के अधीनस्थ प्रमुख लक्कन दंडेशा द्वारा किया गया था। हालांकि, सबसे महत्वपूर्ण विस्तार और योगदान 16वीं शताब्दी की शुरुआत में राजा कृष्णदेवराय के शासनकाल के दौरान किए गए थे।

विजयनगर के संगम वंश के शासकों ने मंदिर को एक प्रमुख धार्मिक स्थल के रूप में मान्यता दिलाई। तुलुव वंश के शासकों ने मंदिर का सर्वाधिक विस्तार किया। प्रसिद्ध शासक कृष्णदेव राय (1509-29 ई.) ने अपने राज्यारोहण के उपलक्ष्य में मुख्य मंदिर के सामने सभाकक्ष और पूर्वी गोपुरम का निर्माण कराया।

विरुपाक्ष मंदिर के स्थापत्य की विशेषताएं:

विरुपाक्ष मंदिर का स्थापत्य द्रविड़ शैली में निर्मित है, जिसकी प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं:

  • गोपुरम: मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार पर एक भव्य गोपुरम (गेटवे टॉवर) है, जो मंदिर की सबसे ऊंची संरचना है। यह गोपुरम अपनी जटिल नक्काशी और वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है।
  • विमान: गर्भगृह के ऊपर एक विमान है, जो सीढ़ीदार पिरामिड के समान आकार का है। द्रविड़ शैली में निर्मित मंदिरों के विमान ज्यामितीय आकार के होते हैं, जबकि नागर शैली में निर्मित मंदिरों के शिखर वक्राकार होते हैं।
  • नक्काशी और मूर्तिकला: मंदिर की दीवारों और स्तंभों पर जटिल नक्काशी और मूर्तिकला का कार्य किया गया है। ये नक्काशी धार्मिक कथाओं और पौराणिक घटनाओं को दर्शाती हैं।
  • मंडप: मंदिर परिसर में कई मंडप (हॉल) हैं, जिनमें सभा मंडप प्रमुख है। ये मंडप धार्मिक और सामाजिक आयोजनों के लिए उपयोग किए जाते थे।
  • जलाशय: मंदिर परिसर में एक बड़ा जलाशय भी है, जो धार्मिक और उपयोगी कार्यों के लिए महत्वपूर्ण है। इस जलाशय का उपयोग जल संचयन और जल शुद्धिकरण के लिए किया जाता था।

वर्तमान स्थिति और संरक्षण:

हम्पी में हालिया भारी वर्षा के कारण विरुपाक्ष मंदिर के ‘सालू मंडप’ का एक हिस्सा ढह गया है। यह घटना इस ऐतिहासिक धरोहर को गंभीर नुकसान पहुँचाती है और इसके संरक्षण की आवश्यकता को उजागर करती है। इस घटना से विरुपाक्ष मंदिर के महत्व और इसकी स्थापत्यकला के प्रति हमारी जागरूकता और बढ़ गई है।

Virupaksha Temple in Hampi
  • संरक्षण के उपाय: स्थानीय प्रशासन और पुरातत्व विभाग को इस ऐतिहासिक मंदिर के पुनर्निर्माण और संरक्षण के लिए त्वरित कदम उठाने चाहिए। मंदिर के ढहे हुए हिस्से को पुनर्निर्मित करने के साथ-साथ, इसे भविष्य में होने वाले नुकसान से बचाने के लिए भी उपाय करने चाहिए। इसमें संरचनात्मक सुदृढ़ीकरण, जल निकासी प्रणाली की सुधार और नियमित निरीक्षण शामिल हो सकते हैं।

विरुपाक्ष मंदिर का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व:

विरुपाक्ष मंदिर न केवल स्थापत्य कला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, बल्कि यह धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी रखता है। यह मंदिर हिन्दू धर्म के अनुयायियों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। यहां हर साल हजारों श्रद्धालु भगवान विरुपाक्ष और देवी पम्पा की पूजा करने आते हैं।

मंदिर परिसर में विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव भी मनाए जाते हैं, जिनमें प्रमुख रूप से महाशिवरात्रि, कार्तिक पूर्णिमा, और मकर संक्रांति शामिल हैं। विरुपाक्ष मंदिर में दिसंबर में विरुपाक्ष और पंपा का विवाह उत्सव मनाया जाता है, फरवरी में रथ उत्सव आयोजित होता है। ये उत्सव धार्मिक और सांस्कृतिक एकता को बढ़ावा देते हैं और हजारों भक्तों को आकर्षित करते हैं।

निष्कर्ष:

विरुपाक्ष मंदिर न केवल हम्पी की सांस्कृतिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, बल्कि यह भारतीय इतिहास और वास्तुकला का भी एक महत्वपूर्ण उदाहरण है। इस मंदिर का संरक्षण और सुरक्षा हमारे सांस्कृतिक विरासत को सुरक्षित रखने के लिए महत्वपूर्ण है। हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ऐसे महत्वपूर्ण धरोहर स्थलों का संरक्षण सही तरीके से हो ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी इनकी भव्यता और महत्व का अनुभव कर सकें।

इस मंदिर का ढहना हमें यह याद दिलाता है कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर की रक्षा और संरक्षण कितना महत्वपूर्ण है। हमें इस दिशा में ठोस कदम उठाने की जरूरत है ताकि हम अपने इतिहास और संस्कृति को सुरक्षित रख सकें। स्थानीय प्रशासन, पुरातत्व विभाग और समुदाय के सहयोग से हम इस धरोहर को पुनः स्थापित और सुरक्षित कर सकते हैं।

FAQs:

विरुपाक्ष मंदिर कहां स्थित है?

विरुपाक्ष मंदिर कर्नाटक राज्य के हम्पी में स्थित है, जो विजयनगर साम्राज्य की प्राचीन राजधानी थी।

विरुपाक्ष मंदिर की स्थापत्य शैली क्या है?

विरुपाक्ष मंदिर द्रविड़ स्थापत्य शैली में बना है, जिसमें भव्य गोपुरम, सीढ़ीदार पिरामिड के आकार का विमान, जटिल नक्काशी, और स्तंभ युक्त सभाकक्ष शामिल हैं।

विरुपाक्ष मंदिर का निर्माण कब और किसने कराया था?

विरुपाक्ष मंदिर का सबसे पहले निर्माण 7वीं शताब्दी में चालुक्य राजाओं ने शुरू किया था। इसके बाद विभिन्न राजवंशों, जैसे होयसल और विजयनगर साम्राज्य के शासकों ने इसका विस्तार और अलंकरण किया।

विजयनगर साम्राज्य का मंदिर के विकास में क्या योगदान है?

विजयनगर साम्राज्य के शासकों, विशेष रूप से कृष्णदेव राय, ने मंदिर का सबसे बड़ा विस्तार किया। उन्होंने मुख्य मंदिर के सामने एक सभाकक्ष और पूर्वी गोपुरम का निर्माण कराया।

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