Ministry of Information and Broadcasting Mandates ‘Self-Declaration Certificate’ for All New Advertisements; सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने विज्ञापनों के लिए ‘सेल्फ-डिक्लेरेशन सर्टिफिकेट’ को अनिवार्य किया:

भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए सभी नए विज्ञापनों के लिए “सेल्फ-डिक्लेरेशन सर्टिफिकेट (SDC)” को अनिवार्य कर दिया है। यह कदम सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के तहत उठाया गया है, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया था कि वैध SDC के बिना टेलीविजन, प्रिंट मीडिया या इंटरनेट पर किसी भी विज्ञापन का प्रचार करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। इस फैसले का मुख्य उद्देश्य विज्ञापनों में पारदर्शिता और उपभोक्ताओं की सुरक्षा सुनिश्चित करना है।

सेल्फ-डिक्लेरेशन सर्टिफिकेट (SDC) क्या है?

SDC एक स्व-प्रमाणन दस्तावेज है जिसे विज्ञापन करवाने वाले या विज्ञापन एजेंसी के अधिकृत प्रतिनिधि द्वारा हस्ताक्षरित किया जाता है। यह सर्टिफिकेट यह सुनिश्चित करता है कि विज्ञापन में कोई भ्रामक दावा नहीं किया गया है और यह सभी विनियामक दिशा-निर्देशों का पालन करता है। इस दस्तावेज़ के बिना, किसी भी मीडिया प्लेटफॉर्म पर विज्ञापन को प्रसारित करने की अनुमति नहीं होगी।

SDC को जमा करने की प्रक्रिया:

टेलीविजन और रेडियो पर प्रसारित किए जाने वाले विज्ञापनों के लिए:

    • इन विज्ञापनों के SDC को ब्रॉडकास्ट सेवा पोर्टल पर जमा करना होगा। यह पोर्टल विज्ञापनों की निगरानी और उनके सत्यापन के लिए एक केंद्रीकृत प्लेटफार्म के रूप में कार्य करता है।

    प्रिंट मीडिया और डिजिटल/इंटरनेट पर प्रसारित किए जाने वाले विज्ञापनों के लिए:

      • इन विज्ञापनों के SDC को भारतीय प्रेस परिषद के पोर्टल पर जमा करना होगा। यह पोर्टल प्रिंट और डिजिटल मीडिया में प्रसारित होने वाले विज्ञापनों की वैधता और सत्यता की जांच करता है।

      SDC में शामिल आवश्यकताएं:

      SDC में यह प्रमाणित किया जाएगा कि:

      • विज्ञापन में भ्रामक दावे नहीं किए गए हैं: विज्ञापन में दिए गए सभी दावे सत्य और तथ्यात्मक हैं, जिससे उपभोक्ताओं को किसी भी प्रकार की गलत जानकारी नहीं मिलती।
      • विनियामक दिशा-निर्देशों का पालन किया गया है: विज्ञापन निम्नलिखित विनियामक दिशानिर्देशों का अनुपालन करता है:
        • केबल टेलीविजन नेटवर्क नियम, 1994: यह नियम टेलीविजन पर प्रसारित होने वाले कंटेंट को नियंत्रित करता है।
        • भारतीय प्रेस परिषद का पत्रकारिता आचरण मानक: यह मानक प्रिंट और डिजिटल मीडिया में पत्रकारिता के उच्च मानकों को सुनिश्चित करता है।

      इस कदम का महत्व:

      पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करना:

        • इस नियम के लागू होने से विज्ञापनदाताओं, निर्माताओं और प्रमोटरों को अपने विज्ञापनों के लिए जवाबदेही का पालन करना होगा। यह विज्ञापनों में किसी भी प्रकार की भ्रामक जानकारी और गलत दावों को रोकने में मदद करेगा।

        उपभोक्ता संरक्षण सुनिश्चित करना:

          • SDC के माध्यम से, उपभोक्ताओं को सुरक्षित और सटीक जानकारी प्राप्त होगी। यह कदम उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करेगा और उन्हें झूठे और भ्रामक विज्ञापनों से बचाएगा।

          नियम और कानूनों का बेहतर तरीके से लागू होना:

            • SDC की अनिवार्यता से “भ्रामक विज्ञापनों की रोकथाम और भ्रामक विज्ञापनों के लिए एंडोर्समेंट मार्गदर्शक सिद्धांत, 2022” के तहत शिकायतें दर्ज करने की प्रक्रिया को भी मजबूती मिलेगी। इससे विज्ञापन उद्योग में नियमों का पालन सुनिश्चित होगा और बाजार में अधिक ईमानदारी और पारदर्शिता आएगी।

            भारतीय प्रेस परिषद (Press Council of India: PCI):

            भारतीय प्रेस परिषद एक वैधानिक और अर्ध-न्यायिक स्वायत्त प्राधिकरण है, जिसकी स्थापना 1979 में प्रेस काउंसिल एक्ट, 1978 के तहत की गई थी। इसका मुख्य उद्देश्य भारत में समाचार पत्रों और समाचार एजेंसियों के मानकों को बनाए रखना और समय-समय पर उनमें सुधार करना है, ताकि प्रेस की स्वतंत्रता बनी रहे।

            PCI की संरचना और भूमिका:

            • PCI में एक अध्यक्ष और 28 सदस्य होते हैं।
            • परंपरा के अनुसार, PCI का अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट का एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश होता है। इसका अध्यक्ष राज्य सभा के सभापति, लोक सभा के अध्यक्ष और परिषद के 28 सदस्यों द्वारा चुना जाता है।
            • PCI प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा करने के साथ-साथ पत्रकारिता के उच्च मानकों को सुनिश्चित करता है। यह समाचार पत्रों और समाचार एजेंसियों के संचालन पर निगरानी रखता है और उनकी गुणवत्ता को बढ़ावा देता है।

            निष्कर्ष:

            सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा “सेल्फ-डिक्लेरेशन सर्टिफिकेट (SDC)” को अनिवार्य बनाने का निर्णय विज्ञापन उद्योग के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। इससे विज्ञापनों में पारदर्शिता और उपभोक्ता सुरक्षा को बढ़ावा मिलेगा। यह पहल न केवल भ्रामक विज्ञापनों को रोकने में मदद करेगी, बल्कि उपभोक्ताओं को सटीक और भरोसेमंद जानकारी प्रदान करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।

            FAQs:

            सेल्फ-डिक्लेरेशन सर्टिफिकेट (SDC) क्या है?

            SDC एक स्व-प्रमाणन दस्तावेज है जिसे विज्ञापन करवाने वाले या विज्ञापन एजेंसी के अधिकृत प्रतिनिधि द्वारा हस्ताक्षरित किया जाता है। यह सर्टिफिकेट यह सुनिश्चित करता है कि विज्ञापन में कोई भ्रामक दावा नहीं किया गया है और यह सभी विनियामक दिशा-निर्देशों का पालन करता

            SDC के बिना विज्ञापन क्यों नहीं चलाया जा सकता?

            सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि वैध SDC के बिना किसी भी टेलीविजन, प्रिंट मीडिया या इंटरनेट विज्ञापन का प्रसारण नहीं किया जा सकता। इसका उद्देश्य विज्ञापनों में पारदर्शिता और उपभोक्ताओं की सुरक्षा सुनिश्चित करना है।

            SDC को कहाँ जमा करना होगा?

            1. टेलीविजन और रेडियो विज्ञापनों के लिए: SDC को ब्रॉडकास्ट सेवा पोर्टल पर जमा करना होगा।
            2. प्रिंट और डिजिटल/इंटरनेट विज्ञापनों के लिए: SDC को भारतीय प्रेस परिषद के पोर्टल पर जमा करना होगा।

            SDC में क्या प्रमाणित करना होगा?

            SDC में यह प्रमाणित किया जाएगा कि:
            1. विज्ञापन में कोई भ्रामक दावा नहीं किया गया है।
            2. विज्ञापन ने सभी प्रासंगिक विनियामक दिशा-निर्देशों का पालन किया है, जैसे कि केबल टेलीविजन नेटवर्क नियम, 1994 और भारतीय प्रेस परिषद का पत्रकारिता आचरण मानक।

            SDC की अनिवार्यता से क्या लाभ होंगे?

            SDC की अनिवार्यता से विज्ञापनों में पारदर्शिता बढ़ेगी और उपभोक्ताओं को भ्रामक और झूठे विज्ञापनों से बचाया जा सकेगा। यह विनियामक दिशा-निर्देशों का पालन सुनिश्चित करेगा और विज्ञापन उद्योग में जिम्मेदारी और जवाबदेही को बढ़ावा देगा।

            SDC नियमों का पालन न करने पर क्या होगा?

            यदि कोई विज्ञापन SDC के बिना प्रसारित किया जाता है, तो उसे अवैध माना जाएगा और इसके खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है। इससे जुर्माना या अन्य कानूनी परिणाम भी हो सकते हैं।

            भारतीय प्रेस परिषद (PCI) क्या है?

            भारतीय प्रेस परिषद एक वैधानिक और अर्ध-न्यायिक स्वायत्त प्राधिकरण है जिसकी स्थापना 1979 में प्रेस काउंसिल एक्ट, 1978 के तहत की गई थी। इसका मुख्य उद्देश्य भारत में समाचार पत्रों और समाचार एजेंसियों के मानकों को बनाए रखना और उनमें सुधार करना है।

            PCI का अध्यक्ष कौन होता है?

            परंपरा के अनुसार, PCI का अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट का एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश होता है। इसे राज्य सभा के सभापति, लोक सभा के अध्यक्ष और परिषद के 28 सदस्यों की समिति द्वारा चुना जाता है।

            क्या यह नियम सभी प्रकार के विज्ञापनों पर लागू होता है?

            हां, यह नियम सभी प्रकार के विज्ञापनों पर लागू होता है, चाहे वे टेलीविजन, रेडियो, प्रिंट मीडिया, या डिजिटल/इंटरनेट पर प्रसारित हो रहे हों।

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