Economic Survey 2023-24: Concerns Over Rising Mental Health Issues Among Indians; आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24: भारतीयों में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं में वृद्धि के प्रति चिंता:

आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 में भारतीयों में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं में वृद्धि के प्रति गंभीर चिंता प्रकट की गई है। मानसिक स्वास्थ्य एक ऐसी स्थिति है जो लोगों को जीवन के तनावों से निपटने, अपनी क्षमताओं का उपयोग करने, अच्छी तरह से सीखने और काम करने, और अपने समुदाय में योगदान करने में सक्षम बनाती है। मानसिक स्वास्थ्य की अनदेखी से व्यक्ति और समाज दोनों पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।

Table Of Contents
  1. मानसिक स्वास्थ्य समस्या की स्थिति:
  2. मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कारक:
  3. प्रभाव:
  4. मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से निपटने के लिए सुझाव:
  5. मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए शुरू की गई पहलें:
  6. निष्कर्ष:
  7. FAQs:

मानसिक स्वास्थ्य समस्या की स्थिति:

आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 के अनुसार, भारत में 10.6% वयस्क मानसिक विकारों से पीड़ित हैं। यह आंकड़ा मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं की गंभीरता को दर्शाता है। इससे पहले, राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2015-16 में बताया गया था कि विविध प्रकार के मानसिक विकारों से पीड़ित 70 से 92% लोगों को जरुरत के समय उपचार सुविधा नहीं मिल पाती है।

ग्रामीण क्षेत्रों और शहरी गैर-मेट्रो क्षेत्रों की तुलना में शहरी क्षेत्रों में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं की उच्च दर पाई जाती है। शहरी जीवनशैली की जटिलताएं, प्रतिस्पर्धा और सामाजिक अलगाव के कारण मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार 2019 में, विश्व में प्रत्येक आठ में से एक व्यक्ति यानी कुल 970 मिलियन लोग मानसिक विकार से पीड़ित थे।

मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कारक:

1. गरीबी:
इसका एक बड़ा कारण गरीबी है। गरीबी वास्तव में तनावपूर्ण जीवन यापन, वित्तीय संकट और रोजगार के अवसरों की कमी से जुड़ी हुई है। ये सभी स्थितियां मानसिक सेहत पर गहरा असर डालती हैं। गरीब परिवारों को न केवल आर्थिक संकट का सामना करना पड़ता है, बल्कि उनकी मानसिक स्थिति भी खराब होती है।

2. परिवार संरचना:
एकल परिवार यानी न्यूक्लियर फैमिली में वृद्धि होती जा रही है। ऐसे परिवार में बुजुर्गों को एकाकी जीवन जीना पड़ता है और उनकी सहायता करने वाला कोई नहीं होता है। इस वजह से वे मानसिक रोगों से ग्रस्त हो जाते हैं। परिवार के अन्य सदस्यों के लिए भी सामाजिक समर्थन की कमी मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकती है।

प्रभाव:

1. बाल अधिकार:
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) के अनुसार स्मार्टफोन, इंटरनेट आदि के अत्यधिक उपयोग के कारण लगभग 37% बच्चों की एकाग्रता में कमी आई है। इससे बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है और उनकी शैक्षिक प्रदर्शन में गिरावट आती है।

2. शैक्षिक प्रदर्शन:
एंग्जायटी, मूड स्विंग आदि के कारण बच्चों के शैक्षिक प्रदर्शन में कमी आई है। मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के कारण बच्चों की पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करने की क्षमता कम हो जाती है, जिससे उनके अकादमिक परिणाम प्रभावित होते हैं।

3. आर्थिक बोझ:
स्वास्थ्य देखभाल सेवा का बढ़ता खर्च गरीब परिवारों पर बोझ बढ़ाता है। स्वास्थ्य समस्याओं के उपचार के लिए आवश्यक संसाधनों की कमी के कारण गरीब परिवार आर्थिक संकट में आ जाते हैं।

मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से निपटने के लिए सुझाव:

1. मनोचिकित्सकों की संख्या में वृद्धि:
2021 में प्रति लाख जनसंख्या-मनोचिकित्सक अनुपात 0.75 था। WHO के मानदंडों के अनुसार प्रति एक लाख जनसंख्या पर 3 मनोचिकित्सक होने चाहिए। इसलिए, मनोचिकित्सकों की संख्या में वृद्धि की जानी चाहिए ताकि सभी को मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध हो सकें।

2. समुदाय की भागीदारी:
मानसिक सेहतमंदी सुनिश्चित करने में समुदायों की व्यापक भागीदारी सुनिश्चित करनी चाहिए और बॉटम-अप रणनीति अपनाई जानी चाहिए। इससे मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का समाधान अधिक प्रभावी ढंग से किया जा सकता है।

मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए शुरू की गई पहलें:

भारत की पहलें:

1. टेली-मानस:
राज्यों में टेली मानसिक स्वास्थ्य सहायता और नेटवर्किंग (टेली-मानस) शुरू की गई है। इस पहल का उद्देश्य दूरस्थ क्षेत्रों में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता को बढ़ाना है।

2. मनोदर्पण:
कोविड-19 और उसके बाद छात्रों को मनोवैज्ञानिक सहायता प्रदान करने के लिए मनोदर्पण नामक पहल शुरू की गई। यह पहल छात्रों को मानसिक तनाव और चिंता से निपटने में मदद करती है।

3. राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम:
इसका उद्देश्य सभी के लिए न्यूनतम मानसिक स्वास्थ्य देखभाल सेवा की उपलब्धता और ऐसे देखभाल केंद्रों तक पहुंच सुनिश्चित कराना है। इस कार्यक्रम के माध्यम से मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच को बढ़ाने का प्रयास किया जाता है।

वैश्विक पहलें:

1. पारो घोषणा-पत्र (Paro Declaration):
इसमें जन-केन्द्रित मानसिक स्वास्थ्य देखभाल और सेवाओं तक सार्वभौमिक पहुंच प्रदान करने की बात कही गई है। यह घोषणा-पत्र मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच को बढ़ाने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।

2. WHO का मेेंटल हेल्थ गैप एक्शन प्रोग्राम:
इसका उद्देश्य मानसिक, न्यूरोलॉजिकल और मादक पदार्थों के उपयोग से जुड़े विकारों से निपटने हेतु देखभाल सेवाओं को बढ़ाना है। यह प्रोग्राम मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच और गुणवत्ता को सुधारने के लिए काम करता है।

निष्कर्ष:

आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं में वृद्धि के प्रति चिंता प्रकट की गई है। यह हमारे समाज के विभिन्न हिस्सों में फैली समस्याओं को उजागर करता है और इस बात की आवश्यकता पर जोर देता है कि मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। समुदाय की व्यापक भागीदारी, पर्याप्त मनोचिकित्सक, और मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की बेहतर पहुंच से ही इस समस्या का समाधान संभव है।

सरकार और समाज को मिलकर मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के समाधान के लिए ठोस कदम उठाने होंगे ताकि हमारे नागरिक स्वस्थ और खुशहाल जीवन जी सकें। मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच और गुणवत्ता को सुधारने के लिए सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है, जिससे सभी लोगों को मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ मिल सके और समाज में मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति में सुधार हो।

FAQs:

आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के प्रति क्यों चिंता जताई गई है?

आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं में वृद्धि के आंकड़े प्रस्तुत किए गए हैं, जिससे पता चलता है कि भारत में 10.6% वयस्क मानसिक विकारों से पीड़ित हैं। यह समस्या गंभीर है और इससे समाज और अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

मानसिक स्वास्थ्य क्या है?

मानसिक स्वास्थ्य एक ऐसी स्थिति है जो लोगों को जीवन के तनावों से निपटने, अपनी क्षमताओं का उपयोग करने, अच्छी तरह से सीखने और काम करने, और अपने समुदाय में योगदान करने में सक्षम बनाती है। यह मानसिक, भावनात्मक और सामाजिक कल्याण को समाहित करती है।

भारत में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का मुख्य कारण क्या है?

भारत में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के मुख्य कारणों में गरीबी, पारिवारिक संरचना में बदलाव, सामाजिक अलगाव, और शहरी जीवनशैली की जटिलताएं शामिल हैं। ये कारक मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं।

बच्चों पर मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का क्या प्रभाव पड़ता है?

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) के अनुसार, स्मार्टफोन और इंटरनेट के अत्यधिक उपयोग के कारण लगभग 37% बच्चों की एकाग्रता में कमी आई है। इसके परिणामस्वरूप बच्चों के शैक्षिक प्रदर्शन में भी गिरावट आई है।

मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से निपटने के लिए क्या सुझाव दिए गए हैं?

मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से निपटने के लिए मनोचिकित्सकों की संख्या में वृद्धि, समुदाय की भागीदारी, और मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की बेहतर पहुंच सुनिश्चित करने की आवश्यकता है। इसके अलावा, मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए भी प्रयास किए जाने चाहिए।

भारत में मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए कौन-कौन सी पहलें शुरू की गई हैं?

भारत में टेली-मानस, मनोदर्पण, और राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम जैसी पहलें शुरू की गई हैं। इन पहलों का उद्देश्य मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच को बढ़ाना और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से निपटने में सहायता प्रदान करना है।

विश्व स्तर पर मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए कौन-कौन सी पहलें की गई हैं?

विश्व स्तर पर पारो घोषणा-पत्र और WHO का मेंटल हेल्थ गैप एक्शन प्रोग्राम जैसी पहलें की गई हैं। इन पहलों का उद्देश्य मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की सार्वभौमिक पहुंच और गुणवत्ता में सुधार करना है।

मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का आर्थिक प्रभाव क्या होता है?

मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के कारण स्वास्थ्य देखभाल सेवा का बढ़ता खर्च गरीब परिवारों पर बोझ बढ़ाता है। इसके अलावा, मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के कारण उत्पादकता में कमी और कार्यस्थल पर प्रदर्शन में गिरावट भी हो सकती है।

ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं में क्या अंतर है?

आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, शहरी क्षेत्रों में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं की उच्च दर पाई जाती है। शहरी जीवनशैली की जटिलताएं, प्रतिस्पर्धा और सामाजिक अलगाव के कारण शहरी क्षेत्रों में मानसिक स्वास्थ्य पर अधिक नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

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