आधुनिक युग में डिजिटल प्रौद्योगिकी और इंटरनेट ने ज्ञान के द्वार खोले हैं, लेकिन कुछ बड़ी कंपनियों ने इस स्वतंत्रता का उपयोग अपने प्रभुत्व के लिए किया है। इसी संदर्भ में, गूगल, जो एक प्रमुख डिजिटल दिग्गज है, हाल ही में अमेरिकी जिला न्यायालय के एक फैसले के केंद्र में आया। इस फैसले में गूगल को इंटरनेट सर्च और विज्ञापन बाजार में अवैध एकाधिकार के लिए दोषी ठहराया गया है। गूगल पर आरोप है कि उसने अमेरिकी एंटी-ट्रस्ट कानून, जिसे ‘शर्मन एक्ट’ कहा जाता है, का उल्लंघन किया है। यह कानून बाजार में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को बनाए रखने और उपभोक्ताओं के लिए हानिकारक गतिविधियों को रोकने के लिए बनाया गया है।
गूगल की बाजार में हिस्सेदारी:
गूगल ने जनरल सर्च सर्विसेज (GSS) और जनरल टेक्स्ट एडवरटाइजिंग मार्केट में अपनी हिस्सेदारी को काफी हद तक बढ़ा लिया है, जिससे उसकी बाजार में प्रभुत्व की स्थिति बनी हुई है:
जनरल सर्च सर्विसेज (GSS) में गूगल की हिस्सेदारी 89.2% है, जो मोबाइल डिवाइसेज में बढ़कर 94.9% हो गई है। इसी तरह, जनरल टेक्स्ट एडवरटाइजिंग मार्केट में गूगल की हिस्सेदारी 2020 में 88% थी। इस प्रकार की बड़ी हिस्सेदारी गूगल को बाजार में अपनी मनमानी करने का अवसर देती है और नई प्रतिस्पर्धी कंपनियों के लिए इस क्षेत्र में प्रवेश करना मुश्किल बना देती है।
गूगल का एकाधिकार:
गूगल ने अपना एकाधिकार बनाए रखा है और प्रतिस्पर्धा को दबा दिया है। यह निम्नलिखित तरीकों से संभव हुआ है:
गूगल ने प्रमुख वितरण चैनलों पर लगभग पूरा नियंत्रण हासिल कर लिया है, जैसे कि ऐप स्टोर्स और प्री-इंस्टॉल्ड ऐप्स। गूगल ने एप्पल, सैमसंग और वेरिज़ॉन जैसी कंपनियों के साथ समझौते किए हैं, जिसके तहत इन कंपनियों की डिवाइसेज पर गूगल सर्च डिफ़ॉल्ट सर्च इंजन के रूप में सेट होता है। इससे अन्य सर्च इंजन कंपनियों के लिए मार्केट में प्रवेश करना कठिन हो गया है।
बड़ी टेक कंपनियों की एकाधिकारवादी गतिविधियों से जुड़ी चिंताएँ:
डेटासेट का दुरुपयोग
आधुनिक टेक्नोलॉजी सेक्टर में बड़ी कंपनियों के पास अत्यधिक मात्रा में डेटा होता है, जो उन्हें असाधारण शक्ति और नियंत्रण प्रदान करता है। ये कंपनियाँ अपने विशाल डेटासेट का उपयोग करके ग्राहकों के व्यवहार और रुझानों का विश्लेषण करती हैं। जिनका इस्तेमाल अधिक लाभ कमाने या बाजार पर अपने नियंत्रण को बनाए रखने के लिए किया जा सकता है।
विजेता को सारा लाभ मिलना
डिजिटल मार्केट में व्यवसायों के तेजी से विस्तार और प्रभुत्व स्थापित करने की अद्वितीय क्षमता है। इससे यह लोकतांत्रिक प्रतिस्पर्धा को बाधित करता है, नए व्यवसायों के बाजार में प्रवेश को हतोत्साहित करता है, और स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को नुकसान पहुँचाता है। इस प्रकार का वर्चस्व स्थापित करके, प्रमुख कंपनियाँ अपने लाभ को अधिकतम कर सकती हैं, लेकिन इससे बाजार में विविधता और नवाचार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
प्रतिस्पर्धा-रोधी व्यवहार (Anti-Competitive Practices):
भारत में, बड़ी डिजिटल कंपनियों द्वारा अपनाई जाने वाली प्रतिस्पर्धा-रोधी गतिविधियों की पहचान करने के लिए एक संसदीय स्थायी समिति की रिपोर्ट ने 10 प्रमुख प्रतिस्पर्धा-रोधी व्यवहारों की पहचान की है। ये व्यवहार बाजार में प्रतिस्पर्धा को कम करते हैं और उपभोक्ताओं के लिए कम विकल्प छोड़ते हैं।
अवरोधक प्रथाएं | विवरण |
---|---|
एंटी-स्टीयरिंग प्रावधान | उपयोगकर्ताओं को प्रतिस्पर्धी प्लेटफॉर्म की ओर जाने से रोकने की रणनीति |
प्राइसिंग / डीप डिस्काउंटिंग | प्रतिस्पर्धियों को बाहर करने के लिए अत्यधिक छूट की पेशकश |
प्लेटफॉर्म न्यूट्रैलिटी / सेल्फ-प्रेफरेंसिंग | अपने उत्पादों या सेवाओं को अन्य की तुलना में प्राथमिकता देना |
विशिष्ट समझौते | केवल विशिष्ट पार्टियों के साथ व्यापार करने के लिए अनुबंध |
एडजेंसेसी / बंडलिंग एंड टाइंग | एक उत्पाद को दूसरे के साथ पैकेज में जोड़कर बेचना |
सर्च और रैंकिंग प्राथमिकता | खोज परिणामों में कुछ उत्पादों या सेवाओं को प्राथमिकता देना |
डेटा उपयोग (अप्रकाशित डेटा का उपयोग) | प्रतियोगियों की तुलना में लाभ के लिए अप्रकाशित डेटा का उपयोग |
थर्ड पार्टी एप्लीकेशन को रोकना | अन्य एप्लिकेशन के उपयोग को प्रतिबंधित करने की नीति |
अधिग्रहण और विलय | प्रतिस्पर्धा को कम करने के लिए छोटे व्यवसायों का अधिग्रहण करना |
विज्ञापन नीतियाँ | विज्ञापन में पक्षपातपूर्ण या भ्रामक रणनीति अपनाना |
भारत में बिग टेक कंपनियों का विनियमन:
इन चिंताओं के मद्देनजर, भारत सरकार ने प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002 को संशोधित किया है, जिसे 2023 में और मजबूत किया गया। यह कानून ऐसी प्रतिस्पर्धा-रोधी समझौतों और प्रभुत्व के दुरुपयोग को नियंत्रित करता है, और इसके अंतर्गत भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) की स्थापना की गई है। यह आयोग प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने, उपभोक्ताओं की रक्षा करने और व्यापार की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए उपाय करता है।
ड्राफ्ट डिजिटल प्रतिस्पर्धा विधेयक, 2024 के प्रस्ताव के अनुसार, यह नया विधेयक एंटी-ट्रस्ट आशंका वाले समझौतों का पूर्वानुमान लगाकर उचित कार्रवाई करने का प्रावधान करता है और ‘सिस्टेमिकली सिग्निफिकेंट डिजिटल एंटरप्राइजेज’ (SSDE) की पहचान करना है।
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के तहत, अनुचित व्यापार व्यवहारों या गतिविधियों को रोकने का उद्देश्य भी सम्मिलित है, जिससे उपभोक्ताओं को उचित और न्यायसंगत व्यापार प्रथाओं का लाभ मिल सके।
निष्कर्ष:
गूगल के खिलाफ अमेरिकी जिला न्यायालय का यह निर्णय न केवल एक उदाहरण है बल्कि यह डिजिटल आयु में प्रतिस्पर्धा की स्वस्थता को बनाए रखने के लिए आवश्यक कानूनी ढांचे की भी मांग करता है। इससे अन्य बड़ी तकनीकी कंपनियों को भी संदेश जाता है कि व्यापार में ईमानदारी और प्रतिस्पर्धा दोनों को संतुलित करना परम आवश्यक है। उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा और एक स्वतंत्र, स्वस्थ प्रतिस्पर्धात्मक बाजार का निर्माण ऐसे ही सक्रिय नियामक हस्तक्षेपों से संभव है।
FAQs:
गूगल पर अमेरिकी न्यायालय का आरोप क्या है?
गूगल पर अमेरिकी न्यायालय ने इंटरनेट सर्च और विज्ञापन बाजार में गैर-कानूनी एकाधिकार रखने का आरोप लगाया है। न्यायालय का कहना है कि गूगल ने अपने प्रभुत्व का दुरुपयोग किया है, जिससे बाजार में प्रतिस्पर्धा प्रभावित हुई है और अन्य कंपनियों के लिए इस क्षेत्र में प्रवेश करना मुश्किल हो गया है।
गूगल ने बाजार में अपना एकाधिकार कैसे बनाया?
गूगल ने एप्पल, सैमसंग और वेरिज़ॉन जैसी कंपनियों के साथ समझौते किए हैं, जिससे इनके उपकरणों पर गूगल सर्च डिफ़ॉल्ट सर्च इंजन के रूप में सेट होता है। इसके अलावा, गूगल ने वितरण चैनलों पर नियंत्रण स्थापित किया है, जिससे अन्य सर्च इंजनों के लिए बाजार में प्रवेश करना कठिन हो गया है।
अमेरिकी एंटी-ट्रस्ट कानून ‘शर्मन एक्ट’ क्या है?
‘शर्मन एक्ट’ एक अमेरिकी एंटी-ट्रस्ट कानून है जिसका उद्देश्य बाजार में प्रतिस्पर्धा को बनाए रखना और उपभोक्ताओं को हानिकारक व्यावसायिक प्रथाओं से बचाना है। यह कानून एकाधिकार और प्रतिस्पर्धा-रोधी व्यवहार पर रोक लगाता है।
बड़ी टेक कंपनियों की एकाधिकारवादी गतिविधियों से क्या समस्याएँ उत्पन्न होती हैं?
बड़ी टेक कंपनियों की एकाधिकारवादी गतिविधियों के कारण बाजार में प्रतिस्पर्धा कम हो जाती है, जिससे उपभोक्ताओं के लिए विकल्प सीमित हो जाते हैं। यह स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को भी नुकसान पहुंचाता है और नवाचार पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।
भारत में बड़ी टेक कंपनियों का विनियमन कैसे किया जाता है?
भारत में प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002 के माध्यम से बड़ी टेक कंपनियों की प्रतिस्पर्धा-रोधी गतिविधियों को नियंत्रित किया जाता है। भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने और उपभोक्ताओं की रक्षा करने के लिए नियम बनाता है। इसके अलावा, ड्राफ्ट डिजिटल प्रतिस्पर्धा विधेयक, 2024 और उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 भी इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।