हाल ही में, राष्ट्रपति ने न्यायपालिका की चुनौतियों को रेखांकित करते हुए “ब्लैक कोट सिंड्रोम” की आलोचना की। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट और अन्य न्यायिक संस्थानों से आग्रह किया कि वे सभी के लिए न्याय सुनिश्चित करने के प्रयासों में तेजी लाएं। राष्ट्रपति ने यह भी कहा कि न्याय में होने वाली देरी और न्यायिक प्रक्रियाओं में आम नागरिकों द्वारा अनुभव किए जाने वाले दबाव को समझने की आवश्यकता है।
‘ब्लैक कोट सिंड्रोम’ क्या है?
राष्ट्रपति ने “ब्लैक कोट सिंड्रोम” शब्द का उपयोग उस स्थिति को दर्शाने के लिए किया जिसमें आम नागरिक कोर्ट में अपने मामलों को लेकर तनाव और दबाव महसूस करते हैं। यह शब्द “व्हाइट कोट हाइपरटेंशन” से प्रेरित है, जिसमें अस्पताल में जाते समय लोगों का ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है। राष्ट्रपति के अनुसार, कोर्ट का माहौल और न्यायिक प्रक्रियाएं अक्सर आम लोगों के लिए जटिल और डरावनी होती हैं, जिससे वे असहज महसूस करते हैं।
‘ब्लैक कोट सिंड्रोम’ के कारण:
- लंबित मामलों की संख्या:
न्यायपालिका में लंबित मामलों की संख्या लगातार बढ़ रही है। राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड के अनुसार, 31 अगस्त तक सुप्रीम कोर्ट में 82,887 मामले लंबित हैं। इस देरी के कारण आम नागरिकों में न्यायिक प्रणाली के प्रति अविश्वास पैदा हो सकता है, जो ‘ब्लैक कोट सिंड्रोम’ का एक प्रमुख कारण बनता है। - गंभीर अपराधों में देरी:
बलात्कार जैसे गंभीर अपराधों के मामलों में न्याय मिलने में देरी से जनता के बीच यह धारणा बनती है कि न्यायिक प्रणाली इन महत्वपूर्ण मामलों को तेजी से निपटाने में विफल हो रही है। इससे न्याय में विश्वास की कमी होती है। - बार-बार तारीखों का निर्धारण:
अदालतों में मामलों की तारीख पर तारीख लगने से, विशेषकर ग्रामीण इलाकों से आने वाले लोगों पर मानसिक और वित्तीय दबाव बढ़ता है। इससे आम नागरिकों को न्याय की प्रक्रिया में कठिनाई का सामना करना पड़ता है। - जिला न्यायपालिका के मुद्दे:
जिला न्यायालयों में बुनियादी सुविधाओं की कमी, जैसे कि केवल 6.7% कोर्ट इंफ्रास्ट्रक्चर ही महिलाओं के अनुकूल हैं, न्याय की प्रक्रिया को और भी जटिल बनाते हैं।
जिला-स्तरीय न्यायालय मुख्य रूप से जनता की न्यायपालिका के प्रति धारणा को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
न्यायिक सुधार के लिए उठाए गए कदम:
- न्यायपालिका का आधुनिकीकरण:
न्यायपालिका को डिजिटल और अधिक प्रभावी बनाने के लिए ई-कोर्ट्स इंटीग्रेटेड मिशन मोड प्रोजेक्ट और टेली-लॉ प्रोग्राम जैसी पहलें शुरू की गई हैं। इनसे न्यायिक प्रक्रियाओं को तेज और अधिक पारदर्शी बनाने में मदद मिल रही है। - समाधान के वैकल्पिक तरीके:
मुकदमे से पूर्व विवाद समाधान के लिए लोक अदालतों की स्थापना की गई है। यह पहल न्यायिक प्रणाली पर बोझ को कम करने और मामलों का त्वरित समाधान सुनिश्चित करने में सहायक है। - अवसंरचना में सुधार:
न्यायपालिका से जुड़ी अवसंरचनाओं को बेहतर बनाने के लिए केंद्र सरकार ने योजनाएं शुरू की हैं। इससे न्यायालयों में बेहतर सुविधाएं उपलब्ध कराने और न्याय की प्रक्रिया को सुगम बनाने में मदद मिलेगी। - कानूनी सुधार:
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 479 को पहली बार अपराध करने वालों पर पूर्वव्यापी रूप से लागू किया है। इस कदम से विचाराधीन कैदियों को जमानत मिलना आसान हो गया है, जिससे न्यायिक प्रक्रियाओं में तेजी लाई जा रही है। - निशुल्क कानूनी सहायता:
न्याय बंधु कार्यक्रम जैसी पहलों के माध्यम से निशुल्क कानूनी सहायता को संस्थागत रूप दिया गया है। यह पहल आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को न्याय की पहुंच में मदद करती है।
निष्कर्ष:
राष्ट्रपति द्वारा ‘ब्लैक कोट सिंड्रोम’ की आलोचना न्यायपालिका में सुधार की आवश्यकता पर जोर देती है। यह समय की मांग है कि न्यायिक संस्थान न्याय की प्रक्रिया को अधिक सरल, पारदर्शी और सभी के लिए सुलभ बनाएं। सुप्रीम कोर्ट और अन्य न्यायिक संस्थानों को न्याय में देरी को कम करने और नागरिकों के लिए न्याय की गारंटी सुनिश्चित करने के लिए निरंतर प्रयास करने की आवश्यकता है। न्याय केवल कानूनों से नहीं, बल्कि प्रभावी और संवेदनशील न्यायिक प्रक्रियाओं से हो सकता है, जो हर नागरिक को समान अधिकार प्रदान करें।
‘ब्लैक कोट सिंड्रोम’ क्या है?
‘ब्लैक कोट सिंड्रोम’ एक शब्द है जो उस स्थिति को दर्शाता है, जिसमें आम नागरिक कोर्ट में अपने मामलों को लेकर तनाव और दबाव महसूस करते हैं। यह शब्द ‘व्हाइट कोट हाइपरटेंशन’ से प्रेरित है, जिसमें अस्पताल जाने पर लोगों का ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है।
न्यायपालिका में लंबित मामलों की स्थिति क्या है?
राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड के अनुसार, 31 अगस्त तक सुप्रीम कोर्ट में 82,887 मामले लंबित हैं। यह स्थिति न्याय में देरी और आम नागरिकों में न्यायिक प्रणाली के प्रति अविश्वास का कारण बन रही है।
‘ब्लैक कोट सिंड्रोम’ से निपटने के लिए कौन से उपाय किए जा रहे हैं?
न्यायपालिका के आधुनिकीकरण के लिए ई-कोर्ट्स इंटीग्रेटेड मिशन मोड प्रोजेक्ट और टेली-लॉ प्रोग्राम जैसी पहलें शुरू की गई हैं। इसके अलावा, मुकदमे से पूर्व विवाद समाधान के लिए लोक अदालतों की स्थापना और निशुल्क कानूनी सहायता के लिए न्याय बंधु कार्यक्रम जैसी पहलें की जा रही हैं।
न्याय बंधु कार्यक्रम क्या है?
न्याय बंधु कार्यक्रम एक सरकारी पहल है, जिसके तहत आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को निशुल्क कानूनी सहायता प्रदान की जाती है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य न्याय को सभी के लिए सुलभ बनाना है।