Mahatma Gandhi Death Anniversary; शांति के दूत: बापू की विरासत, अहिंसा का रास्ता:

हर साल 30 जनवरी का सूरज जब उगता है, भारत की धरती एक खामोश श्रद्धांजलि से गुंजायमान होती है। यह दिन नहीं, एक स्मृति का सागर है, जिसमें तैरते हैं सत्य और अहिंसा के असंख्य मोती, महात्मा गांधी की पुण्यतिथि का अनंत प्रकाश बिखेरता है। 76 साल पहले इसी दिन, एक शांतिप्रिय आत्मा ने नश्वर देह का त्याग किया, लेकिन उनकी विरासत का दीप आज भी पूरी दुनिया को राह दिखा रहा है।

गांधी जी का जीवन और क्रांति

गांधी जी का जीवन कोई साधारण जीवनी नहीं, बल्कि मानव इतिहास का एक अनूठा अध्याय है। दक्षिण अफ्रीका की धरती पर पनपे सत्य के बीज ने भारत की स्वतंत्रता संग्राम में एक विशाल वृक्ष का रूप ले लिया। अहिंसा, उनके हथियार का नाम था, जिसने करोड़ों दिलों को जोड़ा और अंग्रेजों के शक्तिशाली साम्राज्य को उसकी जड़ों से हिला दिया। असहयोग, सविनय अवज्ञा, भारत छोड़ो आंदोलन – उनके हर आह्वान में लाखों हाथ उठे, लाखों स्वर गूंज उठे, जो स्वतंत्रता के उन्माद से नहीं, बल्कि सत्य के प्रति अटूट विश्वास से ओतप्रोत थे।

गांधी जी की क्रांति केवल राजनीतिक स्वतंत्रता तक सीमित नहीं थी। उनके आंदोलन का असली स्वरूप समाज के जड़ जमाए हुए अंधकार को मिटाने का था। छुआछूत जैसी जघन्य परंपरा के खिलाफ उनका सत्याग्रह, असहाय महिलाओं के सम्मान की लड़ाई, सांप्रदायिक सद्भावना का संदेश – ये सभी उनके समग्र समाजवादी दृष्टिकोण का प्रमाण हैं। उन्होंने साबित किया कि स्वतंत्रता का असली अर्थ सिर्फ राजनीतिक शासन से मुक्ति नहीं, बल्कि हर तरह के भेदभाव, असमानता और अन्याय से मुक्ति है।

गांधी जी के आदर्शों की प्रासंगिकता

आज जब दुनिया अक्सर हिंसा, द्वेष और संघर्षों के तूफान में डूबती दिखाई देती है, गांधी जी के आदर्श एक शांत बंदरगाह का रास्ता दिखाते हैं। उनकी अहिंसा का दर्शन केवल कमजोरों का हथियार नहीं, बल्कि सबसे शक्तिशाली क्रांति का बीज है। यह बल से नहीं, प्रेम से, अत्याचार से नहीं, क्षमा से जीत का मार्ग प्रशस्त करता है। उनकी अहिंसा में आत्मबल का दम है, नैतिकता का तेज है, और सत्य का अटूट विश्वास है।

लेकिन गांधी जी की विरासत को समझने के लिए उनके बड़े आंदोलनों से हटकर, उनके साधारण जीवन पर भी नजर डालना जरूरी है। सादगी उनका जीवनमंत्र था, प्रकृति उनके गुरु और सत्यनिष्ठा उनकी सांस थी। उनका चरखा आत्मनिर्भरता का प्रतीक था, उनका रामधुन शांति का गीत था और उनका चंपारण का सत्याग्रह साधारण किसानों के संघर्षों का महाकाव्य था। उन्होंने दिखाया कि क्रांति के लिए न बड़े हथियारों की जरूरत है, न विशाल साम्राज्यों की, बस जरूरत है सत्य के प्रति जुनून की और अन्याय के खिलाफ एक अदम्य आवाज की।

गांधी जी को सच्ची श्रद्धांजलि

गांधी जी को सच्ची श्रद्धांजलि देने का तरीका उनकी विरासत को अपने जीवन में समाहित करना है। सत्य और अहिंसा को अपने आचरण का आधार बनाना, सामाजिक असमानता के खिलाफ उठ खड़ा होना, पर्यावरण संरक्षण के लिए पहल करना – ये सभी कर्म ही बापू का सच्चा सम्मान हैं। उनके नाम पर मूर्तियां खड़ी करने से ज्यादा जरूरी है उनके आदर्शों को अपने हृदय में प्रतिष्ठित करना।

आज भारत ही नहीं, पूरी दुनिया ऐसे दौर से गुजर रही है, जहां हर तरफ अनिश्चितता और अशांति का साया मंडरा रहा है। ऐसे में गांधी जी के प्रकाशस्तंभ की रोशनी और भी प्रासंगिक हो जाती है। उनकी विरासत हमें याद दिलाती है कि शांति का रास्ता ही टिकाऊ विकास का मार्ग है। आतंकवाद और युद्धों की आग बुझाने का असली हथियार परमाणु बम नहीं, बल्कि परस्पर समझ, सहिष्णुता और संवाद की शक्ति है।

एक बेहतर दुनिया का निर्माण

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि गांधी जी का संदेश केवल सरकारों या बड़े नेताओं के लिए नहीं, बल्कि हर एक व्यक्ति के लिए है। हम सब मिलकर अपने-अपने स्तर पर अहिंसा और सत्यनिष्ठा को अपनाकर दुनिया को बदल सकते हैं। छोटे-छोटे बदलावों से ही बड़े परिवर्तन का सूत्रपात होता है। अगर हम क्रोध के बदले क्षमा को, हिंसा के बदले प्रेम को और स्वार्थ के बदले त्याग को चुनें, तो हम गांधी जी के सपनों का भारत ही नहीं, बल्कि एक शांतिपूर्ण और समतावादी विश्व का निर्माण कर सकते हैं।

इसलिए आइए आज, बापू की पुण्यतिथि पर, उनके आदर्शों को नए सिरे से आत्मसात करें। आइए सत्य और अहिंसा के दीप को अपने दिलों में जलाएं और मिलकर एक ऐसी दुनिया बनाने का संकल्प लें, जहां युद्ध की जगह संवाद हो, शत्रुता की जगह मित्रता हो और अंधकार की जगह गांधी जी के अहिंसा के प्रकाश का अनंत चमकता हुआ सूरज हो। यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी उस महात्मा को, जिसने अपने जीवन को शांति के यज्ञ में अर्पित कर दिया।

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