भविष्य की युद्ध रणनीतियों के अनुरूप खुद को सशक्त बनाने के लिए भारतीय थल सेना ने एक महत्वपूर्ण पहल की है। एक विशेष प्रौद्योगिकी इकाई – ‘STEAG’ (सिग्नल्स टेक्नोलॉजी इवैल्यूएशन एंड एडेप्टेशन ग्रुप) की स्थापना, भविष्य में होने वाले युद्धों के लिए भारत की तैयारी का नया अध्याय है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सिस्टम और 6G नेटवर्क जैसी उभरती संचार तकनीकों पर गहन शोध और मूल्यांकन के लिए इस इकाई की परिकल्पना की गई है। आइए, सेना के इस तकनीकी उन्नयन के प्रयास, STEAG की भूमिका, और बदलते युद्ध परिदृश्य को करीब से समझें।
STEAG क्या है और क्यों है महत्वपूर्ण?
STEAG इकाई भारतीय सेना की बड़ी पहल “ऑन पाथ टू ट्रांसफॉर्मेशन” की एक अहम कड़ी है। सेना ने वर्ष 2024 को तकनीकी-अंगीकरण का वर्ष घोषित किया है और STEAG इस दिशा में लिया गया एक जबरदस्त कदम है। आइए जानते हैं इस इकाई के उद्देश्य और महत्व को:
- संचार अवसंरचना में सुधार: STEAG का एक बड़ा उद्देश्य है भारतीय सेना के संचार तंत्र को मजबूत करना। वायर्ड और वायरलेस सिस्टम में अत्याधुनिक तकनीकों का समयोचित उपयोग STEAG के प्रमुख कार्यों में से एक होगा।
- उन्नत प्रौद्योगिकी को अपनाना: रक्षा प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में तेजी से होते विकास के बीच, नवीनतम और सबसे उपयुक्त प्रौद्योगिकियों की पहचान कर उन्हें भारतीय सेना के सिस्टम का हिस्सा बनाना इस इकाई की जिम्मेदारी होगी।
- रक्षा क्षेत्र में नवोन्मेष: STEAG न सिर्फ मौजूदा तकनीक का उपयोग करेगी, बल्कि अत्याधुनिक रक्षा प्रौद्योगिकी संबंधी अनुसंधान और निरंतर उन्नयन में मददगार होगी। यह भारत के रक्षा क्षेत्र को प्रौद्योगिकी-विकास में अग्रणी बनाएगा।
- सशस्त्र बलों के बीच बेहतर समन्वय: इस इकाई के प्रयासों से न सिर्फ सेना की क्षमताएं बढ़ेंगी बल्कि रक्षा अनुसंधान, उद्योग, और शिक्षा जगत के साथ तालमेल सुधरेगा। इससे रक्षा उपकरण और प्रौद्योगिकी विकास के क्षेत्र में तेजी आएगी।
- आत्मनिर्भर भारत की दिशा में सशक्त कदम: STEAG भारत को संचार प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भर बनाने में निर्णायक भूमिका निभाएगी। साथ ही, इस क्षेत्र में कुछ चुनिंदा देशों के एकाधिकार को तोड़ने में भी सहायक होगी।
क्यों पड़ी STEAG जैसी इकाई की आवश्यकता?
युद्ध की प्रकृति हर युग में बदलती रही है। आज के समय के युद्ध क्षेत्र में पुरानी रणनीतियां पूरी तरह कारगर साबित नहीं हो सकतीं। इसलिए, तकनीकी विकास के साथ कदमताल करते हुए अपनी युद्ध नीतियों में बदलाव जरूरी है। कुछ प्रमुख कारण जिन्होंने STEAG जैसी इकाई की आवश्यकता पैदा की:
- सटीकता और स्वचालन: आधुनिक युद्ध में अचूक हमलों के लिए सटीकता बहुत आवश्यक है। ड्रोन, लेजर-निर्देशित हथियार, और स्वचालित सिस्टम इसी सटीकता को सुनिश्चित करते हैं।
- मजबूत इंटेलिजेंस नेटवर्क: दुश्मन की क्षमता, संभावित खतरों, और युद्ध क्षेत्र की जमीनी हकीकत का अंदाजा होना सफलता के लिए अनिवार्य है। सेंसर्स, उपग्रह आधारित इमेजिंग और AI-संचालित डेटा विश्लेषण इस मजबूत इंटेलिजेंस नेटवर्क को बनाने में मददगार हैं।
- ‘ग्रे-ज़ोन’ संघर्ष: प्रत्यक्ष युद्ध और शांति के बीच की स्थिति को ‘ग्रे-ज़ोन’ कहते हैं। नेटवर्क-आधारित युद्ध रणनीति, दुष्प्रचार और विभिन्न तकनीकी माध्यमों के इस्तेमाल से ‘ग्रे-ज़ोन’ का महत्व और विस्तार दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है।
भविष्य के युद्ध – चुनौतियां और STEAG की भूमिका:
भविष्य के युद्धों की रूपरेखा कुछ इस तरह हो सकती है:
- साइबर वारफेयर का बढ़ता खतरा: साइबर हमले राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा हैं। संचार प्रणाली, बैंकिंग, पॉवर ग्रिड जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों को साइबर हमलों से सुरक्षित रखना एक बड़ी चुनौती होगी।
- स्पेस का सैन्यीकरण: अंतरिक्ष को भी भविष्य के युद्धों का संभावित अखाड़ा माना जा रहा है। उपग्रहों को निशाना बनाना या अंतरिक्ष-आधारित हथियार प्रणालियों का विकास आने वाले युग कि चिंताएं हैं।
- हाइपरसोनिक हथियार: ध्वनि की गति से कई गुना ज्यादा तीव्र हाइपरसोनिक मिसाइलों और हथियारों का विकास पारंपरिक युद्ध की परिभाषा बदल सकता है।
STEAG जैसी इकाईयों के विकास से भारतीय सेना इन आधुनिक युद्ध चुनौतियों से पार पाने में समर्थ होगी। इस इकाई के कुछ अन्य महत्वपूर्ण कार्यक्षेत्र:
- क्लाउड कंप्यूटिंग और डेटा सिक्योरिटी: क्लाउड आधारित कंप्यूटिंग को सैन्य कार्यों से जोड़ने में सहयोग करना और मजबूत डेटा सुरक्षा सुनिश्चित करना।
- क्वांटम संचार: संचार प्रौद्योगिकी में क्वांटम तकनीक भविष्य में क्रांति ला सकती है।
- इलेक्ट्रोमैग्नेटिक स्पेक्ट्रम वारफेयर: इस क्षेत्र में प्रौद्योगिकी विकसित कर दुश्मन की संचार प्रणालियों को अवरुद्ध करने की क्षमता हासिल करना।
- विदेशी तकनीकों पर निर्भरता कम करना: स्वदेशी अनुसंधान और विकास के माध्यम से रक्षा प्रणालियों के लिए विदेशी तकनीकों पर से निर्भरता कम करने में STEAG की अहम भूमिका होगी।
STEAG के फायदे:
- बेहतर संचार तंत्र: STEAG द्वारा विकसित एवं अपनाई गई तकनीकें भारतीय सेना के संपूर्ण संचार तंत्र को उन्नत करेंगी।
- तकनीक में महारत: सेना के लिए विकसित अत्याधुनिक तकनीक का भारतीय सेना को गहरा ज्ञान और नियंत्रण प्राप्त होगा।
- रणनीतिक लाभ: युद्ध के बदलते स्वरूप में, भारतीय सेना को अपनी रणनीति में तकनीकी श्रेष्ठता का लाभ मिलेगा।
- आत्मनिर्भर भारत की दिशा में प्रयास: यह रक्षा क्षेत्र में भारत की आत्मनिर्भरता को मजबूत करने का एक ठोस प्रयास है।
भारतीय सेना के अन्य तकनीकी प्रयास:
STEAG के अलावा, भारतीय सेना ने भविष्य के युद्धों की तैयारी के लिए कई अन्य पहलें भी शुरू की हैं:
1. डिफेंस साइबर एजेेंसी (DCA):
- यह त्रि-सेवा संगठन साइबर हमलों से निपटने और सेना के डिजिटल बुनियादी ढांचे को सुरक्षित रखने के लिए जिम्मेदार है।
- DCA साइबर सुरक्षा में विशेषज्ञता वाले कर्मियों को प्रशिक्षित करता है और साइबर युद्ध अभ्यास आयोजित करता है।
- यह एजेंसी अन्य देशों के साथ साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में सहयोग भी करती है।
2. कमांड साइबर ऑपरेशंस सपोर्ट विंग (CCOSWs):
- यह ग्रे-ज़ोन और पारंपरिक सैन्य अभियानों के लिए संचार एवं साइबर मिशनों की सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
- यह विंग साइबर हमलों का पता लगाने, उनका जवाब देने और उनसे बचाव करने के लिए जिम्मेदार है।
3. सिक्योर आर्मी मोबाइल भारत वर्ज़न (SAMBHAV) हैैंडसेट्स:
- ये एंड-टू-एंड सुरक्षित मोबाइल इकोसिस्टम प्रदान करते हैं जो सेना के कर्मियों को सुरक्षित रूप से संवाद करने में मदद करते हैं।
- SAMBHAV हैैंडसेट एन्क्रिप्टेड कॉल, डेटा और मैसेजिंग सेवाएं प्रदान करते हैं।
- इन हैैंडसेट्स में मैलवेयर और अन्य खतरों से बचाव के लिए सुरक्षा सुविधाएं भी शामिल हैं।
4. अन्य पहलें:
- रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO): DRDO सेना के लिए अत्याधुनिक हथियार प्रणालियों और रक्षा उपकरणों को विकसित करने के लिए जिम्मेदार है।
- रक्षा अनुसंधान प्रयोगशालाएं: सेना के पास कई रक्षा अनुसंधान प्रयोगशालाएं हैं जो विभिन्न क्षेत्रों में अनुसंधान और विकास गतिविधियों में लगी हुई हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: सेना रक्षा अनुसंधान और विकास के क्षेत्र में अन्य देशों के साथ सहयोग कर रही है।
निष्कर्ष:
STEAG भारतीय सेना की भविष्य के युद्धों की तैयारी में एक महत्वपूर्ण पहल है। इसके अलावा, सेना ने कई अन्य तकनीकी प्रयास भी किए हैं। इन प्रयासों से सेना को भविष्य के युद्धों के लिए तैयार रहने और अपनी युद्ध क्षमता को बढ़ाने में मदद मिलेगी।
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