जलवायु परिवर्तन से निपटने के वैश्विक प्रयासों में, परमाणु ऊर्जा एक स्वच्छ और भरोसेमंद ऊर्जा स्रोत के रूप में तेजी से महत्व प्राप्त कर रही है। इसी क्षेत्र में एक बड़ी पहल करते हुए 21-22 मार्च, 2024 को अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) और बेल्जियम सरकार द्वारा ब्रुसेल्स में विश्व के पहले परमाणु ऊर्जा सम्मेलन का आयोजन किया गया। सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य कार्बन उत्सर्जन को कम कर स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में परमाणु ऊर्जा को व्यापक स्तर पर बढ़ावा देना था।
पृष्ठभूमि और उद्देश्य:
यह सम्मेलन जलवायु परिवर्तन से संघर्ष की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम को आधार बनाता है। संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP28) 2023 में ग्लोबल स्टॉकटेक के दौरान परमाणु ऊर्जा को व्यावहारिक तौर पर स्वच्छ ऊर्जा स्रोत के रूप में अपनाने पर सहमति बनी थी। इसी निर्णय के अनुरूप, ब्रुसेल्स में हुए इस सम्मेलन का उद्देश्य विश्वस्तर पर परमाणु ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा देना और जलवायु संबंधी लक्ष्यों को हासिल करने में इसके महत्व पर बल देना रहा।
सम्मेलन के प्रमुख उद्देश्य:
- ग्लोबल स्टॉकटेक में परमाणु ऊर्जा के समावेश का समर्थन: संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP28), 2023 में ग्लोबल स्टॉकटेक पर सहमति बनने के बाद इस सम्मेलन का विशेष महत्व है। ग्लोबल स्टॉकटेक जलवायु परिवर्तन के खिलाफ वैश्विक प्रगति का आकलन कर, उसके प्रभाव को कम करने के लिए कार्बन उत्सर्जन को घटाने के तरीकों पर चर्चा का मंच है। इसमें परमाणु ऊर्जा को शामिल करना इस क्षेत्र में इसकी भूमिका को बढ़ावा देने वाला निर्णय है।
- परमाणु ऊर्जा को बढ़ावा: कम कार्बन उत्सर्जन वाले ऊर्जा स्रोत होने के कारण परमाणु ऊर्जा पर अधिकाधिक फोकस करना इस सम्मेलन का प्रमुख एजेंडा है। विकसित और विकासशील देशों में सतत ऊर्जा उत्पादन के लिए परमाणु ऊर्जा एक मजबूत विकल्प के रूप में उभर रही है।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना: परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण, सुरक्षित और सतत उपयोग के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का माहौल बनाना, विभिन्न देशों के बीच ज्ञान व अनुभव का आदान-प्रदान, अनुसंधान में साझेदारी, और क्षमता निर्माण सहित परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में वैश्विक प्रयासों को बढ़ाना।
प्रतिभागी देश:
इस पहले परमाणु ऊर्जा सम्मेलन में 30 से अधिक देशों के साथ-साथ यूरोपीय संघ के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। भारत की इसमें सक्रिय भागीदारी रही, जो दुनियाभर में परमाणु ऊर्जा से स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन के लक्ष्य को मजबूत बनाने के लिए प्रतिबद्ध है।
अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA): एक संक्षिप्त विवरण
- स्थापना: 1957 में परमाणु ऊर्जा के सुरक्षित और शांतिपूर्ण उपयोग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से IAEA की स्थापना की गई थी। यह संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के अंतर्गत एक स्वायत्त अंतर्राष्ट्रीय संगठन है।
- मुख्यालय: वियना, ऑस्ट्रिया
- सदस्यता: वर्तमान में IAEA के कुल 178 सदस्य देश हैं, जिनमें भारत भी शामिल है।
- उद्देश्य: IAEA वैश्विक परमाणु सुरक्षा को मजबूत करने पर केंद्रित है और सदस्य देशों को परमाणु प्रौद्योगिकियों के शांतिपूर्ण, सुरक्षित उपयोग के लिए आवश्यक तकनीकी सहायता और दिशानिर्देश प्रदान करता है।
IAEA के मुख्य कार्य:
- सुरक्षा तंत्र: यह संस्था वैश्विक परमाणु अप्रसार संधि (NPT) और अन्य परमाणु हथियार निवारण संधियों के अंतर्गत सुरक्षा तंत्र की भूमिका निभाती है।
- अतिरिक्त प्रोटोकॉल: IAEA के ‘अतिरिक्त प्रोटोकॉल तंत्र’ के माध्यम से विभिन्न देशों में परमाणु सामग्री के शांतिपूर्ण उपयोग को सुनिश्चित किया जाता है। भारत भी इस प्रोटोकॉल का सदस्य है।
- पहल: IAEA नई पहलों के संचालन में भी अग्रणी है, जिसमें ‘Atoms4NetZero’ विशेष रूप से उल्लेखनीय है।
परमाणु ऊर्जा पर नए-नए दृष्टिकोण: प्रासंगिकता और चुनौतियां
परमाणु ऊर्जा उन प्रमुख स्रोतों में शामिल है जो कार्बन फुटप्रिंट्स को काफी कम करने में मददगार साबित होती है। ऐसे में, जब नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत अब भी विकास के चरणों में हैं, परमाणु ऊर्जा वर्तमान समय की मांगों के लिए एक आकर्षक और स्वायत्त विकल्प के रूप में उभरती है। आइये इसकी प्रासंगिकता और चुनौतियों पर एक नजर डालते हैं:
प्रासंगिकता:
- स्वच्छ ऊर्जा स्रोत: जलवायु परिवर्तन के खतरे के बीच स्वच्छ एवं कम कार्बन उत्सर्जन वाले ऊर्जा स्रोतों पर फोकस बढ़ा है। परमाणु ऊर्जा, जीवाश्म ईंधन के उलट न्यूनतम कार्बन छोड़ता है, जो इसे एक स्वच्छ विकल्प बनाता है।
- SMRs का महत्व: छोटे मापक रिएक्टरों (Small Modular Reactors – SMRs) के क्षेत्र में हुई प्रगति ने परमाणु ऊर्जा को अधिक किफायती और उपयोग में आसान बना दिया है। ये SMRs 300 मेगावाट तक की क्षमता वाले उन्नत परमाणु रिएक्टर हैं और विकसित तथा विकासशील देशों की ऊर्जा जरूरतों के लिए अधिक व्यवहार्य बन रहे हैं।
- दीर्घावधि स्थिरता: परमाणु ऊर्जा लंबे समय तक विद्युत उत्पादन के लिए भरोसेमंद स्रोत है और इस प्रकार ऊर्जा सुरक्षा में काफी योगदान देती है। यह विभिन्न देशों को जीवाश्म ईंधन की आयात निर्भरता को कम करने में भी मदद करती है।
- विश्वसनीय ऊर्जा स्रोत: परमाणु ऊर्जा पर बदलते मौसम का अधिक प्रभाव नहीं होता है, जिससे यह बिजली का एक विश्वसनीय स्रोत बन जाता है। सौर या पवन ऊर्जा के विपरीत, जो मौसम पर निर्भर करती हैं, परमाणु ऊर्जा निरंतर और सतत बिजली उत्पादन सुनिश्चित करती है।
चुनौतियां:
- सुरक्षा चिंताएं: फुकुशिमा जैसी दुर्घटनाओं ने परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की सुरक्षा के बारे में आशंकाएं खड़ी की हैं। इन चिंताओं को दूर करने के लिए परमाणु संयंत्रों में कड़ी सुरक्षा उपाय और दिशानिर्देश अपनाना जरूरी है।
- साइबर खतरे: परमाणु संयंत्र साइबर हमलों के प्रति भी संवेदनशील हैं। इस खतरे से निपटने के लिए मजबूत साइबर सुरक्षा प्रणाली और रणनीतियां अति आवश्यक हैं।
- उच्च लागत: परमाणु ऊर्जा संयंत्रों को स्थापित करने में भारी प्रारंभिक लागत आती है। इसे दूर करने के लिए नवीनतम तकनीकों को अपनाना और लागत प्रभावी विकल्प तलाशना जरूरी है।
- निर्माण में देरी: परमाणु ऊर्जा परियोजनाओं के निर्माण और उन्हें चालू होने में लगने वाला लंबा समय भी चुनौतियां खड़ी करता है।
भारत में परमाणु ऊर्जा:
भारत अपने बढ़ते ऊर्जा मांग को पूरा करने के लिए स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों की ओर तेजी से बढ़ रहा है, और परमाणु ऊर्जा इसके मिशन का अहम हिस्सा है। देश में वर्तमान में 7 परमाणु ऊर्जा संयंत्र चालू हैं, और कई अन्य निर्माणाधीन हैं। भारत की महत्वाकांक्षी लक्ष्य है कि वह 2032 तक 22,480 मेगावाट परमाणु ऊर्जा क्षमता स्थापित कर लेगा।
निष्कर्ष:
विश्व का पहला परमाणु ऊर्जा सम्मेलन जलवायु परिवर्तन से निपटने में स्वच्छ ऊर्जा स्रोत के रूप में परमाणु ऊर्जा की भूमिका को मजबूत करने का एक महत्वपूर्ण कदम है। इस सम्मेलन से प्राप्त ज्ञान और अनुभव वैश्विक स्तर पर परमाणु ऊर्जा के विकास और उपयोग को गति देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।
Also Read:
GREEN AND SOCIAL BONDS: ANALYZING THE ANNUAL IMPACT REPORT RELEASED BY THE INTERNATIONAL FINANCE CORPORATION; ग्रीन एंड सोशल बॉण्ड्स: अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम द्वारा जारी वार्षिक प्रभाव रिपोर्ट का विश्लेषण: