राजस्थान में बाल विवाह की कुप्रथा पर रोक लगाने के लिए राजस्थान हाई कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है। कोर्ट ने राज्य सरकार को इस सामाजिक बुराई को रोकने हेतु प्रभावी कदम उठाने के निर्देश जारी किए हैं। विशेष रूप से, अक्षय तृतीया जैसे त्योहारों के दौरान राज्य में बड़ी संख्या में बाल विवाह होते हैं, इसलिए अदालत ने इस त्योहार के मौसम से पहले ही ये आदेश दिए हैं।
हाई कोर्ट के प्रमुख निर्देश:
- गांवों में जवाबदेही सुनिश्चित करना: हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि अगर किसी भी गांव में बाल विवाह होता है, तो उसके लिए ग्राम प्रधान और पंचायत सदस्य सीधे तौर पर जिम्मेदार होंगे।
- राजस्थान पंचायती राज नियम, 1996 का सख्त पालन: कोर्ट ने निर्देश दिया है कि बाल विवाह रोकने के लिए राजस्थान पंचायती राज नियम, 1996 का पूरी सख्ती से पालन किया जाए। इन नियमों के तहत, बाल विवाह को रोकना सरपंच का कानूनी कर्तव्य है।
- लचर रवैये पर कार्रवाई: हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि बाल विवाह जैसी सामाजिक समस्या के प्रति लापरवाही बरतने वाले जिम्मेदार व्यक्तियों पर सख्त कार्रवाई की जाएगी।
बाल विवाह: एक गंभीर सामाजिक समस्या
बाल विवाह, विशेष रूप से लड़कियों के जीवन और भविष्य पर विनाशकारी प्रभाव डालता है। आइए, बाल विवाह की अवधारणा, इसके कारणों और भारत में मौजूदा स्थिति पर एक नजर डालते हैं:
- यूनिसेफ के अनुसार बाल विवाह: संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) के अनुसार, बाल विवाह 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चे और एक वयस्क या किसी अन्य बच्चे के बीच औपचारिक विवाह या अनौपचारिक गठबंधन को कहते हैं। इसमें वह स्थिति भी शामिल है जहां 18 साल से कम उम्र के बच्चे पति-पत्नी की तरह साथ रहने लगते हैं।
- लड़कियों पर असमान प्रभाव: बाल विवाह में लड़कियों पर विशेष रूप से विपरीत प्रभाव पड़ता है, क्योंकि इसके परिणामस्वरूप अक्सर उनकी शिक्षा बाधित होती है, स्वास्थ्य जोखिम बढ़ते हैं, और वे हिंसा व शोषण के शिकार होने की चपेट में आ जाती हैं।
भारत में बाल विवाह: कानूनी प्रावधान
भारत में, बाल विवाह निषेध अधिनियम (Prohibition of Child Marriage Act: PCMA), 2006 के तहत लड़कियों के लिए विवाह की न्यूनतम आयु 18 वर्ष और लड़कों के लिए 21 वर्ष है। इस अधिनियम के अंतर्गत:
- राज्य सरकार का अधिकार: धारा 16 के अनुसार राज्य सरकारों के पास पूरे राज्य या क्षेत्र-विशेष के लिए बाल विवाह निषेध अधिकारी (CMPO) नियुक्त करने का अधिकार है।
- CMPO के कर्तव्य: CMPO बाल विवाह की रोकथाम और इसके हानिकारक प्रभावों के खिलाफ जागरूकता फैलाने के लिए काम करते हैं।
बाल विवाह के कारक:
बाल विवाह जैसी सामाजिक विकृति के पीछे कई प्रमुख कारक हैं, जिनमें ये शामिल हैं:
- लैंगिक असमानता: समाज में मौजूद लैंगिक असमानता लड़कों और लड़कियों के बीच के भेदभाव को बढ़ावा देती है, जिससे बालिकाओं के विवाह कम उम्र में ही कर दिए जाते हैं।
- धार्मिक एवं सामाजिक प्रथाएं: कुछ सामाजिक समूहों में बाल विवाह को परंपरा के नाम पर सही ठहराते हैं।
- गरीबी: आर्थिक तंगी भी कम उम्र में ही लड़कियों का विवाह करने का एक प्रमुख कारण होती है।
- शिक्षा की कमी: बाल विवाह जैसी कुप्रथाओं का अंत करने में शिक्षा की भूमिका अहम है। शिक्षा का अभाव बाल विवाह को बढ़ावा देने वाला कारण है।
- पितृसत्तात्मक सोच: महिलाओं और लड़कियों की स्वायत्तता पर प्रतिबंध और उनके अधिकारों की उपेक्षा बाल विवाह को बढावा देती है।
बाल विवाह की वर्तमान स्थिति:
हालांकि बाल विवाह पर प्रतिबंध लगाने वाले सख्त कानून हैं, फिर भी भारत में यह एक चिंताजनक सामाजिक समस्या बनी हुई है। हालांकि, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) के आंकड़े इस बुराई में कमी के कुछ सकारात्मक संकेत देते हैं:
- बाल विवाह में गिरावट: NFHS के अनुसार, 20-24 वर्ष की विवाहित महिलाओं में, 18 वर्ष की आयु से पहले विवाह करने वालों का प्रतिशत 2005-06 में 47.4% था। यह आंकड़ा 2019-21 में घटकर 23.3% हो गया है।
- लड़कों के बाल विवाह में भी कमी: हालांकि कम संख्या में ही सही, भारत में लड़कों के बाल विवाह के मामले भी सामने आते हैं। इस दिशा में भी सकारात्मक बदलाव आया है।
हाल के वर्षों में बाल विवाह में आई गिरावट सकारात्मक है, लेकिन पूर्ण सफलता के लिए अभी बहुत कुछ करना बाकी है। राजस्थान हाई कोर्ट का हालिया फैसला उन प्रयासों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
राजस्थान हाई कोर्ट का निर्णय: एक सकारात्मक कदम
बाल विवाह रोकने के लिए राजस्थान हाई कोर्ट द्वारा ग्राम प्रधानों और पंचायत सदस्यों को सीधे जवाबदेह बनाने का निर्णय एक सराहनीय कदम है। यह निर्णय नीचे से ऊपर तक (ग्रासरूट लेवल पर) इस समस्या से निपटने में मददगार होगा। इसके सकारात्मक प्रभाव के तौर पर इन बातों की अपेक्षा की जा सकती है:
- जमीनी स्तर पर जागरूकता: यह निर्णय ग्राम प्रधानों, पंचायत सदस्यों और अन्य ग्रामीण नेताओं को बाल विवाह की समस्या से निपटने के लिए और अधिक प्रेरित करेगा।
- सामाजिक बदलाव का माध्यम: यह कदम उन सामाजिक प्रथाओं और मानसिकताओं को बदलने में मदद करेगा जो बाल विवाह का समर्थन करती हैं।
- राज्य सरकार पर दबाव: हाई कोर्ट का यह निर्देश राज्य सरकार पर बाल विवाह रोकने के लिए अभियान को और गति देने और प्रभावी बनाने का नैतिक दबाव बनाएगा।
- कानून के प्रभावी क्रियान्वयन में मदद: बाल विवाह निषेध से संबंधित पहले से बने कानूनों को सही तरीके से लागू करने का दबाव बनेगा।
आगे की चुनौतियां और समाधान के उपाय:
बाल विवाह को पूरी तरह से खत्म करने के लिए, कई मोर्चों पर निरंतर प्रयासों की आवश्यकता है:
- शिक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता: लड़कियों की शिक्षा सुनिश्चित करके, बाल विवाह के एक प्रमुख कारण को दूर किया जा सकता है।
- लैंगिक समानता को बढ़ावा: बालिकाओं और महिलाओं के अधिकारों के सम्मान और लैंगिक समानता पर केंद्रित सामाजिक जागरूकता अभियान चलाने की जरूरत है।
- रूढ़ियों से लड़ाई: पुरानी, पिछड़ी रूढ़ियों, जो बाल विवाह का समर्थन करती हैं, उनसे लड़ने के लिए सामाजिक, धार्मिक, और जननेताओं को सामने आना होगा।
- गरीबी उन्मूलन पर ध्यान: आर्थिक अभाव एक बड़ा कारण है। बाल विवाह से सबंधित कानूनों को सख्ती से लागू करना और गरीबी उन्मूलन के कार्यक्रमों पर ध्यान देना, इस बुराई से निपटने के लिए महत्वपूर्ण उपाय हैं।
निष्कर्ष:
राजस्थान हाई कोर्ट का यह फैसला बाल विवाह के खिलाफ लड़ाई में एक अहम कदम है। कोर्ट ने साफ किया है कि बाल विवाह की रोकथाम सिर्फ सरकार या प्रशासन की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि सरपंच और पंचायत सदस्यों का भी इसमें महत्वपूर्ण दायित्व है। हालांकि, बाल विवाह को पूरी तरह से खत्म करने के लिए केवल सख्ती ही काफी नहीं है बल्कि जागरूकता, शिक्षा, सशक्तिकरण, और लैंगिक समानता पर बल देकर ही हम उस समाज का निर्माण कर सकते हैं, जहां सभी बच्चों का बचपन सुरक्षित, स्वस्थ और भविष्य के लिए उम्मीदों से भरा हो।