A Decade of India’s ‘Act East Policy’: Success and Challenges; भारत की ‘एक्ट ईस्ट नीति’ का एक दशक: सफलता और चुनौतियां:

भारत की ‘एक्ट ईस्ट नीति’ (AEP) की घोषणा नवंबर 2014 में म्यांमार में आयोजित पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन और आसियान + भारत शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की थी। यह नीति वास्तव में 1992 में लागू की गई ‘लुक ईस्ट नीति’ की अगली कड़ी है, जिसका उद्देश्य हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की भूमिका को बढ़ाना और इस क्षेत्र के देशों के साथ संबंधों को मजबूत करना है। एक दशक पूरा होने के उपलक्ष्य में, यह महत्वपूर्ण है कि हम इस नीति की उपलब्धियों और चुनौतियों का विश्लेषण करें।

एक्ट ईस्ट नीति (AEP) के बारे में:

एक्ट ईस्ट नीति हिंद-प्रशांत क्षेत्र (IPR) में “विस्तारित पड़ोसी” देशों पर केंद्रित है। इसमें आसियान देशों के साथ संबंध मजबूत करने पर विशेष ध्यान दिया गया है। इस नीति के तहत पहली बार “विस्तारित पड़ोस” (Extended Neighbourhood) की अवधारणा को स्पष्ट किया गया है। इस नीति का उद्देश्य बेहतर कनेक्टिविटी प्रदान करके हिंद-प्रशांत क्षेत्र में आर्थिक सहयोग और सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ावा देना तथा रणनीतिक संबंध विकसित करना है।

एक्ट ईस्ट नीति की उपलब्धियां:

एक्ट ईस्ट नीति ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की भूमिका बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसके तहत कई महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की गई हैं:

  1. दक्षिण चीन सागर विवाद में समर्थन: भारत ने दक्षिण चीन सागर विवाद में फिलीपींस को समर्थन दिया है, जिससे क्षेत्रीय सुरक्षा और स्थिरता में योगदान हुआ है।
  2. मजबूत रणनीतिक साझेदारी: इस नीति ने इंडोनेशिया, वियतनाम, मलेशिया, जापान जैसे देशों के साथ भारत की मजबूत रणनीतिक साझेदारी बनाने में मदद की है। साथ ही, इस नीति की वजह से बिम्सटेक और इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन (IORA) देशों के साथ भारत के घनिष्ठ संबंध स्थापित हुए हैं।
  3. पूर्वोत्तर राज्यों का एकीकरण: इस नीति ने भारत के पूर्वोत्तर राज्यों का आर्थिक अलगाव समाप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उदाहरण के लिए, भारत-जापान एक्ट ईस्ट फोरम ने विकास और संपर्क को बढ़ावा दिया है।

एक्ट ईस्ट नीति के समक्ष चुनौतियां:

हालांकि एक्ट ईस्ट नीति ने कई महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की हैं, लेकिन इसके समक्ष कुछ महत्वपूर्ण चुनौतियां भी हैं:

  1. चीन से प्रतिस्पर्धा: आसियान देशों की अर्थव्यवस्था से चीन मजबूती से जुड़ा हुआ है, जिससे भारत को चीन से चुनौती का सामना करना पड़ता है। चीन की आर्थिक ताकत और राजनीतिक प्रभाव के चलते, भारत को अपने हितों की रक्षा के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी।
  2. आर्थिक प्रदर्शन: आसियान देशों के साथ भारत का आर्थिक प्रदर्शन संतोषजनक नहीं है। उदाहरण के लिए, भारत का इन देशों के साथ 43.57 बिलियन डॉलर का व्यापार घाटा है। इसके अलावा, मुक्त व्यापार समझौतों की शर्तों और कार्यान्वयन में भी सुधार की आवश्यकता है।

आगे की राह:

एक्ट ईस्ट नीति की सफलता के लिए आगे की राह में कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाए जाने की आवश्यकता है:

  1. मुक्त व्यापार समझौते (FTA) की समीक्षा: आसियान देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौते की समीक्षा करने की जरूरत है ताकि व्यापार घाटे को कम किया जा सके और द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा दिया जा सके।
  2. पर्यटन को बढ़ावा: इन देशों के साथ पर्यटन को बढ़ावा देने की आवश्यकता है जिससे सांस्कृतिक संबंध मजबूत हो सकें और आपसी समझ को बढ़ावा मिले। पर्यटन क्षेत्र में सहयोग से आर्थिक लाभ के साथ-साथ सांस्कृतिक आदान-प्रदान भी बढ़ेगा।
  3. सेमीकंडक्टर मिशन: भारत सेमीकंडक्टर मिशन को बढ़ावा देने के लिए सिंगापुर और मलेशिया के साथ साझेदारी बढ़ाई जानी चाहिए। यह भारत की तकनीकी क्षमताओं को मजबूत करेगा और उद्योगों के लिए आवश्यक आपूर्ति श्रृंखला को स्थिर बनाएगा।

एक्ट ईस्ट पॉलिसी के तहत भारत की पहलें:

भारत ने एक्ट ईस्ट पॉलिसी के तहत कई महत्वपूर्ण पहलें की हैं, जो क्षेत्रीय कनेक्टिविटी, सांस्कृतिक संबंधों और रक्षा निर्यात को बढ़ावा देती हैं:

  1. क्षेत्रीय कनेक्टिविटी: भारत-म्यांमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग, कलादान मल्टी मॉडल परिवहन परियोजना जैसे परियोजनाओं के माध्यम से क्षेत्रीय कनेक्टिविटी को बढ़ावा दिया गया है। ये परियोजनाएं न केवल व्यापार और परिवहन को सुगम बनाती हैं, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक संबंधों को भी मजबूत करती हैं।
  2. ‘विश्व की फार्मेसी’ की भूमिका: कोविड-19 टीकों की आपूर्ति के लिए वैक्सीन मैत्री पहल के तहत भारत ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस पहल ने भारत को वैश्विक स्वास्थ्य में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में स्थापित किया है।
  3. रक्षा निर्यात: भारत ने फिलीपींस को ब्रह्मोस मिसाइल प्रणाली उपलब्ध कराई है, जिससे रक्षा निर्यात को बढ़ावा मिला है। यह भारत की रक्षा क्षमताओं को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाने में मददगार साबित हुआ है।
  4. सांस्कृतिक संबंधों का जीर्णोद्धार: भारत ने वियतनाम के माई सन मंदिर, म्यांमार के बागान में बौद्ध पैगोडा, लाओस के वाट फो मंदिर परिसर, और कंबोडिया के प्रीह विहियर मंदिर के जीर्णोद्धार में मदद की है। यह पहलें सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने और सांस्कृतिक संबंधों को बहाल करने में सहायक रही हैं।

निष्कर्ष:

एक्ट ईस्ट नीति के एक दशक पूरा होने पर, यह स्पष्ट है कि इस नीति ने भारत की रणनीतिक और आर्थिक स्थिति को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हालांकि, चुनौतियों को देखते हुए, आगे की राह में सुधार और सहयोग की आवश्यकता है। भारत को अपने पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को और मजबूत करने के लिए निरंतर प्रयास करने होंगे, जिससे क्षेत्रीय शांति और स्थिरता सुनिश्चित की जा सके।

असियान देशों के साथ आर्थिक और सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ावा देने के लिए भारत को अपनी नीतियों और रणनीतियों में लचीलापन और नवाचार लाना होगा। इससे न केवल आर्थिक विकास में तेजी आएगी, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता और सुरक्षा में भी सुधार होगा।

एक्ट ईस्ट नीति के तहत भारत की पहलें और उनके परिणाम स्पष्ट रूप से दिखाते हैं कि सही दिशा में उठाए गए कदमों से व्यापक सकारात्मक प्रभाव हो सकता है। अब समय है कि हम इस नीति को और अधिक प्रभावी और समावेशी बनाने के लिए मिलकर काम करें।

FAQs:

एक्ट ईस्ट नीति क्या है?

एक्ट ईस्ट नीति (AEP) भारत सरकार द्वारा 2014 में शुरू की गई एक पहल है जिसका उद्देश्य इंडो-पैसिफिक क्षेत्र, विशेषकर आसियान (ASEAN) देशों के साथ आर्थिक, रणनीतिक और सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत करना है। यह पहले की लुक ईस्ट नीति का विस्तार है और इसमें कनेक्टिविटी, व्यापार और सहयोग में सुधार पर ध्यान केंद्रित किया गया है।

एक्ट ईस्ट नीति की घोषणा कब हुई थी?

एक्ट ईस्ट नीति की घोषणा नवंबर 2014 में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा म्यांमार में आयोजित पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन और आसियान-भारत शिखर सम्मेलन के दौरान की गई थी।

एक्ट ईस्ट नीति की प्रमुख उपलब्धियाँ क्या हैं?

एक्ट ईस्ट नीति की प्रमुख उपलब्धियों में इंडोनेशिया, वियतनाम, मलेशिया और जापान जैसे देशों के साथ मजबूत रणनीतिक साझेदारी, दक्षिण चीन सागर विवाद में फिलीपींस को समर्थन, और क्षेत्रीय कनेक्टिविटी परियोजनाओं का विकास शामिल है। इसके अलावा, वैक्सीन मैत्री और सांस्कृतिक धरोहर परियोजनाओं जैसी पहलों ने क्षेत्र में भारत की भूमिका को मजबूत किया है।

एक्ट ईस्ट नीति के सामने क्या चुनौतियाँ हैं?

एक्ट ईस्ट नीति को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिनमें आसियान क्षेत्र में चीन के आर्थिक प्रभाव से मुकाबला, आसियान देशों के साथ व्यापार घाटा और अधिक मजबूत आर्थिक प्रदर्शन और व्यापार समझौतों की आवश्यकता शामिल हैं। इसके अलावा, क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखना और भू-राजनीतिक तनावों को संबोधित करना भी महत्वपूर्ण चुनौतियाँ हैं।

एक्ट ईस्ट नीति भारत के पूर्वोत्तर राज्यों के लिए कैसे लाभकारी है?

एक्ट ईस्ट नीति भारत के पूर्वोत्तर राज्यों के लिए लाभकारी है क्योंकि यह उन्हें दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ अधिक कनेक्टिविटी प्रदान करती है, आर्थिक विकास को बढ़ावा देती है और उनके आर्थिक अलगाव को समाप्त करती है। उदाहरण के लिए, भारत-जापान एक्ट ईस्ट फोरम ने विकास और संपर्क परियोजनाओं को बढ़ावा दिया है, जिससे इस क्षेत्र में व्यापार और निवेश को बढ़ावा मिला है।

एक्ट ईस्ट नीति के तहत कुछ महत्वपूर्ण परियोजनाएँ कौन सी हैं?

एक्ट ईस्ट नीति के तहत महत्वपूर्ण परियोजनाओं में भारत-म्यांमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग, कलादान मल्टीमॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट, माई सन मंदिर (वियतनाम), बागान बौद्ध पगोडा (म्यांमार) और वाट फो मंदिर परिसर (लाओस) जैसी सांस्कृतिक धरोहर परियोजनाओं का जीर्णोद्धार शामिल है।

एक्ट ईस्ट नीति और लुक ईस्ट नीति में क्या अंतर है?

लुक ईस्ट नीति, जो 1992 में शुरू की गई थी, मुख्य रूप से दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ आर्थिक और व्यापारिक संबंधों पर केंद्रित थी। एक्ट ईस्ट नीति का दायरा व्यापक है, जिसमें रणनीतिक, राजनीतिक और सुरक्षा आयाम शामिल हैं, और इसका उद्देश्य भारत को इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में स्थापित करना है।

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