केंद्र सरकार ने 28 मार्च, 2024 को नागालैंड के 8 जिलों और अरुणाचल प्रदेश के 3 जिलों में सशस्त्र बल (विशेष शक्ति) अधिनियम, 1958 (AFSPA) को अगले छह महीने के लिए बढ़ा दिया है। इस निर्णय ने इस कड़े कानून के बारे में चल रही बहस को फिर से तेज कर दिया है। भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र AFSPA के प्रभाव में लंबे समय से रहा है, और सरकार इसे क्षेत्र में शांति एवं व्यवस्था बनाए रखने के लिए अनिवार्य मानती है। हालांकि, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का एक बड़ा तबका इस कानून की कठोर आलोचना करता है, इसे सशस्त्र बलों को बेतहाशा शक्तियों से लैस करने वाला और लोकतंत्र के सिद्धांतों का उल्लंघन करने वाला करार देते हैं।
AFSPA: एक परिचय
सशस्त्र बल (विशेष शक्ति) अधिनियम, 1958 भारतीय संसद द्वारा पारित एक ऐसा कानून है जो सेना को कुछ विशेष परिस्थितियों में विशेष शक्तियां प्रदान करता है। ये विशेष शक्तियां देश के उन क्षेत्रों में लागू होती हैं जिन्हें केंद्र या संबंधित राज्य सरकार द्वारा ‘अशांत क्षेत्र’ घोषित किया जाता है। ऐसे क्षेत्रों में सेना को कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए विस्तृत अधिकार प्राप्त होते हैं।
AFSPA की जड़ें ब्रिटिश औपनिवेशिक काल में निहित हैं। सशस्त्र बल (विशेष शक्तियाँ) अध्यादेश 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन की प्रतिक्रिया में लागू किया गया था। स्वतंत्रता के बाद यह औपनिवेशिक विरासत के रूप में रहा। 1958 में, गृह मंत्री जी.बी. पंत द्वारा AFSPA को एक विशिष्ट रूप दिया गया और इसे पूर्वोत्तर तक विस्तारित किया गया।
AFSPA को प्रभावी बनाने के लिए किसी क्षेत्र को ‘अशांत क्षेत्र’ घोषित करने की आवश्यकता होती है। किसी भी क्षेत्र को ‘अशांत क्षेत्र’ तभी घोषित किया जा सकता है जब –
- वह क्षेत्र अंतरराज्यीय सीमा विवाद, उग्रवाद, विद्रोह, अलगाववादी गतिविधियां जैसी समस्याओं से ग्रस्त हो।
- उस क्षेत्र में सामान्य कानून और व्यवस्था की स्थिति को सामान्य करने के लिए सशस्त्र बलों की तैनाती जरूरी हो।
AFSPA की धारा (3) के तहत किसी भी क्षेत्र को राज्य/केंद्र शासित प्रदेश का राज्यपाल/ प्रशासक या केंद्र सरकार ‘अशांत क्षेत्र’ घोषित कर सकती है। यह घोषणा कम से कम तीन महीने के लिए की जाती है जिसके बाद इसे बढ़ाया या हटाया जा सकता है।
AFSPA के मुख्य प्रावधान:
AFSPA को “अशांत क्षेत्र” घोषित इलाकों में सशस्त्र बलों को ये विशिष्ट अधिकार प्रदान किए गए हैं:
- भीड़ पर नियंत्रण: पांच या अधिक लोगों के जमावड़े पर प्रतिबंध लगाने का अधिकार।
- बल का प्रयोग: सैनिक किसी भी व्यक्ति को जो कानून का उल्लंघन करता हुआ प्रतीत होता है, को गिरफ्तार कर सकते हैं और चेतावनी के बाद बल का प्रयोग कर सकते हैं, यहां तक कि गोलीबारी भी कर सकते हैं जिससे मृत्यु का कारण बनना भी संभव है।
- बिना वारंट के गिरफ्तारी और तलाशी: किसी भी परिसर में बिना वारंट के प्रवेश कर तलाशी लेने एवं व्यक्तियों की गिरफ्तारी का अधिकार।
- उन्मुक्ति (Immunity): AFSPA सशस्त्र बलों को कानूनी कार्रवाई के खिलाफ एक प्रकार की सुरक्षा प्रदान करता है। अधिनियम के तहत किए गए अधिकारों के प्रयोग से जुड़े किसी भी मामले में सेना के जवानों के खिलाफ पूर्व अनुमति के बिना कोई भी अभियोजन, मुकदमा या किसी अन्य प्रकार की कानूनी कार्रवाई नहीं की जा सकती।
सरकार के अनुसार AFSPA क्यों है जरूरी?
- भारत सरकार का मानना है कि उत्तर-पूर्वी राज्यों में लंबे समय से चली आ रही उग्रवाद और अलगाववादी गतिविधियों की वजह से AFSPA जैसे कानून की आवश्यकता है।
- सरकार का तर्क है कि यह कानून सेना को आतंकी संगठनों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का अधिकार प्रदान करता है।
- सुरक्षाबलों का यह भी कहना है कि AFSPA उनको मनोबल बढ़ाने के साथ, मुश्किल हालात में काम करने का हौसला देता है।
AFSPA का विरोध और संबंधित चिंताएं:
- मानवाधिकारों की अवहेलना: मानवाधिकार संगठनों के अनुसार AFSPA सुरक्षा बलों को निरंकुश शक्तियाँ दे देता है, जिसका जमकर दुरुपयोग होता है। इस अधिकार के चलते कई बार निर्दोष व्यक्तियों को निशाना बनाया गया है।
- न्यायिक प्रक्रिया से सुरक्षा: AFSPA सैनिकों को नागरिक कार्रवाई से जो सुरक्षा देता है, वह जवाबदेही को कम करता है और दुरुपयोग को बढ़ावा देता है।
- जीवन के अधिकार का उल्लंघन: आलोचक बताते हैं कि बल के अत्यधिक प्रयोग के प्रावधान, जिसमें घातक गोलीबारी भी शामिल है, जीवन के मौलिक अधिकार की अवहेलना है।
- प्रभावशीलता पर सवाल: कई जानकारों का मानना है कि इतने लंबे समय से लागू होने के बाद भी AFSPA कानून उग्रवाद को पूरी तरह रोकने में नाकाम रहा है। कई पूर्वोत्तर राज्यों में उग्रवादी समस्या अब भी गंभीर रूप से मौजूद है।
- भेदभावपूर्ण रवैया: AFSPA पूर्वोत्तर राज्यों के कई हिस्सों में लंबे समय से लागू है, लेकिन देश के अन्य भागों के लिए ऐसा नहीं है। यह कानून सिर्फ अशांत क्षेत्रों में ही लागू होता है। आलोचकों के अनुसार, इस कानून के चलते पूर्वोत्तर के लोग भेदभाव का शिकार हो रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट और AFSPA:
1958 से लागू होने के बाद, AFSPA अक्सर न्यायिक जाँच के दायरे में रहा है। उच्चतम न्यायालय ने इस कानून पर कई निर्णय दिए हैं:
- नागा पीपुल्स मूवमेंट फॉर ह्यूमन राइट्स बनाम भारत संघ (1997): इस मामले में कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि AFSPA के तहत भी कुछ पाबंदियां सुरक्षाबलों पर लागू होती हैं। बलों द्वारा की जाने वाली हर कार्रवाई “अच्छी नियत और उचित ठहराए जाने लायक” होनी चाहिए।
- एक्सस्ट्रा ज्यूडिशियल एग्जीक्यूशन विक्टिम फैमिलीज एसोसिएशन बनाम भारत संघ (2016): यह एक ऐतिहासिक फैसला था। सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया कि भले ही AFSPA के तहत सुरक्षाबलों को कुछ विशेषाधिकार हों, लेकिन अपराध के मामले में उनके द्वारा अभियोजन से पूर्ण छूट का कोई प्रावधान नहीं है।
निष्कर्ष:
सशस्त्र बल (विशेष शक्ति) अधिनियम, 1958 एक अत्यंत संवेदनशील और जटिल कानून है जोकि राष्ट्रीय सुरक्षा और मानवाधिकारों के मध्य संतुलन बनाने का प्रयास करता है। इस कानून के कार्यान्वयन ने गंभीर प्रश्न उठाए हैं जिस पर बहस का जारी रहना स्वाभाविक है। AFSPA के समर्थकों का मानना है कि यह कानून भारत के अशांत क्षेत्रों, विशेष तौर पर उत्तर पूर्व, में आंतरिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए बहुत आवश्यक है। दूसरी तरफ, इसके विरोध में तर्क है कि यह कानून दमनकारी है और मानवाधिकारों का हनन करता है। नागरिक स्वतंत्रता के समर्थकों की मांग है कि या तो इस कानून को पूर्णतया निरस्त किया जाए या इसमें संशोधन कर इसके प्रावधानों को और सीमित किया जाए।
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