हाल ही में असम में आई बाढ़ और उसके प्रकोप ने पूर्वोत्तर भारत में बाढ़ की बारंबारता से उत्पन्न खतरे को उजागर किया है। लगभग 20 लाख से अधिक लोग इस बाढ़ से प्रभावित हुए हैं। यह स्थिति न केवल प्राकृतिक आपदा की गंभीरता को दर्शाती है, बल्कि मानवजनित कारणों की भूमिका को भी सामने लाती है। आइए, हम समझते हैं कि असम और पूर्वोत्तर भारत में बार-बार बाढ़ आने के खतरे के लिए कौन-कौन से कारक जिम्मेदार हैं।
असम में बाढ़ के प्रमुख कारण:
नदी का अस्थिर अपवाह
ब्रह्मपुत्र और बराक नदियाँ उच्च तलछट जमाव, खड़ी ढलानों तथा अनप्रस्थ ढाल के कारण गुफित (braided) एवं अस्थिर हैं। गुफित नदी वास्तव में कई धाराओं का एक नेटवर्क होता है, जो अक्सर छोटे और अस्थायी द्वीपों (बार) द्वारा अलग कर दी जाती हैं। यह अस्थिरता नदी के प्रवाह को बार-बार बदलती रहती है, जिससे बाढ़ की संभावना बढ़ जाती है।
भूवैज्ञानिक कारण
असम और पूर्वोत्तर भारत का संपूर्ण क्षेत्र उच्च सक्रिय भूकंपीय क्षेत्र में आता है। बार-बार आने वाले प्रबल भूकंप भी नदी मार्गों और उनके अपवाह को अस्थिर बनाते हैं। यह भूवैज्ञानिक कारण नदी के प्रवाह को अवरुद्ध करता है और बाढ़ की संभावना को बढ़ाता है।
जल विज्ञान-मौसम विज्ञान संबंधी कारक
भारत में ब्रह्मपुत्र और बराक नदी के जल अपवाह क्षेत्र बंगाल की खाड़ी में उत्पन्न होने वाले चक्रवाती तूफानों के प्रभाव क्षेत्र में आते हैं। ऐसे तूफान खासकर मानसून मौसम के अंत में देखने को मिलते हैं। ज्ञातव्य है कि ये तूफान भारी वर्षा लाते हैं, जिससे नदियाँ उफान पर आ जाती हैं और आसपास के इलाकों में बाढ़ आ जाती है।
जलवायु परिवर्तन
CSE (Centre for Science and Environment) की रिपोर्ट के अनुसार, पूर्वोत्तर भारत में होने वाली वर्षा की औसत मात्रा में कमी दर्ज की जा रही है, परन्तु यह देखा गया है कि इस क्षेत्र के कुछ भागों में काफी तेज वर्षा होती है। उदाहरण के लिए, इसी रिपोर्ट के अनुसार असम में ब्रह्मपुत्र नदी के उत्तर में स्थित जिलों में पिछले 30 वर्षों में बारिश की मात्रा में वृद्धि दर्ज की गई है। जलवायु परिवर्तन के कारण भारी वर्षा की घटनाओं में वृद्धि हुई है, जिससे बाढ़ की तीव्रता बढ़ी है।
जल निकासी में समस्या
मानसून मौसम में पूर्वोत्तर भारत की मुख्य नदियों का बहाव तेज हो जाता है। इसलिए, कम अवधि में भारी वर्षा होने की स्थिति में वर्षा जल नदी बेसिन में नहीं बह पाता। यह जल आसपास के इलाकों में फैलकर बाढ़ की स्थिति उत्पन्न कर देता है। जल निकासी की व्यवस्था में कमी भी बाढ़ की एक महत्वपूर्ण वजह है।
मानवजनित कारक:
असम में बाढ़ के प्रकोप में मानवजनित कारण भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इनमें निम्नलिखित कारक शामिल हैं:
- नदी मार्ग में निर्माण कार्य: नदी के प्राकृतिक मार्ग में निर्माण कार्य बाढ़ के जोखिम को बढ़ाते हैं।
- नदी बेसिन का अतिक्रमण: नदी बेसिन के अतिक्रमण से नदी का प्राकृतिक प्रवाह बाधित होता है।
- नदियों के प्राकृतिक अपवाह में रुकावट डालने वाले तटबंधों का निर्माण: तटबंधों के निर्माण से नदी का जलधारण क्षमता कम हो जाती है और बाढ़ की संभावना बढ़ जाती है।
बाढ़ प्रबंधन के लिए सिफारिशें:
असम और पूर्वोत्तर भारत में बार-बार आने वाली बाढ़ की समस्या से निपटने के लिए कुछ महत्वपूर्ण सिफारिशें की जा सकती हैं:
- ड्रेजिंग द्वारा नदी की जल-धारण क्षमता बढ़ाना: नदी के तलछट को हटाकर उसकी जल-धारण क्षमता बढ़ाई जा सकती है।
- फ्लड जोनिंग: बाढ़ आने के पूर्व उदाहरणों के अनुसार नदी की फ्लड जोनिंग की जानी चाहिए।
- मौसम स्टेशन स्थापित करना: पूर्वोत्तर राज्यों के सभी बांधों के ऊपरी जलग्रहण क्षेत्र (अपस्ट्रीम कैचमेंट) में आधुनिक मौसम स्टेशन स्थापित करने की आवश्यकता है।
- बाढ़ सुरक्षा संरचनाओं को मजबूत करना: बाढ़ से सुरक्षा प्रदान करने वाली संरचनाओं को मजबूत करना चाहिए। मौजूदा अधिकांश संरचनाएं बहुत पुरानी हो चुकी हैं।
- वनीकरण और आर्द्रभूमियों का कायाकल्प: वनीकरण और आर्द्रभूमियों का कायाकल्प करने की जरूरत है ताकि जलधारण क्षमता बढ़ाई जा सके।
निष्कर्ष:
असम में बार-बार आने वाली बाढ़ न केवल प्राकृतिक आपदाओं का परिणाम है, बल्कि मानवजनित गतिविधियों के कारण भी इसकी तीव्रता बढ़ी है। इन कारकों को ध्यान में रखते हुए, बाढ़ प्रबंधन की बेहतर योजना बनानी होगी ताकि भविष्य में इस तरह की त्रासदियों से निपटा जा सके।
FAQs:
असम में बाढ़ का मुख्य कारण क्या है?
असम में बाढ़ का मुख्य कारण ब्रह्मपुत्र और बराक नदियों का अस्थिर अपवाह, भारी वर्षा, जलवायु परिवर्तन, और मानवजनित गतिविधियों जैसे निर्माण कार्य और नदी बेसिन का अतिक्रमण है।
असम में बाढ़ की स्थिति को नियंत्रित करने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं?
असम में बाढ़ की स्थिति को नियंत्रित करने के लिए नदी ड्रेजिंग, फ्लड जोनिंग, मौसम स्टेशन स्थापित करना, बाढ़ सुरक्षा संरचनाओं को मजबूत करना और वनीकरण जैसे कदम उठाए जा सकते हैं।