Bilateral Investment Treaty: On the Path to Boosting Economic Ties Between India and the United Arab Emirates; द्विपक्षीय निवेश संधि: भारत और संयुक्त अरब अमीरात के आर्थिक रिश्तों को उड़ान देने की राह पर:

1 फरवरी, 2024 को केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने एक ऐतिहासिक निर्णय लिया, जिससे भारत और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के बीच पारस्परिक आर्थिक संबंधों को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाने की उम्मीद जगी है। मंत्रिमंडल ने UAE के साथ द्विपक्षीय निवेश संधि (BIT) पर हस्ताक्षर और अनुसमर्थन को अपनी मंजूरी दे दी। यह संधि आने वाले वर्षों में इन दोनों देशों के बीच आर्थिक सहयोग को मजबूत बनाने की नींव का काम करेगी।

लेकिन यह BIT वास्तव में क्या है और इसका भारत और UAE के विकास पर क्या असर पड़ेगा? चलिए इसे गहराई से समझते हैं।

क्यों जरूरी है द्विपक्षीय निवेश संधि?

किसी भी देश के लिए विदेशी निवेश आर्थिक विकास का आधार स्तंभ होता है। यह न केवल नया रोजगार पैदा करता है, बल्कि तकनीकी विकास और बुनियादी ढांचे के निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारत और UAE के बीच पहले से ही मजबूत व्यापारिक संबंध हैं, लेकिन मौजूदा द्विपक्षीय निवेश संरक्षण समझौता सितंबर 2024 में समाप्त हो जाएगा। ऐसे में दोनों देशों के बीच नए सिरे से एक ऐसे समझौते की जरूरत थी, जो न सिर्फ निवेश को बढ़ावा दे बल्कि निवेशकों के हितों की सुरक्षा भी सुनिश्चित करे।

UAE – भारत के लिए एक प्रमुख आर्थिक भागीदार

UAE पिछले कुछ वर्षों में भारत के लिए एक प्रमुख आर्थिक भागीदार के रूप में उभरा है। वित्त वर्ष 2023 में UAE भारत में चौथा सबसे बड़ा निवेशक बनकर उभरा है। दोनों देशों के बीच सालाना लगभग 60 बिलियन अमरीकी डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार होता है। यह आंकड़ा भविष्य में और भी बढ़ने की उम्मीद है।

भारत और BIT:

  • 1991 के आर्थिक सुधारों के बाद और 2015 तक भारत ने 83 देशों के साथ BIT पर हस्ताक्षर किए थे।
  • इन देशों के साथ BIT 1993 के मॉडल BIT के टेक्स्ट के आधार पर की गई थी।
  • मौजूदा BITs के तहत अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता मामलों में बहुत अधिक बढ़ोतरी होने लगी थी।
  • इसके कारण केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने 2015 में नया मॉडल BIT अपनाया था।
  • 1993 मॉडल पर आधारित BITs की समाप्ति के नोटिस 77 देशों (सितंबर 2021 तक) को जारी किए गए थे।
  • 2015 के मॉडल BIT टेक्स्ट का BITs और मुक्त व्यापार समझौतों (FTAs)/ आर्थिक साझेदारी समझौतों के निवेश संबंधी अध्यायों पर फिर से वार्ता करने के लिए उपयोग किया जाता है।

BIT के अंतर्गत प्रावधान:

यह नया BIT कई महत्वपूर्ण प्रावधानों को शामिल करता है, जिनसे दोनों देशों के बीच निवेश को बढ़ावा मिलेगा। इनमें से कुछ प्रमुख प्रावधान हैं:

  • निवेश की सुरक्षा: यह संधि दोनों देशों के निवेशकों को उनके निवेश की सुरक्षा की गारंटी देती है। इसका मतलब है कि सरकारें मनमाने ढंग से निवेश का राष्ट्रीयकरण नहीं कर सकतीं और न ही भेदभावपूर्ण व्यवहार कर सकती हैं।
  • राष्ट्रीय व्यवहार: यह संधि दोनों देशों को यह सुनिश्चित करने के लिए बाध्य करती है कि वे अपने-अपने क्षेत्र में दूसरे देश के निवेशकों के साथ घरेलू निवेशकों के समान व्यवहार करें।
  • विवाद निपटारा: यह संधि निवेशकों और सरकारों के बीच किसी भी विवाद के निपटारे के लिए स्पष्ट और निष्पक्ष विवाद निपटारा तंत्र स्थापित करती है।
  • निवेश का दायरा: यह संधि पारंपरिक निवेश जैसे कंपनियों में प्रत्यक्ष निवेश के अलावा इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी और डिजिटल निवेश को भी शामिल करती है।

संभावित लाभ:

इस BIT के लागू होने से कई तरह के लाभ होने की उम्मीद है। इनमें से कुछ प्रमुख लाभ हैं:

  • निवेश में वृद्धि: इस संधि से भारत में UAE से होने वाला निवेश बढ़ने की उम्मीद है। इससे रियल एस्टेट, नवीकरणीय ऊर्जा, बुनियादी ढांचा और सूचना प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में विशेष रूप से लाभ होगा।
  • रोजगार सृजन: निवेश बढ़ने से निश्चित रूप से रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे। इससे दोनों देशों की युवा पीढ़ी को लाभ होगा।
  • आर्थिक विकास: यह संधि दोनों देशों के आर्थिक विकास को गति देगी। भारत को विदेशी मुद्रा प्रवाह बढ़ाने और अपने बुनियादी ढांचे को मजबूत करने में मदद मिलेगी, जबकि UAE को अपने निवेश को विविधता लाने और क्षेत्रीय आर्थिक शक्ति के रूप में अपनी स्थिति को मजबूत करने का अवसर मिलेगा।
  • प्रौद्योगिकी हस्तांतरण: यह संधि प्रौद्योगिकी के आदान-प्रदान को बढ़ावा देगी। इससे दोनों देशों के उद्योगों को नई तकनीकों और कौशल तक पहुंच प्राप्त होगी।
  • क्षेत्रीय सहयोग: यह संधि न केवल भारत और UAE के बीच बल्कि पूरे क्षेत्र में आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देगी। यह क्षेत्रीय व्यापार समझौतों के लिए एक मजबूत आधार तैयार करेगा और क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा देगा।

चुनौतियां और समाधान:

हर समझौते की तरह, इस BIT के सामने भी कुछ चुनौतियां हैं। उदाहरण के लिए, यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि दोनों देश संधि के प्रावधानों का ईमानदारी से पालन करें। इसके अलावा, यह भी देखना जरूरी है कि यह संधि दोनों देशों के घरेलू कानूनों और नियमों के अनुरूप हो। इन चुनौतियों से पार पाने के लिए दोनों देशों को नियमित रूप से संयुक्त आयोग बैठकें आयोजित करनी चाहिए और पारस्परिक सहयोग को बढ़ाना चाहिए।

निष्कर्ष:

निष्कर्ष रूप में, यह कहा जा सकता है कि भारत और UAE के बीच नया द्विपक्षीय निवेश संधि दोनों देशों के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। यह संधि न केवल दोनों देशों के बीच आर्थिक सहयोग को मजबूत करेगी बल्कि पूरे क्षेत्र में भी आर्थिक विकास को बढ़ावा देगी। हालांकि, इस संधि की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि दोनों देश कितनी ईमानदारी से इसके प्रावधानों का पालन करते हैं और पारस्परिक सहयोग को बढ़ाते हैं।

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