कैंसर, एक ऐसा रोग जिससे दुनियाभर के लोग पीड़ित हैं, और इसका इलाज खर्चीला होने के साथ-साथ शरीर पर कई दुष्प्रभाव भी छोड़ता है। लेकिन, अब भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मद्रास (IIT Madras) के शोधकर्ताओं ने भारतीय मसालों से कैंसर के इलाज का एक नया तरीका खोज निकाला है। इस रिसर्च को पेटेंट कराने के साथ, आयुर्वेद की परंपरा को भी एक नई वैज्ञानिक पुष्टि मिली है।
रसोई और औषधीय उपयोग में सदियों से प्रचलित मसाले
भारतीय घरों में मसालों का खाने का स्वाद बढ़ाने के अलावा औषधीय प्रयोग भी सदियों से प्रचलित रहा है। शोधकर्ताओं ने, कैंसर के उपचार में उपयोगी हो सकने वाले कुछ मसालों पर अपना ध्यान केंद्रित किया, जिनमें शामिल हैं: लौंग, दालचीनी, काली मिर्च, हल्दी, अदरक, जीरा, और धनिया। इन मसालों में विशेष कैंसर रोधी गुण पाए जाते हैं जो कैंसर कोशिकाओं का विनाश करने में सक्षम होते हैं।
- लौंग: लौंग में यूजेनॉल (eugenol) नामक एक तत्व पाया जाता है, जिसके कैंसर-रोधी गुण पूर्व में भी सिद्ध हो चुके हैं।
- दालचीनी: दालचीनी का सक्रिय तत्व, सिनामाल्डिहाइड (cinnamaldehyde) कैंसर कोशिकाओं का विकास रोकने में सक्षम दिखा है।
- काली मिर्च: काली मिर्च में पाया जाने वाला पिपेरिन (piperine) नामक तत्व भी कैंसर रोधी गुण रखता है और साथ ही अन्य दवाओं के असर को बेहतर बनाने में भी मदद करता है।
- हल्दी: करक्यूमिन (curcumin) हल्दी का सबसे सक्रिय तत्व है, जो वैज्ञानिक अध्ययनों में अपने एंटीऑक्सिडेंट और कैंसर-रोधी गुणों के लिए जाना जाता है।
- अदरक: अदरक में स्थित जिंजरोल (gingerol) और शोगोल (shogaol) नामक तत्व, कैंसर कोशिकाओं की वृद्धि को कम करते हैं और उन्हें नष्ट करने में मदद करते हैं।
- जीरा और धनिया: इन दोनों मसालों में भी कैंसर से लड़ने वाले गुण पाए गए हैं, जो अन्य तत्वों के साथ मिलकर काफी प्रभावशाली साबित हो सकते हैं।
नैनो-इमल्शन: विज्ञान का साथ
शोधकर्ताओं ने इन मसालों में पाए जाने वाले सक्रिय कैंसर-रोधी तत्वों को निकाला और इन्हें नैनो-इमल्शन दवाओं में परिवर्तित किया। नैनो-इमल्शन बेहद बारीक बूंदों वाले इमल्शन होते हैं, जिससे इनका आकार नैनोमीटर (एक मीटर का अरबवां हिस्सा) में मापा जाता है। इन दवाओं की सबसे बड़ी खासियत यह है कि ये सीधे कैंसर कोशिकाओं को लक्षित करके उन्हें नष्ट करती हैं और स्वस्थ कोशिकाओं को बेहद कम नुकसान पहुंचाती हैं। प्रारंभिक शोध में फेफड़े, स्तन, कोलन, सर्वाइकल, मुंह, और थायरॉयड कैंसर की कोशिकाओं (सेल लाइन्स) पर सकारात्मक परिणाम देखे गए।
पशुओं पर प्रयोग के लाभदायक आंकड़े
मसालों से तैयार इन नैनो दवाइयों का पशुओं पर भी अध्ययन किया जा चुका है, जिसमें बेहद सकारात्मक परिणाम देखने को मिले हैं। अहम बात यह है कि पारंपरिक कैंसर उपचारों की तुलना में ये दवाएं कम खर्चीली और कम दुष्प्रभाव वाली साबित हो सकती हैं, जो मरीज़ों के लिए एक राहत साबित होगी।
आने वाला समय
आईआईटी मद्रास के रिसर्चर अब इस खोज के आधार पर तैयार दवाओं का क्लीनिकल ट्रायल शुरू करेंगे। इसमें दवाओं की सुरक्षा, प्रभावशीलता, और मानव शरीर पर उनके असर का मूल्यांकन किया जाएगा। उम्मीद है कि इन दवाओं को 2027-28 तक बाजार में उपलब्ध करा दिया जाएगा।
आयुर्वेद और आधुनिक विज्ञान का संगम
भारत की आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में सदियों से जड़ी-बूटियों और प्राकृतिक तत्वों का उपयोग विभिन्न रोगों के उपचार के लिए किया जाता रहा है। यह खोज आयुर्वेद और आधुनिक विज्ञान का एक बेहतरीन मेल है, जिससे कैंसर जैसे रोगों से लड़ने में नए और प्रभावशाली मार्ग खुल सकते हैं। भारतीय मसालों का यह चिकत्सीय उपयोग ना केवल भारत तक सीमित होगा, बल्कि वैश्विक स्तर पर इसका लाभ पहुंचाएगा।
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