Chief of Defence Staff Releases India’s First ‘Joint Doctrine’ for Cyber Space Operations; चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) ने साइबर स्पेस ऑपरेशंस के लिए भारत का पहला ‘जॉइंट डॉक्ट्रिन’ जारी किया

हाल ही में, चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी की बैठक के दौरान चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) ने साइबर स्पेस ऑपरेशंस के लिए भारत का पहला ‘जॉइंट डॉक्ट्रिन’ जारी किया। इस महत्वपूर्ण दस्तावेज़ में साइबर स्पेस ऑपरेशंस के सैन्य पहलुओं को समझने और उनका सामना करने पर जोर दिया गया है। भूमि, समुद्र और वायु के पारंपरिक युद्ध क्षेत्रों के अलावा, साइबर स्पेस भी एक महत्वपूर्ण एवं चुनौतीपूर्ण युद्ध क्षेत्र के रूप में उभरा है।

साइबर स्पेस की सुरक्षा की आवश्यकता:

साइबर स्पेस में शत्रुतापूर्ण कार्रवाइयों को रोकना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि साइबर हमले किसी राष्ट्र की अर्थव्यवस्था, एकजुटता, राजनीतिक निर्णय लेने की क्षमता और राष्ट्रीय सुरक्षा को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकते हैं। ऐसी आशंकाएं ‘जॉइंट डॉक्ट्रिन’ को अपनाने की आवश्यकता पर जोर देती हैं।

‘जॉइंट डॉक्ट्रिन’ का महत्व:

‘जॉइंट डॉक्ट्रिन’ साइबर स्पेस में ऑपरेशंस की योजना बनाने तथा संचालन में सशस्त्र बलों के कमांडरों, कार्मिकों और प्रैक्टिशनर्स को अवधारणा के स्तर पर मार्गदर्शन प्रदान करता है। यह तीनों सेनाओं (थल सेना, नौसेना और वायु सेना) के बीच सामंजस्य एवं एकीकरण को बढ़ावा देता है।

इस डॉक्ट्रिन को राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीतियों के साथ एकीकृत किया गया है। इस एकीकरण से साइबर स्पेस संबंधी लक्ष्य और तरीके विकसित करने तथा साइबर स्पेस संसाधन तैयार करने में मदद मिलेगी। इससे परिचालन के सभी क्षेत्रों में और सभी उपलब्ध क्षमताओं के उपयोग से साइबर स्पेस का लाभ उठाने तथा परिचालन के सभी क्षेत्रों में घटनाक्रमों को प्रभावित करने में सहायता मिलेगी।

साइबर स्पेस वारफेयर:

साइबर स्पेस वारफेयर को राज्य या गैर-राज्य अभिकर्ताओं (नॉन-स्टेट एक्टर्स) द्वारा साइबर हमले के रूप में परिभाषित किया जाता है। ये हमले या तो किसी राष्ट्र की सुरक्षा के समक्ष गंभीर खतरा पैदा करते हैं या किसी राष्ट्र की सुरक्षा के समक्ष कथित खतरे के खिलाफ प्रतिक्रिया में किए जाते हैं।

साइबर हमले आधिकारिक वेबसाइट्स एवं नेटवर्क को निष्क्रिय कर सकते हैं, आवश्यक सेवाओं को बाधित या निष्क्रिय कर सकते हैं, गोपनीय डेटा को चुरा सकते हैं या बदल सकते हैं, वित्तीय प्रणालियों को पंगु बना सकते हैं आदि। साइबर स्पेस वारफेयर इकोसिस्टम में साइबर आतंकवाद, साइबर धोखाधड़ी, साइबर जासूसी, साइबर स्टॉकिंग आदि शामिल हैं।

साइबर स्पेस में तेजी से हो रहे बदलावों के साथ, साइबर सुरक्षा एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया है। सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों को साइबर हमलों से बचाने के लिए प्रभावी रणनीतियों की आवश्यकता है। साइबर स्पेस ऑपरेशंस के लिए जॉइंट डॉक्ट्रिन इन चुनौतियों का सामना करने के लिए एक मजबूत आधार प्रदान करता है।

चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) के बारे में:

  • रैंक: चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) एक ‘फोर स्टार’ जनरल रैंक का सैन्य अधिकारी होता है।
  • भूमिका: वह रक्षा मंत्रालय के भीतर नव-सृजित सैन्य कार्य विभाग का प्रमुख होता है और इस विभाग के सचिव के रूप में कार्य करता है।
  • कमेटियों में सदस्यता: चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ मौजूदा चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी का स्थायी अध्यक्ष होता है। वह रक्षा मंत्री की अध्यक्षता वाली रक्षा अधिग्रहण परिषद का सदस्य और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की अध्यक्षता वाली रक्षा योजना समिति का सदस्य भी होता है।
  • सलाहकार भूमिका: वह तीनों सेनाओं से संबंधित सभी मामलों पर रक्षा मंत्री का प्रमुख सैन्य सलाहकार भी है। वह परमाणु कमान प्राधिकरण के सैन्य सलाहकार के रूप में भी कार्य करता है।
  • सैन्य कमांड: चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ के पास कोई मिलिट्री कमांड नहीं होता है, यहां तक कि वह तीनों सेनाओं के अध्यक्षों का मिलिट्री कमांड भी नहीं होता है।

निष्कर्ष:

साइबर स्पेस के बढ़ते महत्व और उसमें होने वाले खतरों के मद्देनजर, भारत का पहला ‘जॉइंट डॉक्ट्रिन’ जारी करना एक महत्वपूर्ण कदम है। यह डॉक्ट्रिन भारतीय सशस्त्र बलों को साइबर स्पेस में अपनी क्षमताओं को बढ़ाने और राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। यह पहल न केवल वर्तमान चुनौतियों का सामना करने में मदद करेगी, बल्कि भविष्य की चुनौतियों के लिए भी तैयार रहने में सहायता करेगी।

इस नई डॉक्ट्रिन के माध्यम से, भारत साइबर स्पेस में एक मजबूत और सुरक्षित स्थिति बना सकता है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा और रक्षा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। साइबर स्पेस ऑपरेशंस के लिए जॉइंट डॉक्ट्रिन के जारी होने से, भारतीय सशस्त्र बलों को एक संगठित और समन्वित दृष्टिकोण के साथ साइबर खतरों का मुकाबला करने की क्षमता मिलेगी।

FAQs:

साइबर स्पेस ऑपरेशंस के लिए ‘जॉइंट डॉक्ट्रिन’ क्या है?

साइबर स्पेस ऑपरेशंस के लिए ‘जॉइंट डॉक्ट्रिन’ एक सिद्धांत है जो सशस्त्र बलों के कमांडरों, कार्मिकों और प्रैक्टिशनर्स को साइबर स्पेस में ऑपरेशंस की योजना बनाने और संचालन में मार्गदर्शन प्रदान करता है। इसे तीनों सेनाओं (थल सेना, नौसेना और वायु सेना) के बीच सामंजस्य एवं एकीकरण को बढ़ावा देने के लिए बनाया गया है।

यह डॉक्ट्रिन क्यों महत्वपूर्ण है?

यह डॉक्ट्रिन साइबर स्पेस में शत्रुतापूर्ण कार्रवाइयों को रोकने के लिए आवश्यक है। साइबर हमले किसी राष्ट्र की अर्थव्यवस्था, राजनीतिक निर्णय लेने की क्षमता, और राष्ट्रीय सुरक्षा को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकते हैं। यह सिद्धांत सशस्त्र बलों को साइबर स्पेस में अपनी क्षमताओं को बढ़ाने और राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

साइबर स्पेस वारफेयर क्या है?

साइबर स्पेस वारफेयर को राज्य या गैर-राज्य अभिकर्ताओं (नॉन-स्टेट एक्टर्स) द्वारा साइबर हमले के रूप में परिभाषित किया जाता है। ये हमले किसी राष्ट्र की सुरक्षा के समक्ष गंभीर खतरा पैदा करते हैं या किसी राष्ट्र की सुरक्षा के समक्ष कथित खतरे के खिलाफ प्रतिक्रिया में किए जाते हैं।

साइबर हमले क्या कर सकते हैं?

साइबर हमले आधिकारिक वेबसाइट्स एवं नेटवर्क को निष्क्रिय कर सकते हैं, आवश्यक सेवाओं को बाधित या निष्क्रिय कर सकते हैं, गोपनीय डेटा को चुरा सकते हैं या बदल सकते हैं, और वित्तीय प्रणालियों को पंगु बना सकते हैं।

चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) कौन होता है?

चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) एक ‘फोर स्टार’ जनरल रैंक का सैन्य अधिकारी होता है। वह रक्षा मंत्रालय के भीतर नव-सृजित सैन्य कार्य विभाग का प्रमुख होता है और इस विभाग के सचिव के रूप में कार्य करता है। वह मौजूदा चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी का स्थायी अध्यक्ष होता है और तीनों सेनाओं से संबंधित सभी मामलों पर रक्षा मंत्री का प्रमुख सैन्य सलाहकार भी होता है।

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