भारत में कोयला मंत्रालय के अनुसार, आयातित कोयले की हिस्सेदारी की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) 2004-05 से 2013-14 में 13.94% थी। यह दर 2014-15 से 2023-24 में घटकर -2.29% रह गई है। भारत में आयातित कोयले की हिस्सेदारी में आई गिरावट कई आर्थिक और नीतिगत सुधारों का परिणाम है। सरकार के द्वारा किए गए उपायों और नीतियों के कारण कोयला क्षेत्र में आत्मनिर्भरता बढ़ रही है। हालांकि, कोयला खनन से संबंधित चुनौतियों का समाधान करना आवश्यक है ताकि देश की ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत किया जा सके।
- ओपन जनरल लाइसेंस:
- कोयला आयात कम करने के लिए किए गए उपाय:
- कोयला खनन से संबंधित चुनौतियां:
- भारत में कोयला क्षेत्रक के बारे में:
- निष्कर्ष:
- FAQs:
- भारत में आयातित कोयले की हिस्सेदारी में गिरावट क्यों आई है?
- ओपन जनरल लाइसेंस क्या है?
- खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 में संशोधन क्या है?
- प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) का कोयला क्षेत्र में क्या प्रभाव है?
- सिंगल विंडो क्लीयरेंस पोर्टल का उद्देश्य क्या है?
- भारत में कोयला क्षेत्र की चुनौतियां क्या हैं?
ओपन जनरल लाइसेंस:
ओपन जनरल लाइसेंस (OGL) के तहत उपभोक्ता कंपनियां अपनी वाणिज्यिक जरूरत के आधार पर स्वयं कोयले को स्वतंत्र रूप से आयात कर सकती हैं। यह नीति उपभोक्ताओं को उनकी आवश्यकताओं के अनुसार कोयला आयात करने की स्वतंत्रता देती है।
कोयला आयात कम करने के लिए किए गए उपाय:
खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 में संशोधन
इसके तहत कैप्टिव खदानों को उनके वार्षिक अधिशेष उत्पादन का 50% तक बेचने की अनुमति दी गई है। किसी कंपनी को स्वयं के उपयोग के लिए प्रदान की गई खदान को कैप्टिव खदान कहते हैं। यह संशोधन कंपनियों को अधिशेष उत्पादन को बेचने की अनुमति देता है, जिससे कोयले की उपलब्धता बढ़ती है और आयात की आवश्यकता कम होती है।
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI)
वाणिज्यिक खनन के लिए 100% FDI की अनुमति दी गई है। यह कदम विदेशी निवेशकों को भारतीय कोयला खनन क्षेत्र में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करता है, जिससे घरेलू उत्पादन में वृद्धि होती है और आयात पर निर्भरता कम होती है।
कोयला क्षेत्र विस्तार
इसके तहत नई परियोजनाएं शुरू करना, मौजूदा परियोजनाओं का विस्तार करना, और निजी कंपनियों/PSUs को कोयला ब्लॉक्स की नीलामी करना आदि शामिल हैं। इन उपायों से कोयला उत्पादन में वृद्धि होती है और आयातित कोयले की आवश्यकता घटती है।
सिंगल विंडो क्लीयरेंस पोर्टल
इसका उद्देश्य कोयला खदानों के परिचालन में तेजी लाना और कोयला क्षेत्र के विकास को बढ़ावा देना है। सिंगल विंडो क्लीयरेंस पोर्टल से खनन परियोजनाओं की मंजूरी प्रक्रिया सरल होती है, जिससे कोयला उत्पादन में तेजी आती है।
कोयला खनन से संबंधित चुनौतियां:
भारत में उच्च श्रेणी के कोयले जैसे कोकिंग कोयला, एन्थ्रेसाइट और कम राख (ऐश) वाला तापीय कोयला आदि की उपलब्धता नहीं है। विद्युत उत्पादन कार्य में संलग्न कंपनियों या डिस्कॉम्स द्वारा बकाया राशि सहित कोयले की मात्रा और गुणवत्ता के अनुसार मूल्य का भुगतान नहीं किया जाता है। इसके अलावा, कोयला उत्पादक क्षेत्रों में बिना मौसम और लगातार वर्षा होने से भी खनन कार्य प्रभावित होता है।
भारत में कोयला क्षेत्रक के बारे में:
भारत में विश्व का पांचवां सबसे बड़ा कोयला भंडार है। भारत कोयले का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता देश है। 2023-24 के दौरान कोयले का अखिल भारतीय उत्पादन 997.25 मीट्रिक टन था। यह मुख्य रूप से दो भूवैज्ञानिक युगों यानी गोंडवाना और टर्शियरी निक्षेपों के चट्टान अनुक्रमों में मिलता है। भारत में लगभग 80 प्रतिशत कोयला भंडार बिटुमिन प्रकार का है और यह गैर-कोकिंग ग्रेड का है। 97 प्रतिशत से अधिक कोयला भंडार दामोदर, सोन, महानदी और गोदावरी नदी घाटियों में हैं। छत्तीसगढ़ की गेवरा कोयला खदान भारत की सबसे बड़ी कोयला खदान है। इससे पहले झरिया में सबसे बड़ी कोयला खदान थी।
निष्कर्ष:
आयातित कोयले की हिस्सेदारी में गिरावट भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। सरकार के द्वारा किए गए उपाय और नीतियां कोयला क्षेत्र में आत्मनिर्भरता बढ़ाने में सहायक सिद्ध हो रही हैं। भविष्य में, इन नीतियों और उपायों के सफल कार्यान्वयन से भारत की ऊर्जा सुरक्षा और भी मजबूत होगी।
FAQs:
भारत में आयातित कोयले की हिस्सेदारी में गिरावट क्यों आई है?
भारत में आयातित कोयले की हिस्सेदारी में गिरावट के पीछे कई कारण हैं, जिनमें सरकार के द्वारा किए गए नीतिगत सुधार, ओपन जनरल लाइसेंस, और कोयला क्षेत्र में आत्मनिर्भरता बढ़ाने के उपाय शामिल हैं।
ओपन जनरल लाइसेंस क्या है?
ओपन जनरल लाइसेंस (OGL) के तहत उपभोक्ता कंपनियां अपनी वाणिज्यिक जरूरत के आधार पर स्वयं कोयले को स्वतंत्र रूप से आयात कर सकती हैं। यह नीति उपभोक्ताओं को उनकी आवश्यकताओं के अनुसार कोयला आयात करने की स्वतंत्रता देती है।
खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 में संशोधन क्या है?
खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 में संशोधन के तहत कैप्टिव खदानों को उनके वार्षिक अधिशेष उत्पादन का 50% तक बेचने की अनुमति दी गई है। किसी कंपनी को स्वयं के उपयोग के लिए प्रदान की गई खदान को कैप्टिव खदान कहते हैं।
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) का कोयला क्षेत्र में क्या प्रभाव है?
वाणिज्यिक खनन के लिए 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की अनुमति दी गई है। यह कदम विदेशी निवेशकों को भारतीय कोयला खनन क्षेत्र में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करता है, जिससे घरेलू उत्पादन में वृद्धि होती है और आयात पर निर्भरता कम होती है।
सिंगल विंडो क्लीयरेंस पोर्टल का उद्देश्य क्या है?
सिंगल विंडो क्लीयरेंस पोर्टल का उद्देश्य कोयला खदानों के परिचालन में तेजी लाना और कोयला क्षेत्र के विकास को बढ़ावा देना है। इस पोर्टल से खनन परियोजनाओं की मंजूरी प्रक्रिया सरल होती है, जिससे कोयला उत्पादन में तेजी आती है।
भारत में कोयला क्षेत्र की चुनौतियां क्या हैं?
भारत में कोयला क्षेत्र की चुनौतियों में उच्च श्रेणी के कोयले की कमी, विद्युत उत्पादन कंपनियों द्वारा बकाया राशि का भुगतान न करना, और कोयला उत्पादक क्षेत्रों में बिना मौसम और लगातार वर्षा जैसी समस्याएं शामिल हैं।