दुनियाभर के न्यूक्लियर वैज्ञानिकों ने फिर से अलार्म बजा दिया है। उनकी नजरों में मानवता विनाश के इतने करीब खड़ी है कि रात के 12 बजने में सिर्फ 90 सेकंड का ही फासला बचा है! ये कोई डरावनी फिल्म का सीन नहीं, बल्कि प्रतीकात्मक “डूम्सडे क्लॉक” की ओर इशारा करता है, जो हर साल दुनिया में मौजूद खतरों के मद्देनजर समय को आगे या पीछे करती है। 2024 में भी घड़ी की सुइयां हिली नहीं हैं, बल्कि उसी भयावह 90 सेकंड पर टिक-टॉक कर रही हैं, ये बताते हुए कि हम एक बेहद नाजुक दौर से गुजर रहे हैं।
किसने बनाई ये कयामत की घड़ी?
1947 में न्यूक्लियर युद्ध के खतरे के साए में अमेरिका के शिकागो स्थित “बुलेटिन ऑफ़ द एटॉमिक साइंटिस्ट्स” नामक संगठन ने इस प्रतीकात्मक घड़ी की शुरुआत की थी। तब से ये घड़ी हर साल वैज्ञानिकों, विशेषज्ञों और राजनेताओं की एक समिति द्वारा इस बात का आकलन करती है कि परमाणु हथियारों के इस्तेमाल, जलवायु परिवर्तन, जैविक हथियारों और अन्य वैश्विक खतरों के कारण मानव सभ्यता के खात्मे का खतरा कितना गंभीर है। हर साल घड़ी की सुइयां हिलती हैं, तो ये हिलना या तो रात के 12 बजे के करीब आने का संकेत देती है, या फिर थोड़ा दूर हटने का, जो खतरों के कम होते जाने का इशारा करता है।
क्यों अटकी है 90 सेकंड पर घड़ी?
2024 में घड़ी के 90 सेकंड पर अटके रहने के पीछे दो बड़े कारण बताए गए हैं:
- न्यूक्लियर तनाव का बढ़ना: रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते परमाणु हथियारों के इस्तेमाल का खतरा पहले से कहीं ज्यादा बढ़ गया है। दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर है और किसी गलत समझ या तकनीकी गड़बड़ी के कारण परमाणु युद्ध छिड़ने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।
- जलवायु परिवर्तन की चुनौती: जलवायु परिवर्तन मानव सभ्यता के लिए एक और बड़ा खतरा बना हुआ है। चरम मौसम की घटनाएं, समुद्र के स्तर का बढ़ना और संसाधनों की कमी से विश्वभर में अस्थिरता पैदा हो सकती है, जिससे युद्ध और संघर्ष की आशंका बढ़ जाती है।
क्या कर सकते हैं हम?
डूम्सडे क्लॉक सिर्फ चेतावनी नहीं देती, बल्कि कार्रवाई के लिए भी प्रेरित करती है। इस घड़ी की सुइयों को पीछे लाने के लिए हर किसी की जिम्मेदारी बनती है कि वो अपनी ओर से प्रयास करे। सरकारों को परमाणु हथियारों के नियंत्रण और निरस्त्रीकरण के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए। जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए कार्बन उत्सर्जन कम करने और पर्यावरण संरक्षण के प्रयासों को तेज करना होगा। साथ ही व्यक्तिगत स्तर पर भी हम ऊर्जा संरक्षण, टिकाऊ उपभोग और पर्यावरण जागरूकता फैलाकर अपना योगदान दे सकते हैं।
डूम्सडे क्लॉक की खबर किसी हॉरर फिल्म की कहानी नहीं है, बल्कि एक जगाने की झंकार है। ये याद दिलाती है कि हमें अपने कार्यों पर फिर से विचार करने की जरूरत है। अगर हम हाथ-पर-हाथ बैठे रहे, तो ये 90 सेकंड बीतते देर नहीं लगेंगे और इतिहास की किताबों में मानव सभ्यता का सिर्फ जिक्र बचा रह जाएगा। आइए समय रहते अपनी दिशा बदलें, कदम उठाएं और मिलकर इस कयामत की घड़ी को पीछे ले आएं। भविष्य हमारे हाथों में है, और ये चुनने का समय है कि हम विनाश के रास्ते पर चलते रहें या एक सुरक्षित और टिकाऊ दुनिया बनाने की कोशिश करें। याद रखें, यह सिर्फ घड़ी नहीं, बल्कि एक चुनौती है, जिसे मिलकर पार करना ही होगा।
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