Environmental Impact of Reduced Tree Numbers on Agricultural Lands: A Study; कृषि भूमि पर बड़े वृक्षों की कमी से पर्यावरण पर प्रभाव: एक विश्लेषण

भारत में कृषि भूमियों पर बड़े वृक्षों की संख्या में पिछले दशक में काफी कमी आई है। यह चिंता का विषय है क्योंकि वृक्ष न केवल पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने में मदद करते हैं, बल्कि कृषि उत्पादकता और किसानों की आय में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कोपेनहेगन विश्वविद्यालय (डेनमार्क) के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक अध्ययन में इस समस्या को उजागर किया गया है। यह अध्ययन सैटेलाइट से प्राप्त तस्वीरों के विश्लेषण पर आधारित है और इसके निष्कर्ष चौंकाने वाले हैं।

अध्ययन के मुख्य बिंदु:

अध्ययन में पाया गया कि 2010-2011 में पूर्ण विकसित वृक्षों में से 11 प्रतिशत वृक्ष 2018 से 2022 के बीच लुप्त हो गए। इसी अवधि के दौरान, भारत में कृषि भूमियों पर मौजूद 56 लाख पूर्ण विकसित वृक्ष गायब हो गए। विशेष रूप से तेलंगाना और महाराष्ट्र के कई हॉटस्पॉट क्षेत्रों में कृषि भूमि के 50% बड़े वृक्ष लुप्त हो गए थे।

वृक्षों के लुप्त होने के संभावित कारणों में जलवायु परिवर्तन, खेती के तरीकों में बदलाव, और अपेक्षाकृत कम लाभ मिलने की धारणा शामिल हैं। इन कारणों ने मिलकर भारत में कृषि भूमि पर वृक्षों की संख्या में भारी कमी लाई है।

कृषि-वानिकी (Agroforestry) के बारे में:

कृषि-वानिकी एक ऐसी प्रणाली है जिसमें एक ही कृषि भूमि पर फसलों की खेती, पेड़ उगाना और पशुपालन शामिल होता है। इससे उत्पादकता बढ़ती है, किसानों को किसी एक क्षेत्र के संकट से निपटने में मदद मिलती है तथा कई प्रकार की पारिस्थितिकी सेवाएं प्राप्त होती हैं।

कृषि-वानिकी के प्रकार

  1. एग्रीसिल्वीकल्चर: इसमें एक ही कृषि भूमि पर खेती और पेड़ दोनों उगाए जाते हैं।
  2. सिल्वोपास्टोरल: इसमें एक ही कृषि भूमि पर पशुपालन और पेड़ दोनों उगाए जाते हैं।
  3. एग्रोसिल्वोपास्टोरल: इसमें एक ही कृषि भूमि पर फसलें, पशु चारा और वृक्ष उगाए जाते हैं।

कृषि-वानिकी के लाभ:

पर्यावरणीय लाभ

कृषि-वानिकी से बढ़ी हुई पारिस्थितिकी-तंत्र सेवाएं प्राप्त होती हैं, जैसे पोषक तत्व चक्रण, स्थानीय स्तर पर मृदा को अनुकूल दशाएं (माइक्रोक्लाइमेट) मिलना आदि। पोषक तत्व चक्रण में पर्यावरण के सजीव और निर्जीव घटकों के बीच ऊर्जा एवं अन्य पदार्थों का आदान-प्रदान होता रहता है।

आर्थिक लाभ

कृषि-वानिकी से किसानों को आय के विविध स्रोत प्राप्त होते हैं, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार होता है। इसके साथ ही पूरी फसल नष्ट होने की आशंका भी कम हो जाती है, जिससे किसानों की जोखिम प्रबंधन क्षमता बढ़ती है।

सामाजिक लाभ

कृषि-वानिकी से खाद्य उत्पादन की गुणवत्ता और विविधता में वृद्धि होती है, जिससे पोषण स्तर एवं स्वास्थ्य में सुधार होता है। यह ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका के अवसर भी बढ़ाता है और समुदायों की समृद्धि में योगदान देता है।

भारत में कृषि-वानिकी को बढ़ावा देने के लिए उठाए गए कदम

भारत सरकार ने कृषि-वानिकी को बढ़ावा देने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। इनमें प्रमुख हैं:

  1. राष्ट्रीय कृषि-वानिकी नीति (2014): यह नीति कृषि-वानिकी को प्रोत्साहित करने के लिए जारी की गई है और इसके तहत कृषि-वानिकी के महत्व और लाभों को बढ़ावा दिया गया है।
  2. राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन: इसके तहत कृषि-वानिकी पर उप-मिशन का संचालन किया जा रहा है, जिससे किसानों को कृषि-वानिकी की ओर प्रेरित किया जा सके।
  3. राष्ट्रीय कृषि विकास योजना: इस योजना के अंतर्गत कृषि-वानिकी घटक शामिल किया गया है, जिससे कृषि-वानिकी को व्यापक रूप से अपनाया जा सके।
  4. नीति आयोग का GROW पोर्टल: नीति आयोग ने ‘ग्रीनिंग एंड रेस्टोरेशन ऑफ वेस्टलैंड विद एग्रोफोरेस्ट्री’ (GROW) नाम से उपयुक्तता मैपिंग पोर्टल लॉन्च किया है, जिससे कृषि-वानिकी के लिए उपयुक्त भूमि की पहचान और पुनर्वास में मदद मिल सके।

पर्यावरण और कृषि पद्धतियों पर प्रभाव:

कृषि भूमियों पर वृक्षों की कमी का पर्यावरण और कृषि पद्धतियों पर गहरा प्रभाव पड़ता है। वृक्षों के लुप्त होने से पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं में कमी आती है, जिससे जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने की क्षमता कमजोर होती है। इसके अलावा, मिट्टी की गुणवत्ता में गिरावट, जल संरक्षण की कमी और जैव विविधता में ह्रास भी वृक्षों की कमी के कारण हो सकता है।

कृषि पद्धतियों में बदलाव के कारण वृक्षों की कटाई और कम वृक्षारोपण होता है, जिससे भूमि की उत्पादकता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यह आवश्यक है कि किसानों को कृषि-वानिकी के लाभों के बारे में जागरूक किया जाए और उन्हें इसके लिए प्रोत्साहित किया जाए।

निष्कर्ष:

भारत में कृषि भूमियों पर बड़े वृक्षों की संख्या में आई कमी पर्यावरण और कृषि पद्धतियों के लिए गंभीर चिंता का विषय है। इस समस्या का समाधान करने के लिए कृषि-वानिकी को बढ़ावा देना आवश्यक है। इससे न केवल पर्यावरणीय लाभ प्राप्त होंगे, बल्कि किसानों की आर्थिक स्थिति में भी सुधार होगा और समाज के लिए भी लाभकारी होगा।

सरकार द्वारा उठाए गए कदम सराहनीय हैं, लेकिन इन नीतियों को प्रभावी रूप से लागू करने की आवश्यकता है। इसके साथ ही, किसानों को जागरूक करना और उन्हें समर्थन देना भी महत्वपूर्ण है, ताकि वे कृषि-वानिकी को अपनाकर पर्यावरण और अपनी आर्थिक स्थिति में सुधार कर सकें।

FAQs

कृषि-वानिकी (Agroforestry) क्या है?

कृषि-वानिकी एक प्रणाली है जिसमें एक ही कृषि भूमि पर फसलों की खेती, पेड़ उगाना और पशुपालन शामिल होता है। इससे उत्पादकता बढ़ती है, किसानों को किसी एक क्षेत्र के संकट से निपटने में मदद मिलती है तथा कई प्रकार की पारिस्थितिकी सेवाएं प्राप्त होती हैं।

पिछले दशक में भारत में कृषि भूमियों पर वृक्षों की संख्या में कितनी कमी आई है?

एक अध्ययन के अनुसार, 2010-2011 में पूर्ण विकसित वृक्षों में से 11 प्रतिशत वृक्ष 2018 से 2022 के बीच लुप्त हो गए। इस अवधि के दौरान, भारत में कृषि भूमियों पर मौजूद 56 लाख पूर्ण विकसित वृक्ष गायब हो गए। यह अध्ययन कोपेनहेगन विश्वविद्यालय (डेनमार्क) के शोधकर्ताओं द्वारा सैटेलाइट से प्राप्त तस्वीरों के विश्लेषण पर आधारित है।

वृक्षों के लुप्त होने के मुख्य कारण क्या हैं?

वृक्षों के लुप्त होने के संभावित कारणों में जलवायु परिवर्तन, खेती के तरीकों में बदलाव, और अपेक्षाकृत कम लाभ मिलने की धारणा शामिल हैं।

कृषि-वानिकी के प्रकार क्या हैं?

कृषि-वानिकी के तीन प्रमुख प्रकार हैं:
एग्रीसिल्वीकल्चर: इसमें एक ही कृषि भूमि पर खेती और पेड़ दोनों उगाए जाते हैं।
सिल्वोपास्टोरल: इसमें एक ही कृषि भूमि पर पशुपालन और पेड़ दोनों उगाए जाते हैं।
एग्रोसिल्वोपास्टोरल: इसमें एक ही कृषि भूमि पर फसलें, पशु चारा और वृक्ष उगाए जाते हैं।

भारत में कृषि-वानिकी को बढ़ावा देने के लिए कौन-कौन से कदम उठाए गए हैं?

भारत में कृषि-वानिकी को बढ़ावा देने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए गए हैं:
राष्ट्रीय कृषि-वानिकी नीति (2014)
राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन के तहत कृषि-वानिकी पर उप-मिशन
राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के अंतर्गत कृषि-वानिकी घटक
नीति आयोग का GROW पोर्टल

कृषि-वानिकी का समाज पर क्या लाभ होता है?

कृषि-वानिकी से खाद्य उत्पादन की गुणवत्ता और विविधता में वृद्धि होती है, जिससे पोषण स्तर एवं स्वास्थ्य में सुधार होता है। यह ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका के अवसर भी बढ़ाता है और समुदायों की समृद्धि में योगदान देता है।

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