उत्तराखंड के खूबसूरत पहाड़ी क्षेत्रों में एक बार फिर वनाग्नि की घटनाओं ने चिंता बढ़ा दी है। विशेष रूप से नैनीताल, हल्द्वानी और रामनगर वन प्रभागों में आग की तीव्रता ने वन विभाग को हाई अलर्ट पर रख दिया है। आग बुझाने के प्रयासों में वायु सेना के हेलीकॉप्टर भी शामिल हैं जो ‘बाम्बी बकेट’ तकनीक का उपयोग कर आग पर काबू पाने का कार्य कर रहे हैं।
वनाग्नि क्या है?
वनाग्नि, या जंगलों की आग, एक प्राकृतिक पर्यावरणीय आपदा है| इसमें पेड़-पौधे एवं अन्य ज्वलनशील वानस्पतिक पदार्थ अनियंत्रित रूप से जलने लगते हैं। यह आग, प्राकृतिक या मानव-जनित कारणों से शुरू होकर, तेजी से आसपास के क्षेत्र में फैल सकती है। पर्यावरणीय परिस्थितियां (जैसे तेज हवा, गर्म मौसम, ढलान) इसके प्रसार को बढ़ावा देती हैं। वनाग्नि से न केवल पेड़-पौधों का भारी नुकसान होता है, बल्कि जैव विविधता को भी गंभीर खतरा पहुँचता हैं।
भारत में वनाग्नि:
भारत वन स्थिति रिपोर्ट 2021 के अनुसार, नवंबर 2020 से जून 2021 की अवधि के बीच ओडिशा में सबसे अधिक वनाग्नि की घटनाएं देखी गईं, जिसके बाद मध्य प्रदेश का स्थान रहा। भारत के कुल वन क्षेत्र का लगभग 36% हिस्सा वनाग्नि के उच्च जोखिम के तहत आता है। यह आंकड़े इस आपदा की गंभीरता और इससे निपटने के लिए आवश्यक उपायों पर प्रकाश डालते हैं।
वनाग्नि के कारण:
वनाग्नि शुरू होने के पीछे प्राकृतिक एवं मानवीय दोनों तरह के कारण हो सकते हैं:
प्राकृतिक कारण:
- आकाशीय बिजली: तूफ़ानों के दौरान बिजली गिरने से सूखी वनस्पति में आग लग सकती है।
- उच्च तापमान और शुष्कता: गर्मियों की ऋतु में बढ़ता तापमान और हवा में शुष्कता पेड़ों के जलने के लिए अनुकूल परिस्थितियां बनाते हैं।
- घर्षण: वृक्षों की शाखाओं के आपस में टकराने और रगड़ने से उत्पन्न घर्षण से भी जंगल में आग लग सकती है।
मानवीय कारण:
- अलगाव के लिए जलाई गई आग: किसान अक्सर खेतों से सटी वन भूमि में नियंत्रित आग लगाते हैं ताकि क्षेत्र को साफ किया जा सके। कई बार यह नियंत्रित आग अनियंत्रित होकर जंगल के बड़े हिस्से में फैल जाती है।
- लापरवाही: पर्यटक या स्थानीय लोग कई बार जंगलों में सिगरेट या जलती बीड़ी फेंक देते हैं। इसके अलावा, सूखे पत्तों व घास-फूस पर छोड़ी गई कांच की बोतलें भी सूर्य की किरणों से उत्पन्न गर्मी से आग शुरू कर सकती हैं।
- जानबूझकर लगाई गई आग: असामाजिक तत्वों द्वारा जंगलों में जानबूझकर लगाई गई आग की घटनाएं भी देखी जाती हैं।
वनाग्नि के पर्यावरणीय प्रभाव:
- निर्वनीकरण: वनाग्नि से पेड़ों का भारी नुकसान होता है, जिससे वनों का घनत्व कम होता है यानी निर्वनीकरण होता है।
- जैव विविधता को क्षति: जंगलों में रहने वाले असंख्य पशु-पक्षियों, जीव-जंतुओं और सूक्ष्मजीवों के प्राकृतिक आवास नष्ट हो जाते हैं। इससे उस क्षेत्र की पूरी जैव विविधता पर दुष्प्रभाव पड़ता है
- मृदा क्षरण: वनाग्नि से उपजाऊ ऊपरी मिट्टी नष्ट हो जाती है। इसके बाद, बारिश के कारण मिट्टी का तेजी से कटाव (क्षरण) होता है।
- मिट्टी की उत्पादकता का ह्रास: पेड़ों की अनुपस्थिति व मिट्टी के क्षरण के चलते मिट्टी का पोषण कम होता जाता है, जिसके कारण फसल उत्पादकता पर भी असर पड़ता है।
- कार्बन उत्सर्जन : वन कार्बन के भंडार होते हैं, और वनाग्नि से यह संग्रहित कार्बन वातावरण में मुक्त हो जाता है, जिससे ग्रीनहाउस प्रभाव बढ़ता है।
वनाग्नि से बचाव के लिए सरकारी पहलें:
वनाग्नि के बढ़ते खतरे को देखते हुए सरकार द्वारा कई प्रयास किए जा रहे हैं:
- राष्ट्रीय कार्य योजना: 2018 में एक व्यापक राष्ट्रीय कार्य योजना जारी की गई, जिसमें बचाव, रोकथाम, आग पर नियंत्रण के उपायों के बारे में विस्तार से बताया गया है।
- सूचना प्रणाली: भारतीय वन सर्वेक्षण (FSI) ने वनाग्नि जियो-पोर्टल शुरू किया है, जो आग की घटनाओं के बारे में वास्तविक समय की जानकारी प्रदान करता है।
- कानूनी प्रावधान: वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम,1972, यह महत्वपूर्ण अधिनियम वन्यजीव अभयारण्यों के अंदर जानबूझकर आग लगाने पर कठोर कानूनी प्रावधान करता है।
वनाग्नि रोकने के अन्य उपाय:
- सतर्कता और शीघ्र प्रतिक्रिया: वॉच टावरों का निर्माण, स्थानीय वन कर्मियों द्वारा नियमित गश्त, और हॉटस्पॉट क्षेत्रों की निगरानी से वनाग्नि का शीघ्र पता लगाया जा सकता है और उसे फैलने से रोका जा सकता है।
- स्थानीय समुदाय की भागीदारी: वनों से सटे इलाकों में रहने वाले लोगों को वनाग्नि के प्रति जागरूक बनाना और रोकथाम हेतु उन्हें प्रशिक्षित करना बेहद आवश्यक है।
- फायर-लाइंस: ये एक महत्वपूर्ण निवारक उपाय है। जंगलों में चौड़ी पट्टियां बनाई जाती हैं जिससे उनमें पत्तियाँ, घास-फूस आदि एकत्रित ना हो सकें। यह तरीका आग को एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में जाने से रोकने में कारगर है।
- वर्तमान में दो प्रकार की फायर लाइंस प्रचलन में हैं:
- कच्ची फायर-लाइंस: इसमें जंगलों से घास-फूस और झाड़ियों को हटा दिया जाता है, जबकि पेड़ों को यथावत रखा जाता है।
- पक्की फायर-लाइंस: किसी जंगल/कम्पार्टमेंट/ब्लॉक को दूसरे जंगल/कम्पार्टमेंट/ब्लॉक से अलग करने हेतु कृत्रिम रूप से कटे हुए वृक्षों वाले क्षेत्र बनाए जाते हैं।
निष्कर्ष:
वनाग्नि हमारे पारिस्थितिकी तंत्र के लिए एक गंभीर चुनौती है। वन विभाग, स्थानीय समुदायों और जनता को मिलकर काम करना होगा ताकि इन घटनाओं को रोका जा सके और हमारे वनों को आने वाली पीढ़ियों के लिए संरक्षित किया जा सके।