समुद्र के अद्भुत पारिस्थितिक तंत्र का एक महत्वपूर्ण घटक, प्रवाल भित्तियां (कोरल रीफ्स), गंभीर संकट के दौर से गुजर रही हैं। 2023 की शुरुआत से, दुनिया भर के कम से कम 53 देशों और क्षेत्रों में प्रवाल विरंजन की घटनाएं दर्ज की गई हैं। चिंताजनक रूप से, यह पिछले एक दशक में चौथी बार है जब व्यापक स्तर पर कोरल ब्लीचिंग देखी जा रही है। इससे पहले, 2014 से 2017 के बीच भी यह घटना जारी रही थी। नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (NOAA) के कोरल रीफ वॉच (CRW) और इंटरनेशनल कोरल रीफ इनिशिएटिव (ICRI) जैसे संगठनों ने इस व्यापक प्रवाल विरंजन की घटना की पुष्टि की है। इसमें ऑस्ट्रेलिया की विशाल ग्रेट बैरियर रीफ भी शामिल है।
प्रवाल भित्तियां और उनका महत्व:
अक्सर “समुद्र के वर्षावन” कहे जाने वाले प्रवाल भित्तियां कैल्शियम कार्बोनेट से बनी कठोर संरचनाएं होती हैं, जो विभिन्न रंगों के छोटे जीवों के उपनिवेशों (कॉलोनियों) से निर्मित होती हैं। इनके जीवंत रंगों का रहस्य इनके साथ सहजीवी संबंध रखने वाले सूक्ष्म शैवाल ‘ज़ूजैन्थेले’ हैं। ये शैवाल प्रवालों को पोषक तत्व प्रदान करते हैं और प्रवाल भित्तियों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
कोरल/प्रवाल अकशेरुकी (Invertebrate) जीव हैं, जो निडारिया नामक जीवो के एक बड़़े समहू से संबंधित हैं। प्रवाल भित्तियां पृथ्वी के सबसे विविध और उत्पादक पारिस्थितिक तंत्रों में से एक हैं। वे लगभग 25% समुद्री जीवन का घर हैं, जिससे उन्हें समुद्र का एक अनिवार्य अंग बनाते हैं। प्रवाल भित्तियां कई पारिस्थितिक और आर्थिक लाभ प्रदान करती हैं:
- जैव विविधता का केंद्र: मछलियों, मोलस्क, समुद्री कछुओं, और अन्य समुद्री जीवों की अनगिनत प्रजातियों का प्रजनन और पालन स्थल।
- तटीय सुरक्षा: वे तूफानों और लहरों के प्रभाव को कम करने में मदद करती हैं, जिससे तटीय कटाव को रोका जा सकता है।
- पर्यटन को बढ़ावा: प्रवाल भित्तियां डाइविंग, स्नोर्कलिंग और अन्य मनोरंजक गतिविधियों के लोकप्रिय स्थल हैं, जो स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को बढ़ावा देते हैं।
- कार्बन सिंक: वे महासागर के कार्बन को अवशोषित करके जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने में मदद करते हैं।
प्रवाल भित्तियों के विकास के लिए अनुकूल स्थितियां:
जलवायु:
- गर्म पानी: प्रवाल भित्तियों को गर्म पानी पसंद होता है, जिसका तापमान 23 से 29 डिग्री सेल्सियस के बीच होता है।
- उच्च लवणता: समुद्री जल में 32 से 42 ppt (parts per thousand) लवणता प्रवालों के विकास के लिए उपयुक्त होती है।
- स्वच्छ जल: स्वच्छ और प्रदूषण मुक्त समुद्री जल प्रवालों के लिए आवश्यक है।
- उथला पानी: प्रवाल भित्तियों को उथले पानी में विकसित होने के लिए पर्याप्त सूर्य प्रकाश की आवश्यकता होती है, जो आम तौर पर 40 मीटर की गहराई तक ही पहुंचता है।
अन्य अनुकूल कारक:
- स्थिर तापमान: प्रवालों को तापमान में अत्यधिक बदलाव पसंद नहीं होता है।
- प्रचुर मात्रा में सूर्य प्रकाश: प्रवालों को प्रकाश संश्लेषण के लिए सूर्य के प्रकाश की आवश्यकता होती है, जो उनके पोषण और रंगों के लिए आवश्यक है।
- चट्टानी आधार: प्रवाल भित्तियों को विकसित होने के लिए एक ठोस चट्टानी आधार की आवश्यकता होती है।
- कम तलछट: तलछट का जमाव प्रवालों को प्रकाश से वंचित कर सकता है और उनके विकास को बाधित कर सकता है।
- दूरस्थ स्थान: शांत और कम मानवीय गतिविधियों वाले स्थान प्रवालों के लिए अधिक अनुकूल होते हैं।
कोरल ब्लीचिंग: एक गंभीर पर्यावरणीय खतरा
कई कारकों के कारण प्रवाल तनावग्रस्त हो जाते हैं। जब जलवायु परिवर्तन से संबंधित समुद्र के तापमान में वृद्धि, प्रदूषण या अन्य पर्यावरणीय तनाव के कारण स्थिति अत्यधिक हो जाती है, तो प्रवाल अपने सहजीवी शैवाल (ज़ूजैन्थेले) को बाहर निकाल देते हैं। यह उनके सफेद कैल्शियम कार्बोनेट कंकाल के पीछे छोड़ देता है, जिससे वे सफेद दिखाई देते हैं। इस प्रक्रिया को “कोरल ब्लीचिंग” के रूप में जाना जाता है।
हालांकि विरंजित प्रवाल अभी भी जीवित हैं, लेकिन वे भोजन की कमी के कारण कमजोर हो जाते हैं और भूखे रह जाते हैं। यदि तनाव लंबे समय तक रहता है, तो प्रवाल मर सकते हैं, जिससे महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र क्षतिग्रस्त हो जाएंगे।
प्रवाल ब्लीचिंग के मुख्य कारण:
- जलवायु परिवर्तन से बढ़ता समुद्री तापमान: वैज्ञानिकों के अनुसार समुद्र के तापमान में वृद्धि प्रवाल विरंजन का सबसे प्रमुख कारण है। ग्लोबल वार्मिंग के दुष्प्रभावों के चलते महासागर लगातार गर्म हो रहे हैं।
- प्रदूषण: समुद्र में औद्योगिक अपशिष्ट, सीवेज, रासायनिक प्रदूषकों, और तेल रिसाव का मिलना प्रवाल भित्तियों के स्वास्थ्य को बुरी तरह प्रभावित करता है।
- अत्यधिक मछली पकड़ना (ओवरफिशिंग): अनियंत्रित और अत्यधिक मछली पकड़ने की गतिविधियां प्रवाल भित्तियों के आसपास के पारिस्थितिकी तंत्र (इकोसिस्टम) के संतुलन को बिगाड़ देती हैं।
- महासागर अम्लीकरण: जलवायु परिवर्तन के कारण वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर बढ़ता है, जिससे समुद्र का पानी अधिक अम्लीय होता जाता है। यह अम्लीकरण प्रवालों के लिए कैल्शियम कार्बोनेट (जिससे उनका ढांचा बनता है) को अवशोषित करना कठिन बना देता है।
- अत्यधिक निम्न ज्वार: कम ज्वार के कारण प्रवाल अधिक समय तक खुली हवा और सूर्य के प्रकाश के संपर्क में रहते हैं, जिससे उन्हें नुकसान पहुंच सकता है।
कोरल ब्लीचिंग का पर्यावरण और अर्थव्यवस्था पर असर:
- समुद्री जैव विविधता पर खतरा: कोरल रीफ अविश्वसनीय रूप से विविध पारिस्थितिकी तंत्र हैं, जो लगभग 25% समुद्री जीवन का पोषण करते हैं। प्रवाल विरंजन मछली प्रजातियों, झींगा मछली, कछुओं, शार्क और अन्य समुद्री जीवों के अस्तित्व के लिए एक बड़ा खतरा है।
- मछली पालन उद्योग को नुकसान: कोरल रीफ दुनिया भर में मछली पालन उद्योग की रीढ़ हैं। ब्लीचिंग के कारण मछली की आबादी में गिरावट से इस उद्योग पर भारी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, खासकर गरीब तटीय समुदायों के लिए।
- पर्यटन पर नकारात्मक असर: विश्व भर में लाखों पर्यटक कोरल रीफ की सुंदरता का आनंद लेने के लिए गोताखोरी (डाइविंग) और स्नोर्कलिंग करते हैं। प्रवाल विरंजन के कारण कई क्षेत्रों में पर्यटन उद्योग को गहरा नुकसान पहुंचता है।
- तटीय सुरक्षा में कमी: तूफान, बड़ी लहरें – कोरल रीफ प्राकृतिक अवरोधों के रूप में कार्य करते हैं, जो तटवर्ती क्षेत्रों को इस तरह के खतरों से बचाते हैं। प्रवाल विरंजन से यह प्राकृतिक ढाल कमजोर हो जाती है।
प्रवाल भित्तियों के संरक्षण के वैश्विक प्रयास:
कोरल रीफ के विनाशकारी विरंजन को रोकने और उनके संरक्षण के लिए वैश्विक स्तर पर कई प्रयास किए जा रहे हैं। कुछ प्रमुख संगठन और पहलें इस प्रकार हैं:
- इंटरनेशनल कोरल रीफ इनिशिएटिव (ICRI): सरकारों, संगठनों और विशेषज्ञों का एक वैश्विक साझेदारी मंच, जो कोरल रीफ के सतत प्रबंधन और संरक्षण को बढ़ावा देता है।
- ग्लोबल कोरल रीफ मॉनिटरिंग नेटवर्क (GCRMN): यह कोरल रीफ की वैश्विक स्थिति का आकलन कर रिपोर्ट तैयार करता है, जो नीति निर्धारण और संरक्षण प्रयासों में सहायक होती हैं।
- ग्लोबल फंड फॉर कोरल रीफ्स: कोरल रीफ संरक्षण के लिए फंडिंग और तकनीकी सहायता प्रदान करने वाला एक संगठन।
- कोरल ट्राएंगल इनिशिएटिव (CTI) : पश्चिमी प्रशांत महासागर में स्थित एक समुद्री क्षेत्र (इसमेें इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, पापुआ न्यू गिनी, तिमोर लेस्ते और सोलोमन द्वीप का जल क्षेत्र शामिल है), जो कोरल ट्राएंगल क्षेत्र की कोरल रीफ और तटीय संसाधनों के संरक्षण का काम करता है।
भारत में प्रवाल भित्तियों के संरक्षण के उपाय:
भारत के समुद्री तटों के साथ, खास तौर पर अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह, लक्षद्वीप, मन्नार की खाड़ी और कच्छ की खाड़ी में समृद्ध प्रवाल भित्तियां पाई जाती हैं। इन महत्वपूर्ण पारिस्थितिक तंत्रों की रक्षा के लिए भारत में कई उपाय किए गए हैं:
- समुद्री संरक्षित क्षेत्र (MPA): महत्वपूर्ण कोरल रीफ क्षेत्रों को संरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया है।
- एकीकृत तटीय क्षेत्र प्रबंधन (ICZM): समुद्री और कोरल रीफ संसाधनों के सतत उपयोग के लिए योजनाएं लागू।
- बायोरॉक तकनीक: इस तकनीक के माध्यम से क्षतिग्रस्त प्रवाल भित्तियों को पुनर्जीवित करने के प्रयास।
निष्कर्ष:
वर्तमान चौथी वैश्विक व्यापक प्रवाल विरंजन घटना, जो 2023 में शुरू हुई है, समुद्री स्वास्थ्य के लिए एक अत्यंत गंभीर चिंता का विषय है। यह घटना, जो पिछले दशक में दूसरी बार देखी जा रही है, दर्शाती है कि जलवायु परिवर्तन और मानवजनित गतिविधियों से प्रवाल भित्तियों पर लगातार बढ़ता दबाव है।
यदि हमने तत्काल और ठोस कदम नहीं उठाए, तो हम इन अविश्वसनीय रूप से महत्वपूर्ण पारिस्थितिक तंत्रों को हमेशा के लिए खो सकते हैं। प्रवाल भित्तियों के विनाश के परिणाम विनाशकारी होंगे, न केवल समुद्री जीवन की विविधता और समृद्धि के लिए, बल्कि तटीय समुदायों की आजीविका और खाद्य सुरक्षा के लिए भी।
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