Fuel from Pine Trees: An Innovative and Environment-Friendly Initiative from Uttarakhand; चीड़ के पेड़ों से ईंधन: उत्तराखंड की एक अभिनव और पर्यावरण-हितैषी पहल:

उत्तराखंड अपने प्राकृतिक सौंदर्य और पर्वतीय भूभाग के लिए प्रसिद्ध है। राज्य में वृक्षों की विभिन्न प्रजातियाँ पायी जाती हैं जिसमें सदाबहार चीड़ के पेड़ों का प्रमुख स्थान है। जंगलों की जमीन पर बिखरी हुई इनकी सूखी, नुकीली पत्तियां (पाइन नीडल्स) अकसर समस्या बन जाती हैं, विशेषकर जंगल की आग के लिए। इन नीडल्स में उच्च राल (Resin) होता है, जो आसानी से जल जाती हैं। हालांकि, CSIR-भारतीय पेट्रोलियम संस्थान और उत्तराखंड राज्य विज्ञान और प्रौद्योगिकी परिषद की एक नई पहल इनको एक पर्यावरण के अनुकूल ईंधन स्रोत में बदल रही है।

समझौता ज्ञापन (MOU)

हाल ही में, CSIR-भारतीय पेट्रोलियम संस्थान और उत्तराखंड राज्य विज्ञान और प्रौद्योगिकी परिषद ने एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए, जिसका लक्ष्य पाइन नीडल्स से ईंधन बनाने की तकनीक विकसित करना है। यह तकनीक “ब्रिकेटिंग प्रक्रिया” पर आधारित है। जो बायोमास अवशेषों को ईंधन में बदलने की एक प्रक्रिया है।

ब्रिकेटिंग प्रक्रिया:

ब्रिकेटिंग बायोमास अवशेषों का संघनन (densification) कर उन्हें उपयोगी ईंधन के रूप में बदलने की प्रक्रिया है। इसमें अपशिष्ट पदार्थों को उच्च दबाव का उपयोग करके ईंधन ब्रिकेट में बदला जाता है। यह प्रक्रिया पर्यावरण के लिए सुरक्षित है और टिकाऊ ऊर्जा प्रदान करती है।

चीड़ के वृक्ष:

चीड़ (पाइन) के वृक्ष सदाबहार शंकुधारी (coniferous) होते हैं। दुनिया भर में पाए जाने वाले इन वृक्षों की कई प्रजातियां हैं। इन पेड़ों पर शंकुनुमा फल जैसी संरचनाएं उगती हैं, जो प्रजनन बीजों को अपने अंदर कवर करके रखती हैं। ये वास्तव में फल नहीं होते हैं। चीड़ के पेड़ उत्तरी समशीतोष्ण क्षेत्रों के मूल निवासी हैं और दुनिया भर में पाए जाते हैं। पतझड़ के मौसम में ये पेड़ अपनी पुरानी नुकीली पत्तियों को गिरा देते हैं।

पाइन नीडल्स से ईंधन के लाभ

उत्तराखंड में, जहां चीड़ के जंगल काफी मात्रा में हैं, पाइन नीडल्स से ईंधन बनाना कई कारणों से लाभकारी है:

  • पर्यावरण संरक्षण: पाइन नीडल्स का यदि सही निस्तारण ना हो तो ये वन में आग लगने के लिए ईंधन के रूप में काम करते हैं। वनों की आग को रोकने में इनको हटाना आवश्यक है। ईंधन में इनका रूपांतरण अपशिष्ट (Waste) घटता है और एक नई आर्थिक गतिविधि शुरू करता है।
  • अक्षय ऊर्जा स्रोत: ब्रिकेटिंग बायोमास (पाइन नीडल्स) को एक नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत में बदल देती है। यह परंपरागत जीवाश्म ईंधन पर हमारी निर्भरता को कम करता है और पर्यावरण पर उनके नकारात्मक प्रभावों से निपटने में मदद करता है।
  • ग्रामीण विकास: पाइन नीडल्स के संग्रहण, और ब्रिकेट उत्पादन गतिविधियां ग्रामीण क्षेत्रों के लिए आय और रोजगार सृजन का एक नया अवसर हैं ।
  • जलवायु परिवर्तन से संघर्ष: पाइन नीडल आधारित ईंधन, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने में एक भूमिका निभाता है। इससे जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के प्रयासों में महत्वपूर्ण मदद मिलेगी।

उत्तराखंड के लिए महत्व

उत्तराखंड राज्य इस पहल से काफी लाभान्वित हो सकता है। ब्रिकेटिंग विधि स्थानीय स्तर पर रोजगार सृजन की क्षमता रखती है। राज्य के दूर-दराज के इलाकों में छोटे उद्योग स्थापित किए जा सकते हैं जहां पाइन नीडल्स की प्रचुरता है। यह तकनीक उत्तराखंड के सतत विकास के लक्ष्यों को पूरा करने में सहायक होगी और एक स्वच्छ पर्यावरण सुनिश्चित करेगी।

तकनीक विकास और कार्यान्वयन

CSIR-भारतीय पेट्रोलियम संस्थान और उत्तराखंड राज्य विज्ञान और प्रौद्योगिकी परिषद मिलकर इस तकनीक को अगले तीन वर्षों में विकसित करने की दिशा में प्रयास करेंगे। ब्रिकेटिंग पायलट योजनाएं राज्य के विभिन्न स्थानों पर शुरू की जाएंगी ताकि इसका व्यावहारिक कार्यान्वयन समझा जा सके।

भविष्य की संभावना

उत्तराखंड में पाइन नीडल्स को ईंधन में बदलना एक अभिनव समाधान है। यह न केवल पर्यावरण की रक्षा करता है, बल्कि एक टिकाऊ अर्थव्यवस्था भी बनाता है। इस परियोजना की सफलता भारत के अन्य हिमालयी क्षेत्रों में भी प्रतिकृति (replicated) की जा सकती है। भारत और दुनिया भर में ऊर्जा विकल्पों के रूप में बायोमास ब्रिकेट की अपार संभावनाएं हैं।

निष्कर्ष

पाइन नीडल आधारित ईंधन, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने और जलवायु परिवर्तन से निपटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। यह तकनीक पर्यावरण के अनुकूल, टिकाऊ और किफायती है। यह भारत और दुनिया भर के अन्य देशों के लिए एक महत्वपूर्ण विकल्प हो सकती है।

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