How Is the CJI Selected in India? Know the Complete Process; कैसे होता है भारत में CJI का चयन? जानिए पूरी प्रक्रिया

भारत के 51वें मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India – CJI) के रूप में न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने शपथ ग्रहण कर ली है। यह शपथ भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक भव्य समारोह में दिलाई। 14 मई 1960 को जन्मे न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने दिल्ली विश्वविद्यालय के कैंपस लॉ सेंटर से कानून की पढ़ाई की। उन्होंने राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) के कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में भी अपनी सेवाएं दीं।

जनवरी 2019 से सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में कार्यरत न्यायमूर्ति खन्ना कई ऐतिहासिक फैसलों का हिस्सा रहे हैं, जिनमें EVM की पवित्रता बनाए रखने, चुनावी बॉन्ड योजना को चुनौती देना, अनुच्छेद 370 को निरस्त करने से जुड़े मामले, और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को अंतरिम जमानत देने जैसे महत्वपूर्ण निर्णय शामिल हैं।

भारत के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति प्रक्रिया:

भारतीय न्यायिक व्यवस्था में मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति एक विशेष प्रक्रिया और परंपरा से होती है।

परंपरा और संवैधानिक प्रक्रिया

सामान्य रूप से, सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठतम न्यायाधीश को निवर्तमान मुख्य न्यायाधीश (CJI) की सिफारिश पर नए CJI के रूप में नियुक्त किया जाता है। यह परंपरा लंबे समय से प्रचलित है, हालांकि, कुछ अवसरों पर इसका उल्लंघन भी हुआ है। उदाहरण के लिए, 1964, 1973, और 1977 में इस परंपरा को नहीं माना गया था, जिससे न्यायिक और राजनीतिक विवाद उत्पन्न हुए थे।

नियुक्ति की प्रक्रिया

  1. सिफारिश: सबसे पहले केंद्रीय विधि और न्याय कार्य मंत्री निवर्तमान CJI से उनके उत्तराधिकारी के संबंध में सिफारिश मांगते हैं।
  2. प्रधानमंत्री की मंजूरी: इस सिफारिश को प्रधानमंत्री के पास भेजा जाता है, जो इसे राष्ट्रपति के पास अंतिम निर्णय के लिए भेजते हैं।
  3. संवैधानिक प्रावधान: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124(2) के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। न्यायाधीश 65 वर्ष की आयु तक इस पद पर बने रह सकते हैं।

मुख्य न्यायाधीश की प्रमुख भूमिकाएं:

भारत के मुख्य न्यायाधीश को कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ सौंपी जाती हैं, जो न्यायपालिका के सुचारु संचालन में सहायक होती हैं।

  1. फर्स्ट अमंग इक्वल्स (First Among Equals): राजस्थान राज्य बनाम प्रकाश चंद (1997) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला सुनाया था कि CJI न्यायपालिका का प्रमुख होता है। इसका मतलब यह है कि CJI नेतृत्वकारी भूमिका निभाता है, लेकिन उसे सुप्रीम कोर्ट के अन्य न्यायाधीशों की तुलना में कोई विशेष न्यायिक अधिकार नहीं होता।
  2. मास्टर ऑफ दी रोस्टर: मुख्य न्यायाधीश के पास यह विशेष अधिकार होता है कि वह सुप्रीम कोर्ट में मामलों की सुनवाई के लिए पीठों का गठन करे। इसके तहत संविधान पीठों के गठन की जिम्मेदारी भी CJI की होती है। यह शक्ति यह सुनिश्चित करती है कि कोर्ट में मामलों का प्रबंधन सुव्यवस्थित रूप से हो।
  3. कॉलेजियम का प्रमुख: न्यायिक नियुक्तियों और स्थानांतरण के लिए CJI कॉलेजियम प्रणाली का नेतृत्व करता है। उच्चतर न्यायपालिका में नियुक्तियों के लिए कॉलेजियम द्वारा सिफारिशें की जाती हैं।
  4. अधिकारियों की नियुक्ति: संविधान के अनुच्छेद 146 के तहत, सुप्रीम कोर्ट के अधिकारियों और सेवकों की नियुक्ति करने की जिम्मेदारी CJI की होती है। इस कार्य में वह एक अन्य नामित न्यायाधीश या अधिकारी की मदद भी ले सकता है।

कॉलेजियम प्रणाली क्या है?

कॉलेजियम प्रणाली भारत की न्यायिक नियुक्ति प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह प्रणाली सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण के लिए सिफारिशें करती है। न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा संविधान के अनुच्छेद 124 और 217 (क्रमशः सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट) के तहत की जाती है

कॉलेजियम का गठन: सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति के लिए कॉलेजियम में CJI और चार वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होते हैं। यह कॉलेजियम राष्ट्रपति को न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए सिफारिश करता है।

हाई कोर्ट में नियुक्ति: हाई कोर्ट के न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए संबंधित हाई कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश और दो वरिष्ठतम न्यायाधीश हाई कोर्ट कॉलेजियम का हिस्सा होते हैं। यह कॉलेजियम अपनी सिफारिशें सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम को भेजता है।

  • अंतिम निर्णय: CJI की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट का कॉलेजियम इन सिफारिशों पर अंतिम निर्णय लेता है, जिसमें दो वरिष्ठतम न्यायाधीश भी शामिल होते हैं।

कॉलेजियम प्रणाली से संबंधित प्रमुख मुद्दे:

  1. कार्यपालिका का बहिष्करण: न्यायिक नियुक्ति प्रक्रिया से कार्यपालिका को पूरी तरह से बाहर रखने से एक ऐसी प्रणाली बन गई है, जहाँ कुछ न्यायाधीश गोपनीय तरीके से अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति करते हैं। यह प्रक्रिया किसी प्रशासनिक निकाय के प्रति जवाबदेही से मुक्त होती है, जिससे सही उम्मीदवारों की अनदेखी और गलत उम्मीदवारों के चयन की आशंका बढ़ जाती है।
  2. पक्षपात और भाई-भतीजावाद की संभावना: कॉलेजियम प्रणाली में मुख्य न्यायाधीश के चयन के लिए कोई विशेष मानदंड नहीं है, जिससे यह प्रणाली पक्षपात और भाई-भतीजावाद की संभावना को बढ़ावा देती है। यह न्यायिक प्रणाली में पारदर्शिता की कमी उत्पन्न करती है, जो देश की विधि और व्यवस्था के लिए हानिकारक साबित हो सकती है।
  3. नियंत्रण और संतुलन के सिद्धांत के विरुद्ध: कॉलेजियम प्रणाली नियंत्रण और संतुलन के सिद्धांत का उल्लंघन करती है। भारत में विधायिका, कार्यपालिका, और न्यायपालिका तीनों स्वतंत्र रूप से कार्य करते हैं, लेकिन अत्यधिक शक्तियों पर नियंत्रण और संतुलन बनाए रखते हैं। यह प्रणाली न्यायपालिका को अपार शक्ति प्रदान करती है, जो नियंत्रण और दुरुपयोग का खतरा उत्पन्न करती है।
  4. ‘क्लोज़-डोर मैकेनिज्म’: आलोचकों का कहना है कि इस प्रणाली में कोई आधिकारिक सचिवालय नहीं है। इसे एक ‘क्लोज्ड डोर अफेयर’ माना जाता है, जहाँ कॉलेजियम की कार्य प्रणाली और निर्णय प्रक्रिया के बारे में सार्वजनिक जानकारी उपलब्ध नहीं होती। साथ ही, कॉलेजियम की कार्यवाही का कोई आधिकारिक रिकॉर्ड भी नहीं रखा जाता है।
  5. असमान प्रतिनिधित्व: उच्च न्यायपालिका में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बेहद कम है, जो न्यायिक प्रणाली में असमानता की चिंता को बढ़ाता है।

नियुक्ति प्रणाली में सुधार के प्रयास

नियुक्ति प्रणाली में सुधार के लिए ‘राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग’ (NJAC) की स्थापना की कोशिश की गई थी। इसे 99वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2014 के माध्यम से लागू करने का प्रयास किया गया। हालांकि, 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए खतरा हो सकता है।

FAQs:

भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) की नियुक्ति कैसे होती है?

आमतौर पर, सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठतम न्यायाधीश को मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया जाता है। निवर्तमान मुख्य न्यायाधीश की सिफारिश पर केंद्रीय विधि और न्याय मंत्री यह प्रक्रिया शुरू करते हैं, जिसे प्रधानमंत्री के माध्यम से राष्ट्रपति तक भेजा जाता है। राष्ट्रपति संविधान के अनुच्छेद 124(2) के तहत नियुक्ति करते हैं।

CJI का कार्यकाल कब तक होता है?

भारत के मुख्य न्यायाधीश का कार्यकाल 65 वर्ष की आयु तक होता है।

CJI की प्रमुख भूमिकाएं क्या हैं?

फर्स्ट अमंग इक्वल्स: CJI सुप्रीम कोर्ट का प्रमुख होता है और नेतृत्वकारी भूमिका निभाता है।
मास्टर ऑफ दी रोस्टर: केसों की सुनवाई के लिए पीठों का गठन करना CJI का अधिकार है।
कॉलेजियम का प्रमुख: न्यायिक नियुक्तियों और स्थानांतरण के लिए CJI कॉलेजियम का नेतृत्व करता है।
सुप्रीम कोर्ट के कर्मचारियों की नियुक्ति: संविधान के अनुच्छेद 146 के तहत, यह कार्य CJI या सुप्रीम कोर्ट के अन्य अधिकारी करते हैं।

कॉलेजियम प्रणाली क्या है?

कॉलेजियम प्रणाली न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण की प्रक्रिया है। सुप्रीम कोर्ट के लिए, इसमें CJI और चार वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होते हैं, जबकि हाई कोर्ट के लिए संबंधित मुख्य न्यायाधीश और दो वरिष्ठ न्यायाधीश होते हैं।

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