IISc Develops Brain-like Computing System with Metal-Organic Films; IISc के वैज्ञानिकों ने विकसित की मस्तिष्क जैसी कंप्यूटिंग तकनीक:

भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) के वैज्ञानिकों ने हाल ही में न्यूरोमॉर्फिक कंप्यूटिंग के क्षेत्र में महत्वपूर्ण सफलता प्राप्त की है। यह उपलब्धि आधुनिक कंप्यूटिंग तकनीक में एक क्रांतिकारी बदलाव ला सकती है। वैज्ञानिकों ने सिलिकॉन-आधारित तकनीकों के स्थान पर मेटल-ऑर्गेनिक फिल्मों का उपयोग करके मेमरिस्टर सेमीकंडक्टर डिवाइस विकसित किए हैं। इस नई तकनीक के माध्यम से कंप्यूटर सिस्टम मस्तिष्क की सूचना संसाधन प्रणाली की नकल कर सकेंगे।

न्यूरोमॉर्फिक कंप्यूटिंग क्या है?

न्यूरोमॉर्फिक कंप्यूटिंग या न्यूरोमॉर्फिक इंजीनियरिंग, मानव मस्तिष्क के कार्य और संरचना की नकल करती है। इसका उद्देश्य न्यूरल नेटवर्क्स और सिनेप्स के समान हार्डवेयर और सॉफ़्टवेयर डिज़ाइन करना है ताकि कंप्यूटर सिस्टम मस्तिष्क की तरह डेटा प्रोसेसिंग कर सकें। यह कंप्यूटिंग की एक अत्याधुनिक विधि है, जो कंप्यूटिंग की परंपरागत पद्धतियों से कहीं अधिक तेज़, कुशल और ऊर्जा-कुशल है।

न्यूरोमॉर्फिक कंप्यूटिंग में स्पाइकिंग न्यूरल नेटवर्क्स (SNNs) का उपयोग किया जाता है, जो कृत्रिम न्यूरॉन्स के बीच सिनेप्स के माध्यम से जुड़े होते हैं। ये न्यूरॉन्स सिग्नल को स्थानांतरित करने के लिए एनालॉग सर्किटरी का उपयोग करते हैं। पारंपरिक कंप्यूटरों में बाइनरी सिस्टम (0 और 1) के आधार पर जानकारी संसाधित होती है, जबकि न्यूरोमॉर्फिक कंप्यूटिंग में डिस्क्रीट एनालॉग सिग्नल का उपयोग किया जाता है, जो मस्तिष्क की तरह सूचनाओं का ट्रांसफर करती है।

मस्तिष्क द्वारा सूचना की प्रोसेसिंग:

मस्तिष्क द्वारा सूचना की प्रोसेसिंग एक जटिल प्रक्रिया है जिसमें न्यूरॉन्स मुख्य भूमिका निभाते हैं। न्यूरॉन्स मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र की मूल इकाइयां होती हैं, जो संदेशवाहक के रूप में काम करती हैं। ये न्यूरॉन्स मस्तिष्क के विभिन्न हिस्सों और शरीर के अन्य अंगों के बीच सूचनाओं का आदान-प्रदान करते हैं।

जब कोई न्यूरॉन सक्रिय होता है, तो यह रासायनिक और विद्युत संकेतों का उत्पादन करता है, जो सिनैप्स नामक कनेक्शन पॉइंट्स के माध्यम से यात्रा करते हैं। सिनैप्स वह स्थान होते हैं जहाँ एक न्यूरॉन दूसरे न्यूरॉन से संपर्क करता है और सिग्नल्स को आगे बढ़ाता है, जिससे दोनों के बीच संचार संभव हो पाता है।

इस प्रक्रिया से मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र एक जटिल नेटवर्क के रूप में काम करते हैं, जिससे विचार, स्मृति, संवेदनाएँ, और अन्य मानसिक प्रक्रियाएं होती हैं।

IISc की शोध और नवाचार:

IISc के वैज्ञानिकों ने मेमरिस्टर नामक सेमीकंडक्टर डिवाइस का विकास किया है, जो मेटल-ऑर्गेनिक फिल्मों से बनाया गया है। यह डिवाइस मस्तिष्क की सूचना संसाधन प्रणाली की नकल करते हुए न्यूरॉन्स और सिनेप्स के नेटवर्क के समान कार्य करता है। यह डिवाइस मौजूदा कंप्यूटर हार्डवेयर की तुलना में अधिक तेज़, कुशल और ऊर्जा-कुशल है।

इस शोध में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मेटल-ऑर्गेनिक फिल्मों का उपयोग मस्तिष्क द्वारा सूचना प्रोसेसिंग के तरीके को नकल करने में सक्षम है, जो कंप्यूटिंग के क्षेत्र में एक नई दिशा प्रदान करता है। मस्तिष्क के न्यूरॉन्स और सिनेप्स की तरह, मेमरिस्टर भी सूचना को एकीकृत तरीके से प्रोसेस करने में सक्षम होते हैं।

न्यूरोमॉर्फिक कंप्यूटिंग के लाभ:

  1. अनुकूलनशीलता (Adaptability): न्यूरोमॉर्फिक कंप्यूटिंग वास्तविक समय में समस्याओं को हल करने में सक्षम है, जिससे यह नई और जटिल समस्याओं के समाधान के लिए अत्यधिक अनुकूलनीय है।
  2. ऊर्जा दक्षता: न्यूरोमॉर्फिक सिस्टम केवल सक्रिय भागों का ही उपयोग करता है, जिससे ऊर्जा का कुशल उपयोग होता है। यह परंपरागत कंप्यूटिंग की तुलना में बहुत अधिक ऊर्जा-सक्षम है।
  3. उच्च प्रदर्शन: न्यूरोमॉर्फिक कंप्यूटिंग में न्यूरॉन्स और सिनेप्स के माध्यम से मेमोरी और प्रोसेसिंग को एकीकृत किया जाता है, जिससे जानकारी के प्रोसेसिंग में तेजी आती है और लेटेंसी कम होती है।
  4. समानांतर प्रोसेसिंग (Parallel Processing): यह तकनीक अलग-अलग न्यूरॉन्स में एक साथ कई कार्यों की समानांतर प्रोसेसिंग करने में सक्षम है, जिससे यह बहुत तेज गति से काम कर सकती है।

न्यूरोमॉर्फिक कंप्यूटिंग के अनुप्रयोग:

न्यूरोमॉर्फिक कंप्यूटिंग के अनुप्रयोग कई क्षेत्रों में देखे जा सकते हैं। इसके मुख्य क्षेत्रों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), रोबोटिक्स, स्वचालन (automation), और बड़े पैमाने पर डेटा प्रोसेसिंग शामिल हैं।

  1. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस: न्यूरोमॉर्फिक कंप्यूटिंग AI के विकास को और भी अधिक शक्तिशाली बना सकता है। यह मशीन लर्निंग और डीप लर्निंग एल्गोरिदम के प्रदर्शन को बढ़ाने में मदद कर सकता है।
  2. रोबोटिक्स: न्यूरोमॉर्फिक कंप्यूटिंग रोबोटों को अधिक मानव-समान संज्ञानात्मक क्षमताएँ प्रदान कर सकती है, जिससे वे जटिल और बदलते परिवेशों में बेहतर निर्णय ले सकेंगे।
  3. डेटा प्रोसेसिंग: बड़ी मात्रा में डेटा के तेज और कुशल प्रोसेसिंग के लिए न्यूरोमॉर्फिक कंप्यूटिंग का उपयोग किया जा सकता है, जिससे वैज्ञानिक अनुसंधान और उद्योगों में डेटा एनालिसिस में सुधार हो सकता है।

चुनौतियां और भविष्य की संभावनाएं:

हालांकि न्यूरोमॉर्फिक कंप्यूटिंग के कई फायदे हैं, लेकिन इसे अपनाने में कुछ चुनौतियां भी हैं। मुख्य चुनौतियों में मानकों और बेंचमार्क की कमी, सीमित सॉफ्टवेयर का समर्थन, और इस तकनीक की सटीकता को बढ़ाने की आवश्यकता शामिल है।

हालांकि, भविष्य में न्यूरोमॉर्फिक कंप्यूटिंग के व्यापक उपयोग की संभावनाएं बहुत उज्ज्वल हैं। यह तकनीक कंप्यूटिंग की वर्तमान सीमाओं को पार करने और अधिक तेज, कुशल और सटीक कंप्यूटर सिस्टम प्रदान करने में सक्षम है। IISc की यह नवीनतम सफलता न्यूरोमॉर्फिक कंप्यूटिंग के क्षेत्र में महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हो सकती है और आने वाले वर्षों में इसके कई औद्योगिक और वैज्ञानिक अनुप्रयोग देखने को मिल सकते हैं।

निष्कर्ष:

भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) के वैज्ञानिकों की यह महत्वपूर्ण सफलता कंप्यूटिंग के भविष्य को बदलने की क्षमता रखती है। न्यूरोमॉर्फिक कंप्यूटिंग की यह तकनीक न केवल विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में एक क्रांति ला सकती है, बल्कि यह मानव मस्तिष्क की तरह काम करने वाले कंप्यूटरों के विकास की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम है।

FAQs:

न्यूरोमॉर्फिक कंप्यूटिंग क्या है?

न्यूरोमॉर्फिक कंप्यूटिंग एक प्रकार की कंप्यूटिंग तकनीक है, जो मानव मस्तिष्क की संरचना और कार्यप्रणाली की नकल करती है। इसमें ऐसे हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर बनाए जाते हैं जो न्यूरल नेटवर्क्स और सिनैप्स के जरिए सूचना को प्रोसेस करते हैं।

न्यूरोमॉर्फिक कंप्यूटिंग कैसे काम करती है?

न्यूरोमॉर्फिक कंप्यूटिंग स्पाइकिंग न्यूरल नेटवर्क्स (SNNs) का उपयोग करती है, जो कृत्रिम सिनेप्स के जरिए न्यूरॉन्स को जोड़ते हैं और डेटा को प्रोसेस करने के लिए एनालॉग सिग्नल्स का उपयोग करते हैं। यह मानक कंप्यूटर्स के बाइनरी सिस्टम से अलग है और अधिक प्राकृतिक प्रोसेसिंग करता है। न्यूरोमॉर्फिक कंप्यूटिंग में डिस्क्रीट एनालॉग सिग्नल का उपयोग किया जाता है, जो मस्तिष्क की तरह सूचनाओं का ट्रांसफर करती है।

न्यूरोमॉर्फिक कंप्यूटिंग के लाभ क्या हैं?

इसमें अनुकूलनशीलता (Adaptability), उच्च ऊर्जा दक्षता, समानांतर प्रोसेसिंग, और तेज प्रोसेसिंग की क्षमता शामिल है। यह नई समस्याओं को हल करने के लिए वास्तविक समय (रियल टाइम) में खुद को अनुकूलित कर सकता है।

न्यूरोमॉर्फिक कंप्यूटिंग की चुनौतियां क्या हैं?

इस क्षेत्र में बेंचमार्क और मानकों की कमी, सीमित सॉफ़्टवेयर एक्सेस, और सटीकता में कमी जैसी चुनौतियां हैं, जिन्हें अभी हल किया जाना बाकी है।

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