तमिलनाडु में बड़े पैमाने पर अवैध रेत खनन के आरोपों की जांच के संबंध में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) ने हाल ही में प्रवर्तन निदेशालय (ED) से एक विस्तृत रिपोर्ट मांगी है। यह निर्देश देश में अवैध रेत खनन की गंभीरता और इस मुद्दे से निपटने के प्रयासों को उजागर करता है। इस लेख में, हम रेत के पर्यावरणीय महत्व पर प्रकाश डालते हुए, अवैध रेत खनन के मुद्दे, इसके प्रभावों और इसके समाधान के लिए उठाए जा रहे कदमों पर चर्चा करेंगे।
रेत: एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन:
रेत एक ऐसा प्राकृतिक संसाधन है जिसका हम अक्सर महत्व नहीं समझते। रेत निर्माण उद्योग का एक अनिवार्य घटक है और इसका उपयोग कांच, इलेक्ट्रॉनिक्स और कई अन्य उत्पादों के निर्माण में भी किया जाता है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) के अनुसार, रेत दुनिया में दूसरा सबसे अधिक उपयोग किया जाने वाला प्राकृतिक संसाधन है, जो पानी के बाद दूसरे स्थान पर है। हालांकि, रेत एक सीमित संसाधन है, और इसका अनियंत्रित दोहन गंभीर पर्यावरणीय और सामाजिक-आर्थिक परिणामों को जन्म दे सकता है।
रेत खनन के मुख्य स्रोत:
- नदियाँ: नदियों के तट और बाढ़ग्रस्त मैदान खनन के लिए रेत के प्रमुख स्थान हैं।
- झीलें और जलाशय: प्राकृतिक झीलों और मानव निर्मित जलाशयों में भी रेत का भंडार होता है।
- तटीय और समुद्री रेत: समुद्र तटों और समुद्रतल से भी रेत का खनन किया जाता है, हालांकि यह पारिस्थितिकी-तंत्र के लिए काफ़ी खतरनाक हो सकता है।
भारत में रेत खनन:
भारत में, खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 (MMDR अधिनियम) रेत के खनन को नियंत्रित करता है। रेत को “गौण खनिज” (Minor minerals) के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जिसका अर्थ है कि इसका नियमन मुख्य रूप से राज्य सरकारों की ज़िम्मेदारी है। हालाँकि, यह अपर्याप्त विनियमन और लचर प्रवर्तन (enforcement) ही है जो अवैध रेत खनन की समस्या को बढ़ावा देता है, जैसा कि तमिलनाडु के मामले में सुप्रीम कोर्ट में लाया गया है।
हाल के वर्षों में, भारत में अवैध रेत खनन एक बड़ी समस्या के रूप में उभरा है। अवैध रेत खनन से नदियों और तटरेखा के क्षरण, जल प्रदूषण में वृद्धि, और जैव विविधता को नुकसान पहुँचता है। यह बुनियादी ढांचे को भी नुकसान पहुंचा सकता है और स्थानीय समुदायों की आजीविका को खतरे में डाल सकता है।
अवैध रेत खनन के पीछे के कारण:
- निर्माण उद्योग में बढ़ती मांग: रेत की उच्च मांग, विशेष रूप से भारत के तेजी से बढ़ते निर्माण उद्योग में, अक्सर अवैध खनन की ओर ले जाती है।
- कमजोर नियम और प्रवर्तन: कई मामलों में, अवैध रेत खनन अपर्याप्त नियमों और खराब प्रवर्तन तंत्र के परिणामस्वरूप होता है।
- संगठित अपराध में शामिल: अवैध रेत खनन अक्सर संगठित अपराध सिंडिकेट से जुड़ा होता है, जिससे इसे रोकना और नियंत्रित करना और भी मुश्किल हो जाता है।
- वैकल्पिक की कमी: रेत के व्यवहार्य और पर्यावरण के अनुकूल विकल्पों की कमी अवैध खनन में योगदान करती है।
अवैध रेत खनन के पर्यावरणीय प्रभाव:
अवैध रेत खनन के दूरगामी और हानिकारक पर्यावरणीय प्रभाव हैं, जिनमें शामिल हैं:
- नदी पारिस्थितिकी तंत्र में गड़बड़ी: नदियों से अतिरिक्त रेत निकालने से नदी के तल में परिवर्तन हो सकता है, जल प्रवाह प्रभावित हो सकता है और जलीय वनस्पतियों और जीवों को नुकसान पहुंच सकता है।
- तटीय क्षरण: तटीय क्षेत्रों से रेत का अवैध खनन समुद्र तटों को समुद्री लहरों के प्रभावों के प्रति अधिक संवेदनशील बना सकता है, जिससे कटाव और तटीय पारिस्थितिकी तंत्र का नुकसान हो सकता है।
- भूजल स्तर में कमी: अवैध रेत खनन भूजल रिचार्ज को कम कर सकता है, जिससे भूजल स्तर में गिरावट आती है और पानी की कमी हो जाती है।
- जल प्रदूषण: अवैध खनन में उपयोग किए जाने वाले मशीनरी और तरीके अक्सर जल प्रदूषण का कारण बनते हैं, जिससे जलीय जीवन और पीने योग्य पानी की उपलब्धता को भी खतरा होता है।
- हाइड्रोलॉजिकल सिस्टम बदलाव: अनियंत्रित रेत खनन से पानी का बहाव अस्त-व्यस्त होता है, और नदियों के मार्ग में भी बदलाव हो सकते हैं।
- नदियों में लवणता में वृद्धि: समुद्र-तटों से अधिक रेत हटाने से नदियों के डेल्टा क्षेत्रों में समुद्री जल का प्रवेश बढ़ सकता है, जिससे खारेपन में वृद्धि होगी जो कृषि भूमि, जल स्रोतों और स्थानीय मछली की आबादी के लिए हानिकारक है।
- चरम मौसम की घटनाओं के लिए बढ़ती संवेदनशीलता: रेत एक प्राकृतिक अवरोध के रूप में कार्य करता है जो बाढ़ और तूफान से तटीय क्षेत्रों की रक्षा करता है। अवैध रेत खनन से इन प्राकृतिक आपदाओं के प्रभावों के लिए कमजोरियां बढ़ जाती हैं।
- पुलों और तटबंधों को नुकसान: नदी के तल से अत्यधिक रेत खनन होने से पुलों की नींव कमजोर हो जाती है और तटबंध टूटने का खतरा बढ़ जाता है।
अवैध रेत खनन से निपटना:
अवैध रेत खनन और इसके विनाशकारी प्रभावों को रोकने के लिए तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है। भारत सरकार ने इसे संबोधित करने के लिए कई कदम उठाए हैं:
संधारणीय रेत प्रबंधन दिशा-निर्देशों (2016) को और प्रभावी बनाने के लिए रेत खनन हेतु प्रवर्तन एवं निगरानी दिशा-निर्देश-2020 जारी किए गए हैं। ये दिशा-निर्देश नदी के पारिस्थितिक-तंत्र की पुनर्बहाली और संरक्षण के लिए जारी किए गए हैं।
खान मंत्रालय ने रेत खनन ढांचा (2018) जारी किया है। इस ढांचे में चट्टानों को बारीकी से पीस कर तैयार की गई मैनुफैक्चर्ड सैंड (M-Sand) और कोयला खदानों के ओवरबर्डन (OB) से प्राप्त रेत को प्राकृतिक रेत के वैकल्पिक स्रोतों के रूप में उपयोग करने का प्रावधान किया गया है।
ओवरबर्डन (जिसे अपशिष्ट भी कहा जाता है) वास्तव में कोयला स्तर या अन्य खनिज अयस्क के ऊपर की चट्टानी या मृदा परत जैसी सामग्रीएं हैं। खनिज खनन के दौरान इन सामग्रियों को हटा दिया जाता है। इनका कई तरीकों से आर्थिक उपयोग किया जाता है।
अवैध रेत खनन को रोकने के लिए आवश्यक अतिरिक्त कदम:
कानूनों का सख्ती से पालन: मौजूदा खनन नियमों को पूरी कड़ाई से लागू करने की आवश्यकता है। इसमें भ्रष्ट अधिकारियों या राजनेताओं के खिलाफ कठोर कार्रवाई करना शामिल है। भ्रष्टाचार और लापरवाही को खत्म करने के लिए मजबूत निगरानी तंत्र स्थापित किए जाने चाहिए।
रेत माफिया पर कार्यवाही: अवैध रेत खनन में शामिल आपराधिक गिरोहों को पकड़ना और उन पर कड़ी कार्रवाई करना आवश्यक है। कानून को कड़ाई से लागू करने और माफिया नेटवर्क को तोड़ने के लिए विशेष जांच दल बनाए जाने चाहिए।
निगरानी और प्रवर्तन को मजबूत करना: उपग्रह इमेजरी और ड्रोन तकनीक का उपयोग करके अवैध खनन गतिविधियों की निगरानी को मजबूत किया जाना चाहिए। प्रवर्तन एजेंसियों को पर्याप्त संसाधन और प्रशिक्षण प्रदान किया जाना चाहिए ताकि वे प्रभावी ढंग से कार्रवाई कर सकें।
जागरूकता और शिक्षा: स्थानीय समुदायों को अवैध रेत खनन के विनाशकारी प्रभावों के बारे में शिक्षित किया जाना चाहिए। उन्हें खनन गतिविधियों की निगरानी करने और अवैध गतिविधियों की रिपोर्ट करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
वैकल्पिक सामग्री को बढ़ावा: रेत के स्थायी विकल्पों, जैसे कि मैन्युफैक्चर्ड सैंड (M-Sand) और कोयला खदानों से प्राप्त अपशिष्ट, को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। यह प्राकृतिक रेत पर हमारी निर्भरता को कम करने में मदद करेगा।
निष्कर्ष:
अवैध रेत खनन एक गंभीर पर्यावरणीय अपराध है जिसके विनाशकारी परिणाम होते हैं। इसे रोकने के लिए तत्काल और ठोस कार्रवाई की आवश्यकता है। कानूनों को सख्ती से लागू करके, रेत माफिया पर कार्रवाई करके, निगरानी को मजबूत करके, जागरूकता बढ़ाकर, वैकल्पिक सामग्री को बढ़ावा देकर और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग करके, हम इस खतरे से निपट सकते हैं और हमारे पर्यावरण और समुदायों की रक्षा कर सकते हैं।
यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि रेत एक नवीकरणीय संसाधन नहीं है। एक बार जब इसे खनन कर लिया जाता है, तो इसे बदलने में सदियों लग सकते हैं। हमें इस मूल्यवान संसाधन का उपयोग जिम्मेदारी से करना चाहिए और आने वाली पीढ़ियों के लिए इसे बचाना चाहिए।