आर्थिक समानता और समाज में अवसरों के निष्पक्ष वितरण की दिशा में एक कदम के रूप में भारत में ‘विरासत कर’ की प्रासंगिकता पर जोरदार बहस चल रही है। संपत्ति के एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक हस्तांतरण सामाजिक और आर्थिक असमानता को बढ़ा सकता है, खासकर जब धन का बड़ा हिस्सा कुछ ही परिवारों के बीच केंद्रित हो। इसी मुद्दे को दूर करने के संभावित समाधान के तौर पर विरासत कर पर चर्चा हो रही है। आइए, इस कर के बारे में और इसकी उपयुक्तता पर चर्चा करें।
क्या है विरासत कर?
विरासत कर, जिसे अंग्रेजी में ‘इनहेरिटेंस टैक्स’ कहा जाता है, किसी व्यक्ति को अपनी मृत्यु के बाद उसके उत्तराधिकारियों या लाभार्थियों के माध्यम से प्राप्त होने वाली संपत्ति पर लगाया जाने वाला कर है। यह संपत्ति कर (एस्टेट टैक्स) के समान नहीं है। संपत्ति कर मृतक की कुल संपत्ति पर लगाया जाता है, जबकि विरासत कर मृतक के उत्तराधिकारियों द्वारा प्राप्त संपत्ति के मूल्य पर देय होता है।
विरासत कर प्रगतिशील हो सकता है, यानी कर की दर प्राप्त होने वाली संपत्ति के मूल्य के साथ बढ़ती जाती है। कुछ देशों में विरासत कर की दर 50% या उससे भी अधिक हो सकती है, जैसा कि जापान और दक्षिण कोरिया में देखा जाता है।
भारत में संपत्ति कर का इतिहास:
भारत में विरासत कर की कोई प्रत्यक्ष व्यवस्था नहीं है, लेकिन अतीत में संपत्ति से संबंधित कर लगाए गए हैं। वर्ष 1953 में, संपत्ति शुल्क (एस्टेट ड्यूटी) लगाया गया था, जो मृतक की संपत्ति के मूल्य पर लगाया जाता था। इस कर की दरें 85% तक थीं, जो इसे काफी बोझिल बनाती थीं। इस वजह से वर्ष 1985 में इसे समाप्त कर दिया गया। बाद में, संपदा कर और उपहार कर जैसे नए कर लाए गए पर उन्हे भी विभिन्न कारणों से हटा लिया गया।
- उपहार कर और संपदा कर: कुछ समय के लिए, संपत्ति शुल्क के समान उपहार कर (किसी व्यक्ति द्वारा अपने जीवनकाल में दिया गया उपहार) और संपदा कर (संपत्ति के कुल मूल्य पर) लगाए गए। इन्हें अंततः हटा दिया गया, हालांकि, उपहार कर को 2004 में फिर से लागू किया गया।
विरासत कर के उद्देश्य और संभावित लाभ:
- असमानता को कम करना: विरासत कर धन के अधिक समान वितरण में मदद कर सकता है, जिससे समाज में समग्र आर्थिक असमानता कम करने में योगदान मिलता है।
- अवसरों की समानता: एक अधिक समान समाज उन सभी के लिए अधिक अवसर पैदा करता है जिनके पास अपनी प्रतिभा और क्षमताओं को विकसित करने के बेहतर मौके होते हैं।
- राजस्व सृजन: विरासत कर सरकार के लिए राजस्व का एक बड़ा स्रोत हो सकता है। इस राजस्व का उपयोग महत्वपूर्ण सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों के लिए किया जा सकता है।
विरासत कर के संभावित मुद्दे और चुनौतियां:
- कर से बचाव: विरासत कर की एक आलोचना यह है कि कर की उच्च दरें लोगों को इससे बचने का तरीका तलाशने के लिए प्रेरित कर सकती हैं। इसमें कर के उद्देश्य को हराने वाले जटिल कानूनी तरीकों का इस्तेमाल किया जा सकता है।
- संपत्ति बेचने की बाध्यता: कुछ स्थितियों में, प्राप्तकर्ताओं को भारी विरासत कर का भुगतान करने के लिए अपनी विरासत में मिली संपत्ति को बेचना पड़ सकता है। यह उन परिवारों के लिए कठिनाई पैदा कर सकता है जो भावनात्मक या अन्य कारणों से अपनी पैतृक संपत्ति को बनाए रखना चाहते हैं।
- उत्पादकता घटाना: यह तर्क दिया जा सकता है कि विरासत कर लोगों की बचत और धन अर्जित करने की प्रेरणा को कम कर सकता है, यह जानते हुए कि उनकी मृत्यु के बाद उनकी संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा कर के रूप में जाएगा।
- दोहरा कराधान: विरासत कर को दोहरा कराधान भी माना जा सकता है, क्योंकि इस संपत्ति पर आय के रूप में पहले ही कर लग चुका होता है।
भारत में विरासत कर पर बहस के अन्य पहलू:
- प्रशासनिक जटिलता: किसी भी नए कराधान प्रणाली को लागू करने से प्रशासनिक बोझ और जटिलताएं बढ़ जाती हैं। विरासत कर की एक प्रभावी प्रणाली विकसित करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
- सामाजिक स्वीकृति: भारतीय परंपराओं में, संपत्ति को पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरित करना आम बात है। विरासत कर लगाना सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील हो सकता है और इसे जनता स्वीकार नहीं कर पाए।
निष्कर्ष:
विरासत कर के मसले पर विचार करते समय सामाजिक न्याय, आर्थिक दक्षता और व्यक्तिगत अधिकारों के बीच संतुलन बनाने की आवश्यकता होती है। भारत जैसे देश में इसकी उपयुक्तता और कर ढांचे पर सावधानीपूर्वक विचार-विमर्श किया जाना आवश्यक है।