ISRO STUDY: MONITORING METHANE EMISSIONS FROM SPACE; इसरो का अध्ययन: अंतरिक्ष से मीथेन उत्सर्जन की निगरानी:

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने “भारत में अंतरिक्ष से मीथेन उत्सर्जन की निगरानी” विषय पर एक महत्वपूर्ण अध्ययन प्रकाशित किया है। यह अध्ययन उपग्रह डेटा का उपयोग करके भारत में मीथेन उत्सर्जन के प्रमुख स्रोतों की पहचान करता है। मीथेन एक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है जो जलवायु परिवर्तन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इस अध्ययन के निष्कर्ष भारत के लिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे देश को मीथेन उत्सर्जन को कम करने और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए बेहतर रणनीति विकसित करने में मदद करेंगे। अध्ययन के मुख्य बिंदुओं और भारत में मीथेन उत्सर्जन के विभिन्न पहलुओं पर गहन विश्लेषण इस प्रकार है:

अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष:

  • भारत के विभिन्न शहरी केंद्रों में मीथेन उत्सर्जन के बिंदुओं (point sources) में वृद्धि देखी गई है।
  • इन बिंदुओं से तात्पर्य एक स्थानीय क्षेत्र में उच्च उत्सर्जन वाली गतिविधि या स्थान से है।
  • भारत में कुल कार्बन उत्सर्जन में से 14.43% मीथेन के कारण होता है।
  • अध्ययन में भारत में तीन सबसे गंभीर मीथेन उत्सर्जन वाले हॉटस्पॉट की पहचान की गई है:
    • मुंबई: सीवेज आउटलेट
    • अहमदाबाद: पिराना लैंडफिल
    • सूरत: खजोद लैंडफिल

अध्ययन का महत्व:

यह अध्ययन भारत के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह देश को मीथेन उत्सर्जन को कम करने और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए बेहतर रणनीति विकसित करने में मदद करेगा। अध्ययन के निष्कर्षों का उपयोग निम्नलिखित क्षेत्रों में किया जा सकता है:

  • नीति निर्माण: अध्ययन के निष्कर्षों का उपयोग भारत में मीथेन उत्सर्जन को कम करने के लिए नीतियां बनाने के लिए किया जा सकता है।
  • नियमों का प्रवर्तन: अध्ययन के निष्कर्षों का उपयोग मीथेन उत्सर्जन को नियंत्रित करने वाले मौजूदा नियमों के प्रवर्तन को मजबूत करने के लिए किया जा सकता है।
  • जागरूकता फैलाना: अध्ययन के निष्कर्षों का उपयोग लोगों को मीथेन उत्सर्जन के प्रभावों के बारे में जागरूक करने और उन्हें इसे कम करने के लिए प्रेरित करने के लिए किया जा सकता है।

मीथेन के बारे में:

  • मीथेन (CH4) एक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है।
  • 100 साल के समय-सीमा में, कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) की तुलना में मीथेन में 28 गुना अधिक ग्लोबल वार्मिंग क्षमता होती है।
  • यह CO2 के बाद जलवायु परिवर्तन में दूसरी सबसे अधिक योगदान करने वाली गैस है।
  • मीथेन अल्पकालिक जलवायु प्रदूषक है। इसका अर्थ है कि यह वायुमंडल में कम समय तक रहती है, लेकिन इसका ग्लोबल वार्मिंग प्रभाव अधिक होता है। यह वायुमंडल पर अधिक तात्कालिक और गंभीर तापमान प्रभाव डालता है।
  • यह रासायनिक अभिक्रिया द्वारा क्षोभ-मंडलीय ओजोन (Tropospheric ozone) नामक हानिकारक वायु प्रदूषक गैस के उत्पन्न होने में भी योगदान करती है।

मीथेन उत्सर्जन के प्रमुख स्रोत:

ठोस अपशिष्ट/ लैंडफिल: ये भारत में मानव-जनित मीथेन उत्सर्जन के लगभग 20% के लिए जिम्मेदार हैं। लैंडफिल में जमा होने वाला जैविक कचरा विघटित होता है और मीथेन गैस छोड़ता है।

जीवाश्म ईंधन: प्राकृतिक गैस, तेल और गैस क्षेत्र तथा तेल रिफाइनरियों से होने वाला रिसाव। जीवाश्म ईंधन के उत्पादन, परिवहन और उपयोग के दौरान मीथेन गैस निकलती है।

कृषि कार्य: मवेशियों में होने वाला आंत्र किण्वन (Enteric fermentation) और चावल की खेती। मवेशियों के पेट में सूक्ष्मजीवों द्वारा भोजन पचाने की प्रक्रिया में मीथेन गैस बनती है। चावल की खेती में जलभराव के कारण भी मीथेन गैस का उत्सर्जन होता है।

अन्य स्रोत:

  • आर्द्रभूमियां
  • वस्त्र उद्योग
  • अपशिष्ट जल उपचार संयंत्र
  • कोयला खनन

मीथेन उत्सर्जन को कम करने के लिए शुरू की गई पहलें:

वैश्विक पहल:

  • UNEP वैश्विक मीथेन पहल: यह पहल निकट अवधि में कम लागत प्रभावी तरीके से मीथेन उत्सर्जन में कमी को बढ़ावा दे रही है।
  • ग्लोबल मीथेन प्लेज: इसके तहत 2030 तक मीथेन उत्सर्जन में 2020 के स्तर से कम-से-कम 30% की कटौती करने का संकल्प लिया गया है। भारत ने इस संकल्प पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं।

भारत की पहलें:

  • गैल्वनाइजिंग ऑर्गेनिक बायो-एग्रो रिसोर्सेज (GOBAR/गोबर) धन योजना: यह पहल अपशिष्ट को संसाधनों में बदलने और मीथेन उत्सर्जन में कमी लाने के लिए शुरू की गई है।
  • राष्ट्रीय बायोगैस और खाद प्रबंधन कार्यक्रम: इसका उद्देश्य जैविक अपशिष्ट स्रोतों से उत्सर्जित मीथेन को कैप्चर करना और उसका उपयोग करना है।

अन्य पहल:

  • पशुधन प्रबंधन में सुधार: मवेशियों के पेट से निकलने वाली मीथेन गैस को कम करने के लिए बेहतर पशुधन प्रबंधन तकनीकों का उपयोग किया जा सकता है।
  • चावल की खेती में मीथेन उत्सर्जन कम करने वाली तकनीकों का उपयोग: जलभराव के बिना चावल की खेती करने वाली तकनीकों का उपयोग मीथेन उत्सर्जन को कम करने में मदद कर सकता है।
  • जीवाश्म ईंधन रिसाव को रोकना: जीवाश्म ईंधन उत्पादन और परिवहन में रिसाव को रोकने के लिए बेहतर तकनीकों का उपयोग किया जा सकता है।

अन्य महत्वपूर्ण पहलू:

  • भारत में मीथेन उत्सर्जन की निगरानी और रिपोर्टिंग को मजबूत करने की आवश्यकता है।
    • उपग्रह डेटा, वायुमंडलीय माप और क्षेत्रीय सर्वेक्षणों का उपयोग करके मीथेन उत्सर्जन के स्रोतों और स्तरों की बेहतर समझ विकसित करना।
    • एक राष्ट्रीय मीथेन उत्सर्जन रिपोर्टिंग प्रणाली स्थापित करना जो समय-समय पर डेटा अपडेट प्रदान करती है।
  • मीथेन उत्सर्जन को कम करने के लिए विभिन्न क्षेत्रों में नीतिगत बदलाव और तकनीकी समाधानों की आवश्यकता है।
    • लैंडफिल में मीथेन उत्सर्जन को कम करने के लिए बेहतर अपशिष्ट प्रबंधन प्रथाओं को लागू करना।
    • तेल और गैस क्षेत्र में रिसाव को कम करने के लिए कड़े नियमों और विनियमों को लागू करना।
    • कृषि क्षेत्र में मीथेन उत्सर्जन को कम करने के लिए उन्नत तकनीकों और प्रथाओं को बढ़ावा देना।
    • स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों में बदलाव को प्रोत्साहित करना और ऊर्जा दक्षता में सुधार करना।
  • इस मुद्दे पर जागरूकता बढ़ाने और लोगों को अपने कार्बन पदचिह्न के बारे में शिक्षित करने की तत्काल आवश्यकता है ताकि व्यवहार में सकारात्मक बदलाव किए जा सकें।
    • स्कूलों और विश्वविद्यालयों में जलवायु परिवर्तन और मीथेन उत्सर्जन के बारे में शिक्षा को शामिल करना।
    • जन जागरूकता अभियान चलाना जो लोगों को मीथेन उत्सर्जन के प्रभावों और इसे कम करने के तरीकों के बारे में जानकारी प्रदान करता है।
    • व्यक्तियों और व्यवसायों को कम उत्सर्जन वाले विकल्पों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना।

यह भी ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि मीथेन उत्सर्जन को कम करने के प्रयासों का जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में महत्वपूर्ण योगदान होगा।

अंत में, भारत को वैश्विक मीथेन उत्सर्जन को कम करने के प्रयासों में सक्रिय रूप से भाग लेना चाहिए।

यह सहयोगात्मक प्रयास जलवायु परिवर्तन के खतरे को कम करने और सभी के लिए एक स्वस्थ और टिकाऊ भविष्य सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

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