भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के केंद्रीय समुद्री मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान (CMFRI) की एक हालिया स्टडी में एक चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। रिसर्च के अनुसार अक्टूबर 2023 से जारी समुद्री हीटवेव (Marine Heatwaves – MHWs) के परिणामस्वरूप लक्षद्वीप सागर में गंभीर स्तर पर प्रवाल विरंजन (Coral Bleaching) देखने को मिल रहा है। समुद्र की बदलती परिस्थितियों के कारण लक्षद्वीप के कोरल रीफ, जो जैव विविधता के लिए विश्व प्रसिद्ध हैं, अस्तित्व के गंभीर संकट का सामना कर रहे हैं।
समुद्री हीटवेव: एक चिंताजनक घटना
समुद्री हीटवेव एक भीषण समुद्री घटना होती है जो लंबे समय तक रहने वाले असामान्य रूप से उच्च समुद्री तापमान की विशेषता रखती है। जब समुद्र की सतह का तापमान (Sea Surface Temperature – SST) औसत तापमान से 3 या 4 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो जाता है और पांच या अधिक दिनों तक ऐसीसी ही स्थिति रहती है, तो उसे हम समुद्री हीटवेव की स्थिति मानते हैं। इसे SST में आए 90वें परसेंटाइल (percentile) के परिवर्तन के रूप में मापा जाता है। इसका तात्पर्य है कि 90 प्रतिशत समय तक उस क्षेत्र का तापमान, सामान्य तापमान सीमा से अधिक रहेगा। सामान्य परिस्थितियों में समुद्री हीटवेव हफ्तों या महीनों तक रहती हैं, लेकिन यह अवधि वर्षों तक भी लंब सकती है।
समुद्री हीटवेव के प्रमुख कारण:
वैश्व्विक स्तर पर जलवायुु परिवर्तन और वायुमंडल के तापमान में वृद्धि के चलते महासागर बड़ी मात्रा में ऊष्मा को सोख रहे हैं। विशेष रूप से, हिंद महासागर काफ़ी अधिक गर्म हो रहा है, जिसके कारण यहां समुद्री हीटवेव की घटनाएं बढ़ रही हैं। इसके अलावा समुद्र्री जल धाराओं में बदलाव भी हीटवेव की लहरों के लिए उत्तरदायी होताते हैं।
ICAR-CMFRI की रिपोर्ट के मुख्य बिंदु:
- लक्षद्वीप में तापमान वृृद्धि: रिपोर्ट में बताया गया है कि लक्षद्वीप सागर में समुद्र की सतह का तापमान बीड़े पैमाने पर बढ़ रहा है। यह वृृद्धि, सामान्य समुद्री तापमान से बहुत अधिक है।
- कोरल ब्लीचिंग पर प्रभाव: लक्षद्वीप के समुद्र में कई स्थानों पर हार्ड कोरल प्रजातियों में गंभीर स्तर पर कोरल ब्लीचिंग देखी जा रही है।
- अक्टूबर 2023 से गंभीर स्थिति: ICAR-CMFRI के अनुसार, अक्टूबर 2023 से ही लक्षद्वीप सागर में समुद्री हीटवेव की स्थिति निर्मित हो रही थी, जिसके घातक प्रभावाव अब देखने को मिल रहे हैं।
प्रवाल विरंजन क्या होता है?
स्वस्थ प्रवाल भित्तियाँ (Coral Reefs) समुद्र के भीतर बनने वाले जैव-विविधता से भरे बेहद खूबसूरत इकोसिस्टम हैं। प्रवाल या कोरल अपने ऊतकों में एक विशेष प्रकार के रंगीन शैवाल (algae) रखते हैं, जिन्हें “जूज़ैंथेले” (zooxanthellae) कहा जाता है। यह शैवाल प्रवाल को पोषण और उनका जीवंत रगं प्रदान करते हैं।
जब समुद्र में प्रदूषण, उच्च अम्लता, या तापमान बढ़ने जैसी प्रतिकूल परिस्थितियाँ उत्पन्न होती हैं, तो प्रवाल तनाव की स्थिति में आ जाते हैं। इस तनाव के कारण प्रवाल इन जूज़ैंथेले शैवाल को अपने अंदर से निकाल देतेहैं, जिसके चलते वह अपना रगं खो देते हैं। इस पूरी प्रक्रिया को ही प्रवाल विरंजन (Coral Bleaching) कहा जाता है।
समुद्री हीटवेव और कोरल ब्लीचिंग का संबंध
प्रवाल, तापमान के प्रति अत्यंत संवेदनशील होते हैं। उच्च तापमान उनके लिए विशेष खतरनाक सिद्ध होता है। लंबे समय तक बने रहने वाले समुद्री हीटवेव कोरल के लिए अस्तित्व की चुनौती बन जाते हैं, और बड़े पैमाने पर कोरल ब्लीचिंग का कारण बनते हैं।
समुद्री हीटवेव के अन्य पर्यावरणीय खतरे:
- मौसम में चरम बदलाव: समुद्री हीटवेव, समुद्र में उष्ण कटिबंधीय चक्रवात, तूफान और तेज हवाओं को जन्म दे सकते हैं। इन भीषण मौसमी घटनाओं का तटीय क्षेत्रों पर विनाशकारी प्रभाव होता सकता है।
- वर्षा में अनियमितता: समुद्री हीटवेव के कारण मध्य भारत में मानसून की वर्षा की मात्रा में कमी हो सकती है, जिससे कृषि और पेयजल आपूर्ति पर गंभीर असर पड़ता है।
- समुद्री जीवों का पलायन: उच्च तापमान के चलते, कई समुद्री जीव ठंडे पानी वाले क्षत्रों की ओर पलायन कर जातें हैं। इससे पूरी जैव विविधता असंतुलित हो सकती है और आक्रामक समुद्री जीवों की आबादी बढ़ सकती है।
- हानिकारक शैवाल प्रस्फुटन: अधिक तापमान और जल में ऑक्सीजन की कमी के चलते “हानिकारक शैवाल प्रस्फुटन” (Toxic Algal Bloom) की संख्या बढ़ सकती है, जी समुद्री जीवों, और मानव स्वास्थ्य के लिए काफी हानिकारक हैं।
- जैव विविधता को खतरा: प्रवाल भितियाँ समुद्री जैव विविधता के महत्वपूर्ण केंद्र हैं। कोरल ब्लीचिंग के कारण मछली और अन्य समुद्री जीव बेघर हो जाते हैं, जिसका सम्पूर्ण खाद्य श्रृखला पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
- मछली पालन पर असर: प्रवाल रीफ़ अनेक मछलियों व समुद्री जीवों के लिए प्राकृतिक आवास होते हैं। प्रवालों को नुकसान होने से मछली की आबादी घटेगी जिससे मछली पालन से जुड़े लोगों की आजीविका पर संकट आएगा।
- खाद्य जाल में व्यवधान: समु्द्र में खाद्य जाल (Food Web) का संतुलन बिगड़ने से समस्त पारिस्थितिकी तंत्र खतरे में पड़ जाताता है।
भारत के लक्षद्वीप द्वीप समूह के लिए खास चुनौती:
लक्षद्वीप अपने खूबसूरती, जैव विविधता, और प्रवाल भित्तियों के कारण भारत में एक खास स्थान रखता है। CMFRI की इस रिपोर्ट नें क्षेत्र की पारिस्थितिकी और पर्यटन पर मंडराते खतरे को उजागर किया है। लक्षद्वीप की आजीविका मछलीपालन और पर्यटन पर निर्भर है, और कोरल ब्लीचिंग इस आजीविका को गंभीर संकट में डाल सकती है।
आगे की राह: कोरल रीफ़ को बचाने के उपाय
लक्षद्वीप मं कोरल रीफ़ की दुर्दशा बड़े संकट की ओर साफ इशारा कर रही है। समय रहते जरूरी कदम नहीं उठाए गए तो इसके गंभीर और दूरगामी नतीजे हो सकते हैं। हमें लक्षद्वीप से आगे पूरे भारत के समुद्री तटों के लिए तत्काल उपायों पर विचार करने की आवश्यकता है:
- जलवायु परिवर्तन से लड़ाई: वैश्व्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन को रोकने क लिए ग्रीनहॉउस गैसों क उत्सर्जन को कम करन होगा। कार्बन उत्सर्जन में कमी के लिए सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा जैसे वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देना जरूरी है।
- प्रदूषण पर नियंत्रण: समुद्र में प्लास्टिक, तेल, औद्योगिक रसायन जैसे प्रदूषकों को जाने से रोकने क लिए कड़े कदम उठाने होंगे।
- समुद्री संरक्षित क्षेत्र: कोरल रीफ़ और संवेदनशील समुद्री क्षत्रों को संरक्षित क्षेत्र घोषित करके मानवीय गतिविधियों पर रोक लगानी होगी।
- सतत मछली पालन:टिकाऊ मछली पकड़ने के तरीकों को अपनाना, अत्यधिक मछली पकड़ने पर रोक लगाना, मछली पकड़ने के मौसम का पालन करना।
- जागरूकता अभियान: समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र और कोरल रीफ के महत्व के बारे में शिक्षित करना, स्कूलों में समुद्री जीव विज्ञान शिक्षा को शामिल करना, स्थानीय समुदायों को शामिल करना।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: समुद्री प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहयोग करना।
- वैज्ञानिक अनुसंधान: कोरल रीफ की निगरानी करना, पुनर्स्थापन के तरीकों पर शोध करना, प्रदूषण के प्रभावों का अध्ययन करना।
CMFRI के बारे में:
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अंतर्गत केंद्रीय समुद्री मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान (CMFRI) उष्ण कटिबंधीय समुद्री मात्स्यिकी की रिसर्च में एक अग्रणी संस्थान है। CMFRI की स्थापना 1947 में कृषि मंत्रालय के तहत हुई थी। 1967 में, इस संस्थान को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) का हिस्सा बना दिया गया था।
मुख्यालय: कोच्चि (केरल)
CMRFI के कार्यों में शामिल हैं:
- जलवायु और मानव गतिविधियों के कारण होने वाले समुद्री बदलाव का आकलन
- अनन्य आर्थिक क्षेत्र में समुद्री मत्स्य संसाधनों की निगरानी
- समुद्री मत्स्य पालन के लिए टिकाऊ तरीकों का विकास
- समुद्री मत्स्य भंडारों का भू-स्थानिक मानचित्रण
निष्कर्ष:
कोरल रीफ़ का संरक्षण केवल पर्यावरण की रक्षा के लिए हीं नहीं, बल्कि मानव के अस्तित्व के लिए भी महत्वपूर्ण है। कोरल रीफ़ जैव विविधता को बनाए रखने, तटीय क्षरण को रोकने में और मछली पालन जैसे कई आर्थिक गतिविधियों में मदद करते हैं। भारत को अपने समुद्री संपदा की रक्षा के लिए समेकित प्रयास करने होंगे। हमें कार्बन उत्सर्जन घटाना होगा, प्रदूषण पर नियंत्रण करना होगा और समुद्री संरक्षित क्षेत्रों का विस्तार करना होगा। साथ ही, वैज्ञानिक अनुसंधान में निवेश बढ़ाकर हम कोरल रीफ़ को बचाने और उनके पुनर्स्थापन क लिए प्रभावी क़दम उठा सकते हैं । कोरल रीफ़ की सुरक्षा एक चुनौतीपूर्ण कार्य है, लेकिन यह असंभव नहीं है। सामूहिक प्रयासों से, हम एक स्वस्थ समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र सुनिश्चित कर सकते हैं जो आने वाली पीढ़ियों के लिए लाभकारी होगा।