Landmark Judgment by Delhi High Court: Right to Adopt a Child Not a Fundamental Right; दिल्ली हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला: बच्चे को गोद लेने का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं

दिल्ली हाई कोर्ट ने हाल ही में एक ऐतिहासिक फैसले में स्पष्ट किया है कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत “बच्चे को गोद लेने का अधिकार” मौलिक अधिकार की श्रेणी में नहीं आता है। यह फैसला भारत में गोद लेने (adoption) से संबंधित कानूनों और दिशानिर्देशों पर व्यापक प्रभाव डाल सकता है।

फैसले की पृष्ठभूमि

यह निर्णय दत्तक ग्रहण विनियम, 2022 (Adoption Regulations 2022) की धारा 5(7) से जुड़े एक मामले में आया है। इस विनियम की धारा 5(7) के अनुसार, दो या दो से अधिक जैविक बच्चों (खुद के बच्चे) वाले दंपति केवल विशेष जरूरतों वाले बच्चों या उन बच्चों को गोद ले सकते हैं जिन्हें आमतौर पर गोद लेना मुश्किल होता है (Hard-to-place children)। इस नियम को चुनौती देते हुए अदालत में याचिका दायर की गई थी।

फैसले का सार:

दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने तर्क में इस बात पर ज़ोर दिया कि बच्चे को गोद लेने का अधिकार संविधान के तहत एक मौलिक अधिकार नहीं है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि इस अधिकार को इतना नहीं बढ़ाया जा सकता कि इच्छुक अभिभावक (Prospective Adoptive Parents या PAPs) इस बात की मांग कर सकें कि वे किस बच्चे को गोद लेना चाहते हैं। इसलिए, कोर्ट ने दत्तक ग्रहण विनियम, 2022 की धारा 5(7) को बरकरार रखा है।

  • गोद लेना एक अधिकार नहीं, विशेषाधिकार है: दिल्ली हाई कोर्ट का यह फैसला स्पष्ट करता है कि भारत में ‘गोद लेने के अधिकार’ को मौलिक अधिकार के रूप में नहीं देखा जा सकता है। यह फैसला संभावित दत्तक माता-पिता (Prospective Adoptive Parents: PAPs) के मौलिक अधिकारों के बजाय गोद लेने की योग्यता (eligibility) और बच्चे के सर्वोत्तम हित पर जोर देता है।
  • गोद लेने की प्रक्रिया में बच्चे का हित सर्वोपरि: इस फैसले के माध्यम से कोर्ट यह भी कहता है कि “गोद लेने के अधिकार” को ऐसे स्तर तक नहीं बढ़ाया जा सकता जहाँ भावी माता-पिता यह चुनने का अधिकार माँगने लगें कि उन्हें कौन सा बच्चा गोद दिया जाए। इसका तात्पर्य है कि, गोद लेने की प्रक्रिया में बच्चे के हित को सर्वोपरि रखा जाना चाहिए।
  • दत्तक ग्रहण विनियम, 2022 की धारा 5(7): दिल्ली हाई कोर्ट ने इस फैसले में दत्तक ग्रहण विनियम, 2022 की धारा 5(7) को सही माना है। इस धारा के तहत, यदि किसी दंपत्ति के पहले से दो या उससे अधिक जैविक बच्चे हैं, तो वे केवल ‘विशेष जरूरतों वाले’ बच्चे या ‘हार्ड टू प्लेस’ श्रेणी के बच्चे को ही गोद ले सकते हैं। इस धारा को बरकरार रखने का मकसद इन विशिष्ट श्रेणियों के बच्चों को एक प्यार भरा परिवार प्रदान करना है।

विशेष जरूरतों वाले बच्चे और हार्ड टू प्लेस बच्चे

  • विशेष जरूरतों वाले बच्चे: भारत के दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 के तहत पहचानी गई किसी भी प्रकार की दिव्यांगता (शारीरिक या मानसिक) वाले बच्चे।
  • हार्ड टू प्लेस बच्चे: वे बच्चे जिन्हें शारीरिक दोष, मानसिक विकार, गंभीर बीमारी, या बड़ी उम्र होने के कारण गोद लेने की प्रक्रिया से गुजरने के बाद भी किसी ने गोद नहीं लिया है। भारत में कई बच्चों को गोद लेने के लिए उपलब्ध होने के बावजूद, इन दो श्रेणियों में आने वाले बच्चों को अपना स्थायी परिवार मिलना ज़्यादा चुनौतीपूर्ण हो जाता है।

गोद लेने की प्रक्रिया और दत्तक ग्रहण विनियमन

  • अन्य PAPs के लिए धारा 5(2): धारा 5(7) के अलावा, दत्तक ग्रहण विनियम, 2022 के अंतर्गत धारा 5(2) कुछ और बातें स्पष्ट करती है:
    • यदि किसी दंपत्ति के कोई जैविक बच्चा नहीं है, या सिर्फ एक जैविक बच्चा है, तो वे किसी भी बच्चे को गोद ले सकते हैं।
    • दंपत्ति की स्थिति में, पति-पत्नी दोनों की सहमति अनिवार्य है।
    • सिंगल महिला लड़का या लड़की किसी भी बच्चे को गोद ले सकती है।
    • सिंगल पुरुष किसी भी लड़की को गोद नहीं ले सकता।
  • किशोर न्याय (बालकों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 (JJ Act 2015): भारत में गोद लेने की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने वाले दत्तक ग्रहण विनियम, 2022 इस व्यापक कानून के तहत ही बनाए गए हैं। JJ अधिनियम अनाथ, परित्यक्त, और किसी कारण से माता-पिता द्वारा सौंपे गए (surrendered) बच्चों के हितों और उनकी गोद लेने की सुविधा के लिए बनाया गया है।
  • विभिन्न धर्मों के लिए प्रावधान: JJ अधिनियम 2015 एक पंथ-निरपेक्ष कानून है, यानी किसी भी धर्म का व्यक्ति भारत में बच्चे को गोद ले सकता है।

हिंदू दत्तक ग्रहण एवं भरण-पोषण अधिनियम (HAMA):

भारत में गोद लेने की प्रक्रिया के लिए एक और निर्णायक कानून है HAMA यानी हिंदू दत्तक ग्रहण एवं भरण-पोषण अधिनियम, 1956। इस कानून के अंतर्गत गोद लेने का अधिकार केवल हिंदू, बौद्ध, जैन, या सिख धर्म को मानने वालों को दिया गया है।

HAMA के तहत गोद लेने के लिए कुछ महत्वपूर्ण शर्तें हैं:

  • गोद लेने वाले व्यक्ति की उम्र कम से कम 25 वर्ष होनी चाहिए।
  • गोद लेने वाले व्यक्ति का गोद लेने वाले बच्चे से कम से कम 21 वर्ष का अंतर होना चाहिए।
  • गोद लेने वाले व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ होना चाहिए।
  • गोद लेने वाले व्यक्ति के पास बच्चे की देखभाल करने के लिए पर्याप्त साधन होने चाहिए।
  • गोद लेने वाले व्यक्ति का कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं होना चाहिए।

केन्द्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (CARA):

यह भारत में गोद लेने से जुड़ी केंद्रीय नोडल संस्था है। यह महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के तहत आता है और ये ज़िम्मेदारियां निभाता है:

  • भारतीय बच्चों के देश के अंदर या विदेशी अभिभावकों द्वारा गोद लेने की प्रक्रिया पर नज़र रखना।
  • गोद लेने से जुड़े नियमों को बनाना और उनमें बदलाव करना ।
  • संभावित अभिभावकों (PAPs) के ऑनलाइन पंजीकरण की सुविधा।

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