एंटीमैटर – एक ऐसा पदार्थ जो अस्तित्व के कई रहस्यों को अपने भीतर समेटे हुए है। मैटर (पदार्थ) के ही समान, एंटीमैटर उन उप-परमाणविक कणों से बना होता है, जिनके गुण मूलभूत रूप से पदार्थ में पाए जाने वाले कणों जैसे इलेक्ट्रॉन के विपरीत होते हैं। पदार्थ में इलेक्ट्रॉन नकारात्मक आवेश (चार्ज) लिए होते हैं, जबकि एंटीमैटर में उनके समतुल्य एंटीपार्टिकल्स – पॉज़िट्रॉन, धनात्मक आवेश से युक्त होते हैं।
एंटीमैटर की खोज बेहद जटिल है, और उससे भी कठिन है इसका अध्ययन। इसकी मूल समस्या यह है कि जब पदार्थ और एंटीमैटर संपर्क में आते हैं, तो वे एक विनाशकारी विस्फोट के साथ एक दूसरे को नष्ट कर देते हैं। इस विस्फोट से ऊर्जा की एक विशाल मात्रा मुक्त होती है। इसलिए, प्रयोगशालाओं में एंटीमैटर को पैदा करना, उसका भंडारण, और उसके गुणों का अवलोकन, वैज्ञानिकों के लिए एक अत्यंत दुष्कर कार्य है।
मुख्य बिंदु:
- भौतिकविदों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने सर्न में पॉजिट्रोनियम को ठंडा करने में उल्लेखनीय सफलता हासिल की है।
- पॉजिट्रोनियम पर प्रयोग एंटीमैटर के व्यवहार को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
- इस खोज से ब्रह्मांड और उसके निर्माण से संबंधित गूढ़ रहस्यों को समझना संभव हो सकता है।
पॉजिट्रोनियम:
पॉजिट्रोनियम (Ps) एक अत्यंत अनोखा परमाणु है जो एक इलेक्ट्रॉन और उसके एंटीमैटर समकक्ष, पॉजिट्रॉन के अद्भुत संयोजन से बनता है। यह विज्ञान की दुनिया में एक महत्वपूर्ण खोज है, लेकिन वैज्ञानिकों के लिए इसकी अस्थिर प्रकृति एक बड़ी चुनौती पेश करती है। पॉजिट्रोनियम का जीवनकाल अविश्वसनीय रूप से छोटा होता है, केवल एक सेकंड के 142 अरबवें हिस्से जितना! इसका कारण इलेक्ट्रॉन और पॉजिट्रॉन के बीच अत्यंत शक्तिशाली आकर्षण है। जैसे ही ये कण एक दूसरे के संपर्क में आते हैं, वे विनाशकारी विस्फोट में नष्ट हो जाते हैं, गामा किरणों की तीव्र ऊर्जा छोड़ते हुए। पॉजिट्रोनियम की अस्थिरता वैज्ञानिकों के लिए इसे अध्ययन करना एक कठिन काम बनाती है। इस अल्पकालिक परमाणु के गुणों को समझने के लिए, वैज्ञानिकों को अत्यंत उन्नत तकनीकों का उपयोग करना पड़ता है।
पॉजिट्रोनियम कूलिंग की चुनौती
एंटीमैटर को समझने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है इसकी गति पर नियंत्रण पा लेना। इसके लिए, लेज़र कूलिंग तकनीक का प्रयोग किया जाता है। इस प्रक्रिया में, वैज्ञानिक लेज़र प्रकाश की किरणों द्वारा परमाणुओं या उप-परमाणु कणों को धीमा कर देते हैं। कणों की गति कम होने से उनकी ऊष्मीय ऊर्जा में कमी आ जाती है, जिससे वे एक सीमित क्षेत्र में ही रह जाते हैं। यह वैज्ञानिकों को उनका व्यवहार और उनकी आतंरिक संरचना का निरीक्षण करने का समय देता है।
सर्न में वैज्ञानिकों की सफलता
हाल ही में, सर्न (CERN) में कार्यरत “एंटी-हाइड्रोजन एक्सपेरिमेंट: ग्रेविटी, इंटरफेरोमेट्री, स्पेक्ट्रोस्कोपी (AEgIS)” नामक एक सहयोगात्मक समुह ने पॉजिट्रोनियम की कूलिंग करने में महत्वपूर्ण सफलता हासिल की है। वैज्ञानिकों ने परमाणुओं तथा उनके घटक कणों को ‘ठंडा’ कर उनकी गति कम करने की तकनीक का विकास किया है। AEgIS सर्न में चल रहे कई प्रयोगों का हिस्सा है जिसका उद्देश्य एंटीहाइड्रोजन पर पृथ्वी की गुरुत्वीय त्वरण को मापना है। यह एक अभूतपूर्व उपलब्धि है, और यह भौतिकविदों की यूरोपीय देशों और भारत के बीच साझेदारी का फल है।
महत्वपूर्णता और भावी संभावनाएं
पॉजिट्रोनियम परमाणु में केवल दो मूलभूत कण शामिल हैं – एक इलेक्ट्रॉन और उसका एंटीपार्टिकल। यह इसे पदार्थ और एंटीमैटर के गुणों के आधारभूत अंतर को समझने के लिए एक आदर्श उपकरण बनाता है। वैज्ञानिकों को आशा है कि पॉजिट्रोनियम पर प्रयोगों के द्वारा वे ब्रह्मांड में पदार्थ और एंटीमैटर के बीच विषमता के रहस्य को सुलझा सकेंगे। इसके अलावा, एंटीमैटर में भविष्य की चिकित्सा पद्धतियों, अंतरिक्ष यान प्रणोदन प्रणालियों, और ऊर्जा के नए स्रोतों को विकसित करने की असीमित क्षमता है।
पदार्थ और एंटीमैटर
मैटर अर्थात् पदार्थ हमारे आस-पास मौजूद हर वस्तु का आधार है। यह ठोस, द्रव, गैस अथवा प्लाज्मा कई अवस्थाओं में पाया जाता है। इसके निर्माण में उप-परमाणविक कण अहम भूमिका निभाते हैं, जो इसे द्रव्यमान और आयतन प्रदान करते हैं। इन उप-परमाणविक कणों में मुख्य रूप से शामिल हैं:
- प्रोटॉन एवं न्यूट्रॉन: इन्हें ‘बेरिऑन’ भी कहा जाता है।
- इलेक्ट्रॉन एवं न्यूट्रिनो: इन्हें ‘लेप्टॉन’ कहते हैं।
- अन्य कण: इनमें क्वार्क, ग्लुऑन जैसे कण शामिल हैं।
उल्लेखनीय है कि लगभग प्रत्येक उप-परमाणविक कण का एक एंटी-ट्विन (एंटीपार्टिकल) भी होता है। उदाहरण के लिए, प्रोटॉन का एंटीपार्टिकल ‘एंटी-प्रोटॉन’ है, तो इलेक्ट्रॉन का ‘एंटी-इलेक्ट्रॉन’ या पॉजिट्रॉन, इत्यादि। कुछ दुर्लभ कण पदार्थ और एंटीमैटर की सीमा रेखा पर पाए जाते हैं।
सिद्धांततः, एंटीपार्टिकल्स मिलकर एंटी-एटम्स तथा बड़े स्तर पर पूर्ण रूप से एंटीमैटर से बनी हुई वस्तुओं या क्षेत्रों का निर्माण कर सकते हैं।
सर्न/CERN:
सर्न या ‘यूरोपीय परमाणु अनुसंधान संगठन’ (The European Organization for Nuclear Research) की स्थापना 1954 में जेनेवा के निकट फ़्रांस और स्विट्ज़रलैंड की सीमा पर की गई थी। वर्तमान में इसके 23 सदस्य राष्ट्र हैं, एवं भारत इसका एक एसोसिएट सदस्य है। सर्न का प्राथमिक उद्देश्य उन आधारभूत पदार्थों का अध्ययन करना है जिनसे हमारा ब्रह्मांड बना हुआ है एवं ब्रह्मांड की कार्यप्रणाली को समझना है।
निष्कर्ष
पॉजिट्रोनियम और एंटीमैटर विज्ञान की दुनिया में महत्वपूर्ण खोजें हैं। वैज्ञानिकों के लिए इनका अध्ययन करना चुनौतीपूर्ण है, लेकिन इसके फलस्वरूप अकल्पनीय ज्ञान और तकनीकी प्रगति प्राप्त हो सकती है। यह वैज्ञानिक अनुसंधान का एक रोमांचक क्षेत्र है जो हमें ब्रह्मांड के गहनतम रहस्यों को समझने में मदद कर सकता है।
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