Madras High Court Decision: Cooperative Societies Not Under RTI Act; मद्रास हाई कोर्ट का निर्णय: सहकारी समितियां RTI अधिनियम के दायरे में नहीं

मद्रास हाई कोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि तमिलनाडु सहकारी समिति अधिनियम, 1983 के तहत पंजीकृत सहकारी समितियां सूचना के अधिकार (RTI) अधिनियम, 2005 की धारा 2 (h) के तहत “लोक प्राधिकारी (Public Authorities)” नहीं हैं। इस निर्णय के अनुसार, ये सहकारी समितियां RTI अधिनियम के दायरे में नहीं आतीं और इसलिए उन पर सूचना का खुलासा करने का अनिवार्य दायित्व नहीं होगा।

RTI अधिनियम, 2005 के बारे में:

RTI अधिनियम, 2005 भारत में नागरिकों को सार्वजनिक प्राधिकरणों यानी सरकारी कार्यालयों के नियंत्रण में आने वाली सूचना प्राप्त करने के लिए एक व्यावहारिक व्यवस्था प्रदान करता है। इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य शासन के प्रत्येक स्तर पर पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देना है।

सुप्रीम कोर्ट ने 1975 के उत्तर प्रदेश राज्य बनाम राज नारायण वाद में कहा था कि सूचना का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 में निहित वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार में स्पष्ट रूप से गारंटीकृत है। यह निर्णय RTI अधिनियम की नींव रखता है, जिससे जनता को सरकार के कामकाज में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व सुनिश्चित होता है।

RTI अधिनियम के प्रमुख प्रावधान:

सूचना प्रदान करने की समय-सीमा: RTI अधिनियम के तहत सूचना मांगने पर संबंधित प्राधिकरण को निश्चित समय सीमा में जानकारी प्रदान करनी होती है। आमतौर पर यह समय सीमा 30 दिन होती है।

स्वतः प्रकटीकरण: RTI अधिनियम के तहत कुछ श्रेणियों की सूचनाओं का स्वतः प्रकटीकरण करना अनिवार्य है। इसका मतलब है कि सरकारी निकायों को नियमित रूप से ऐसी सूचनाओं को प्रकाशित करना होगा जो जनता के लिए महत्वपूर्ण हो सकती हैं।

लोक सूचना अधिकारी (PIOs) की नियुक्ति: प्रत्येक सरकारी कार्यालय में PIOs की नियुक्ति की जाती है, जो RTI अधिनियम के तहत सूचना मांगने वाले व्यक्ति को जानकारी प्रदान करने के लिए जिम्मेदार होते हैं।

केंद्रीय और राज्य सूचना आयोगों की नियुक्ति: RTI अधिनियम के तहत केंद्रीय और राज्य स्तर पर सूचना आयोगों की स्थापना की गई है जो सूचनाओं के अधिकार को लागू करने में सहायता करते हैं।

RTI अधिनियम, 2005 के तहत लोक प्राधिकारी:

RTI अधिनियम की धारा 2 (h) के अनुसार, लोक प्राधिकारी में केंद्र या राज्य सरकारों द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से वित्त-पोषित सरकारी निकाय, राज्य-नियंत्रित संस्थाएं और गैर सरकारी संगठन शामिल होते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में माना कि भारत के मुख्य न्यायाधीश का पद भी एक लोक प्राधिकारी है।

लोक प्राधिकारी के कर्तव्य:

  • रिकॉर्ड्स का संधारण: लोक प्राधिकरण को अपने सभी रिकॉर्ड्स को स्पष्ट रूप से सूचीबद्ध बनाए रखना होगा।
  • सूचनाओं का नियमित प्रकटीकरण: उसे नियमित रूप से सूचनाओं का प्रकटीकरण करना होगा।
  • PIOs की नियुक्ति: PIOs की नियुक्ति करना, जो RTI अधिनियम के तहत सूचना मांगने वाले व्यक्ति को सूचना प्रदान करने के लिए जिम्मेदार होते हैं।
    • PIOs (लोक सूचना अधिकारी) वे अधिकारी होते हैं जिन्हें सार्वजनिक प्राधिकरण द्वारा इसके अंतर्गत सभी प्रशासनिक इकाइयों या कार्यालयों में जानकारी प्रदान करने के लिए नामित किया जाता है।

RTI अधिनियम की धारा 8 के तहत छूट:

RTI अधिनियम की धारा 8 में कुछ श्रेणियों की सूचनाओं को प्रकट करने से छूट प्रदान की गई है, जैसे:

  • ऐसी सूचना, जिसे प्रकट करने से भारत की संप्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, सामरिक, वैज्ञानिक या आर्थिक हितों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना हो।
  • न्यायालय द्वारा प्रतिबंधित या न्यायालय की अवमानना करने वाली सूचना।
  • संसद या राज्य विधान-मंडल के विशेषाधिकारों का उल्लंघन करने वाली सूचना।
  • वाणिज्यिक गोपनीयता, ट्रेड सीक्रेट और बौद्धिक संपदा से संबंधित सूचना। हालांकि, व्यापक लोक हित में ऐसी सूचना प्रकट की जा सकती है।
  • ऐसी व्यक्तिगत सूचना जो लोक हित से नहीं जुड़ी हो या जिससे निजता का उल्लंघन हो।

सहकारी समितियों पर न्यायालय का निर्णय

मद्रास हाई कोर्ट का निर्णय सहकारी समितियों को RTI अधिनियम के दायरे से बाहर रखता है, जो इन समितियों के प्रबंधन और संचालन के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। यह निर्णय सहकारी समितियों को स्वतंत्रता प्रदान करता है, जिससे वे अपने सदस्यों की सेवाओं को बेहतर ढंग से प्रदान कर सकेंगी।

निष्कर्ष:

मद्रास हाई कोर्ट का यह निर्णय सहकारी समितियों के प्रशासन और पारदर्शिता पर गहरा प्रभाव डालता है। हालांकि, यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि सहकारी समितियों के सदस्य और हितधारक जानकारी की पारदर्शिता और जवाबदेही के सिद्धांतों से वंचित न हों। यह निर्णय सहकारी समितियों के संचालन में एक नई दिशा प्रदान करता है, जो उनके कामकाज को स्वतंत्रता और प्रगति की ओर ले जाएगा।

FAQs:

RTI अधिनियम, 2005 क्या है?

RTI अधिनियम, 2005 भारत में नागरिकों को सार्वजनिक प्राधिकरणों यानी सरकारी कार्यालयों के नियंत्रण में आने वाली सूचना प्राप्त करने का अधिकार प्रदान करता है। इसका मुख्य उद्देश्य शासन के प्रत्येक स्तर पर पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देना है।

RTI अधिनियम के तहत लोक प्राधिकारी कौन होते हैं?

RTI अधिनियम, 2005 की धारा 2 (h) के अनुसार, लोक प्राधिकारी में केंद्र या राज्य सरकारों द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से वित्त-पोषित सरकारी निकाय, राज्य-नियंत्रित संस्थाएं और गैर सरकारी संगठन शामिल होते हैं।

RTI अधिनियम के तहत सूचना प्रदान करने की समय-सीमा क्या है?

RTI अधिनियम के तहत सूचना मांगने पर संबंधित प्राधिकरण को 30 दिनों के भीतर जानकारी प्रदान करनी होती है।

RTI अधिनियम की धारा 8 क्या है?

RTI अधिनियम की धारा 8 में कुछ श्रेणियों की सूचनाओं को प्रकट करने से छूट प्रदान की गई है, जैसे कि ऐसी सूचना जिसे प्रकट करने से भारत की संप्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, सामरिक, वैज्ञानिक या आर्थिक हितों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना हो।

लोक सूचना अधिकारी (PIOs) क्या करते हैं?

लोक सूचना अधिकारी (PIOs) RTI अधिनियम के तहत सूचना मांगने वाले व्यक्ति को जानकारी प्रदान करने के लिए जिम्मेदार होते हैं। PIOs (लोक सूचना अधिकारी) वे अधिकारी होते हैं जिन्हें सार्वजनिक प्राधिकरण द्वारा इसके अंतर्गत सभी प्रशासनिक इकाइयों या कार्यालयों में जानकारी प्रदान करने के लिए नामित किया जाता है।

RTI अधिनियम के प्रमुख प्रावधान क्या हैं?

RTI अधिनियम के प्रमुख प्रावधानों में सूचना प्रदान करने की समय-सीमा, स्वतः प्रकटीकरण, लोक सूचना अधिकारियों की नियुक्ति और केंद्रीय एवं राज्य सूचना आयोगों की नियुक्ति शामिल हैं।

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