आइसलैंड ने जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए दुनिया के सबसे बड़े डायरेक्ट एयर कैप्चर एंड स्टोरेज (DAC+S) प्लांट “मैमथ” का उद्घाटन किया है। स्विस कंपनी क्लाइमवर्क्स द्वारा विकसित यह अत्याधुनिक प्लांट वायुमंडल से सीधे कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) को कैप्चर करके उसे भूमिगत संग्रहीत करने की क्षमता रखता है। इसकी क्षमता हर साल 36,000 टन कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) को सीधे हवा से खींचने की है। यह अपने आप में एक अभूतपूर्व तकनीकी उपलब्धि है, जो जलवायु संकट से निपटने के लिए एक नया रास्ता खोलती है।
DAC+S क्या है और यह कैसे काम करती है?
DAC+S, यानी डायरेक्ट एयर कैप्चर एंड स्टोरेज, एक ऐसी तकनीक है जो सीधे हवा से कार्बन डाइऑक्साइड को अलग कर लेती है। यह एक फिल्टर की तरह काम करता है, जो विशाल पंखों के माध्यम से हवा को खींचता है और एक विशेष सामग्री का उपयोग करके CO2 को अवशोषित करता है। एक बार जब CO2 अवशोषित हो जाता है, तो इसे भूगर्भीय रूप से सुरक्षित रूप से संग्रहित किया जाता है, जहां यह लाखों वर्षों तक रह सकता है। मैमथ प्लांट क्लाइमवर्क्स की दूसरी व्यावसायिक DAC+S इकाई है, जो इसकी पहली इकाई ‘ओर्का’ से भी बड़ी है।
क्लाइमवर्क्स की इस DAC+S तकनीक में चार प्रमुख चरण होते हैं:
- वायु का सेवन: विशाल पंखे परिवेशी वायु को प्लांट में खींचते हैं।
- CO2 अवशोषण: विशेष रूप से डिज़ाइन किए गए फ़िल्टर हवा से CO2 को सोख लेते हैं।
- CO2 एकत्रीकरण: CO2 को फ़िल्टर से अलग किया जाता है और सांद्र किया जाता है।
- भूगर्भिक भंडारण: सांद्र CO2 को भूमिगत इंजेक्ट किया जाता है, जहां यह समय के साथ ठोस कार्बोनेट खनिजों में परिवर्तित हो जाता है।
कार्बन डाइऑक्साइड रिमूवल (CDR) का महत्व:
जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटने के लिए केवल उत्सर्जन को कम करना ही काफी नहीं है। हमें वायुमंडल से पहले से मौजूद CO2 को भी हटाने की जरूरत है। यहीं पर CDR तकनीक महत्वपूर्ण हो जाती है।
IPCC (इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज) की छठी मूल्यांकन रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए CDR तकनीक का उपयोग आवश्यक है। मैमथ प्लांट CDR के प्रति हमारी प्रतिबद्धता का एक महत्वपूर्ण प्रतीक है और इसे बड़े पैमाने पर कार्यान्वित करने की क्षमता को प्रदर्शित करता है।
CDR की अन्य तकनीकें:
DAC+S के अलावा, अन्य CDR तकनीकों में शामिल हैं:
- वनीकरण/पुनर्वनीकरण: पेड़ लगाकर या जंगलों को पुनर्स्थापित करके वायुमंडल से CO2 को हटाया जा सकता है।
- मृदा कार्बन पृथक्करण: कृषि पद्धतियों में सुधार करके मिट्टी में कार्बन को अधिक मात्रा में संग्रहित किया जा सकता है।
- अपक्षय में वृद्धि: प्राकृतिक रूप से CO2 को अवशोषित करने वाले खनिजों से युक्त चट्टानों का खनन किया जाता है।
- महासागर-आधारित CDR: समुद्र में पोषक तत्व डालकर या महासागरों की क्षारीयता बढ़ाकर CO2 अवशोषण बढ़ाया जा सकता है।
- बायोएनर्जी विथ कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज (BECCS): इसमें CDR के लिए ऊर्जा के रूप में बायोमास का उपयोग करना और भूवैज्ञानिक रूप से जैव-उत्पादित (Biogenic) कार्बन का भंडारण करना शामिल है।
CDR की चुनौतियां:
हालांकि CDR तकनीकें आशाजनक हैं, लेकिन इनमें कुछ चुनौतियां भी हैं:
- उच्च लागत: CDR तकनीकें अभी भी महंगी हैं, और बड़े पैमाने पर लागू करने के लिए महत्वपूर्ण निवेश की आवश्यकता है।
- ऊर्जा गहनता: कुछ CDR तकनीकों के लिए बहुत अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है, जिससे कार्बन उत्सर्जन में वृद्धि हो सकती है।
- भूमि और पानी का उपयोग: कुछ तकनीकों को बड़े पैमाने पर लागू करने के लिए महत्वपूर्ण भूमि और जल संसाधनों की आवश्यकता होती है।
- समुद्र के अम्लीकरण का जोखिम बना रहता है आदि।
- अनिश्चितताएं: CDR तकनीकों के दीर्घकालिक प्रभावों और संभावित जोखिमों के बारे में अभी भी बहुत कुछ सीखना बाकी है।
निष्कर्ष:
मैमथ प्लांट और क्लाइमवर्क्स की DAC+S तकनीक, जलवायु परिवर्तन से लड़ने और कार्बन उत्सर्जन को कम करने के हमारे प्रयासों में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह हमें याद दिलाता है कि जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में तकनीकी नवाचार एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। हालाँकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि CDR तकनीकें जलवायु परिवर्तन का एकमात्र समाधान नहीं हैं, और उत्सर्जन को कम करने के लिए अन्य उपायों के साथ संयोजन में उनका उपयोग किया जाना चाहिए।