हाल ही में, अरब लीग ने मनामा घोषणा-पत्र को अपनाया है, जिसमें इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष को समाप्त करने के लिए टू-स्टेट सॉल्यूशन लागू होने तक संयुक्त राष्ट्र शांति-रक्षक सैनिक तैनात करने की मांग की गई है। इस कदम का उद्देश्य क्षेत्र में शांति स्थापित करना और विवादों को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाना है।
अरब लीग का गठन और उद्देश्य:
- अरब लीग का गठन 1945 में हुआ था। इसके प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं:
- क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देना: सदस्य देशों के बीच आपसी सहयोग और समन्वय को बढ़ाना।
- विवादों का शांतिपूर्ण समाधान निकालना: सदस्य देशों के बीच उत्पन्न विवादों को बातचीत और अन्य शांतिपूर्ण उपायों से सुलझाना। मध्य-पूर्व और उत्तरी अफ्रीका के देश अरब लीग के सदस्य हैं, और यह संगठन इन देशों के बीच एकता और सहयोग को बढ़ावा देने के लिए काम करता है।
विषय | विवरण |
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स्थापना | 22 मार्च, 1945 को काहिरा, मिस्र में स्थापित |
संस्थापक सदस्य | मिस्र, इराक, जॉर्डन, लेबनान, सऊदी अरब, सीरिया |
उद्देश्य | सदस्य राज्यों के बीच आर्थिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और सैन्य सहयोग को बढ़ावा देना; स्वतंत्रता और संप्रभुता की रक्षा करना |
कार्य | सदस्य राज्यों के बीच सहमति पर आधारित; निर्णय सलाह-मशविरा और चर्चा के माध्यम से लिए जाते हैं |
क्षेत्रीय मुद्दों को संबोधित करने, नीतियों को तैयार करने और कार्यों को समन्वित करने के लिए अरब नेताओं के बीच नियमित बैठकें | |
आर्थिक मामलों, सामाजिक मामलों और रक्षा जैसे विशिष्ट क्षेत्रों में सहयोग के लिए विशेष समितियाँ और परिषदें | |
सदस्य राज्य | मिस्र, इराक, जॉर्डन, लेबनान, सऊदी अरब, सीरिया, लीबिया, ट्यूनीशिया, अल्जीरिया, बहरीन, कोमोरोस, जिबूती, कुवैत, मॉरिटानिया, मोरक्को, ओमान, फिलिस्तीन, कतर, सोमालिया, सूडान, संयुक्त अरब अमीरात और यमन |
पर्यवेक्षक राष्ट्र | ब्राजील, इरिट्रिया, भारत, वेनेजुएला और अन्य; पर्यवेक्षक राष्ट्रों को मतदान के अधिकार नहीं दिए जाते |
महत्वपूर्ण उपलब्धियां | 2002 में अरब शांति पहल का प्रस्ताव; विभिन्न संघर्षों में सैन्य प्रयासों का समन्वय; अरब मुक्त व्यापार क्षेत्र जैसी पहलों के माध्यम से आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देना; सदस्य राज्यों के बीच सांस्कृतिक और शैक्षिक विनिमय कार्यक्रमों की सुविधा |
चुनौतियाँ | आंतरिक विभाजन, फिलिस्तीन-इजरायल संघर्ष पर विचारों में भिन्नता आदि |
संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना मिशन के बारे में:
उत्पत्ति
पहला संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना मिशन 1948 में स्थापित किया गया था, जिसे यूनाइटेड नेशंस ट्रूस सुपरविजन आर्गेनाइजेशन (UNTSO) नाम दिया गया था। इस मिशन के तहत पश्चिम एशिया में सैन्य पर्यवेक्षक तैनात किए गए थे, ताकि युद्धविराम समझौते का पालन किया जा सके।
उद्देश्य
संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना मिशन का मुख्य उद्देश्य संघर्ष से प्रभावित देशों को शांति स्थापित करने में मदद करना है। ये मिशन विभिन्न संघर्ष क्षेत्रों में शांति और स्थिरता लाने के लिए तैनात किए जाते हैं।
प्रमुख मार्गदर्शक सिद्धांत
संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना मिशन निम्नलिखित प्रमुख सिद्धांतों पर आधारित होते हैं:
- संघर्ष के पक्षकारों की सहमति: मिशन की तैनाती के लिए संबंधित पक्षों की सहमति आवश्यक होती है।
- निष्पक्षता: मिशन को निष्पक्ष रहना चाहिए और किसी भी पक्ष का समर्थन नहीं करना चाहिए।
- आत्मरक्षा और मिशन के कार्यादेश की रक्षा को छोड़कर बल का उपयोग न करना: शांति रक्षक बल केवल आत्मरक्षा या मिशन के कार्यादेश की रक्षा के लिए बल का उपयोग कर सकते हैं।
तैनाती प्रक्रिया
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद एक संकल्प अपनाकर शांति स्थापना मिशन की तैनाती निर्धारित करती है। हालांकि, इस मिशन का बजट और संसाधन संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा मंजूर किए जाते हैं। संयुक्त राष्ट्र का प्रत्येक सदस्य देश शांति स्थापना हेतु अपना-अपना अंशदान करने के लिए कानूनी रूप से बाध्य है।
पीस ऑपरेशन्स विभाग (DPO)
संयुक्त राष्ट्र का पीस ऑपरेशन्स विभाग (DPO) शांति स्थापना अभियानों को राजनीतिक और कार्यकारी दिशा प्रदान करता है। यह विभाग मिशनों की योजना बनाने, उन्हें लागू करने और उनकी निगरानी करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
सफलता
1948 के बाद से 70 से अधिक शांति स्थापना मिशन अभियान चलाए गए हैं। संयुक्त राष्ट्र शांति रक्षक बल को 1988 के नोबेल शांति पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। ये मिशन विभिन्न संघर्ष क्षेत्रों में शांति और स्थिरता लाने में सफल रहे हैं।
संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना मिशन से जुड़ी चिंताएं:
- सैनिकों की भागीदारी: शांति स्थापना मिशन में सैन्य बल का योगदान देने वाले देशों को मिशन की योजना के सभी चरणों में पूरी तरह से शामिल नहीं किया जाता है।
- संसाधनों की कमी: ये मिशन अक्सर वित्तीय और मानव संसाधनों की कमी का सामना करते रहे हैं, जिससे मिशन की प्रभावशीलता प्रभावित होती है।
भारत और संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना मिशन:
- सैनिक योगदान: भारत ने संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना मिशन के तहत अब तक 2 लाख से अधिक सैनिकों का योगदान दिया है, जो किसी भी देश द्वारा सर्वाधिक सैन्य बल योगदान है।
- महिलाओं की भागीदारी: 2007 में, भारत संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना मिशन में केवल महिलाओं वाला दल भेजने वाला पहला देश बना था।
- प्रशिक्षण केंद्र: शांति स्थापना अभियानों के लिए विशिष्ट प्रशिक्षण प्रदान करने हेतु नई दिल्ली में संयुक्त राष्ट्र शांति रक्षा केंद्र (CUNPK) की स्थापना की गई है।
निष्कर्ष:
मनामा घोषणा-पत्र में संयुक्त राष्ट्र शांति-रक्षक सैनिकों की तैनाती की मांग एक महत्वपूर्ण कदम है। इससे न केवल इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष के समाधान में मदद मिलेगी, बल्कि क्षेत्र में स्थिरता और शांति की स्थापना भी होगी। अरब लीग की यह पहल अंतरराष्ट्रीय समुदाय को एकजुट होकर शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रेरित करती है।
FAQs:
मनामा घोषणा-पत्र क्या है?
मनामा घोषणा-पत्र एक दस्तावेज है जिसे अरब लीग ने अपनाया है। इसमें इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष को समाप्त करने के लिए टू-स्टेट सॉल्यूशन लागू होने तक संयुक्त राष्ट्र शांति-रक्षक सैनिक तैनात करने की मांग की गई है।
अरब लीग का मुख्य उद्देश्य क्या है?
अरब लीग का मुख्य उद्देश्य सदस्य राज्यों के बीच आर्थिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और सैन्य सहयोग को बढ़ावा देना और क्षेत्रीय विवादों का शांतिपूर्ण समाधान निकालना है।
संयुक्त राष्ट्र शांति-रक्षक मिशन का उद्देश्य क्या है?
संयुक्त राष्ट्र शांति-रक्षक मिशन का उद्देश्य संघर्ष से प्रभावित क्षेत्रों में शांति और स्थिरता स्थापित करना है। ये मिशन देशों के बीच संघर्षों को सुलझाने और शांति बनाए रखने में मदद करते हैं।
पहला संयुक्त राष्ट्र शांति-रक्षक मिशन कब शुरू हुआ था?
पहला संयुक्त राष्ट्र शांति-रक्षक मिशन 1948 में शुरू हुआ था, जिसे यूनाइटेड नेशंस ट्रूस सुपरविजन ऑर्गनाइजेशन (UNTSO) नाम दिया गया था। इसका उद्देश्य पश्चिम एशिया में युद्धविराम समझौते का पालन सुनिश्चित करना था।
संयुक्त राष्ट्र शांति-रक्षक मिशन के प्रमुख सिद्धांत क्या हैं?
संयुक्त राष्ट्र शांति-रक्षक मिशन के प्रमुख सिद्धांत निम्नलिखित हैं:
1. संघर्ष के पक्षकारों की सहमति
2. निष्पक्षता
3. आत्मरक्षा और मिशन के कार्यादेश की रक्षा को छोड़कर बल का उपयोग न करना
शांति-रक्षक मिशनों में भारत की भूमिका क्या है?
भारत ने संयुक्त राष्ट्र शांति-रक्षक मिशनों में अब तक 2 लाख से अधिक सैनिकों का योगदान दिया है, जो किसी भी देश द्वारा सर्वाधिक सैन्य बल योगदान है। 2007 में, भारत ने केवल महिलाओं वाला दल भी भेजा था।