भूमि किसी भी देश की सबसे मूल्यवान संपत्तियों में से एक है। चाहे वह कृषि उपयोग हो, आवासीय या व्यावसायिक उद्देश्य हों, भूमि के समुचित प्रबंधन द्वारा आर्थिक विकास और सामाजिक कल्याण सुनिश्चित होता है। हालाँकि, भारत में, पारंपरिक भूमि अभिलेख प्रणाली कई समस्याओं से ग्रस्त है जो दक्षता, पारदर्शिता और भूमि स्वामित्व विवादों से प्रभावित है। भूमि संसाधन विभाग, ग्रामीण विकास मंत्रालय (MoRD) द्वारा हाल ही में कई उल्लेखनीय पहल इन पुरानी समस्याओं को हल करने और भूमि अभिलेख प्रबंधन को आधुनिक बनाने के उद्देश्य से शुरू की गई हैं।
भारत में भूमि रिकॉर्ड प्रबंधन की चुनौतियां
भारत की वर्तमान भूमि स्वामित्व व्यवस्था बिक्री विलेख (sale deed) की अवधारणा के इर्द-गिर्द केंद्रित है। कागज आधारित इस प्रणाली में, भूमि स्वामित्व का हस्तांतरण सरकारी रिकॉर्ड में एक प्रविष्टि द्वारा परिलक्षित होता है। कागजों पर आधारित यह प्रणाली अक्षम, अपारदर्शी और भूमि विवादों का कारण बनती है। इससे नकली दस्तावेज तैयार करने, हेरफेर करने और बड़े पैमाने पर भूमि धोखाधड़ी की संभावना बढ़ती है। इन पुरानी चुनौतियों से निपटने और प्रोसेस को अधिक पारदर्शी और सुव्यवस्थित बनाने के लिए भूमि संसाधन विभाग ने अभिनव डिजिटल समाधान पेश किए हैं।
भू-अभिलेख आधुनिकीकरण के लिए डिजिटल पहल
- नेशनल जेनेरिक दस्तावेज पंजीकरण प्रणाली (NGDRS): ये ‘वन नेशन वन सॉफ्टवेयर’ की अवधारणा के तहत बनाया गया है। इसका लक्ष्य पूरे देश में एक समान, मानकीकृत प्रक्रिया के साथ पंजीकरण प्रक्रिया का डिजिटाइज़ेशन करना है।
- विशिष्ट भू-खंड पहचान संख्या (ULPIN): इसे भू-आधार भी कहते हैं। प्रत्येक ज़मीन के हिस्से के अक्षांश और देशांतर निर्देशांकों (longitude and latitude) के आधार पर सर्जित ये 14 अंको का क्रमांक भूखंड के विशिष्ट अभिलेख के रूप में कार्य करता है।
- ‘ब्लॉकचेन इन लैंड रिकॉर्ड्स’: असम के दरांग जिले में शुरू की गई पायलट परियोजना के शुरुआती परिणाम अत्यंत उत्साहजनक हैं। यह प्रणाली रिकॉर्ड में छेड़छाड़ को अत्यंत कठिन बनाकर भूमि प्रबंधन को पारदर्शी, जवाबदेह और निष्पक्ष बनाती है।
ब्लॉकचेन आधारित प्रणाली: भूमि प्रबंधन का भविष्य
ब्लॉकचेन एक विकेन्द्रीकृत लेजर तकनीक है जो सूचनाओं को कई कंप्यूटरों पर एकसाथ वितरित करती है। यह क्रिप्टोग्राफिक हैश एल्गोरिदम द्वारा सुरक्षित रहती है और नेटवर्क प्रतिभागियों को अपरिवर्तित और स्थायी अभिलेख रखने की क्षमता प्रदान करती है।
भूमि प्रबंधन में ब्लॉकचेन के उपयोग से अनेक लाभ होते हैं:
धोखाधड़ी में कमी: ब्लॉकचेन तकनीक में छेड़छाड़ करना लगभग असंभव है, जिससे भूमि धोखाधड़ी की संभावना कम होती है।
सत्यापन में आसानी: अनेक पक्ष आसानी से अभिलेख का सत्यापन कर सकते हैं, जिससे मध्यस्थों पर निर्भरता कम होती है।
कार्यकुशलता में वृद्धि: केंद्रीकृत डेटाबेस अन्य विभागों (बैंक, सरकारी योजनाएं, आदि) को त्वरित रूप से प्रणाली से जोड़ता है, जिससे कार्यकुशलता बढ़ती है।
पारदर्शिता: सभी हितधारकों को भूमि रिकॉर्ड तक आसानी से पहुंच प्रदान की जाती है, जिससे भ्रष्टाचार और अनियमितताओं की संभावना कम होती है।
निष्पक्षता: सभी पक्षों को समान रूप से भूमि रिकॉर्ड तक पहुंच प्रदान करके निष्पक्षता और न्याय सुनिश्चित किया जाता है।
सार्वजनिक भागीदारी आवश्यक
आधुनिक रिकॉर्ड प्रबंधन प्रणाली में बदलाव को सफल बनाने के लिए, इस पहल में आम जनता की जागरूकता महत्वपूर्ण है। प्रशासन द्वारा जागरूकता शिविर, नई प्रणाली की जानकारी को सुलभ कराना इसके अभिन्न अंग होंगेें। तकनिकी समझ वाले युवावर्ग एवं स्वायत्त संस्थायें इन प्रयासों में मददगार हो सकती हैं।
निष्कर्ष
भूमि संसाधन विभाग द्वारा भारत के भूमि अभिलेख प्रबंधन के आधुनिकीकरण हेतु किये गए ये प्रयास सही दिशा में बढ़ते कदम हैं। डिजिटल नवाचारों और ब्लॉकचेन जैसी उभरती प्रविधियों से न केवल रिकॉर्ड रखरखाव सरल होगा, बल्कि ये अदालत में लंबित असंखय् ज़मीन विवादों के निपटारे की गति बढ़ाएगा। इससे सार्वजानिक विश्वास मज़बूत होकर प्रगति एवं सामाजिक भलाई को बढ़ावा मिलेगा।
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