New Name of Andaman and Nicobar’s Capital: Historical and Strategic Significance of Shri Vijaypuram; अंडमान और निकोबार की राजधानी का नया नाम: श्री विजयपुरम का ऐतिहासिक और सामरिक महत्व

हाल ही में केंद्र सरकार ने अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की राजधानी पोर्ट ब्लेयर का नाम बदलकर श्री विजयपुरम कर दिया है। यह नामकरण भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के ऐतिहासिक महत्व को प्रदर्शित करता है, साथ ही इस क्षेत्र के ऐतिहासिक और सामरिक योगदान को भी सम्मानित करता है। पोर्ट ब्लेयर, जिसे अब श्री विजयपुरम के नाम से जाना जाएगा, एक ऐसा स्थल है जो भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई, सामरिक सुरक्षा, और सांस्कृतिक धरोहर के अद्वितीय पहलुओं को समाहित करता है।

श्री विजयपुरम: स्वतंत्रता संग्राम का प्रतीक

अंडमान और निकोबार द्वीप समूह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इस द्वीप का नाम श्री विजयपुरम रखना, नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में स्वतंत्रता की पहली चिंगारी को याद करने का एक प्रयास है। 30 दिसंबर 1943 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने पोर्ट ब्लेयर पर भारतीय तिरंगा फहराया और इस द्वीप समूह को ब्रिटिश शासन से मुक्त होने वाला पहला भारतीय क्षेत्र घोषित किया था। नेताजी ने इस द्वीप को ब्रिटिश शासन से आज़ाद घोषित कर दिया था। यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक मील का पत्थर था और इस स्थल का भारतीय इतिहास में एक अनोखा महत्व है।

सेलुलर जेल, जिसे काला पानी के नाम से भी जाना जाता है, भी इसी द्वीप पर स्थित है। इस जेल में अनेक भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों को ब्रिटिश शासन के तहत बंदी बनाकर रखा गया था। जेल में होने वाली अमानवीय यातनाओं के बावजूद, इन स्वतंत्रता सेनानियों ने देश के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया। श्री विजयपुरम का नया नाम इस अदम्य साहस और स्वतंत्रता की लड़ाई में दिए गए बलिदानों की याद दिलाता है।

औपनिवेशिक विरासत से मुक्ति की दिशा में एक कदम:

पोर्ट ब्लेयर का नाम बदलकर श्री विजयपुरम करना केवल एक नाम परिवर्तन नहीं है, बल्कि यह भारत की औपनिवेशिक विरासत से मुक्ति की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन वर्षों तक यह द्वीप भारत के संघर्ष और शोषण का साक्षी रहा है। ब्रिटिश हुकूमत ने यहां के स्वतंत्रता सेनानियों पर अत्याचार किए और उन्हें काला पानी जैसी कठोर सजा दी। ऐसे में यह नाम परिवर्तन औपनिवेशिक अतीत से अलग होकर राष्ट्रवादी गौरव का प्रतीक बनता है।

यह बदलाव भारत के नए दौर की शुरुआत का भी प्रतीक है, जिसमें भारत अपनी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर को फिर से जीवित कर रहा है। औपनिवेशिक नामों से मुक्ति पाना और स्वतंत्रता के प्रतीकों को सम्मानित करना भारतीय समाज में गर्व और आत्मनिर्भरता की भावना को और बढ़ावा देता है।

चोल साम्राज्य और अंडमान द्वीप की ऐतिहासिक भूमिका:

अंडमान और निकोबार द्वीप समूह का इतिहास केवल आधुनिक काल तक सीमित नहीं है, बल्कि यह प्राचीन भारत के महान साम्राज्यों से भी जुड़ा है। चोल साम्राज्य, विशेष रूप से राजराजा चोल (985-1014 ई.) और राजेंद्र प्रथम (1014-1044 ई.), ने दक्षिण भारत और आसपास के समुद्री क्षेत्रों पर अपनी नौसैनिक शक्ति का विस्तार किया था। अंडमान द्वीप समूह ने चोल साम्राज्य के लिए एक महत्वपूर्ण नौसैनिक अड्डे के रूप में कार्य किया था।

चोल साम्राज्य ने एक सशक्त नौसेना का निर्माण किया, जिसने उन्हें समुद्र मार्ग से व्यापार और सैन्य अभियानों में सफलता दिलाई। बंगाल की खाड़ी को ‘चोल झील’ के नाम से जाना जाता था, क्योंकि चोल शासकों ने इस क्षेत्र पर अपनी शक्तिशाली पकड़ बना ली थी।

दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों के साथ समृद्ध व्यापार को बढ़ावा देने के लिए नागापट्टिनम जैसे प्रमुख व्यापारिक केंद्र स्थापित किए गए।

  • राजराजा चोल ने त्रिवेंद्रम जैसे प्रमुख क्षेत्रों में चेर साम्राज्य की नौसेना को पराजित कर दिया था, और श्रीलंका के उत्तरी भाग पर अधिकार किया था। साथ ही, मालदीव पर भी विजय प्राप्त की थी।
  • राजेंद्र प्रथम ने अपनी नौसैनिक शक्तियों का उपयोग करते हुए श्रीलंका, मलय प्रायद्वीप, और सुमात्रा जैसे क्षेत्रों पर विजय प्राप्त की।

अंडमान और निकोबार: सामरिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण

आज के समय में भी, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह सामरिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। हिंद महासागर में इन द्वीपों की भौगोलिक स्थिति भारत के समुद्री सुरक्षा के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। भारतीय नौसेना के लिए यह द्वीप एक प्रमुख केंद्र है, जहाँ से भारत समुद्री व्यापार और रक्षा के मामले में अपनी पकड़ बनाए रखता है।

यह द्वीप भारत की समुद्री सीमाओं की रक्षा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ रक्षा सहयोग और व्यापारिक संबंधों में महत्वपूर्ण कड़ी है। श्री विजयपुरम का नामकरण इस द्वीप के सामरिक महत्व को और अधिक स्पष्ट करता है।

भारत की समुद्री सुरक्षा नीति में अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की भौगोलिक स्थिति बेहद महत्वपूर्ण है। इस क्षेत्र में स्थित नौसैनिक बेस न केवल भारतीय नौसेना को दक्षिण एशियाई जल क्षेत्रों में एक महत्वपूर्ण बढ़त देता है, बल्कि यह क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखने और पड़ोसी देशों के साथ समन्वय में भी सहायक है।

निष्कर्ष:

श्री विजयपुरम का नामकरण न केवल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की जीत का प्रतीक है, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक और सामरिक धरोहर को भी दर्शाता है। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह ने भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, चाहे वह नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वारा स्वतंत्रता की घोषणा हो, या चोल साम्राज्य के समय इसकी नौसैनिक भूमिका। आज के समय में यह द्वीप सामरिक दृष्टिकोण से और भी महत्वपूर्ण हो गया है, और इसका नाम श्री विजयपुरम रखना भारत की गौरवशाली धरोहर और उसके सामरिक महत्व का सम्मान है।

FAQs:

पोर्ट ब्लेयर का नाम बदलकर श्री विजयपुरम क्यों किया गया?

पोर्ट ब्लेयर का नाम बदलकर श्री विजयपुरम करने का उद्देश्य औपनिवेशिक विरासत से दूर होना और भारत की स्वतंत्रता संग्राम की गौरवशाली कहानी को सम्मानित करना है।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस का अंडमान और निकोबार द्वीप से क्या संबंध है?

नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने 30 दिसंबर 1943 को अंडमान द्वीप की राजधानी पोर्ट ब्लेयर पर पहली बार भारतीय तिरंगा फहराया था और इसे ब्रिटिश शासन से मुक्त घोषित किया था।

चोल साम्राज्य का अंडमान द्वीप से क्या संबंध था?

चोल साम्राज्य के समय अंडमान द्वीप एक महत्वपूर्ण नौसैनिक अड्डा था, जिसका उपयोग चोल साम्राज्य द्वारा दक्षिण-पूर्व एशिया में अपने समुद्री व्यापार और सैन्य अभियानों के लिए किया जाता था।

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