NITI Aayog has released the “Greening and Restoration of Wasteland with Agroforestry (GROW)” report; नीति आयोग ने जारी की “ग्रीनिंग एंड रेस्टोरेशन ऑफ वेस्टलैंड विद एग्रो-फॉरेस्ट्री (GROW)” रिपोर्ट:

भारत में कृषि क्षेत्र की विशालता के बावजूद, एक बड़ा भू-भाग अनुपजाऊ एवं बंजर बना हुआ है। बंजर भूमि का प्रभावी उपयोग न केवल राष्ट्र की खाद्य सुरक्षा को मजबूत करने में सहायक होगा, बल्कि यह किसानों की आय बढ़ाने और पर्यावरण के संतुलन में भी योगदान देगा। नीति आयोग द्वारा जारी “ग्रीनिंग एंड रेस्टोरेशन ऑफ वेस्टलैंड विद एग्रो-फॉरेस्ट्री (GROW)” रिपोर्ट इसी संदर्भ में एक उल्लेखनीय कदम है। यह रिपोर्ट बंजर भूमि को उत्पादक कृषि-वानिकी क्षेत्रों में परिवर्तित करने की अपार संभावनाओं पर प्रकाश डालती है। आइए समझते हैं इस रिपोर्ट की विशेषताओं और कृषि-वानिकी को अपनाने के लाभों को:

कृषि-वानिकी क्या है

कृषि-वानिकी (Agroforestry) भूमि प्रबंधन और उपयोग की एक समग्र अवधारणा है। इसमें खेती की जमीन पर परंपरागत फसलों के साथ-साथ पेड़ों, चारा उत्पादक पौधे एवं झाड़ियों को लगाना शामिल होता है। कृषि-वानिकी किसानों की आय बढ़ाने के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए एक महत्वपूर्ण रणनीति के रूप में उभरी है। यह भूमि क्षरण को नियंत्रित करती है, जैव विविधता में वृद्धि करती है, तथा सूखा एवं बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं के प्रभावों को कम करने में सहायक है।

भारत में बंजर भूमि की परिभाषा एवं स्थिति

भारतीय बंजर भूमि एटलस 2019 के अनुसार, 2015-16 में देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 17% हिस्सा बंजर भूमि था। खेती, अत्यधिक चराई, वृक्षों की कटाई, भूजल स्तर में गिरावट जैसे विभिन्न कारणों से अच्छी और कृषि योग्य भूमि अनुपजाऊ होकर बंजर बन जाती है। यह भूमि चराई और अन्य आर्थिक गतिविधियों के लिए भी उपयोगी नहीं होती है।

नीति आयोग की GROW रिपोर्ट:

  • भारत में कृषि-वानिकी की संभावना: GROW रिपोर्ट भारत के समस्त जिलों में कृषि-वानिकी की उपयुक्तता का विस्तृत मूल्यांकन करती है। इस अध्ययन में रिमोट सेंसिंग और GIS जैसी आधुनिक तकनीकों का उपयोग किया गया।
  • कृषि-वानिकी उपयुक्तता सूचकांक (ASI): इस रिपोर्ट में कृषि-वानिकी को प्राथमिकता देने के लिए एक नवीन संकेतक ‘कृषि-वानिकी उपयुक्तता सूचकांक’ (Agroforestry Suitability Index) प्रस्तुत किया गया है। यह सूचकांक मिट्टी के प्रकार, जलवायु परिस्थितियों, ढलान आदि कारकों का ध्यान रखते हुए विभिन्न क्षेत्रों को रैंक प्रदान करता है।
  • GROW-सुइटेबिलिटी मैपिंग पोर्टल: नीति आयोग ने भुवन पोर्टल पर “GROW-सुइटेबिलिटी मैपिंग” पोर्टल लॉन्च किया है। यह पोर्टल ASI डेटा को दर्शाता है और उपयोगकर्ताओं को राज्य और जिला-स्तरीय डेटा तक पहुंच प्रदान करता है। पोर्टल का उपयोग करके, किसान और अन्य हितधारक अपनी भूमि की कृषि-वानिकी के लिए उपयुक्तता का मूल्यांकन कर सकते हैं।

कृषि-वानिकी के प्रकार

कृषि-वानिकी को उसके स्वरूप के आधार पर मोटे तौर पर तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है:

  • एग्रीसिल्वीकल्चरल सिस्टम (कृषि-वनीकरण): इस प्रणाली में एक ही भूखंड पर पारंपरिक फसलों और पेड़ों दोनों को उगाया जाता है। उदाहरण के लिए, आम, आंवला, इमली या बांस के पेड़ों के साथ फसलों का एकीकरण किया जाता है।
  • सिल्वोपास्टोरल सिस्टम (वानिकी और पशुपालन): यह प्रणाली पेड़ों का चारागाहों या अन्य पशुधन संबंधी कृषि कार्यों के साथ एकीकरण करती है। पशुओं के लिए चारा प्रदान करने के अलावा, वृक्ष छाया के रूप में काम करते हैं और भूमि अपरदन को रोकते हैं।
  • एग्रोसिल्वोपास्टोरल सिस्टम (कृषि-वानिकी-पशुपालन): यह सबसे व्यापक और गहन प्रणाली है जिसमें बागवानी या परंपरागत फसलों के साथ-साथ पशुधन को वृक्षों या झाड़ियों के साथ एकीकृत किया जाता है।

कृषि-वानिकी के पर्यावरणीय लाभ

  • जलवायु परिवर्तन से मुकाबला: कार्बन सिंक (Carbon Sink) के रूप में कार्य करके कृषि-वानिकी वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करती है। यह ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
  • जल संरक्षण: कृषि-वानिकी प्रणालियां सतही अपवाह (Runoff) को कम करती हैं तथा मिट्टी की नमी बनाए रखने में सहायता करती हैं। इससे भूजल स्तर की कमी का मुकाबला करने में मदद मिलती है।
  • मृदा स्वास्थ्य में सुधार: जैविक पदार्थों और मिट्टी में पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ाकर कृषि-वानिकी भूमि की उर्वरता एवं उत्पादकता बढ़ाती है। साथ ही, भूमि अपरदन को भी काफी हद तक नियंत्रित करती है।
  • जैव विविधता संरक्षण: खेतों, चरागाहों और बंजर भूमि पर पेड़ लगाने से पक्षियों, कीड़ों और अन्य जीवों को प्राकृतिक आवास मिलता है और पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन बेहतर होता है।

कृषि-वानिकी का महत्व:

जलवायु परिवर्तन से मुकाबला:

  • माइक्रोक्लाइमेट मॉडरेशन: कृषि-वानिकी प्रणाली, तापमान, आर्द्रता और हवा की गति को नियंत्रित करके, स्थानीय जलवायु (Microclimate) को बेहतर बनाती है।
  • कार्बन सीक्वेस्ट्रेशन: पेड़ वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं और उसे अपने ऊतकों में जमा करते हैं। यह ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

कृषि उत्पादकता में वृद्धि:

  • मिट्टी की उर्वरता में वृद्धि: कृषि-वानिकी, जैविक पदार्थों और मिट्टी में पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ाकर भूमि की उर्वरता एवं उत्पादकता में सुधार करती है।
  • मिट्टी का संरक्षण: पेड़ों की जड़ें मिट्टी को बांधकर भू-क्षरण को रोकती हैं।
  • जल संरक्षण: कृषि-वानिकी प्रणाली, सतही अपवाह (Runoff) को कम करती हैं तथा मिट्टी की नमी बनाए रखने में सहायता करती हैं।
  • अनुकूल वातावरण: पेड़ों की छाया और हवा की गति में बदलाव फसलों के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करते हैं।

कृषि योग्य भूमि का अधिकतम उपयोग:

  • भूमि का बहुआयामी उपयोग: कृषि-वानिकी, एक ही भूमि पर विभिन्न गतिविधियों जैसे कि फसल उत्पादन, पशुपालन, फल उत्पादन और वानिकी को एकीकृत करके भूमि का अधिकतम उपयोग सुनिश्चित करता है।
  • अनुपयोगी भूमि का उपयोग: बंजर भूमि और अनुपयोगी भूमि को कृषि-वानिकी के माध्यम से उत्पादक बनाया जा सकता है।

किसानों की आय में वृद्धि:

  • विविध आय स्रोत: कृषि-वानिकी विभिन्न प्रकार के उत्पादों जैसे कि फल, लकड़ी, चारा, और अन्य वन-उत्पादों के उत्पादन से किसानों को अतिरिक्त आय प्रदान करती है।
  • बाजार की मांग: कृषि-वानिकी उत्पादों की बाजार में अच्छी मांग है, जिससे किसानों को बेहतर मुनाफा मिल सकता है।
  • रोजगार के अवसर: कृषि-वानिकी, खेती और वानिकी दोनों क्षेत्रों में रोजगार के अवसरों में वृद्धि करती है।

कृषि-वानिकी के अन्य लाभ:

  • जैव विविधता संरक्षण: खेतों, चरागाहों और बंजर भूमि पर पेड़ लगाने से पक्षियों, कीड़ों और अन्य जीवों को प्राकृतिक आवास मिलता है और पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन बेहतर होता है।
  • ग्रामीण विकास: कृषि-वानिकी, ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने, गरीबी को कम करने और खाद्य सुरक्षा को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।

    उदाहरण:

    • महाराष्ट्र: महाराष्ट्र में, कृषि-वानिकी का उपयोग बंजर भूमि को पुनर्स्थापित करने और किसानों की आय में वृद्धि करने के लिए किया जा रहा है। राज्य सरकार ने “वानिकी और कृषि के माध्यम से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करना” (Mahakrushi) नामक एक योजना शुरू की है। इस योजना के तहत, किसानों को अपनी भूमि पर फलदार और वनस्पतियों के पेड़ लगाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
    • कर्नाटक: कर्नाटक में, “क्रेडा कृषि-वानिकी कार्यक्रम” नामक एक कार्यक्रम शुरू किया गया है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य बंजर भूमि को कृषि-वानिकी क्षेत्रों में बदलना और किसानों की आय में वृद्धि करना है।

    निष्कर्ष

    कृषि-वानिकी एक महत्वपूर्ण भूमि प्रबंधन प्रणाली है जो भारत के लिए अनेक लाभ प्रदान करती है। यह बंजर भूमि को उत्पादक क्षेत्रों में बदलने, किसानों की आय बढ़ाने, पर्यावरण को बेहतर बनाने और जलवायु परिवर्तन से मुकाबला करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।

    नीति आयोग की GROW रिपोर्ट कृषि-वानिकी के विकास के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। यह रिपोर्ट विभिन्न क्षेत्रों में कृषि-वानिकी की उपयुक्तता का मूल्यांकन करती है और उपयोगकर्ताओं को राज्य और जिला-स्तरीय डेटा तक पहुंच प्रदान करती है।

    कृषि-वानिकी के अनेक लाभ हैं जिनमें जलवायु परिवर्तन से मुकाबला, कृषि उत्पादकता में वृद्धि, अनुकूल वातावरण, जैव विविधता संरक्षण, ग्रामीण विकास आदि शामिल हैं।

    भारत में अनेक राज्य कृषि-वानिकी को अपना रहे हैं और बंजर भूमि को पुनर्स्थापित करने और किसानों की आय बढ़ाने के लिए इसका उपयोग कर रहे हैं।

    निष्कर्ष यह है कि कृषि-वानिकी भारत के भविष्य के लिए एक महत्वपूर्ण अवधारणा है। यह भारत को अपनी खाद्य सुरक्षा को मजबूत बनाने, पर्यावरण को बेहतर बनाने और जलवायु परिवर्तन से मुकाबला करने में मदद कर सकती है।

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