हाल ही में जारी एक अध्ययन ने यह सुझाव दिया है कि ‘ऊर्जा’ फसलों (Energy Crops) का रोपण जैव विविधता के क्षरण को कम करने में सहायक हो सकता है। अध्ययन का शीर्षक है ‘जैव-ऊर्जा विस्तार और बहाली को संतुलित करना: जैव विविधता अक्षुण्णता में वैश्विक बदलाव‘। इस अध्ययन में कहा गया है कि निम्नीकृत या परित्यक्त कृषि भूमि में ऊर्जा फसलों के रोपण को प्राथमिकता देने से अधिक लाभ मिल सकता है।
जैव-ऊर्जा फसलों के बारे में:
जैव-ऊर्जा फसलों के तहत बायोमास का उत्पादन करने के उद्देश्य से विशेष प्रकार के पादप उगाए जाते हैं। इस बायोमास को बाद में ऊर्जा उत्पादन में परिवर्तित किया जा सकता है।
उदाहरण:
- एनर्जी ग्रास
- तिलहन फसले
- लिग्नोसेल्यूलोजिक फसले आदि।
जैव-ऊर्जा फसलों के विकास-चरण:
पहली पीढ़ी:
इसमें ऊर्जा रूपांतरण प्रौद्योगिकियां मौजूदा हैं। इसमें गन्ना जैसी चीनी उत्पादन करने वाली फसलें, स्टार्च, तिलहन फसलें शामिल हैं।
दूसरी पीढ़ी:
इसमें खाद्य फसलों की जगह पॉलीसेकेराइड सेलूलोज जैसी लिग्नोसेल्यूलोज गैर-खाद्य फसलों से जैव-ऊर्जा का उत्पादन किया जाता है। इसकी ऊर्जा रूपांतरण प्रौद्योगिकियों का विकास किया जा रहा है।
तीसरी पीढ़ी:
इसमें भविष्य की तकनीकें शामिल हैं। इसमें जैव-ऊर्जा उत्पादन के लिए आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों (GM क्रॉप्स) आदि का उपयोग किया जाएगा।
जैव-ऊर्जा फसल उत्पादन की चुनौतियां:
- भूमि संसाधन सीमित हैं: भूमि के उपयोग को लेकर लोगों के बीच मतभेद हैं और नीतियों में एक मत नहीं है।
- खाद्य संकट: जैव-ऊर्जा के लिए फसल उत्पादन में अधिक कृषि भूमि का उपयोग करने से खाद्य संकट पैदा हो सकता है।
- ऊर्जा की खपत: गीले बायोमास को कृषि भूमि से जैव-ऊर्जा उत्पादन स्थल तक परिवहन करने में अधिक ऊर्जा की खपत होगी और अधिक लागत आ सकती है।
अध्ययन के मुख्य बिंदु:
अध्ययन में अलग-अलग भूमि-उपयोग में बायोडायवर्सिटी इंटैक्टनेस इंडेक्स (BII) की गणना करने के लिए जैव विविधता संबंधी डेटा का उपयोग किया गया था।
बायोडायवर्सिटी इंटैक्टनेस इंडेक्स:
इस इंडेक्स के तहत किसी क्षेत्र में देशज स्थलीय प्रजातियों की औसत संख्या की उस क्षेत्र में स्पष्ट मानव गतिविधियों के प्रभाव से पहले की उनकी संख्या से तुलना की जाती है।
प्राकृतिक वनस्पति के अधिक विस्तार और उच्च BII वाले स्थानों पर ऊर्जा फसले लगाने से इंडेक्स में काफी कमी आएगी।
जैव-ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए भारत की पहल:
भारत ने जैव-ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं और कार्यक्रम शुरू किए हैं। इनमें मुख्य हैं:
राष्ट्रीय जैव-ऊर्जा कार्यक्रम:
यह केंद्रीय नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय का कार्यक्रम है। इसमें तीन उप-योजनाएं शामिल हैं:
- अपशिष्ट से ऊर्जा कार्यक्रम: यह शहरी, औद्योगिक और कृषि अपशिष्टों एवं अवशेषों से ऊर्जा उत्पादन पर केंद्रित है।
- बायोमास कार्यक्रम: इसके तहत बायोमास ब्रिकेट्स और पेलेट्स के निर्माण को समर्थन देने तथा उद्योगों में बायोमास के साथ-साथ उत्पादन को बढ़ावा देने की योजना है।
- बायोगैस कार्यक्रम: इसके तहत बायोगैस संयंत्रों की स्थापना की जा रही है।
ऊर्जा फसलों के फायदे:
- पर्यावरण संरक्षण: ऊर्जा फसलों के रोपण से परित्यक्त और निम्नीकृत भूमि का उपयोग किया जा सकता है, जिससे पर्यावरण संरक्षण में मदद मिलती है।
- जैव विविधता संरक्षण: जैव विविधता के क्षरण को कम करने में मदद मिलती है, जिससे प्राकृतिक वनस्पति का विस्तार होता है।
- नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत: ऊर्जा फसलों से प्राप्त बायोमास का उपयोग नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत के रूप में किया जा सकता है, जिससे जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम होती है।
- आर्थिक लाभ: ऊर्जा फसलों के उत्पादन से किसानों को आर्थिक लाभ प्राप्त हो सकता है और ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बढ़ सकते हैं।
निष्कर्ष:
यह अध्ययन बताता है कि परित्यक्त और निम्नीकृत कृषि भूमि में ऊर्जा फसलों का रोपण जैव विविधता के क्षरण को कम करने का एक प्रभावी उपाय हो सकता है। इस रणनीति के माध्यम से न केवल ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा दिया जा सकता है, बल्कि जैव विविधता की रक्षा भी की जा सकती है। भारत जैसे देश में, जहां कृषि भूमि सीमित है, इस प्रकार की योजनाएं और पहलें पर्यावरण संरक्षण और ऊर्जा सुरक्षा दोनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।
इस प्रकार, ऊर्जा फसलों का रोपण एक स्थायी और पर्यावरणीय दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण कदम है, जिससे भविष्य की पीढ़ियों को सुरक्षित और स्वच्छ पर्यावरण मिल सके।
FAQs:
ऊर्जा फसलें क्या हैं?
ऊर्जा फसलें (Energy Crops) वे विशेष प्रकार की फसलें हैं जिन्हें बायोमास के उत्पादन के उद्देश्य से उगाया जाता है। इस बायोमास को बाद में ऊर्जा उत्पादन में परिवर्तित किया जा सकता है। इनमें एनर्जी ग्रास, तिलहन फसलें, और लिग्नोसेल्यूलोजिक फसलें शामिल हैं।
जैव-ऊर्जा फसलें क्यों महत्वपूर्ण हैं?
जैव-ऊर्जा फसलें महत्वपूर्ण हैं क्योंकि ये नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत प्रदान करती हैं, जो जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करती हैं। ये फसलें परित्यक्त और निम्नीकृत भूमि का उपयोग करके पर्यावरण संरक्षण में भी योगदान देती हैं।
जैव-ऊर्जा फसलों के रोपण की चुनौतियां क्या हैं?
1. भूमि संसाधनों की सीमित उपलब्धता और उनके उपयोग को लेकर मतभेद।
2. जैव-ऊर्जा के लिए फसल उत्पादन में अधिक कृषि भूमि का उपयोग करने से खाद्य संकट।
3. गीले बायोमास को कृषि भूमि से जैव-ऊर्जा उत्पादन स्थल तक परिवहन करने में अधिक ऊर्जा और लागत।
बायोडायवर्सिटी इंटैक्टनेस इंडेक्स (BII) क्या है?
बायोडायवर्सिटी इंटैक्टनेस इंडेक्स (BII) एक मापदंड है जो किसी क्षेत्र में देशज स्थलीय प्रजातियों की औसत संख्या की तुलना उस क्षेत्र में स्पष्ट मानव गतिविधियों के प्रभाव से पहले की संख्या से करता है। यह जैव विविधता के स्तर को मापने में सहायक होता है।