Precision Farming: The Future of Crop Production; परिष्कृत कृषि: फसल उत्पादन का भविष्य:

भारत एक कृषि प्रधान देश है। जनसंख्या वृद्धि और शहरीकरण की चुनौतियों के बीच, किसानों को सीमित संसाधनों के साथ अधिक उपज पैदा करना और पर्यावरण के प्रति संवेदनशील रहना एक बड़ी जिम्मेदारी है। इसी पृष्ठभूमि में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के महानिदेशक, ने परिष्कृत कृषि (Precision farming) को फसल उत्पादन के भविष्य के रूप में जोर दिया है। उनका मानना है कि यह प्रगतिशील तकनीक खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के साथ-साथ संसाधनों के संरक्षण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। आइए, जानते हैं परिष्कृत खेती के बारे में – क्या है, इसके लाभ, चुनौतियां, और भारत में कैसे यह कृषि का भविष्य बदल सकती है।

परिष्कृत कृषि क्या है?

परिष्कृत कृषि एक अत्याधुनिक कृषि प्रणाली है जो फसलों की उपज को अनुकूलित करने और कृषि संसाधनों के कुशल उपयोग पर केंद्रित है। यह एक डेटा-चालित कृषि प्रबंधन प्रणाली है जिसमें अत्याधुनिक उपकरणों, सेंसर, और सूचना प्रौद्योगिकी की मदद से फसल प्रबंधन से जुड़े निर्णय लिए जाते हैं। इस प्रणाली में मिट्टी के प्रकार, आवश्यक पोषक तत्व, पानी की उपलब्धता, कीट-रोग, और बदलती मौसम की स्थिति जैसी जानकरियों का सटीक विश्लेषण शामिल होता है। उसके उपरांत, विशिष्ट फसल और खेत की आवश्यकताओं के आधार पर सबसे लाभकारी कृषि कार्यप्रणाली निर्धारित कर लागू की जाती है।

कैसे काम करती है परिष्कृत कृषि?:

  1. डेटा संग्रह: सेंसर, ड्रोन, उपग्रह (satellite), मौसम-आधारित मॉडल आदि के जरिये फसल की वृद्धि, मिट्टी की गुणवत्ता, नमी, तापमान, पोषक तत्वों की कमी, कीटों की उपस्थिति और अन्य जानकारी एकत्रित की जाती है।
  2. डेटा विश्लेषण: प्राप्त आंकड़ों का विश्लेषण कर फसल से संबंधित जानकारी प्राप्त की जाती है। ये आंकड़े फसल प्रबंधन से जुड़े सटीक फैसले लेने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  3. निर्णय और क्रियान्वयन: डेटा का उपयोग खेत के अलग-अलग हिस्सों के लिए अलग-अलग रणनीतियां लागू करने में किया जाता है। जैसे- सिंचाई, उर्वरक की सही मात्रा, कीटनाशकों का आवश्यकतानुसार उपयोग, कटाई का सही समय आदि का निर्धारण। इसके लिए अत्याधुनिक और स्वचालित कृषि यंत्र इस्तेमाल किये जाते हैं।

परिष्कृत कृषि के घटक

परिष्कृत कृषि के अंतर्गत विभिन्न तकनीकी घटक काम करते हैं, जिनमें प्रमुख शामिल हैं:

  • भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS): GIS उपग्रह और ड्रोन जैसी तकनीकों द्वारा संचालित होती है। यह विभिन्न फसलों, मृदा के प्रकारों, जल स्रोतों और कृषि क्षेत्र के आसपास के पर्यावरण से जुड़ा व्यापक स्थानिक डेटा एकत्र करती है।
  • सेंसर: मृदा सेंसर, पौधों पर लगे सेंसर, हवा और नमी सेंसर खेत में वास्तविक जानकारी (रियल टाइम डेटा) एकत्र करते हैं। यह डेटा मिट्टी की गुणवत्ता, पौधों के स्वास्थ्य, और फसलों की जरूरतों के बारे में विशिष्ट अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।
  • जीपीएस (GPS) तकनीक फसल प्रबंधन में अहम भूमिका निभाती है। यह उपकरणों को विशिष्ट स्थान निर्धारित करने और सटीकता के साथ कृषि गतिविधियों को अंजाम देने में मदद करती है।
  • रिमोट सेंसिंग कृत्रिम उपग्रहों या ड्रोनों के माध्यम से की जाती है और मौसम संबंधी जानकारी, जमीन एवं फसल के स्वास्थ्य की जानकारी तथा कीट एवं रोगों के प्रभाव का नियमित मूल्यांकन करने में महत्वपूर्ण है।
  • आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI): AI जटिल कृषि डेटा को व्यवस्थित और विश्लेषण करने में एक क्रांतिकारी भूमिका निभाती हैं, जिससे किसानों को फसल के बारे में उचित निर्णय लेने में सहायता मिलती है।

परिष्कृत कृषि के लाभ

  • उच्च उत्पादकता: परिष्कृत कृषि, फसलों की उपज को बढ़ाने में सहायक है। यह किसानों को इनपुट्स (बीज, उर्वरक, कीटनाशक, पानी आदि) के सही मात्रा में सही समय पर उपयोग के निर्णय लेने में समर्थ बनाती है। उदाहरण के लिए, सेंसर डेटा ये बता सकता है कि फसल के किस हिस्से को कब और किस मात्रा में पानी की आवश्यकता है।
  • संसाधन संरक्षण: यह खेत की जरूरत के अनुसार संसाधनों के कुशल उपयोग को सुनिश्चित करती है। इसके जरिए, किसान रसायनों का कम मात्रा में और सटीकता से उपयोग कर पाते हैं, जो संसाधनों की बचत के साथ पर्यावरण प्रदूषण को भी कम करता है।
  • कृषि लागत में कमी: किसान अधिक उत्पादकता हासिल करते हैं और संसाधनों के कुशल प्रयोग के कारण उनकी लागत में भी कमी आती है। जिससे, कृषि एक लाभदायक व्यवसाय बन पाता है।
  • पर्यावरण संरक्षण: यह कृषि पद्धति प्रदूषण को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के सीमित प्रयोग के साथ, पानी के अपशिष्ट में कमी आने से भूमिगत जल में इनके रिसाव की संभावना भी घट जाती है। यह मृदा संरक्षण का भी समर्थन करती है।
  • अनुकूलित कृषि: यह तकनीक किसानों को प्रत्येक फसल और खेत के लिए विशिष्ट कृषि विधियों का चयन करने में मार्गदर्शन करती है। इससे जोखिम कम होते हैं और सफलता की संभावना बढ़ती है।

भारत में परिष्कृत कृषि की चुनौतियां

  • लागत: परिष्कृत कृषि में शामिल तकनीकों को अपनाने में काफी लागत आती है, और छोटे और सीमांत किसानों के लिए प्रारंभिक निवेश करना बड़ी चुनौती बन जाता है।
  • जटिलता: ये तकनीकें अत्यधिक परिष्कृत हैं और इन्हें लागू करने के लिए तकनीकी ज्ञान और प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है।
  • डेटा गोपनीयता: किसानों में यह डर रहता है कि उनके फसल और खेतों का ब्यौरा, कंपनियों द्वारा एकत्र करने के बाद, उनका दुरुपयोग हो सकता है।
  • इंटरनेट कनेक्टिविटी: ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट कनेक्टिविटी का अभाव परिष्कृत कृषि को अपनाने के मार्ग में एक बड़ी बाधा है। पर्याप्त कनेक्टिविटी के अभाव में अनेक तकनीक कार्यान्वित ही नहीं हो सकती।

सरकार के प्रयास

कृषि को और लाभदायक बनाने और पर्यावरण को बचाने के लिए भारत सरकार परिष्कृत कृषि में विभिन्न तकनीकों को बढ़ावा देने के लिए कई पहल कर रही है:

  • डिजिटल कृषि मिशन 2021-2025: इसका उद्देश्य डिजिटल ढांचे को मजबूत करना है। इसके जरिए कृषि से जुड़े आकड़ों का संग्रह और उनका विश्लेषण आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जरिए किया जा रहा है, जिससे किसानों को बेहतर जानकारी और सेवाएं प्रदान की जा सकें।
  • राष्ट्रीय कृषि ई-गवर्नेंस योजना (NeGPA): इसका उद्देश्य आधुनिक तकनीकों के माध्यम से कृषि डेटा को एकत्रित करना, कृषि उत्पादों का ऑनलाइन विपणन करना और विभिन्न कृषि योजनाओं का एकीकृत क्रियान्वयन करना है।
  • एग्री-स्टैक: सरकार डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर एग्री-स्टैक का निर्माण कर रही है, जिसका लक्ष्य किसानों का डेटाबेस बनाना, कृषि अनुसंधान को समर्थन देना, और सप्लाई चेन को सुचारू बनाना है।

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