RBI raised concerns about the governance of Asset Reconstruction Companies (ARCs); RBI ने परिसंपत्ति पुनर्निर्माण (ARCs) कंपनियों की गवर्ननेंस पर उठाई चिंताएँ:

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने हाल ही में ‘गवर्ननेंस – प्रभावशाली समाधान की ओर’ नामक एक सम्मेलन का आयोजन किया। इस सम्मेलन में विशेष रूप से परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनियों (ARCs) के कार्यान्वयन और प्रबंधन में उठने वाली विभिन्न चिंताओं पर प्रकाश डाला गया। यह लेख उन्हीं चिंताओं और उपायों पर चर्चा करेगा जो RBI ने प्रस्तुत की हैं, जिससे कि ARCs की प्रभावशीलता और पारदर्शिता में सुधार किया जा सके।

ARCs का परिचय और महत्व

परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनियाँ, जिन्हें ARCs के नाम से जाना जाता है, वित्तीय प्रणाली में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। ये कंपनियां बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों से दबावग्रस्त परिसंपत्तियों को खरीदती हैं और उनका प्रबंधन करती हैं। इस प्रक्रिया के माध्यम से, ARCs इन परिसंपत्तियों का मूल्यांकन और पुनर्निर्माण करते हैं, जिससे वित्तीय संस्थानों की बैलेंस शीट में सुधार होता है। इससे न केवल वित्तीय संस्थानों की वित्तीय स्वास्थ्य में सुधार होता है बल्कि अर्थव्यवस्था की समग्र स्थिति में भी योगदान देता है।

ARCs की स्थापना और SARFAESI अधिनियम

ARCs की स्थापना SARFAESI (वित्तीय आस्तियों का प्रतिभूतिकरण और पुनर्गठन तथा प्रतिभूति हित का प्रवर्तन) अधिनियम, 2002 की धारा 3 के तहत की जाती है। यह अधिनियम ARCs को अधिक अधिकार और शक्तियाँ प्रदान करता है, जिससे वे दबावग्रस्त परिसंपत्तियों का तेजी से और कुशलतापूर्वक निपटान कर सकें।

समस्याएं और चुनौतियाँ:

आयोजित सम्मेलन में RBI ने जो मुख्य चिंताएँ उठाईं, वे निम्नलिखित हैं:

गोपनीयता और पुनः संचालन
एक गंभीर समस्या यह है कि कई मामलों में दिवालिया हो चुकी कंपनियों के मूल प्रमोटर्स को गोपनीय तरीके से फिर से उनकी कंपनियों को संचालित करने का अवसर मिल जाता है। यह प्रक्रिया पारदर्शिता की कमी को दर्शाती है और वित्तीय प्रणाली में विश्वास को कमजोर करती है।

लंबी निपटान प्रक्रिया
दबावग्रस्त परिसंपत्तियों के निपटान में लंबा समय लगना वित्तीय संस्थानों के लिए एक बड़ी चुनौती है। इससे संबंधित विलंब न केवल वित्तीय स्वास्थ्य को प्रभावित करता है बल्कि बैंकिंग सेक्टर पर भी दबाव बढ़ाता है। निपटान प्रक्रिया की जटिलता और देरी से वित्तीय संस्थान अधिक जोखिम में आ जाते हैं।

अपारदर्शी व्यवहार
ARCs के बीच पारदर्शिता की कमी और भेदभावपूर्ण आचरण से संबंधित मुद्दे भी चिंता का विषय हैं। ये प्रथाएं निवेशकों के विश्वास को कम करती हैं और वित्तीय स्थिरता के लिए जोखिम उत्पन्न करती हैं। निवेशकों के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे ARCs के कार्य-व्यवहारों में पारदर्शिता और निष्पक्षता देखें।

पुनरुत्थान और पुनर्निर्माण पर जोर
ARCs का ध्यान मुख्य रूप से दबावग्रस्त कंपनियों से बकाया ऋण की वसूली पर होता है। इसलिए वे ऐसी कंपनियों के पुनरुत्थान और पुनर्निर्माण पर जोर देती है। इससे कंपनियों के दीर्घकालिक विकास और स्थिरता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। ARCs को केवल ऋण वसूली पर ही नहीं, बल्कि कंपनियों के व्यावसायिक संचालन में सुधार को भी प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

सुधार के उपाय:

RBI ने ARCs के संचालन में सुधार के लिए निम्नलिखित उपाय सुझाए हैं:

उच्च गवर्ननेंस मानकों की स्थापना
ARCs को उच्च नैतिक मानकों और सत्यनिष्ठा के साथ काम करने की दिशा में प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। इसमें एक मजबूत संस्थागत कार्य-संस्कृति का विकास शामिल है, जिसमें प्रबंधन और कर्मचारियों दोनों को शामिल किया जाता है। उच्च गवर्ननेंस मानकों से ARCs की कार्यप्रणाली में सुधार होगा और निवेशकों का विश्वास बढ़ेगा।

फेयर प्रैक्टिस कोड का अनुपालन
सभी ARCs को RBI द्वारा लागू किए गए फेयर प्रैक्टिस कोड का सख्ती से पालन करना चाहिए, जिससे कि वे पारदर्शी और भेदभाव-रहित व्यवहार सुनिश्चित कर सकें। फेयर प्रैक्टिस कोड का पालन करने से ARCs की विश्वसनीयता और पारदर्शिता बढ़ेगी, जिससे निवेशकों और वित्तीय संस्थानों का विश्वास बढ़ेगा।

जोखिम प्रबंधन और नियम अनुपालन
जोखिम प्रबंधन, नियम अनुपालन और आंतरिक लेखा परीक्षा के कार्यों को अधिक महत्व देना चाहिए, ताकि वित्तीय जोखिमों को कम किया जा सके और विनियमन का पालन सुनिश्चित हो सके। यह सुनिश्चित करने के लिए कि ARCs प्रभावी ढंग से कार्य कर रही हैं, उन्हें नियमित रूप से आंतरिक और बाहरी ऑडिट से गुजरना चाहिए।

रेगुलेशन प्लस एप्रोच
इस दृष्टिकोण के तहत, ARCs को विनियमन का केवल शब्दशः नहीं, बल्कि उसकी भावना के अनुरूप भी पालन करना चाहिए, जिससे कि संपूर्ण वित्तीय पारदर्शिता और न्यायिकता सुनिश्चित हो सके। रेगुलेशन प्लस एप्रोच से ARCs की कार्यप्रणाली में सुधार होगा और वे अधिक प्रभावी ढंग से वित्तीय संस्थानों और निवेशकों की जरूरतों को पूरा कर सकेंगी।

निष्कर्ष:

यदि उपर्युक्त सुधारात्मक उपायों को कारगर रूप से लागू किया जाता है, तो यह न केवल ARCs के प्रदर्शन को बेहतर बनाएगा बल्कि भारतीय वित्तीय प्रणाली की समग्र स्थिरता में भी योगदान देगा। ये सुधार उपाय न केवल ARCs के लिए बल्कि सम्पूर्ण वित्तीय क्षेत्र के लिए मानकों को उच्च करने का प्रयास हैं, जिससे संबंधित सभी पक्षों के लिए लाभ होगा और वित्तीय संस्थानों को अधिक कुशलता और प्रभावशीलता के साथ अपने मुख्य कार्यों पर ध्यान केंद्रित करने में मदद मिलेगी।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनियों (ARCs) का मुख्य कार्य क्या है?

ARCs का मुख्य कार्य बैंकों और वित्तीय संस्थानों से दबावग्रस्त परिसंपत्तियों का अधिग्रहण और प्रबंधन करना है, जिससे इन संस्थानों की बैलेंस शीट में सुधार हो सके।

SARFAESI अधिनियम क्या है और यह ARCs के लिए क्यों महत्वपूर्ण है?

SARFAESI (वित्तीय आस्तियों का प्रतिभूतिकरण और पुनर्गठन तथा प्रतिभूति हित का प्रवर्तन) अधिनियम, 2002 की धारा 3 के तहत ARCs की स्थापना की जाती है, जो उन्हें दबावग्रस्त परिसंपत्तियों का तेजी से और कुशलतापूर्वक निपटान करने के अधिकार और शक्तियाँ प्रदान करता है।

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने ARCs की कार्य प्रणाली में कौन सी मुख्य चिंताएँ उठाईं हैं?

RBI ने गोपनीयता और पुनः संचालन, लंबी निपटान प्रक्रिया, अपारदर्शी व्यवहार, और पुनरुत्थान एवं पुनर्निर्माण पर जोर न देने से संबंधित चिंताएँ उठाईं हैं।

ARCs के संचालन में सुधार के लिए RBI ने क्या सुझाव दिए हैं?

RBI ने उच्च गवर्ननेंस मानकों की स्थापना, फेयर प्रैक्टिस कोड का अनुपालन, जोखिम प्रबंधन और नियम अनुपालन, और रेगुलेशन प्लस एप्रोच को अपनाने का सुझाव दिया है।

RBI द्वारा सुझाए गए ‘रेगुलेशन प्लस एप्रोच’ का क्या मतलब है?

‘रेगुलेशन प्लस एप्रोच’ का मतलब है कि ARCs को विनियमन का केवल शब्दशः नहीं, बल्कि उसकी भावना के अनुरूप भी पालन करना चाहिए, जिससे कि संपूर्ण वित्तीय पारदर्शिता और न्यायिकता सुनिश्चित हो सके।

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