RBI’s Strategic Plan: Internationalization of Indian Rupee (INR) in 2024-25; RBI की नई कार्य योजना: 2024-25 में भारतीय रुपये का अंतर्राष्ट्रीयकरण:

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने 2023-24 की वार्षिक रिपोर्ट में भारतीय रुपये के अंतर्राष्ट्रीयकरण को बढ़ावा देने हेतु एक विस्तृत कार्य योजना का अनावरण किया है। इस कार्य योजना का उद्देश्य भारतीय मुद्रा को वैश्विक स्तर पर अधिक प्रतिस्पर्धी और स्थिर बनाना है। इस लेख में हम इस योजना के मुख्य बिंदुओं, लाभों, चुनौतियों, और उठाए गए कदमों का विस्तृत विश्लेषण करेंगे।

Table Of Contents
  1. कार्य योजना के मुख्य बिंदु:
  2. रुपये का अंतर्राष्ट्रीयकरण:
  3. रुपये के अंतर्राष्ट्रीयकरण के लाभ:
  4. रुपये के अंतर्राष्ट्रीयकरण में चुनौतियाँ:
  5. रुपये के अंतर्राष्ट्रीयकरण के लिए उठाए गए कदम:
  6. स्पेशल नॉन रेसिडेंट रुपी (SNRR) खाता:
  7. स्पेशल रुपी वॉस्ट्रो अकाउंट (SRVA) खाता"
  8. भविष्य के दृष्टिकोण:
  9. प्रवासी भारतीय (PROI) क्या हैं?
  10. निष्कर्ष:
  11. FAQs:

कार्य योजना के मुख्य बिंदु:

RBI की इस कार्य योजना के तहत निम्नलिखित महत्वपूर्ण पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया गया है:

प्रवासी भारतीयों के लिए खाता खोलने की अनुमति:

    • इस पहल के तहत भारत के बाहर रहने वाले व्यक्तियों (PROI) को भारतीय रुपये में खाता खोलने की अनुमति दी जाएगी। यह पहल भारतीय प्रवासियों को भारतीय मुद्रा में बचत और निवेश करने की सुविधा प्रदान करेगी।

    PROI को भारतीय रुपये में ऋण देना:

      • भारतीय बैंकों को PROI को भारतीय रुपये में ऋण देने की सुविधा प्रदान की जाएगी। इससे भारतीय मुद्रा में व्यापार और निवेश को बढ़ावा मिलेगा।

      प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और पोर्टफोलियो निवेश:

        • स्पेशल नॉन रेसिडेंट रुपी (SNRR) और स्पेशल रुपी वॉस्ट्रो अकाउंट (SRVA) के माध्यम से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) और पोर्टफोलियो निवेश को सक्षम बनाया जाएगा। इससे विदेशी निवेशकों के लिए भारतीय मुद्रा में निवेश करना आसान होगा।

        रुपये का अंतर्राष्ट्रीयकरण:

        रुपये का अंतर्राष्ट्रीयकरण एक प्रक्रिया है जिसमें सीमा पार लेन-देन में भारत की स्थानीय मुद्रा का उपयोग बढ़ावा दिया जाता है। भारतीय रुपये को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा के रूप में स्वीकार किए जाने के लिए निम्नलिखित आवश्यकताएं पूरी होनी चाहिए:

        • अंतर्राष्ट्रीय लेन-देन में व्यापक उपयोग: रुपये का अंतर्राष्ट्रीय लेन-देन में व्यापक रूप से उपयोग होना चाहिए।
        • आसानी से परिवर्तनीय: रुपये को आसानी से परिवर्तनीय होना चाहिए।
        • स्थिर वित्तीय बाजार: देश में एक स्थिर वित्तीय बाजार होना चाहिए।

        रुपये के अंतर्राष्ट्रीयकरण के लाभ:

        रुपये के अंतर्राष्ट्रीयकरण से निम्नलिखित लाभ प्राप्त हो सकते हैं:

        • डॉलर की मांग में कमी: इससे भारत में डॉलर की मांग कम होगी और भारतीय रुपये को मजबूती मिलेगी। विदेशी मुद्रा भंडार पर निर्भरता कम होगी।
        • व्यवसाय की लागत में कमी: व्यापार करने की लागत कम होगी और भारतीय व्यापारियों की प्रतिस्पर्धात्मकता में सुधार होगा।
        • विदेशी मुद्रा भंडार की आवश्यकता में कमी: भुगतान संतुलन को स्थिर रखने के लिए अपेक्षाकृत कम विदेशी मुद्रा भंडार की आवश्यकता होगी।
        • बाहरी आघातों से सुरक्षा: बाहरी आघातों या संकटों के प्रति रुपये की अस्थिरता कम हो जाएगी।

        रुपये के अंतर्राष्ट्रीयकरण में चुनौतियाँ:

        रुपये के अंतर्राष्ट्रीयकरण में कई चुनौतियाँ भी हैं, जिनमें मुख्य रूप से निम्नलिखित शामिल हैं:

        • पूरी तरह से परिवर्तनीय नहीं: भारतीय रुपया पूरी तरह से परिवर्तनीय नहीं है, जो अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा के रूप में स्वीकार किए जाने में एक बड़ी चुनौती है।
        • ट्रिफिन दुविधा: ट्रिफिन दुविधा की स्थिति उत्पन्न हो सकती है, जिसका अर्थ है कि वैश्विक मांग को पूरा करने के लिए अपनी अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा की आपूर्ति करने हेतु देश का दायित्व उसकी घरेलू मौद्रिक नीतियों के साथ टकराव पैदा कर सकता है।
        • वित्तीय बाजारों का एकीकरण: वित्तीय बाजारों का एकीकरण व्यापक आर्थिक स्थिरता को प्रभावित कर सकता है। इसके अलावा, भारत की वर्तमान वित्तीय संरचना और नियमों में बदलाव की आवश्यकता हो सकती है।

        रुपये के अंतर्राष्ट्रीयकरण के लिए उठाए गए कदम:

        RBI ने रुपये के अंतर्राष्ट्रीयकरण को बढ़ावा देने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं:

        1. भारतीय भुगतान अवसंरचना का उपयोग: सिंगापुर, मलेशिया जैसे देशों में भारतीय भुगतान अवसंरचना का उपयोग किया जा रहा है। इससे भारतीय मुद्रा का उपयोग बढ़ेगा और भारतीय वित्तीय प्रणाली का विस्तार होगा।
        2. द्विपक्षीय करेंसी स्वैप समझौते: जापान, श्रीलंका, भूटान जैसे देशों के साथ द्विपक्षीय करेंसी स्वैप (मुद्रा विनिमय) समझौते किए गए हैं। यह समझौते विदेशी मुद्रा भंडार को स्थिर रखने और व्यापार को सुगम बनाने में मदद करेंगे।
        3. रुपया-मूल्यवर्ग के बॉन्ड्स (मसाला बॉन्ड्स): रुपये में मूल्यवर्ग के बॉन्ड्स जारी किए गए हैं, जिन्हें मसाला बॉन्ड्स कहा जाता है। ये बॉन्ड्स विदेशी निवेशकों को भारतीय मुद्रा में निवेश करने की सुविधा प्रदान करते हैं।

        स्पेशल नॉन रेसिडेंट रुपी (SNRR) खाता:

        SNRR खाता उन विदेशी व्यक्तियों के लिए है जो भारत में व्यावसायिक हित रखते हैं। ये खाते निम्नलिखित उद्देश्यों के लिए खोले जा सकते हैं:

        • व्यापारिक लेन-देन
        • विदेशी निवेश
        • बाह्य वाणिज्यिक ऋण (ECB) आदि।

        स्पेशल रुपी वॉस्ट्रो अकाउंट (SRVA) खाता”

        वॉस्ट्रो खाते घरेलू बैंकों में विदेशी बैंकों द्वारा खोले जाते हैं। SRVA मौजूदा वॉस्ट्रो प्रणाली में एक अतिरिक्त व्यवस्था है। ये खाते मुक्त रूप से परिवर्तनीय मुद्राओं का उपयोग करते हैं और एक पूरक प्रणाली के रूप में कार्य करते हैं। SRVA खोलने के लिए RBI की पूर्व मंजूरी आवश्यक है।

        भविष्य के दृष्टिकोण:

        RBI की इस रणनीतिक कार्य योजना का उद्देश्य न केवल भारतीय रुपये को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाना है, बल्कि इसे वैश्विक वित्तीय बाजारों में एक स्थिर और विश्वसनीय मुद्रा के रूप में स्थापित करना भी है। इसके लिए भारतीय वित्तीय प्रणाली को अधिक पारदर्शी और मजबूत बनाने की दिशा में भी कदम उठाए जा रहे हैं।

        प्रवासी भारतीय (PROI) क्या हैं?

        प्रवासी भारतीय (Person Resident Outside India – PROI): वे भारतीय नागरिक होते हैं जो भारत के बाहर किसी अन्य देश में रहते हैं। इसका मतलब है कि वे लंबे समय से या स्थायी रूप से भारत के बाहर निवास कर रहे हैं। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने PROI को ध्यान में रखते हुए कुछ विशेष नीतियाँ और सुविधाएँ प्रदान की हैं ताकि वे भारतीय मुद्रा (रुपये) में निवेश और व्यापार कर सकें।

        निष्कर्ष:

        इस योजना के तहत उठाए गए कदम, जैसे कि भारतीय भुगतान अवसंरचना का उपयोग, द्विपक्षीय करेंसी स्वैप समझौते, और मसाला बॉन्ड्स जारी करना, सभी महत्वपूर्ण पहलू हैं जो भारतीय रुपये को वैश्विक वित्तीय बाजारों में स्थापित करने में मदद करेंगे। इसके अलावा, SNRR और SRVA खातों की स्थापना से विदेशी निवेशकों को भारतीय मुद्रा में निवेश करने की सुविधा मिलेगी, जिससे भारतीय वित्तीय प्रणाली को मजबूती मिलेगी।

        इस योजना के सफल कार्यान्वयन से भारत को वैश्विक अर्थव्यवस्था में अपनी स्थिति मजबूत करने में मदद मिलेगी और भारतीय रुपये को एक स्थिर और विश्वसनीय अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा के रूप में स्थापित किया जा सकेगा।

        इस प्रकार, भारतीय रिजर्व बैंक की यह कार्य योजना भारतीय मुद्रा के अंतर्राष्ट्रीयकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो भारतीय अर्थव्यवस्था को नई ऊंचाइयों पर ले जाने में सहायक सिद्ध होगी।

        FAQs:

        भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की अंतर्राष्ट्रीयकरण योजना क्या है?

        RBI की अंतर्राष्ट्रीयकरण योजना भारतीय रुपये को वैश्विक मुद्रा के रूप में स्थापित करने के लिए एक विस्तृत कार्य योजना है, जिसका उद्देश्य भारतीय मुद्रा को अधिक प्रतिस्पर्धी और स्थिर बनाना है। भारतीय भुगतान अवसंरचना का उपयोग, द्विपक्षीय करेंसी स्वैप समझौते, और मसाला बॉन्ड्स जारी करना प्रमुख कदम हैं जो रुपये के अंतर्राष्ट्रीयकरण को बढ़ावा देते हैं।

        प्रवासी भारतीयों (PROI) के लिए खाता खोलने की अनुमति क्यों दी जा रही है?

        PROI को भारतीय रुपये में खाता खोलने की अनुमति देने से भारतीय प्रवासियों को भारतीय मुद्रा में बचत और निवेश करने की सुविधा मिलेगी, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था को समर्थन मिलेगा।

        PROI को भारतीय रुपये में ऋण देने का क्या महत्व है?

        भारतीय बैंकों द्वारा PROI को भारतीय रुपये में ऋण देने से भारतीय मुद्रा में व्यापार और निवेश को बढ़ावा मिलेगा, जिससे भारतीय मुद्रा की मांग बढ़ेगी।

        स्पेशल नॉन रेसिडेंट रुपी (SNRR) और स्पेशल रुपी वॉस्ट्रो अकाउंट (SRVA) क्या हैं?

        SNRR खाता उन विदेशी व्यक्तियों के लिए है जो भारत में व्यावसायिक हित रखते हैं, जबकि SRVA खाते विदेशी बैंकों द्वारा घरेलू बैंकों में खोले जाते हैं और इन खातों के माध्यम से विदेशी निवेश को प्रोत्साहित किया जाता है।

        रुपये के अंतर्राष्ट्रीयकरण के क्या लाभ हैं?

        रुपये के अंतर्राष्ट्रीयकरण से डॉलर की मांग में कमी, व्यापार करने की लागत में कमी, विदेशी मुद्रा भंडार की आवश्यकता में कमी, और बाहरी आघातों से सुरक्षा मिल सकती है।

        रुपये के अंतर्राष्ट्रीयकरण में कौन-कौन सी चुनौतियाँ हैं?

        मुख्य चुनौतियाँ पूरी तरह से परिवर्तनीय नहीं होना, ट्रिफिन दुविधा, और वित्तीय बाजारों का एकीकरण हैं।

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