हाल ही में ‘नेचर क्लाइमेट चेंज’ जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल ओजोन-क्षयकारी पदार्थों (ODSs) के उत्सर्जन को कम करने में बेहद कारगर सिद्ध हुआ है। इस प्रोटोकॉल ने वैश्विक स्तर पर ओजोन परत को बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस लेख में हम इस अध्ययन के मुख्य बिंदुओं, मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के महत्व और ओजोन-क्षयकारी पदार्थों के प्रभाव के बारे में विस्तार से जानेंगे।
अध्ययन के मुख्य बिंदु:
हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन (HCFCs) के रूप में ज्ञात ओजोन-क्षयकारी पदार्थों (ODS) की वायुमंडलीय सांद्रता में पहली बार महत्वपूर्ण कमी दर्ज की गई है। यह एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है क्योंकि HCFCs ओजोन परत के क्षय का मुख्य कारण माने जाते हैं।
2021 से पृथ्वी के ऊर्जा संतुलन पर हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन (HCFCs) का प्रभाव कम होने लगा है। साथ ही, क्षोभमंडल में ओजोन-क्षयकारी पदार्थों (ODS) में से क्लोरीन की वैश्विक औसत मात्रा कम होने लगी है। यह लक्ष्य 2026 से पांच वर्ष पहले प्राप्त की जा चुकी उपलब्धि है, जो मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल की सफलता का प्रतीक है।
HCFCs कार्बन, हाइड्रोजन, क्लोरीन और फ्लोरीन युक्त यौगिक हैं। इनमें से सबसे प्रचुर मात्रा में पाया जाने वाला HCFC-22 है, जिसमें उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की गई है। इसकी ग्लोबल वार्मिंग क्षमता (GWP) कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) से हज़ारों गुना अधिक है। HCFC-22 का उपयोग एयर कंडीशनर, कोल्ड स्टोरेज, रिटेल फूड रेफ्रीजरेशन आदि में रेफ्रिजरेंट के रूप में किया जाता है।
दूसरे नंबर पर सबसे प्रचुर मात्रा में पाए जाने वाले HCFC अर्थात् HCFC-141b में मामूली गिरावट दर्ज की गई है। HCFC-141b का कठोर पॉलीयुरेथेन फोम के उत्पादन में ब्लोइंग एजेंट के रूप में उपयोग किया जाता है। भारत ने HCFC-141b के उपयोग को पूरी तरह से समाप्त कर दिया है। गौरतलब है कि भारत में HCFC-141b का उत्पादन नहीं होता था, बल्कि इसे आयात किया जाता था। ओजोन-क्षयकारी पदार्थ (विनियमन और नियंत्रण) संशोधन नियम, 2019 के तहत 1 जनवरी, 2020 से इसके आयात पर प्रतिबंध लगा दिया था। ये नियम पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के अंतर्गत जारी किए गए हैं। यह ओजोन परत को नष्ट करने वाले पदार्थों के लिए मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के प्रति भारत की प्रतिबद्धता के अनुरूप है।
मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल:
मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल पर 1987 में हस्ताक्षर किए गए थे। यह ओजोन-क्षयकारी पदार्थों (ODSs) के उत्पादन और उपयोग को समाप्त करने के लिए एक वैश्विक संधि है। इसे वियना कन्वेंशन के तहत लागू किया गया था। इस कन्वेंशन को 1985 में अपनाया गया था। मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल ने ओजोन परत की सुरक्षा और ओजोन-क्षयकारी पदार्थों के उत्सर्जन में कमी लाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (HFCs) के उत्पादन और उपयोग को चरणबद्ध तरीके से कम करने के लिए मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल में 2016 में किगाली संशोधन किया गया था। किगाली संशोधन 2019 में लागू किया गया था। हाइड्रोफ्लोरोकार्बन, क्लोरोफ्लोरोकार्बन और HCFC के गैर-ODS विकल्प हैं। हालांकि, HFC की ग्लोबल वार्मिंग क्षमता CO2 से हज़ारों गुना अधिक है, इसलिए इन्हें भी नियंत्रित करने की आवश्यकता है।
ओजोन-क्षयकारी पदार्थ (ODSs):
ओजोन-क्षयकारी पदार्थ (ODSs) मानव निर्मित रसायन हैं। इनमें क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFC) व हाइड्रो क्लोरोफ्लोरोकार्बन (HCFC) जैसे क्लोरीन और ब्रोमीन होते हैं। ये पदार्थ समतापमंडल तक पहुंच सकते हैं, जहां ये उत्प्रेरक अभिक्रियाओं को शुरू कर सकते हैं। इससे आगे चलकर ओजोन परत का क्षय होने लगता है।
समतापमंडलीय ओजोन (गुड ओजोन) पृथ्वी की सतह से 10-40 किमी ऊपर पाई जाती है। यह ओजोन पृथ्वी को सूर्य की पराबैंगनी विकिरण से बचाती है। क्षोभमंडल में बनने वाली ओजोन हानिकारक होती है और इसे ‘बैड ओजोन’ कहा जाता है।
किगाली संशोधन:
किगाली संशोधन मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल का एक महत्वपूर्ण संशोधन है, जिसका उद्देश्य हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (HFCs) के उत्पादन और उपयोग को चरणबद्ध तरीके से कम करना है। यह संशोधन 15 अक्टूबर 2016 को रवांडा की राजधानी किगाली में संपन्न एक बैठक के दौरान अपनाया गया था और 1 जनवरी 2019 से प्रभावी हुआ।
मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के किगाली संशोधन ने हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (HFCs) के उपयोग को चरणबद्ध तरीके से कम करने का मार्ग प्रशस्त किया है। HFCs भले ही ओजोन परत के लिए हानिकारक नहीं हैं, लेकिन उनकी ग्लोबल वार्मिंग क्षमता बहुत अधिक है। किगाली संशोधन के तहत, देशों को HFCs के उपयोग को धीरे-धीरे कम करना है और इसके स्थान पर अधिक पर्यावरण अनुकूल विकल्पों का उपयोग करना है।
जन जागरूकता:
मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल की सफलता के पीछे एक महत्वपूर्ण कारण जन जागरूकता भी है। लोगों को ओजोन परत की महत्वता और उसे बचाने के लिए किए जा रहे प्रयासों के बारे में जागरूक करना आवश्यक है। सरकारों और गैर-सरकारी संगठनों द्वारा चलाए जा रहे जागरूकता अभियानों ने इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
ओजोन परत और मानव स्वास्थ्य:
ओजोन परत का संरक्षण न केवल पर्यावरण के लिए बल्कि मानव स्वास्थ्य के लिए भी महत्वपूर्ण है। ओजोन परत की क्षति से त्वचा कैंसर, मोतियाबिंद और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है। मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल ने इन स्वास्थ्य जोखिमों को कम करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
निष्कर्ष:
मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल ने ओजोन परत की सुरक्षा और ओजोन-क्षयकारी पदार्थों के उत्सर्जन में कमी लाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह अध्ययन इस बात की पुष्टि करता है कि इस प्रोटोकॉल के तहत की गई कार्रवाईओं का सकारात्मक प्रभाव दिखाई दे रहा है। भविष्य में भी इस प्रकार के अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और प्रतिबद्धता की आवश्यकता होगी ताकि हमारी पृथ्वी की ओजोन परत और पर्यावरण को सुरक्षित रखा जा सके। मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल ने यह सिद्ध कर दिया है कि वैश्विक स्तर पर संयुक्त प्रयासों के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति की जा सकती है। हमें इस दिशा में आगे भी प्रयास करते रहना होगा ताकि हम आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सुरक्षित और स्वस्थ पर्यावरण सुनिश्चित कर सकें।
FAQs:
मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल क्या है?
मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है, जिसे 1987 में हस्ताक्षरित किया गया था। इसका उद्देश्य ओजोन-क्षयकारी पदार्थों (ODSs) के उत्पादन और उपयोग को नियंत्रित करना और समाप्त करना है।
ओजोन-क्षयकारी पदार्थ (ODSs) क्या हैं?
ओजोन-क्षयकारी पदार्थ (ODSs) वे रासायनिक यौगिक हैं जो ओजोन परत को नुकसान पहुंचाते हैं। इनमें क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFCs), हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन (HCFCs) और अन्य शामिल हैं।
किगाली संशोधन क्या है?
किगाली संशोधन मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल का एक महत्वपूर्ण संशोधन है, जिसका उद्देश्य हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (HFCs) के उत्पादन और उपयोग को चरणबद्ध तरीके से कम करना है। यह संशोधन 15 अक्टूबर 2016 को रवांडा की राजधानी किगाली में संपन्न एक बैठक के दौरान अपनाया गया था और 1 जनवरी 2019 से प्रभावी हुआ।
भारत ने मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के तहत क्या कदम उठाए हैं?
भारत ने ओजोन-क्षयकारी पदार्थों के उपयोग को नियंत्रित करने और समाप्त करने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं, जैसे कि HCFC-141b के आयात पर प्रतिबंध लगाना और ओजोन-क्षयकारी पदार्थ (विनियमन और नियंत्रण) संशोधन नियम, 2019 को लागू करना।