Russia-China Relations: The Historic Meeting of Presidents Putin and Xi Jinping; रूस-चीन संबंध: राष्ट्रपति पुतिन और शी जिनपिंग की ऐतिहासिक भेंट:

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच हाल ही में एक महत्वपूर्ण भेंट हुई। इस भेंट का उद्देश्य दोनों देशों के बीच संबंधों को और अधिक मजबूत बनाना था। चीन और रूस ने “नए युग के लिए समन्वय की व्यापक रणनीतिक साझेदारी” को मजबूत बनाने पर सहमति जताई है। यह बैठक इस वर्ष विशेष रूप से महत्वपूर्ण हो गई है क्योंकि चीन-रूस राजनयिक संबंधों की स्थापना के 75 वर्ष पूरे हो गए हैं। आइए विस्तार से समझते हैं कि यह संबंध कैसे विभिन्न क्षेत्रों में मजबूत हो रहे हैं।

चीन-रूस संबंध: राजनीति, रणनीति और आर्थिक क्षेत्र में

  1. राजनीतिक संबंध: रूस और चीन ने रूस-यूक्रेन युद्ध से पहले “नो लिमिट्स” रणनीतिक साझेदारी पर हस्ताक्षर किए थे। इस साझेदारी का मतलब है कि दोनों देश एक-दूसरे का समर्थन करने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध हैं, चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी हों। यह साझेदारी दोनों देशों को वैश्विक मंच पर मजबूत बनाती है और उन्हें एक दूसरे के हितों की रक्षा करने में सक्षम बनाती है।
  2. रणनीतिक संबंध: रणनीतिक स्तर पर, चीन रूस के लिए “दोहरे उपयोग वाली” वस्तुओं का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है। दोहरे उपयोग वाली वस्तुएं वे होती हैं जिनका उपयोग सैन्य और असैन्य दोनों उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है। इन वस्तुओं में उच्च तकनीकी उपकरण, इलेक्ट्रॉनिक्स, और अन्य सामग्री शामिल होती हैं जो दोनों देशों की सैन्य क्षमताओं को बढ़ाने में मदद करती हैं।
  3. आर्थिक संबंध: आर्थिक क्षेत्र में, चीन, रूस का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बन गया है। 2023 में दोनों देशों के बीच 240 बिलियन डॉलर से अधिक का द्विपक्षीय व्यापार हुआ था। यह आर्थिक संबंध न केवल दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं को मजबूती प्रदान करता है, बल्कि उनके लोगों के लिए भी रोजगार और विकास के नए अवसर पैदा करता है।

चीन और रूस को एकजुट करने वाले कारक:

  1. अमेरिका का विरोध: दोनों देश मानते हैं कि संयुक्त राज्य अमेरिका विश्व में अपना आधिपत्य जमाना चाहता है। अमेरिका की इस नीति का विरोध करने के लिए रूस और चीन एकजुट हो रहे हैं। उनका मानना है कि वैश्विक शक्ति संतुलन में बदलाव लाने के लिए एक साथ काम करना जरूरी है।
  2. नाटो का विस्तार: दोनों देश नाटो के विस्तार से चिंतित हैं। नाटो का विस्तार उनके लिए सुरक्षा खतरे के रूप में देखा जाता है। इसलिए, वे मिलकर नाटो के प्रभाव को कम करने के लिए काम कर रहे हैं।
  3. वैकल्पिक एप्रोच: दोनों देशों के पास अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव का उपयोग करने का वैकल्पिक एप्रोच है। वे साझा हितों को संयुक्त रूप से प्रबंधित करने में सक्षम हैं। उनका यह दृष्टिकोण उन्हें वैश्विक मंच पर एक मजबूत स्थान देता है और उनके राष्ट्रीय हितों की रक्षा करता है।

चीन-रूस संबंधों का भारत पर प्रभाव:

  1. सुरक्षा संबंधी चिंताएं: भारत रक्षा क्षेत्र में अधिकतर हथियार और उपकरण रूस से आयात करता है। चीन के साथ भारत के टकराव के दौरान इन सामग्रियों की आपूर्ति में व्यवधान से जुड़ी चिंताएं उत्पन्न होती रही हैं। अगर रूस और चीन के बीच संबंध और मजबूत होते हैं, तो भारत के लिए यह चिंता और बढ़ सकती है।
  2. रूस के समर्थन में कमी: चीन पर रूस की निर्भरता बढ़ती जा रही है। ऐसे में भारत के साथ सीमा संघर्ष की स्थिति में रूस द्वारा चीन पर दबाव डालने की संभावना कम हो जाती है। यह स्थिति भारत के लिए कूटनीतिक चुनौतियाँ पेश कर सकती है।
  3. भारत का पड़ोस: चीन और रूस के आपस में अधिक नजदीक आने से क्षेत्रीय शक्ति संतुलन में परिवर्तन आ सकता है। इससे संभावित रूप से इस क्षेत्र में भारत का प्रभाव सीमित हो सकता है। यह स्थिति भारत के लिए रणनीतिक चुनौतियाँ पैदा कर सकती है।
  4. रणनीतिक प्राथमिकताएं बदलना: चीन-रूस गठबंधन वास्तव में संयुक्त राज्य अमेरिका और पश्चिमी देशों को केंद्र में रखकर आगे बढ़ रहा है। यह हिंद-प्रशांत और यूरेशिया में भारत के भू-राजनीतिक हितों पर प्रभाव डालता है। इससे भारत को अपनी रणनीतिक प्राथमिकताएं पुनः निर्धारित करनी पड़ सकती हैं।

चीन-रूस संबंधों का विश्व में प्रभाव:

चीन और रूस के मजबूत होते गठबंधन ने नाटो के विस्तार का मार्ग प्रशस्त किया है। साथ ही, संयुक्त राज्य अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी एकजुटता को बढ़ावा मिला है। इससे भू-राजनीतिक व्यवस्था में नए समीकरण बन रहे हैं। पश्चिमी देशों ने दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों को अपना सैन्य समर्थन बढ़ा दिया है। साथ ही, भारत भी संयुक्त राज्य अमेरिका के नेतृत्व वाले सुरक्षा मंचों में शामिल हो रहा है।

यह घटनाक्रम वैश्विक राजनीति में बदलते संतुलन और शक्ति के नए केंद्रों को दर्शाता है। इससे संघर्षों को रोकने में बहुपक्षीय सुरक्षा प्रणाली की विफलता भी रेखांकित होती है। यह देखना बाकी है कि आने वाले समय में यह गठबंधन विश्व राजनीति पर कैसा प्रभाव डालेगा।

निष्कर्ष:

रूस और चीन के बीच बढ़ते संबंध वैश्विक राजनीति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और शी जिनपिंग की हालिया भेंट ने राजनीति, रणनीति और आर्थिक क्षेत्रों में उनकी साझेदारी को और मजबूत किया है। इस गठबंधन ने न केवल अमेरिका और नाटो के प्रभाव का सामना करने की उनकी क्षमता को दर्शाया है, बल्कि वैश्विक संतुलन में बदलाव लाने की उनकी इच्छा को भी प्रकट किया है।

चीन-रूस संबंधों का भारत पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है, विशेष रूप से सुरक्षा और कूटनीति के क्षेत्रों में। यह गठबंधन नाटो के विस्तार और पश्चिमी देशों की एकजुटता को नई दिशा दे रहा है, जिससे वैश्विक भू-राजनीतिक समीकरण बदल रहे हैं।

भारत और अन्य वैश्विक शक्तियों को इस बदलते परिदृश्य में अपनी रणनीतियाँ पुनः समायोजित करने की आवश्यकता होगी। अंततः, रूस और चीन का यह मजबूत होता गठबंधन वैश्विक संतुलन को नई दिशा में ले जाने की क्षमता रखता है, और इस पर नजर बनाए रखना आवश्यक है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

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