Scientists Release Historic White Paper on Glacial Geoengineering; वैज्ञानिकों ने जारी किया ग्लेशियल जियोइंजीनियरिंग पर ऐतिहासिक श्वेत-पत्र:

हाल ही में वैज्ञानिकों के एक समूह ने ग्लेशियल जियोइंजीनियरिंग पर एक ऐतिहासिक श्वेत-पत्र जारी किया है। ग्लेशियल जियोइंजीनियरिंग वास्तव में ग्लेशियर यानी हिमानी के आस-पास की जलवायु प्रणाली में कृत्रिम संशोधन है। यह संशोधन आइस शेल्फ के पिघलने की गति को धीमा करने और समुद्री जल स्तर में वृद्धि को कम करने के लिए किया जाता है। इस श्वेत-पत्र में विभिन्न रणनीतियों का प्रस्ताव किया गया है जो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में महत्वपूर्ण हो सकती हैं।

प्रस्तावित ग्लेशियल जियोइंजीनियरिंग रणनीतियां:

1. महासागरीय ऊष्मा परिवहन उपाय:
इस रणनीति के तहत आइस शेल्फ के सामने समुद्र नितल (सीबेड) पर अवरोधक के रूप में तलछट से युक्त पट्टी या रेशेदार आवरण बनाया जाता है। यह अवरोधक गर्म परिध्रुवीय गहरे जल को आइस शेल्फ के पास आने से रोकने के लिए बनाया जाता है, ताकि आइस शेल्फ को गर्म जल के संपर्क में आने से रोका जा सके। इस प्रक्रिया से आइस शेल्फ की स्थिरता बढ़ाई जा सकती है और समुद्री जल स्तर में वृद्धि को रोका जा सकता है।

2. बेसल-हाइड्रॉलॉजी उपाय:
यह रणनीति आइस-शीट्स से पिघले जल को ले जाने वाली धाराओं के प्रवाह को धीमा करने के लिए अपनाई जाती है। इस उपाय के तहत ग्लेशियर नितल से होकर छिद्र बनाकर जल निकासी चैनल बनाए जाते हैं। ये चैनल पिघली हुई बर्फ के जल की धाराओं की दिशा बदल देते हैं और आइस शीट्स के नुकसान को कम कर देते हैं। यह प्रक्रिया ग्लेशियर के पिघलने की गति को धीमा करने में सहायक होती है।

जियोइंजीनियरिंग के बारे में:

जियोइंजीनियरिंग पृथ्वी की जलवायु प्रणालियों में कृत्रिम रूप से और बड़े पैमाने पर संशोधन करने की प्रक्रिया है। यह प्रक्रिया मानव की गतिविधियों से वैश्विक तापमान में वृद्धि को रोकने के लिए अपनाई जाती है। जियोइंजीनियरिंग का उद्देश्य जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों को कम करना और पर्यावरण को स्थिर बनाना है।

जियोइंजीनियरिंग की श्रेणियां:

1. सोलर जियोइंजीनियरिंग/ सौर विकिरण प्रबंधन (SRM):
इसका उद्देश्य पृथ्वी की सतह पर सूर्य से आने वाले विकिरण की मात्रा और वैश्विक औसत तापमान को कम करना है। इसमें एरोसोल इंजेक्शन, मरीन क्लाउड ब्राइटनिंग, एल्बिडो सुधार, ओशन मिरर जैसी तकनीकें अपनाई जाती हैं। यह तकनीकें पृथ्वी की सतह पर पहुंचने वाले सौर विकिरण को कम करके तापमान को नियंत्रित करती हैं।

2. कार्बन जियोइंजीनियरिंग/ कार्बन डाइऑक्साइड हटाना (CDR):
इसका उद्देश्य वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) को हटाकर वायुमंडल में इसकी मात्रा को कम करना है। इसके लिए कार्बन कैप्चर और स्टोरेज, महासागरीय क्षारीयता में वृद्धि, महासागरीय जल की उर्वरता बढ़ाने जैसे उपाय किए जाते हैं। इन उपायों से वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा को कम करके ग्लोबल वार्मिंग को नियंत्रित किया जा सकता है।

जियोइंजीनियरिंग का महत्त्व:

1. डीकार्बोनाइजेशन प्रयासों में सहायक:
यह तकनीक डीकार्बोनाइजेशन प्रयासों में सहायक हो सकती है तथा ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों को कम करने में मदद कर सकती है। जियोइंजीनियरिंग के माध्यम से हम वैश्विक तापमान को नियंत्रित कर सकते हैं और जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों को कम कर सकते हैं।

2. ग्लेशियरों का संरक्षण:
ग्लेशियरों के पिघलने और समुद्री जलस्तर में वृद्धि को रोका जा सकता है। यह तकनीक आइस शेल्फ को स्थिर बनाए रखने में मदद करती है, जिससे समुद्री जल स्तर में वृद्धि को नियंत्रित किया जा सकता है।

3. जलवायु परिवर्तन से सुरक्षा:
जलवायु परिवर्तन जनित चरम आपदाओं की घटनाओं को घटित होने से रोका जा सकता है तथा आजीविका की रक्षा की जा सकती है। जियोइंजीनियरिंग के माध्यम से हम प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति और उनकी तीव्रता को कम कर सकते हैं।

जियोइंजीनियरिंग से जुड़ी मुख्य चिंताएं:

1. उच्च लागत:
इस तकनीक को अपनाने की लागत काफी अधिक है, पर इसके प्रभाव बहुत सीमित हैं। जियोइंजीनियरिंग परियोजनाओं के लिए बड़ी मात्रा में धन की आवश्यकता होती है, जो इसे आर्थिक रूप से चुनौतीपूर्ण बनाता है।

2. पारिस्थितिकी-तंत्र में व्यवधान:
पारिस्थितिकी-तंत्र में बड़ा व्यवधान उत्पन्न हो सकता है और इससे टर्मिनेशन शॉक भी हो सकता है। प्रौद्योगिकी के उपयोग को कुछ अवधि के लिए रोकने के बाद वैश्विक तापमान में तेजी से वृद्धि होने को टर्मिनेशन शॉक कहा जाता है। इससे पारिस्थितिकी-तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

3. चरम घटनाओं का खतरा:
इससे चरम घटनाएं और अम्लीय वर्षा बढ़ सकती हैं तथा वर्षा पैटर्न में परिवर्तन हो सकता है। जियोइंजीनियरिंग के प्रभावों के कारण मौसम और जलवायु में अप्रत्याशित बदलाव हो सकते हैं।

निष्कर्ष:

वैज्ञानिकों द्वारा जारी किया गया ग्लेशियल जियोइंजीनियरिंग पर श्वेत-पत्र एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है, जो जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए नई रणनीतियों का प्रस्ताव करता है। यह न केवल ग्लेशियरों के पिघलने और समुद्री जलस्तर में वृद्धि को रोकने में सहायक हो सकता है, बल्कि डीकार्बोनाइजेशन प्रयासों को भी मजबूती प्रदान कर सकता है। हालांकि, इसकी उच्च लागत और पारिस्थितिकी-तंत्र पर संभावित प्रभाव जैसी चिंताओं को ध्यान में रखते हुए इसे अपनाने के लिए सावधानीपूर्वक विचार-विमर्श की आवश्यकता है।

इस तकनीक के सफल कार्यान्वयन से हम जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों को कम कर सकते हैं और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सुरक्षित और स्थिर पर्यावरण सुनिश्चित कर सकते हैं। ग्लेशियल जियोइंजीनियरिंग एक नवीन और संभावनाशील दृष्टिकोण है, जो हमें जलवायु संकट से निपटने में मदद कर सकता है।

FAQs:

ग्लेशियल जियोइंजीनियरिंग क्या है?

ग्लेशियल जियोइंजीनियरिंग ग्लेशियर यानी हिमानी के आस-पास की जलवायु प्रणाली में कृत्रिम संशोधन की प्रक्रिया है। इसका उद्देश्य आइस शेल्फ के पिघलने की गति को धीमा करना और समुद्री जल स्तर में वृद्धि को कम करना है।

वैज्ञानिकों द्वारा प्रस्तावित प्रमुख ग्लेशियल जियोइंजीनियरिंग रणनीतियां क्या हैं?

प्रमुख रणनीतियों में शामिल हैं:
महासागरीय ऊष्मा परिवहन उपाय: आइस शेल्फ के सामने समुद्र नितल पर अवरोधक बनाना।
बेसल-हाइड्रॉलॉजी उपाय: आइस-शीट्स से पिघले जल की धाराओं का प्रवाह धीमा करना।

टर्मिनेशन शॉक क्या है?

टर्मिनेशन शॉक तब होता है जब जियोइंजीनियरिंग तकनीक का उपयोग रोक दिया जाता है और इसके परिणामस्वरूप वैश्विक तापमान में तेजी से वृद्धि होती है। इससे पारिस्थितिकी-तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

जियोइंजीनियरिंग से जुड़ी मुख्य चिंताएं क्या हैं?

मुख्य चिंताओं में शामिल हैं:
1. उच्च लागत
2. पारिस्थितिकी-तंत्र में व्यवधान
3. टर्मिनेशन शॉक का खतरा
4. चरम घटनाएं और अम्लीय वर्षा

जियोइंजीनियरिंग क्या है?

जियोइंजीनियरिंग पृथ्वी की जलवायु प्रणालियों में कृत्रिम रूप से और बड़े पैमाने पर संशोधन करने की प्रक्रिया है, जिसका उद्देश्य वैश्विक तापमान में वृद्धि को रोकना और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करना है।

जियोइंजीनियरिंग की प्रमुख श्रेणियां क्या हैं?

मुख्य श्रेणियों में शामिल हैं:
सोलर जियोइंजीनियरिंग/ सौर विकिरण प्रबंधन (SRM): पृथ्वी की सतह पर सूर्य से आने वाले विकिरण की मात्रा और वैश्विक औसत तापमान को कम करना।
कार्बन जियोइंजीनियरिंग/ कार्बन डाइऑक्साइड हटाना (CDR): वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड को हटाकर इसकी मात्रा को कम करना।

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