Sheikh Hasina’s Resignation and Student Protests in Bangladesh; शेख हसीना का इस्तीफा और बांग्लादेश में छात्रों का विरोध:

बांग्लादेश में हाल ही में हुए राजनीतिक घटनाक्रम ने देश और क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण मुद्दों को उजागर किया है। प्रधानमंत्री शेख हसीना का 15 वर्षों तक सत्ता में रहने के बाद इस्तीफा देना और कोटा प्रणाली के खिलाफ छात्रों का विरोध, इन घटनाओं का मुख्य कारण बना। इन विरोध प्रदर्शनों में भारत विरोधी भावनाएँ भी देखी गईं, क्योंकि अप्रत्यक्ष रूप से भारत वर्तमान सरकार को समर्थन दे रहा था। बांग्लादेश में विपक्षी पार्टी से भारत सरकार का संपर्क बहुत कम था। इस लेख में हम बांग्लादेश की कोटा प्रणाली, उसके खिलाफ उठे विरोध, और इन घटनाओं के व्यापक प्रभावों पर चर्चा करेंगे।

कोटा प्रणाली का इतिहास:

बांग्लादेश की स्वतंत्रता संग्राम के बाद 1971 में देश की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक संरचना में बड़े बदलाव किए गए। उस समय के प्रमुख नेताओं में से एक, शेख मुजीबुर रहमान ने स्वतंत्रता सेनानियों को सम्मानित करने और उनके लिए विशेष कोटा स्थापित करने का आश्वासन दिया था। इस नीति का उद्देश्य उन लोगों को रोजगार में प्राथमिकता देना था जिन्होंने स्वतंत्रता के लिए अपने जीवन का बलिदान दिया।

इसके अलावा, बांग्लादेशी महिलाओं, जो युद्ध के दौरान पीड़ित थीं, के लिए भी कोटा आरक्षित किया गया था। शेख मुजीब की 1975 में हत्या के बाद, कोटा प्रणाली में कुछ परिवर्तन किए गए, जिसमें इसे समाज के अन्य पिछड़े वर्गों तक विस्तारित किया गया।

कोटा प्रणाली के खिलाफ विरोध क्यों?

वर्षों के साथ, स्वतंत्रता सेनानियों की संख्या जो कोटा प्रणाली का लाभ उठा सकते थे, कम हो गई। इसका परिणाम यह हुआ कि कोटा का उपयोग नहीं हो पा रहा था और इसका दुरुपयोग होने की संभावना बढ़ गई। आलोचकों का मानना था कि कोटा का उद्देश्य स्वतंत्रता सेनानियों को सम्मानित करना था, लेकिन अब यह उनके बच्चों और पोते-पोतियों तक पहुंच गया था, जिससे नई पीढ़ियों के योग्य उम्मीदवारों के लिए अवसर सीमित हो गए।

इसके अलावा, विपक्षी दलों ने आरोप लगाया कि अवामी लीग अपने समर्थकों को सरकारी नौकरी में बनाए रखने के लिए इस कोटा प्रणाली का उपयोग कर रही थी। यह भी आरोप लगाया गया कि अवामी लीग ने इस कोटा का उपयोग अपने प्रशासनिक नियंत्रण को बनाए रखने के लिए किया।

2018 का आंदोलन और उसके प्रभाव:

वर्तमान आंदोलन के बीज 2018 के छोटे विरोध आंदोलन में निहित हैं। मार्च 2018 में बांग्लादेश के उच्च न्यायालय ने कोटा प्रणाली की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया। इसके विरोध में छात्रों ने व्यापक आंदोलन शुरू किया, जिसके जवाब में शेख हसीना ने सभी कोटा को समाप्त करने की घोषणा की। हालांकि, छात्रों ने कोटा प्रणाली के सुधार की मांग की थी, न कि इसकी समाप्ति की।

वर्तमान राजनीतिक स्थिति:

वर्तमान विरोध प्रदर्शनों के बाद, शेख हसीना ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और ढाका छोड़ दिया। सरकार का आरोप है कि विरोध प्रदर्शनों के पीछे बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी और जमात-ए-इस्लामी जैसे प्रतिबंधित दलों का हाथ है।

विरोध जारी हैं, भले ही सुप्रीम कोर्ट के अपीलीय प्रभाग ने उच्च न्यायालय के उस आदेश को रद्द कर दिया है जिसने संकट को जन्म दिया था। नए फैसले में 93% सरकारी नौकरियों को मेरिट के आधार पर आवंटित करने की घोषणा की गई है, जबकि स्वतंत्रता सेनानियों और उनके वंशजों के लिए केवल 5% नौकरियां आरक्षित की गई हैं। इसके अलावा, जनजातियों, भिन्न रूप से सक्षम व्यक्तियों और यौन अल्पसंख्यकों के लिए प्रत्येक के लिए 1% कोटा आरक्षित किया गया है।

प्रधानमंत्री शेख हसीना के इस्तीफे का प्रभाव:

प्रधानमंत्री शेख हसीना के इस्तीफे से बांग्लादेश में राजनीतिक शून्यता और अनिश्चितता पैदा हो गई है। इसका संभावित प्रभाव भारत-बांग्लादेश संबंधों पर भी देखा जा सकता है।

आर्थिक परिणाम:

  • अस्थिरता का असर: मौजूदा अस्थिरता से अवसंरचना परियोजनाओं पर नकारात्मक असर पड़ सकता है, जिसमें रेल, सड़क, और ट्रांस-शिपमेंट शामिल हैं। यह आर्थिक विकास की गति को धीमा कर सकता है।
  • मुक्त व्यापार समझौते में देरी: इस स्थिति से मुक्त व्यापार समझौतों में देरी हो सकती है, जिससे दोनों देशों के व्यापारिक संबंध प्रभावित होंगे। यह दोनों देशों के लिए आर्थिक नुकसान का कारण बन सकता है।

सीमा प्रबंधन और अवैध प्रवासन:

  • सीमा प्रबंधन पर असर: राजनीतिक अस्थिरता से भारत-बांग्लादेश सीमा पर नकारात्मक असर पड़ सकता है, जिससे अवैध प्रवासन की घटनाएं बढ़ सकती हैं। यह स्थिति दोनों देशों के सुरक्षा प्रबंधन के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकती है।

क्षेत्रीय सुरक्षा चिंताएं:

  • इस राजनीतिक अनिश्चितता से क्षेत्रीय सुरक्षा और आतंकवाद-रोधी प्रयासों में संभवतः व्यवधान उत्पन्न हो सकता है।
  • पड़ोसी देशों के साथ संबंध पर असर: अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता में वापसी और चीन समर्थक मालदीव के बाद, अब यह घटनाक्रम भी भारत के पड़ोसी देश के साथ एवं द्विपक्षीय संबंधों के लिए चिंताएं बढ़ा देगा।

चीन का प्रभाव:

वर्तमान शासन व्यवस्था के विपरीत, बांग्लादेश के विपक्षी दल मुख्यतः पाकिस्तान और चीन के समर्थक हैं।

भारत-बांग्लादेश संबंधों का महत्व:

  • महत्वपूर्ण व्यापारिक साझेदार: बांग्लादेश दक्षिण एशिया में भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। 2023-24 में द्विपक्षीय व्यापार का मूल्य 14.01 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
  • सुरक्षा एवं सीमा प्रबंधन: अवैध ड्रग एवं मानव तस्करी, जाली मुद्रा आदि से निपटने के लिए भी दोनों देशों के मध्य संबंधों का ठीक होना जरूरी है।
  • बेहतर कनेक्टिविटी हेतु: उदाहरण के लिए- हाल ही में अखौरा-अगरतला सीमा पार रेल संपर्क का उद्घाटन किया गया है।
  • क्षेत्रीय सहयोग: दोनों देशों के बीच सार्क/SAARC, बिम्सटेक/BIMSTEC, बांग्लादेश, भूटान, भारत और नेपाल (BBIN) मोटर वाहन समझौता जैसे बहुपक्षीय मंचों पर भागीदारी के जरिए क्षेत्रीय सहयोग किया जाता है।

निष्कर्ष:

बांग्लादेश की वर्तमान राजनीतिक स्थिति भारत के लिए एक चुनौती है। प्रधानमंत्री शेख हसीना का इस्तीफा और कोटा प्रणाली के खिलाफ छात्रों का विरोध देश में राजनीतिक और सामाजिक अस्थिरता को बढ़ा सकते हैं। इस अस्थिरता के प्रभाव को देखते हुए, भारत को अपनी रणनीतिक योजनाओं को पुनः व्यवस्थित करने की आवश्यकता हो सकती है। भारत और बांग्लादेश के बीच मजबूत संबंध बनाए रखना अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह दोनों देशों के लिए आर्थिक और सुरक्षा के दृष्टिकोण से लाभकारी होगा। वर्तमान स्थिति में, यह आवश्यक है कि दोनों देश मिलकर समस्याओं का समाधान करें और क्षेत्रीय स्थिरता के लिए मिलकर काम करें।

FAQs:

कोटा प्रणाली के खिलाफ विरोध क्यों हो रहा है?

विरोध का मुख्य कारण यह है कि कोटा प्रणाली का उपयोग अब स्वतंत्रता सेनानियों के बच्चों और पोते-पोतियों तक पहुँच गया है, जिससे नए योग्य उम्मीदवारों के लिए अवसर सीमित हो गए हैं। आलोचकों का मानना है कि इस प्रणाली का दुरुपयोग किया जा रहा है।

भारत और बांग्लादेश के संबंधों पर इन घटनाओं का क्या प्रभाव पड़ेगा?

भारत और बांग्लादेश के बीच ऐतिहासिक रूप से मजबूत संबंध रहे हैं। वर्तमान घटनाएं इन संबंधों को चुनौती दे सकती हैं, विशेष रूप से आर्थिक और सुरक्षा के क्षेत्र में। दोनों देशों को मिलकर समस्याओं का समाधान करने की आवश्यकता है।

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