हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब राज्य एवं अन्य बनाम दविंदर सिंह और अन्य, 2024 मामले में अनुसूचित जाति (SC) व अनुसूचित जनजाति (ST) वर्गों के संबंध में एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है। कोर्ट के अनुसार, राज्य SC व ST वर्गों के भीतर अधिक वंचित समूहों को अतिरिक्त कोटा (आरक्षण) प्रदान करने हेतु इन वर्गों में उप-वर्गीकरण कर सकते हैं।
यह निर्णय अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के अधिक वंचित समूहों को उचित प्रतिनिधित्व और लाभ प्रदान करने के उद्देश्य से लिया गया है। इससे पहले, ईवी चिन्नेया मामला (2005) में, सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया था कि संविधान के अनुच्छेद 341(1) के तहत राष्ट्रपति के आदेश में उल्लिखित सभी जातियां सजातीय समूह के एक ही वर्ग से संबंधित हैं और उन्हें आगे विभाजित नहीं किया जा सकता है। अनुच्छेद 341(1) के तहत, भारत का राष्ट्रपति किसी भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश में कुछ समुदायों को आधिकारिक तौर पर अनुसूचित जातियों के रूप में नामित कर सकता है।
सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय के मुख्य बिंदु:
- राज्य उप-वर्गीकरण की अनुमति: राज्य उप-वर्गीकरण की अनुमति देते समय किसी उप-वर्ग के लिए 100% आरक्षण निर्धारित नहीं कर सकते।
- अनुभवजन्य अध्ययन की आवश्यकता: सरकारों को उप-वर्गीकरण से पहले एक अनुभवजन्य अध्ययन करना होगा।
- न्यायिक समीक्षा: राज्य की उप-वर्गीकरण करने की शक्ति न्यायिक समीक्षा के अधीन है।
- समानता के सिद्धांत का पालन: यह उप-वर्गीकरण संविधान के अनुच्छेद 14 में निहित समानता के सिद्धांत का उल्लंघन करने वाला नहीं होना चाहिए। साथ ही, यह अनुच्छेद 341 के तहत राष्ट्रपति के अनुसूचित जातियों के निर्धारण संबंधी विशेषाधिकार का उल्लंघन करने वाला नहीं होना चाहिए।
- क्रीमी लेयर का अपवाद: सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति (SCs) के ‘क्रीमी लेयर’ उप-वर्ग को SC श्रेणियों के लिए निर्धारित आरक्षण लाभ से बाहर रखने की आवश्यकता व्यक्त की है। ज्ञातव्य है कि वर्तमान में, ‘क्रीमी लेयर’ की अवधारणा केवल ‘अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC)’ के आरक्षण पर ही लागू होती है।
पृष्ठभूमि:
भारत में अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए आरक्षण का उद्देश्य सामाजिक और आर्थिक समानता सुनिश्चित करना है। यह निर्णय SC और ST वर्गों के भीतर के अधिक वंचित समूहों को उचित प्रतिनिधित्व और लाभ प्राप्त करने में मदद करेगा। संविधान का अनुच्छेद 341 और 342 राष्ट्रपति को यह अधिकार प्रदान करता है कि वह अनुसूचित जातियों और जनजातियों की सूची तैयार करें और उनमें संशोधन करें। इस निर्णय के बाद, राज्यों को अपने क्षेत्र के भीतर के अधिक वंचित समूहों की पहचान कर उन्हें आरक्षण का लाभ प्रदान करने की स्वतंत्रता मिलेगी।
SC और ST वर्गों के उप-वर्गीकरण की आवश्यकता:
भारत में विभिन्न जातियों और जनजातियों के सामाजिक और आर्थिक स्तर में बड़ा अंतर है। कुछ समूह अन्य समूहों की तुलना में अधिक वंचित हैं। उप-वर्गीकरण से इन अधिक वंचित समूहों को बेहतर अवसर और प्रतिनिधित्व मिलेगा, जो सामाजिक न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा।
उदाहरण के लिए, कुछ अनुसूचित जाति समूह शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में अन्य समूहों की तुलना में अधिक पिछड़े हुए हैं। उप-वर्गीकरण से इन समूहों को विशेष आरक्षण मिल सकेगा, जिससे वे समाज की मुख्यधारा में शामिल हो सकेंगे।
निष्कर्ष:
सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय का दूरगामी प्रभाव होगा। इससे न केवल सामाजिक और आर्थिक समानता सुनिश्चित होगी, बल्कि अनुसूचित जाति और जनजाति के भीतर के अधिक वंचित समूहों को भी समाज की मुख्यधारा में शामिल होने का अवसर मिलेगा। यह निर्णय सामाजिक न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो भारत के लोकतंत्र को और मजबूत करेगा।
सामाजिक और आर्थिक समानता के सिद्धांत को आगे बढ़ाने के लिए, इस निर्णय से प्रभावित राज्य सरकारों को अपने नीति-निर्माण प्रक्रिया में आवश्यक संशोधन करने होंगे। उन्हें अनुभवजन्य अध्ययन के माध्यम से अपने क्षेत्र के भीतर के वंचित समूहों की पहचान करनी होगी और उनके लिए उपयुक्त आरक्षण की व्यवस्था करनी होगी। इससे सामाजिक और आर्थिक विकास की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रगति होगी।
FAQs:
संविधान का अनुच्छेद 341(1) क्या कहता है?
अनुच्छेद 341(1) के तहत, भारत का राष्ट्रपति किसी भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश में कुछ समुदायों को आधिकारिक रूप से अनुसूचित जातियों के रूप में नामित कर सकता है।
उप-वर्गीकरण की अनुमति किन शर्तों पर दी गई है?
उप-वर्गीकरण करते समय राज्य 100% आरक्षण निर्धारित नहीं कर सकते। इसके लिए सरकारों को एक अनुभवजन्य अध्ययन करना होगा और यह उप-वर्गीकरण न्यायिक समीक्षा के अधीन रहेगा। यह संविधान के अनुच्छेद 14 में निहित समानता के सिद्धांत का उल्लंघन नहीं करना चाहिए और न ही अनुच्छेद 341 के तहत राष्ट्रपति के विशेषाधिकार का।
क्रीमी लेयर’ की अवधारणा का क्या महत्व है?
‘क्रीमी लेयर’ का मतलब उन व्यक्तियों से है जो सामाजिक और आर्थिक रूप से अधिक समृद्ध हैं और जिन्हें आरक्षण की आवश्यकता नहीं होती। वर्तमान में, यह अवधारणा केवल अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के आरक्षण पर लागू होती है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे अनुसूचित जातियों (SC) पर भी लागू करने की आवश्यकता व्यक्त की है।