Supreme Court Issues Guidelines Against Stereotypical Depictions of Disabled People in Films; सुप्रीम कोर्ट ने फिल्मों में दिव्यांगजनों के रूढ़िवादी चित्रण के खिलाफ दिशा-निर्देश जारी किए:

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में विजुअल मीडिया और फिल्मों में दिव्यांगजनों के रूढ़िवादी फिल्मांकन के खिलाफ महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश जारी किए हैं। कोर्ट ने कहा कि दिव्यांग व्यक्तियों के बारे में रूढ़िवादी सोच (Stereotyping) उनके खिलाफ भेदभाव और असमानता को बढ़ाती है। यह दिशा-निर्देश दिव्यांगजनों के सम्मान और उनकी सही छवि को बढ़ावा देने के उद्देश्य से जारी किए गए हैं।

Table Of Contents
  1. दिव्यांगता की परिभाषा:
  2. रूढ़िवादी प्रस्तुतिकरण क्या है?
  3. मुख्य दिशा-निर्देश:
  4. भारत में दिव्यांग व्यक्तियों की स्थिति:
  5. भारत में दिव्यांगजनों के समक्ष मौजूद मुख्य चुनौतियाँ:
  6. भारत में दिव्यांगजनों को सशक्त बनाने के लिए उठाए गए कदम:
  7. निष्कर्ष:
  8. FAQs:

दिव्यांगता की परिभाषा:

दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम 2016 (Rights of Persons with Disabilities Act, 2016) के अनुसार, दिव्यांगजन वह व्यक्ति है जो दीर्घकालिक अपंगता या अक्षमता (impairment) से प्रभावित होता है, जिससे उसकी शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक या संवेदी क्षमताओं पर असर पड़ता है। यह अक्षमता उन्हें समाज में पूर्ण और प्रभावी रूप से भागीदारी करने में बाधा डालती है।

दिव्यांगता की मुख्य चार श्रेणियाँ हैं:

  1. व्यवहारिक या भावनात्मक (Behavioural or emotional)
  2. संवेदी अक्षमता विकार (Sensory impaired disorders)
  3. भौतिक/शारीरिक (Physical)
  4. विकास संबंधी (Developmental)

रूढ़िवादी प्रस्तुतिकरण क्या है?

रूढ़िवादी प्रस्तुतिकरण या स्टीरियोटाइपिंग किसी दिव्यांग व्यक्ति के बारे में उसकी व्यक्तिगत विशेषताओं को दरकिनार करते हुए उसकी दिव्यांगता को लेकर प्रचलित पूर्वधारणा है। यह सोच दिव्यांगजनों को समाज में अलग-थलग कर देती है और उनके खिलाफ भेदभाव को बढ़ावा देती है।

मुख्य दिशा-निर्देश:

1. केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC) की भूमिका

फिल्मों को रिलीज करने हेतु प्रमाणित करने से पहले केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC) को दिव्यांगता संबंधी मामलों के विशेषज्ञों की राय लेनी चाहिए। इससे यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि फिल्में दिव्यांगजनों के प्रति संवेदनशील हों और उनकी सही छवि प्रस्तुत करें।

2. ‘नथिंग अबाउट अस, विदाउट अस’ सिद्धांत का पालन

समावेशन सुनिश्चित करने के लिए ‘नथिंग अबाउट अस, विदाउट अस’ सिद्धांत का पालन करना होगा। इस सिद्धांत के अनुसार किसी समूह के बारे में कोई भी निर्णय उस समूह के सदस्यों की पूर्ण और प्रत्यक्ष भागीदारी के बिना नहीं लिया जाना चाहिए। इससे यह सुनिश्चित होगा कि दिव्यांगजनों के बारे में लिए गए निर्णय उनकी वास्तविक आवश्यकताओं और विचारों को ध्यान में रखते हुए हों।

3. विजुअल मीडिया में दिव्यांगजनों की वास्तविकताएं

विजुअल मीडिया को दिव्यांग व्यक्तियों से जुड़ी निम्नलिखित अलग-अलग वास्तविकताओं को प्रदर्शित करने का प्रयास करना चाहिए:

  • उनके द्वारा सामना की जाने वाली चुनौतियाँ: दिव्यांग व्यक्ति अपने दैनिक जीवन में कई चुनौतियों का सामना करते हैं। इन चुनौतियों का सही चित्रण उनकी वास्तविक स्थिति को समझने में मदद करेगा।
  • उनके द्वारा हासिल की गई उपलब्धियाँ: दिव्यांग व्यक्ति कई क्षेत्रों में महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ हासिल करते हैं। इन उपलब्धियों को दिखाना उनकी क्षमताओं और मेहनत को पहचानने का एक तरीका है।
  • उनमें मौजूद प्रतिभाएं: दिव्यांग व्यक्तियों में अद्वितीय प्रतिभाएं होती हैं। इन प्रतिभाओं को प्रदर्शित करना उनके आत्मविश्वास और समाज में उनकी स्वीकार्यता को बढ़ाता है।
  • समाज में उनका योगदान: दिव्यांग व्यक्ति समाज में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। उनके योगदान को दिखाना उनके प्रति सम्मान और समानता को बढ़ावा देगा।

4. चिकित्सा स्थिति का सटीक चित्रण

फिल्मों और विजुअल मीडिया कंटेंट में जितना संभव हो सके दिव्यांगजनों की चिकित्सा स्थिति का सटीक चित्रण किया जाना चाहिए। यह दर्शकों को उनकी वास्तविक स्थिति से अवगत कराएगा और उनके प्रति संवेदनशीलता बढ़ाएगा।

भारत में दिव्यांग व्यक्तियों की स्थिति:

2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में दिव्यांग व्यक्तियों (PwD) की आबादी कुल जनसंख्या की लगभग 2.21% है। इनकी आबादी में 56% पुरुष और 44% महिलाएं हैं। अधिकांश दिव्यांग आबादी (69%) ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है।

भारत में दिव्यांगजनों के समक्ष मौजूद मुख्य चुनौतियाँ:

  • सार्वजनिक स्थलों, परिवहन साधनों और इमारतों में सुगम्यता का अभाव: दिव्यांगजनों के लिए अधिकांश सार्वजनिक स्थान, परिवहन और इमारतें सुगम्य नहीं हैं, जिससे उनकी आवाजाही में कठिनाई होती है। सार्वजनिक स्थलों पर रैंप, लिफ्ट और दिव्यांगजनों के लिए विशेष सुविधा का अभाव उन्हें स्वतंत्र रूप से घूमने-फिरने से रोकता है।
  • रूढ़िवादी धारणा: समाज में फैली गलत धारणाएं और पूर्वाग्रह उन्हें मुख्य धारा से बाहर कर देते हैं। रूढ़िवादी सोच दिव्यांगजनों के समाज का हिस्सा बनने में बाधा पैदा करती है। इसके चलते वे अलग-थलग पड़ जाते हैं और अकेलेपन से ग्रस्त हो जाते हैं।
  • रोजगार के अवसरों की कमी: रोजगार के क्षेत्र में भी दिव्यांगजनों को भेदभाव और कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। गैर-सुगम्य कार्यस्थल, ठहरने की सुविधा की कमी और प्रशिक्षित शिक्षकों के अभाव के चलते उनके लिए रोजगार के अवसर सीमित हो जाते हैं।

भारत में दिव्यांगजनों को सशक्त बनाने के लिए उठाए गए कदम:

1. दिव्यांगजनों के लिए राष्ट्रीय नीति, 2006

भारत सरकार ने फरवरी 2006 में विकलांग व्यक्तियों के लिए एक राष्ट्रीय नीति तैयार की, जो उनके शारीरिक, शैक्षिक और आर्थिक पुनर्वास से संबंधित है। इस नीति का उद्देश्य विकलांग व्यक्तियों को समानता, स्वतंत्रता और सम्मान के साथ जीवन जीने का अधिकार प्रदान करना है। इसके अतिरिक्त, यह नीति विकलांग महिलाओं और बच्चों के पुनर्वास, बाधा मुक्त वातावरण, सामाजिक सुरक्षा, और अनुसंधान पर भी ध्यान केंद्रित करती है।

2. दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016

दिव्यांगजनों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन को प्रभावी करने के लिए दिव्यांगजन अधिकार (RPwD) अधिनियम, 2016 लागू किया गया है। इस अधिनियम के तहत दिव्यांगजनों के अधिकारों की सुरक्षा और उनके लिए विशेष सुविधाओं का प्रावधान किया गया है।

3. सुगम्य भारत अभियान

सुगम्य भारत अभियान का उद्देश्य इनडोर और आउटडोर सुविधाओं को दिव्यांगजनों के लिए सुगम्य बनाना है। इस अभियान के तहत सार्वजनिक स्थानों, कार्यालयों, शैक्षणिक संस्थानों और परिवहन सुविधाओं को दिव्यांगजनों के लिए अनुकूल बनाया जा रहा है।

4. सुगम्यता संबंधी मानक

बधिर और दृष्टिबाधित लोगों के लिए सिनेमाघरों में फीचर फिल्मों के सार्वजनिक प्रदर्शन के दौरान सुगम्यता संबंधी मानकों से जुड़े दिशा-निर्देशों का ड्राफ्ट जारी किया गया है।

निष्कर्ष:

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश विजुअल मीडिया और फिल्मों में दिव्यांगजनों के रूढ़िवादी फिल्मांकन के खिलाफ एक महत्वपूर्ण कदम हैं। इससे न केवल दिव्यांगजनों के प्रति संवेदनशीलता बढ़ेगी, बल्कि उनके खिलाफ भेदभाव और असमानता भी कम होगी। इन दिशा-निर्देशों का पालन कर हम एक समावेशी और सम्मानजनक समाज की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं। दिव्यांगजनों की सही छवि प्रस्तुत करना और उनकी समस्याओं को समझना समाज के हर वर्ग की जिम्मेदारी है। इससे हम एक ऐसा समाज बना सकते हैं जहां हर व्यक्ति को समान अवसर और सम्मान मिले।

FAQs:

सुप्रीम कोर्ट ने विजुअल मीडिया और फिल्मों में दिव्यांगजनों के रूढ़िवादी फिल्मांकन के खिलाफ दिशा-निर्देश क्यों जारी किए हैं?

सुप्रीम कोर्ट ने यह दिशा-निर्देश इसलिए जारी किए हैं क्योंकि दिव्यांग व्यक्तियों के बारे में रूढ़िवादी सोच उनके खिलाफ भेदभाव और असमानता को बढ़ाती है। यह दिशा-निर्देश दिव्यांगजनों के सम्मान और उनकी सही छवि को बढ़ावा देने के उद्देश्य से जारी किए गए हैं।

रूढ़िवादी प्रस्तुतिकरण (Stereotyping) क्या है?

रूढ़िवादी प्रस्तुतिकरण या स्टीरियोटाइपिंग किसी दिव्यांग व्यक्ति के बारे में उसकी व्यक्तिगत विशेषताओं को दरकिनार करते हुए उसकी दिव्यांगता को लेकर प्रचलित पूर्वधारणा है। यह सोच दिव्यांगजनों को समाज में अलग-थलग कर देती है और उनके खिलाफ भेदभाव को बढ़ावा देती है।

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य दिशा-निर्देश क्या हैं?

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य दिशा-निर्देशों में शामिल हैं:
1. CBFC को फिल्मों को प्रमाणित करने से पहले दिव्यांगता संबंधी मामलों के विशेषज्ञों की राय लेनी चाहिए।
2. ‘नथिंग अबाउट अस, विदाउट अस’ सिद्धांत का पालन करना होगा।
3. विजुअल मीडिया को दिव्यांग व्यक्तियों से जुड़ी वास्तविकताओं को प्रदर्शित करना चाहिए।
4. दिव्यांगजनों की चिकित्सा स्थिति का सटीक चित्रण करना चाहिए।

‘नथिंग अबाउट अस, विदाउट अस’ सिद्धांत क्या है?

‘नथिंग अबाउट अस, विदाउट अस’ सिद्धांत का मतलब है कि किसी समूह के बारे में कोई भी निर्णय उस समूह के सदस्यों की पूर्ण और प्रत्यक्ष भागीदारी के बिना नहीं लिया जाना चाहिए। यह सिद्धांत समावेशन और समानता को बढ़ावा देता है।

2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में दिव्यांग व्यक्तियों की स्थिति क्या है?

2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में दिव्यांग व्यक्तियों (PwD) की आबादी कुल जनसंख्या की लगभग 2.21% है। इनकी आबादी में 56% पुरुष और 44% महिलाएं हैं। अधिकांश दिव्यांग आबादी (69%) ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है।

भारत में दिव्यांगजनों के समक्ष मुख्य चुनौतियाँ क्या हैं?

भारत में दिव्यांगजनों के समक्ष मुख्य चुनौतियाँ हैं:
1. सार्वजनिक स्थलों, परिवहन साधनों और इमारतों में सुगम्यता का अभाव।
2. रूढ़िवादी धारणा जो दिव्यांगजनों के समाज का हिस्सा बनने में बाधा पैदा करती है।
3. गैर-सुगम्य कार्यस्थल, ठहरने की सुविधा की कमी और प्रशिक्षित शिक्षकों के अभाव के चलते रोजगार के अवसरों की कमी।

दिव्यांगता की परिभाषा क्या है?

दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम 2016 (Rights of Persons with Disabilities Act, 2016) के अनुसार, दिव्यांगजन वह व्यक्ति है जो दीर्घकालिक अपंगता या अक्षमता (impairment) से प्रभावित होता है, जिससे उसकी शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक या संवेदी क्षमताओं पर असर पड़ता है। यह अक्षमता उन्हें समाज में पूर्ण और प्रभावी रूप से भागीदारी करने में बाधा डालती है।

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