Supreme Court Seeks Report on Establishment and Functioning of Gram Nyayalayas; सुप्रीम कोर्ट ने ग्राम न्यायालयों की स्थापना और कामकाज पर रिपोर्ट मांगी:

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से ग्राम न्यायालयों की स्थापना और उनके कामकाज पर रिपोर्ट मांगी है। इसका मुख्य उद्देश्य नागरिकों को उनके घर के करीब सुलभ, किफायती और त्वरित न्याय प्रदान करते हुए स्थानीय अदालतों पर बोझ को कम करना है।

ग्राम न्यायालयों की प्रमुख विशेषताएं:

1. वैधानिक दर्जा:
ग्राम न्यायालयों को ग्राम न्यायालय अधिनियम, 2008 के तहत वैधानिक दर्जा प्राप्त है। हालांकि, यह अधिनियम नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम और जनजातीय क्षेत्रों में लागू नहीं है।

2. स्थान:
आमतौर पर ग्राम न्यायालय मध्यवर्ती पंचायत के मुख्यालय में स्थित होते हैं।

3. न्यायालय का स्तर:
ग्राम न्यायालय “प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट का न्यायालय” होता है। राज्य सरकार, हाई कोर्ट के परामर्श से प्रत्येक ग्राम न्यायालय के लिए ‘न्यायाधिकारी’ की नियुक्ति करती है।

4. क्षेत्राधिकार:
ये न्यायालय ग्रामीण स्तर पर छोटे-मोटे विवादों को निपटाने के लिए मोबाइल कोर्ट की तरह होते हैं और सिविल एवं आपराधिक, दोनों प्रकार के मामलों की सुनवाई कर सकते हैं।

5. विवाद समाधान प्रक्रिया:
ग्राम न्यायालयों में विवाद को संबंधित पक्षों के बीच सुलह के जरिए निपटाया जाता है। ये भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 के साक्ष्य से जुड़े प्रावधानों के बजाय प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के अनुसार काम करते हैं। हाल ही में, भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की जगह ‘भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023‘ पारित किया गया है।

6. अपील:
आपराधिक मामलों में अपील सेशन कोर्ट में, जबकि सिविल मामलों में अपील डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में की जाती है। अपील का निपटारा अपील दायर करने की तारीख से 6 माह के भीतर करना होता है।

ग्राम न्यायालयों से जुड़ी प्रमुख समस्याएं:

1. खराब कार्यान्वयन:
देशभर में लगभग 6,000 ग्राम न्यायालय स्थापित करने की आवश्यकता है, परन्तु अब तक केवल 481 स्थापित किए गए हैं। इनमें से भी केवल 309 ही कार्यशील हैं।

2. अनिवार्य प्रावधान का अभाव:
ग्राम न्यायालय अधिनियम की धारा 3 के अनुसार, ग्राम न्यायालय की स्थापना राज्य सरकार के विवेक पर निर्भर करती है। यह एक अनिवार्य प्रावधान नहीं है।

3. जनजातीय और अनुसूचित क्षेत्रों में विरोध:
झारखंड और बिहार जैसे राज्यों ने जनजातीय या अनुसूचित क्षेत्रों में ग्राम न्यायालयों की स्थापना का विरोध किया है क्योंकि वहां मुख्य रूप से स्थानीय या पारंपरिक कानूनों का पालन किया जाता है।

ग्राम न्यायालयों को समर्थन देने की पहल:

ग्राम न्यायालय योजना के तहत, केंद्र सरकार राज्यों को ग्राम न्यायालय स्थापित करने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करती है। यह एक केंद्र प्रायोजित योजना है, जिसका उद्देश्य ग्राम न्यायालयों को बढ़ावा देना और उन्हें सशक्त बनाना है।

ग्राम न्यायालयों का महत्व:

ग्राम न्यायालयों का लक्ष्य ग्रामीण क्षेत्रों में न्यायिक प्रक्रियाओं को सरल, सुलभ और त्वरित बनाना है। ये न्यायालय स्थानीय विवादों का त्वरित समाधान प्रदान करते हैं, जिससे उच्च अदालतों पर दबाव कम होता है। इसके अलावा, ग्राम न्यायालयों के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में कानूनी जागरूकता और न्याय की पहुँच को बढ़ावा मिलता है। भविष्य में, इन न्यायालयों के माध्यम से न्याय की पहुँच को और अधिक व्यापक बनाने के प्रयास किए जाएंगे।

निष्कर्ष:

ग्राम न्यायालयों का लक्ष्य ग्रामीण क्षेत्रों में न्यायिक प्रक्रियाओं को सरल, सुलभ और त्वरित बनाना है। हालांकि, इन न्यायालयों के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए बेहतर योजनाओं और प्रयासों की आवश्यकता है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से रिपोर्ट मांगने का उद्देश्य भी इसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो ग्राम न्यायालयों की स्थिति को सुधारने और उन्हें अधिक प्रभावी बनाने में सहायक होगा।

FAQs:

ग्राम न्यायालय क्या है?

ग्राम न्यायालय एक स्थानीय न्यायिक संस्थान है, जो ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे-मोटे विवादों और अपराधों का त्वरित और सुलभ समाधान प्रदान करने के लिए स्थापित किया गया है। यह न्यायालय “प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट” के समकक्ष होता है। ग्राम न्यायालयों को ग्राम न्यायालय अधिनियम, 2008 के तहत वैधानिक दर्जा प्राप्त है।

ग्राम न्यायालयों की प्रमुख समस्याएं क्या हैं?

ग्राम न्यायालयों की प्रमुख समस्याएं खराब कार्यान्वयन, पर्याप्त संख्या में न्यायालयों की कमी, और कुछ राज्यों में इनके स्थापना का विरोध है।

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