The 1975 National Emergency: 50 Years Later, A Historical Perspective; 1975 का राष्ट्रीय आपातकाल: 50 साल बाद, इतिहास के पन्नों में:

25 जून, 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सिफारिश पर राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने राष्ट्रीय आपातकाल (National Emergency) की घोषणा की थी। इस निर्णय का आधार एक कथित आंतरिक खतरे को बताया गया था। इससे पहले भी भारत ने 1962 में चीन के साथ युद्ध और 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध के कारण दो बार राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा की थी।

राष्ट्रीय आपातकाल के संवैधानिक प्रावधान:

उद्घोषणा:

संविधान के अनुच्छेद 352 के अनुसार, केंद्रीय मंत्रिमंडल के लिखित अनुरोध पर राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्रीय आपातकाल की उद्घोषणा की जा सकती है।

आधार:

युद्ध, बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह के कारण भारत या उसके किसी भी हिस्से की सुरक्षा खतरे में होने के आधार पर राष्ट्रपति राष्ट्रीय आपातकाल की उद्घोषणा कर सकता है।

संसदीय अनुमोदन:

आपातकाल की उद्घोषणा को 1 महीने के भीतर संसद के दोनों सदनों द्वारा अनुमोदित होना आवश्यक है।

अवधि:

राष्ट्रीय आपातकाल उद्घोषणा जारी होने की तिथि से 6 महीनों तक लागू रहता है। इसे संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित एक संकल्प के माध्यम से अगले 6 महीनों के लिए और बढ़ाया जा सकता है। इस प्रक्रिया से इसे अनिश्चित समय तक बढ़ाया जा सकता है।

वापस लेना:

राष्ट्रपति की उद्घोषणा द्वारा राष्ट्रीय आपातकाल को वापस लिया जा सकता है।

राष्ट्रीय आपातकाल का प्रभाव:

मौलिक अधिकारों का निलंबन:

  • यदि युद्ध या बाहरी आक्रमण के कारण राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा की जाती है तो राष्ट्रपति आदेश द्वारा अनुच्छेद 19 (स्वतंत्रता का अधिकार) को निलंबित कर सकता है।
  • राष्ट्रपति अनुच्छेद 20 और अनुच्छेद 21 को छोड़कर किसी भी अन्य मौलिक अधिकार को लागू करने के लिए किसी भी अदालत में जाने के अधिकार को निलंबित कर सकता है।

सत्ता का केंद्रीकरण:

  • विधायी:
    संसद संविधान की राज्य सूची के विषयों सहित किसी भी मामले पर कानून बना सकती है।
  • कार्यपालिका:
    संविधान के अनुच्छेद 353 के अनुसार केंद्र सरकार राज्यों को निर्देश दे सकती है कि उन्हें कार्यकारी शक्तियों का किस प्रकार उपयोग करना चाहिए।
  • राजस्व का वितरण:
    राष्ट्रपति अनुच्छेद 268 से 279 के उपबंधों में बदलाव कर सकता है। यह बदलाव उस वित्तीय वर्ष की समाप्ति तक ही प्रभावी रहता है, जिस वित्तीय वर्ष में आपात उद्घोषणा को वापस लिया गया है। ये अनुच्छेद संघ और राज्यों के बीच वित्तीय संसाधनों के आवंटन से संबंधित हैं।

राष्ट्रीय आपातकाल की प्रमुख घटनाएं:

  • न्यायपालिका पर प्रभाव:
    आपातकाल के दौरान न्यायपालिका की स्वतंत्रता को चुनौती दी गई। न्यायपालिका पर सरकार का नियंत्रण बढ़ाने के प्रयास किए गए, जिसमें वरिष्ठ न्यायाधीशों को दरकिनार कर कम वरिष्ठ न्यायाधीशों को उच्च पदों पर नियुक्त करना शामिल था।
  • मीडिया पर सेंसरशिप:
    मीडिया पर कड़ी सेंसरशिप लगाई गई। प्रेस की स्वतंत्रता को सीमित कर दिया गया और कई पत्रकारों को गिरफ्तार कर लिया गया।
  • राजनीतिक विरोधियों की गिरफ्तारी:
    कई राजनीतिक विरोधियों को गिरफ्तार कर लिया गया और बिना मुकदमे के जेल में डाल दिया गया। कई प्रमुख नेता, जिनमें जयप्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई और अटल बिहारी वाजपेयी शामिल थे, को हिरासत में लिया गया।
  • अनुशासन और सरकारी नीतियों का प्रचार:
    आपातकाल के दौरान अनुशासन और सरकारी नीतियों को बढ़ावा देने के लिए ’20-सूत्रीय कार्यक्रम’ की शुरुआत की गई।

आपातकाल की समाप्ति और इसके प्रभाव:

1977 में आपातकाल समाप्त हुआ और देश में लोकतंत्र की बहाली हुई। इसके बाद हुए आम चुनावों में कांग्रेस पार्टी को भारी हार का सामना करना पड़ा और जनता पार्टी सत्ता में आई। आपातकाल के अनुभव ने भारतीय राजनीति और समाज को गहराई से प्रभावित किया। इसने लोकतंत्र और मौलिक अधिकारों की सुरक्षा की महत्ता को रेखांकित किया और भविष्य में ऐसे कदमों से बचने के लिए संवैधानिक संशोधनों और सुधारों की दिशा में प्रेरित किया।

निष्कर्ष:

राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा के 50 वर्ष पूरे होने पर यह एक महत्वपूर्ण अवसर है कि हम अपने देश की लोकतांत्रिक धरोहर को संजोएं और उसे मजबूत बनाने के लिए प्रतिबद्ध हों। यह घटना हमारे लोकतंत्र की स्थायित्व और शक्ति की परीक्षा थी, जिसे हमने सफलतापूर्वक पार किया।

हमारे लोकतांत्रिक ढांचे को सुरक्षित रखने के लिए निरंतर प्रयास की आवश्यकता है। यह घटना हमें याद दिलाती है कि लोकतंत्र की रक्षा के लिए नागरिकों का जागरूक और सक्रिय होना कितना महत्वपूर्ण है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि भविष्य में ऐसा कोई भी कदम न उठाया जाए जिससे हमारे मौलिक अधिकारों और स्वतंत्रता को खतरा हो।

FAQs:

राष्ट्रीय आपातकाल क्या है?

राष्ट्रीय आपातकाल वह स्थिति है जिसमें देश की सुरक्षा को खतरा होने के आधार पर राष्ट्रपति संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत आपातकाल की उद्घोषणा करता है। यह युद्ध, बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह के कारण घोषित किया जा सकता है।

राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान मौलिक अधिकारों का क्या होता है?

राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान, राष्ट्रपति अनुच्छेद 19 (स्वतंत्रता का अधिकार) को निलंबित कर सकता है। साथ ही, अनुच्छेद 20 और 21 को छोड़कर किसी भी अन्य मौलिक अधिकार को लागू करने के लिए किसी भी अदालत में जाने के अधिकार को निलंबित किया जा सकता है।

राष्ट्रीय आपातकाल की अवधि कितनी होती है?

राष्ट्रीय आपातकाल उद्घोषणा जारी होने की तिथि से 6 महीनों तक लागू रहता है। इसे संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित एक संकल्प के माध्यम से अगले 6 महीनों के लिए और बढ़ाया जा सकता है। इस प्रक्रिया से इसे अनिश्चित समय तक बढ़ाया जा सकता है।

राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान सत्ता का केंद्रीकरण कैसे होता है?

राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान, संसद राज्य सूची के विषयों सहित किसी भी मामले पर कानून बना सकती है। केंद्र सरकार राज्यों को निर्देश दे सकती है कि उन्हें कार्यकारी शक्तियों का किस प्रकार उपयोग करना चाहिए। इसके अलावा, राष्ट्रपति संघ और राज्यों के बीच वित्तीय संसाधनों के आवंटन से संबंधित उपबंधों में बदलाव कर सकता है।

राष्ट्रीय आपातकाल की समाप्ति के बाद क्या हुआ?

1977 में आपातकाल समाप्त हुआ और देश में लोकतंत्र की बहाली हुई। इसके बाद हुए आम चुनावों में कांग्रेस पार्टी को भारी हार का सामना करना पड़ा और जनता पार्टी सत्ता में आई।

भारत में राष्ट्रीय आपातकाल कब-कब घोषित किया गया है?

भारत में तीन बार राष्ट्रीय आपातकाल घोषित किया गया है:
1962 में चीन के साथ युद्ध के दौरान।
1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध के दौरान।
25 जून, 1975 को आंतरिक खतरे के आधार पर

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