भारत ने अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक अनुसंधान के क्षेत्र में एक और महत्वपूर्ण कदम उठाया है। देश के प्रतिष्ठित परमाणु ऊर्जा विभाग (DAE) ने संयुक्त राज्य अमेरिका की अत्याधुनिक “प्रोटॉन इंप्रूवमेंट प्लान (PIP-II)” परियोजना पर सहयोग के लिए अपने निर्माण चरण की शुरुआत की है। यह परियोजना अपने आप में एक अनूठी पहल है, क्योंकि PIP-II संयुक्त राज्य अमेरिका का पहला ऐसा पार्टिकल एक्सेलरेटर होगा। इसका निर्माण फर्मिलैब में किया जा रहा है, और इस महत्वाकांक्षी प्रयास में अंतरराष्ट्रीय भागीदारों का एक समूह शामिल है, जिसमें भारत के साथ फ्रांस, इटली, पोलैंड और यूनाइटेड किंगडम के विशेषज्ञ और संस्थान शामिल हैं।
भारत के योगदान के केंद्र में 140 मिलियन डॉलर मूल्य के महत्वपूर्ण वैज्ञानिक उपकरण उपलब्ध कराना है। यह सहभागिता भारत के ‘परमाणु ऊर्जा विभाग (DAE) के अग्रणी संस्थान, राजा रामन्ना सेंटर फॉर एडवांस्ड टेक्नोलॉजी (RRCAT)’ द्वारा संचालित की जा रही है। RRCAT के वैज्ञानिक एवं तकनीकी विशेषज्ञ सुपरकंडक्टिंग मैग्नेट, क्रायोस्टैट्स जैसे उपकरणों के निर्माण के साथ PIP-II के डिजाइन एवं परीक्षण में अहम भूमिका निभा रहे हैं। ये उपकरण लॉन्ग-बेसलाइन न्यूट्रिनो फैसिलिटी (LBNF) के भीतर बनने वाले डीप अंडरग्राउंड न्यूट्रिनो एक्सपेरिमेंट (DUNE) को मजबूती प्रदान करेंगे।
Fermilab की महत्वाकांक्षी PIP-II परियोजना का लक्ष्य दुनिया का सबसे शक्तिशाली और उच्च-ऊर्जा युक्त न्यूट्रिनो बीम तैयार करना है। यह न्यूट्रिनो बीम DUNE (Deep Underground Neutrino Experiment) नामक एक विशाल वैज्ञानिक प्रयोग में उपयोग किया जाएगा। DUNE प्रयोग के केंद्र में दक्षिणी डकोटा में गहरे भूमिगत स्थित विशाल लिक्विड आर्गन डिटेक्टर होंगे। Fermilab से DUNE डिटेक्टर तक भेजे गए न्यूट्रिनो बीम के डिटेक्टर के भीतर इंटरैक्शंस का अध्ययन करके, वैज्ञानिक न्यूट्रिनो में होने वाले परिवर्तनों (oscillations) का अध्ययन करेंगे। यह अध्ययन ब्रह्मांड और पदार्थ के गठन के रहस्यों को उजागर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
पार्टिकल एक्सेलरेटर की अवधारणा
पार्टिकल एक्सेलरेटर वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए उपयोग किए जाने वाले खास उपकरण होते हैं। इनका उपयोग प्रोटॉन, परमाणु के नाभिक (nucleus) और इलेक्ट्रॉन जैसे छोटे-छोटे कणों को प्रकाश की गति के बहुत करीब पहुंचा देता है। ये एक्सेलरेटर ऐसा मज़बूत विद्युत और चुंबकीय क्षेत्र बना कर कर पाते हैं। पार्टिकल एक्सेलरेटर मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं:
- लिनियर एक्सेलरेटर्स: इनमें छोटे कण एक सीधी रेखा में चलते हुए गति पकड़ते हैं। इनकी गति को बढ़ाने के लिए एक के बाद एक कई विद्युत क्षेत्र बनाए जाते हैं, जिनसे गुज़र कर कणों को ऊर्जा मिलती है। स्टैनफोर्ड लीनियर एक्सेलरेटर सेंटर (SLAC) इसका एक प्रसिद्ध उदाहरण है।
- सर्कुलर एक्सेलरेटर: इनमें कण एक गोल रास्ते पर चलते हैं। इनके रास्ते को नियंत्रित करने और इन्हें गोल घुमाने के लिए बड़े-बड़े चुंबक (इलेक्ट्रोमैग्नेट) लगाए जाते हैं। हर चक्कर के साथ कण और अधिक ऊर्जा प्राप्त करते हैं। CERN का लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर (LHC) एक मशहूर उदाहरण है।
पार्टिकल एक्सेलरेटर के मुख्य हिस्से
एक पार्टिकल एक्सेलरेटर को काम करने के लिए इन महत्वपूर्ण हिस्सों की ज़रूरत होती है:
- कणों का स्रोत: यह उन कणों को उत्पन्न करता है जिन्हें त्वरित किया जाएगा; स्रोत का प्रकार वांछित कणों पर निर्भर करता है।
- त्वरण संरचना: इस हिस्से में, रेडियो तरंगों के ज़रिए कणों को ऊर्जा और गति प्रदान की जाती है।
- वैक्यूम चैम्बर: यह एक खाली धातु की ट्यूब होती है जिसके भीतर कण चलते हैं। इसे खाली रखा जाता है ताकि हवा के अणु कणों के रास्ते में बाधा न बनें।
- मैग्नेट्स: शक्तिशाली मैग्नेट कणों की किरण को मोड़ते और नियंत्रित करते हैं ताकि कण हमेशा सही रास्ते पर चलते रहें।
पार्टिकल एक्सेलरेटर के कुछ प्रसिद्ध उदाहरण
विश्व भर में बड़े पैमाने पर पार्टिकल एक्सेलरेटर मौजूद हैं जिनका उपयोग विभिन्न वैज्ञानिक प्रयोगों और खोजों के लिए किया गया है। आइए कुछ प्रमुख उदाहरणों पर एक नज़र डालें:
- लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर (LHC): स्विट्जरलैंड और फ्रांस की सीमा के नीचे स्थित LHC एक विशाल 27 किलोमीटर के गोलाई वाला विंग है। इसमें शक्तिशाली सुपरकंडक्टिंग मैग्नेट्स हैं जो प्रोटॉन्स को लगभग प्रकाश की गति से अलग-अलग दिशाओं में त्वरित करते हैं। उच्च ऊर्जा पर इनके टकराव से नए पार्टिकल्स का निर्माण होता है जो हमारे ब्रह्मांड की उत्पत्ति और उसके घटकों को समझने में हमारी मदद करते हैं। इसी उपकरण से हिग्स बोसोन (‘गॉड पार्टिकल’) की खोज की गई थी।
- स्टैनफोर्ड लीनियर एक्सेलरेटर सेंटर (SLAC), संयुक्त राज्य अमेरिका: लगभग 3 किलोमीटर लंबा SLAC इलेक्ट्रॉनों को गति प्रदान करता है। ये इलेक्ट्रॉन पदार्थ के भीतर मौजूद एटम्स और मॉलिक्यूल्स के अंदरूनी हिस्सों का अध्ययन संभव बनाते हैं। इस एक्सेलरेटर को क्वार्क्स और लेप्टॉन जैसे मूलभूत पार्टिकल्स की खोज के लिए भी जाना जाता है।
- यूरोपियन सिंक्रोट्रॉन रेडिएशन फ़ैसिलिटी (ESRF): ESRF अपने बेहद शक्तिशाली एक्स-रे बीम्स के लिए जाना जाता है। जब उच्च ऊर्जा के इलेक्ट्रॉन मैग्नेटिक फील्ड से होकर गुजरते हैं, वो तेज एक्स-रे किरणों का उत्सर्जन करते हैं। इस तरह उत्पन्न एक्स-रे का उपयोग वैज्ञानिक विभिन्न पदार्थों के सूक्ष्मतम गठन का विश्लेषण , पुरात्त्विक वस्तुओं का गहराई से अध्ययन, और नई दवाइयों के निर्माण में करते हैं।
पार्टिकल एक्सेलरेटर क्यों महत्वपूर्ण हैं?
पार्टिकल एक्सेलरेटर हमारे ब्रह्मांड और उसमें मौजूद पदार्थ एवं बलों को लेकर बुनियादी वैज्ञानिक अनुसंधान को काफी मजबूती देते हैं। उनकी अहमियत निम्नलिखित क्षेत्रों में देखी जा सकती है:
- मौलिक भौतिकी: उच्च ऊर्जा पर कणों के टकराव से नए पार्टिकल्स, बल, और घटनाएं प्रकट हो सकती हैं। LHC में हिग्स बोसोन की खोज इसका आदर्श उदाहरण है। ये खोजें पदार्थ के गठन, ब्रह्मांड की उत्पत्ति, और प्रकृति के बुनियादी बलों की हमारी समझ को गहरा करती हैं।
- पदार्थ विज्ञान: सिंक्रोट्रॉन जैसे एक्सेलरेटर द्वारा उत्पन्न एक्स-रे और अन्य रेडिएशन से वैज्ञानिक विभिन्न पदार्थों का सूक्षतम स्तर पर अध्ययन करपाते हैं। इससे नई-नई सामग्रियों का निर्माण, ऊर्जा भंडारण,और नैनो टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में प्रगति को बल मिलता है।
- मेडिकल अनुप्रयोग: एक्सेलरेटर-जनित रेडिएशन से कैंसर के इलाज के अत्याधुनिक तरीके विकसित किए जाते हैं। चिकित्सा उपकरणों के स्टरलाइजेशन (रोगाणुओं, विषाणुओं से पूरी तरह मुक्त करना), रेडियोफार्मास्यूटिकल्स के संश्लेषण, और कैंसर के निदान एवं उपचार में इनका व्यापक इस्तेमाल होता है। साथ ही मेडिकल इमेजिंग, रेडियोआइसोटोप का निर्माण जोकि कई बीमारियों के निदान में सहायक होते हैं, भी इन तकनीकों के माध्यम से मुमकिन हुआ है।
- औद्योगिक उपयोग: विभिन्न पदार्थों की गुणवत्ता बढ़ाने से लेकर पुरातात्विक खोजों के विश्लेषण तक , एक्सेलरेटर तकनीक का प्रयोग कई औद्योगिक क्षेत्रों में होता है।
- पर्यावरण: पार्टिकल एक्सेलरेटर की तकनीक से हवा, पानी, मिट्टी में रासायनिक तत्वों के अंशों का पता लगाना संभव होता है, जिससे पर्यावरण प्रदूषण का सटीक आकलन एवं रोकथाम हो पाता है।
PIP-II परियोजना में भारत का अहम योगदान
भारत और अमेरिका के बीच विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में सहयोग का एक लंबा इतिहास रहा है। PIP-II परियोजना में सहभागिता भारत के इस दिशा में जारी प्रयासों का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जहाँ भारत वैश्विक स्तर के बड़े वैज्ञानिक अनुसंधान में अपनी अहम भूमिका निभा रहा है। भारत के अनुभवी वैज्ञानिक एवं तकनीशियन इस परियोजना में निम्नलिखित रूपों में अपनी विशेषज्ञता दे रहे हैं:
- अत्याधुनिक उपकरणों का निर्माण: भारत के परमाणु ऊर्जा विभाग (DAE) के संस्थान, खासकर ‘राजा रामन्ना सेंटर फॉर एडवांस्ड टेक्नोलॉजी (RRCAT)’ इंदौर, अहम योगदान दे रहे हैं। RRCAT के पास सुपरकंडक्टिंग रेडियो फ्रीक्वेंसी (SRF) तकनीक में विशेषज्ञता हासिल है, जोकि आधुनिक एक्सेलरेटरों के लिए बेहद जरूरी है। भारत PIP-II के लिए SRF उपकरण, क्रायोमॉड्यूल और ज़रूरी पॉवर सप्लाई के निर्माण में अहम भूमिका निभा रहा है। .
- डिजाइन और टेस्टिंग में योगदान: भारतीय वैज्ञानिक PIP-II के पार्टिकल बीम लाइन के घटकों की डिजाइन में भी जुड़े हैं। इसके अतिरिक्त, भारत में विकसित किए जाने वाले उपकरणों की टेस्टिंग भी RRCAT एवं अन्य सहयोगी संस्थानों में की जाएगी ताकि ये सुनिश्चित हो कि वे फर्मिलैब में लगने से पहले सारे कड़े मानकों पर खरे उतरें।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की भावना: PIP-II में काम कर रहे भारतीय वैज्ञानिक फर्मिलैब के अमेरिकी वैज्ञानिकों और अन्य देशों से आए विशेषज्ञों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। इससे तकनीकी ज्ञान का आदान-प्रदान सुचारू होता है और विज्ञान का वैश्विक उद्देश्य भी मजबूत होता है।
- भारत में क्षमता निर्माण: परमाणु ऊर्जा विभाग और RRCAT जैसे संस्थानों ने एक्सेलरेटर तकनीकों में भारत की देशी क्षमता को काफी मजबूत किया है। PIP-II में अनुभव से भारतीय वैज्ञानिकों को और विशेषज्ञता मिलेगी, जो भविष्य की स्वदेशी परियोजनाओं के लिए बेहद फ़ायदेमंद होगा।
Also Read
ISRO SUCCESSFULLY LAUNCHES INSAT-3DS WEATHER SATELLITE: A MILESTONE IN DISASTER MANAGEMENT AND ACCURATE WEATHER FORECASTING; इसरो ने INSAT-3DS मौसम उपग्रह का किया सफल प्रक्षेपण: आपदा प्रबंधन और सटीक मौसम पूर्वानुमान में मील का पत्थर: