ग्रेट बैरियर रीफ, जो दुनिया की सबसे बड़ी कोरल रीफ प्रणाली है, वर्तमान में गंभीर संकट का सामना कर रही है। हाल ही में प्रकाशित एक अध्ययन ने संकेत दिया है कि पिछले चार शताब्दियों में महासागरीय सतह के उच्चतम तापमान ने इस अद्वितीय पारिस्थितिकी तंत्र को भारी खतरे में डाल दिया है। यह अध्ययन नेचर जर्नल में प्रकाशित हुआ है और इसमें कहा गया है कि समुद्री सतह के बढ़ते तापमान के कारण ग्रेट बैरियर रीफ में बार-बार मास कोरल ब्लीचिंग की घटनाएँ हो रही हैं। इन घटनाओं ने कोरल कॉलोनियों के अस्तित्व पर गंभीर संकट खड़ा कर दिया है।
ग्रेट बैरियर रीफ में कोरल ब्लीचिंग की घटनाएँ:
2016 से 2024 के बीच, ग्रेट बैरियर रीफ में मास कोरल ब्लीचिंग की पाँच बड़ी घटनाएँ दर्ज की गई हैं। इन घटनाओं के कारण रीफ की जैव विविधता पर गहरा असर पड़ा है। कोरल ब्लीचिंग के परिणामस्वरूप, कोरल की रंगत खो जाती है और वे सफेद हो जाते हैं। यदि यह स्थिति लंबे समय तक बनी रहती है, तो कोरल की मृत्यु भी हो सकती है, जिससे रीफ का संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित होता है।
ग्रेट बैरियर रीफ के बारे में:
ग्रेट बैरियर रीफ, ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड के तट पर कोरल सागर में स्थित है। यह विश्व की सबसे बड़ी कोरल रीफ (प्रवाल भित्ति) प्रणाली है, जो कि लगभग 2,300 किलोमीटर तक फैली हुई है और इसे 1981 में यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया था। यह रीफ हजारों प्रजातियों के लिए आवास प्रदान करता है और वैश्विक जैव विविधता के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान है।
कोरल रीफ के बारे में:
स्वस्थ प्रवाल भित्तियाँ (Coral Reefs) समुद्र के भीतर बनने वाले जैव-विविधता से भरे बेहद खूबसूरत इकोसिस्टम हैं। प्रवाल या कोरल अपने ऊतकों में एक विशेष प्रकार के रंगीन शैवाल (algae) रखते हैं, जिन्हें “जूज़ैंथेले” (zooxanthellae) कहा जाता है। यह शैवाल प्रवाल को पोषण और उनका जीवंत रगं प्रदान करते हैं।
कोरल रीफ निडारिया (Cnidaria) प्राणी समूह के अकशेरुकी (Invertebrate) जीव होते हैं। कोरल रीफ का निर्माण लाखों छोटे पॉलीप्स द्वारा कार्बोनेट की बड़ी संरचनाएँ बनाने से होता है। विश्व की अधिकांश कोरल रीफ उष्णकटिबंधीय जल में पाई जाती हैं। विश्व की एक तिहाई से अधिक कोरल रीफ्स ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया और फिलीपींस के जलक्षेत्रों में स्थित हैं। भारत में, कच्छ की खाड़ी, मन्नार की खाड़ी, अंडमान और निकोबार, लक्षद्वीप तथा मालवण (महाराष्ट्र) में कोरल रीफ पाई जाती हैं।
जब समुद्र में प्रदूषण, उच्च अम्लता, या तापमान बढ़ने जैसी प्रतिकूल परिस्थितियाँ उत्पन्न होती हैं, तो प्रवाल तनाव की स्थिति में आ जाते हैं। इस तनाव के कारण प्रवाल इन जूज़ैंथेले शैवाल को अपने अंदर से निकाल देतेहैं, जिसके चलते वह अपना रगं खो देते हैं। इस पूरी प्रक्रिया को ही प्रवाल विरंजन (Coral Bleaching) कहा जाता है।
कोरल ब्लीचिंग के कारण:
कोरल ब्लीचिंग के पीछे कई कारक जिम्मेदार हैं, जिनमें प्रमुख हैं:
- महासागरीय सतही जल का बढ़ता तापमान: वैश्विक तापमान वृद्धि के कारण महासागर का सतही तापमान बढ़ रहा है, जिससे कोरल ऊष्मीय तनाव में आते हैं।
- अल्ट्रावायलेट (UV) विकिरण की वृद्धि: बढ़ती UV विकिरण की मात्रा कोरल के लिए हानिकारक होती है, जिससे वे तनावग्रस्त हो जाते हैं।
- प्रदूषण और नदियों का समुद्र में मिलना: तेज बहाव वाली नदियों के साथ प्रदूषण का समुद्र में मिलना कोरल के लिए खतरनाक हो सकता है।
- चरम निम्न ज्वार के कारण वायु का संपर्क: लंबे समय तक निम्न ज्वार के दौरान कोरल का वायु के संपर्क में आना उनके लिए हानिकारक होता है।
- महासागर का अम्लीकरण: महासागर के पानी का अम्लीय होना कोरल के कैल्शियम कार्बोनेट संरचनाओं को कमजोर करता है, जिससे उनका विकास रुक जाता है।
कोरल रीफ का महत्त्व:
कोरल रीफ पारिस्थितिकी तंत्र के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं और इनमें उष्णकटिबंधीय वर्षावनों से भी अधिक जैव विविधता होती है। ये रीफ चक्रवातों और तटीय अपरदन से तटरेखाओं की रक्षा करती हैं, साथ ही कार्बन सिंक के रूप में कार्य करती हैं, जिससे जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में मदद मिलती है। कोरल रीफ न केवल समुद्री जीवन के लिए बल्कि मानव समाज के लिए भी महत्वपूर्ण संसाधन प्रदान करती हैं।
कोरल रीफ के संरक्षण के लिए किए गए उपाय:
वैश्विक स्तर पर पहल
- वैश्विक कोष: कोरल रीफ के संरक्षण के लिए वैश्विक कोष की स्थापना की गई है, जो कोरल की रक्षा और पुनर्निर्माण के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
- वैश्विक कोरल रीफ निगरानी नेटवर्क: यह नेटवर्क कोरल रीफ की स्थिति की निगरानी करता है और उनके संरक्षण के लिए रणनीतियाँ विकसित करता है।
- कोरल ट्रायंगल पहल: यह पहल पश्चिमी प्रशांत महासागर में स्थित समुद्री क्षेत्र में काम करती है और इसमें इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, पापुआ न्यू गिनी, तिमोर लेस्ते और सोलोमन द्वीप समूह के जलक्षेत्र शामिल हैं।
भारत की पहलें
- समुद्री संरक्षित क्षेत्र: भारत ने समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण कोरल रीफ क्षेत्रों को संरक्षित क्षेत्र घोषित किया है।
- बायोरॉक तकनीक: इस तकनीक के माध्यम से कोरल की रिकवरी की जा रही है, जिससे उनकी वृद्धि को प्रोत्साहन मिलता है।
कोरल रीफ संरक्षण की चुनौतियाँ:
कोरल रीफ के संरक्षण में कई चुनौतियाँ हैं। इनमें जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण, अत्यधिक मछली पकड़ने और तटीय विकास शामिल हैं। इन चुनौतियों का सामना करने के लिए वैश्विक और स्थानीय स्तर पर ठोस प्रयासों की आवश्यकता है।
निष्कर्ष:
ग्रेट बैरियर रीफ और अन्य कोरल रीफ्स के सामने जो खतरे उत्पन्न हुए हैं, वे मानवजनित गतिविधियों और जलवायु परिवर्तन के संयुक्त प्रभावों का परिणाम हैं। इन अद्वितीय पारिस्थितिकी तंत्रों की रक्षा के लिए तत्काल और समन्वित प्रयासों की आवश्यकता है। वैश्विक स्तर पर जागरूकता बढ़ाने और स्थानीय स्तर पर संरक्षण के उपाय करने से ही इनकी सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है। कोरल रीफ्स की रक्षा के लिए की जा रही पहलें, न केवल जैव विविधता की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं, बल्कि यह हमारे ग्रह के स्वास्थ्य के लिए भी आवश्यक हैं। हमें यह समझना होगा कि कोरल रीफ्स की सुरक्षा के बिना समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को स्थिर रखना संभव नहीं है, और इसलिए उनकी सुरक्षा के लिए सभी स्तरों पर प्रयास करने की आवश्यकता है।
FAQs:
ग्रेट बैरियर रीफ क्यों महत्वपूर्ण है?
ग्रेट बैरियर रीफ विश्व की सबसे बड़ी कोरल रीफ प्रणाली है और यह हजारों प्रजातियों के लिए आवास प्रदान करती है। यह जैव विविधता के लिए महत्वपूर्ण है और चक्रवातों तथा तटीय अपरदन से तटरेखाओं की रक्षा करती है। इसके अलावा, यह कार्बन सिंक के रूप में कार्य करती है, जो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में मदद करता है।
कोरल ब्लीचिंग क्या है?
कोरल ब्लीचिंग वह प्रक्रिया है जिसमें कोरल ऊष्मीय तनाव के कारण अपने भीतर स्थित सहजीवी शैवाल को बाहर निकाल देते हैं, जिससे वे सफेद हो जाते हैं। यह स्थिति तापमान, प्रकाश या पोषक तत्वों की कमी के कारण हो सकती है। यदि तनाव लंबे समय तक बना रहता है, तो कोरल की मृत्यु भी हो सकती है।
कोरल रीफ के संरक्षण के लिए कौन-कौन से उपाय किए जा रहे हैं?
वैश्विक स्तर पर, कोरल रीफ के संरक्षण के लिए वैश्विक कोष, वैश्विक कोरल रीफ निगरानी नेटवर्क और कोरल ट्रायंगल पहल जैसी पहलें की जा रही हैं। भारत में, समुद्री संरक्षित क्षेत्रों की स्थापना और बायोरॉक तकनीक का उपयोग करके कोरल की रिकवरी की जा रही है।